मोदी जी यानी वैश्विक दृष्टिकोण

मोदी जी की गारंटी मतलब, पूरी होने की गारंटी

कैलाश विजयवर्गीय
राष्ट्रीय महासचिव, भारतीय जनता पार्टी

नरेंद्र मोदी…
यानी एक वैश्विक नेता,
यानी एक संपूर्ण नेता,
यानी धर्म युग के प्रणेता
तमाम संज्ञा, सर्वनाम हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के व्यक्तित्व और विजन के आगे फीके पड़ जाते हैं। वे जो ‘गारंटी’ देते हैं, उसकी हर हाल में पूरी होने की गारंटी होती है।
उनका
एक धर्म: प्रथम भारत
एक पवित्र ग्रंथ: संविधान
एक भक्ति: भारत की भक्ति
एक शक्ति: जन शक्ति
एक संस्कार: जनता की सुरक्षा और खुशहाली
और
एक ही मंत्र: सबका साथ, सबका विकास-सबका विश्वास और सबका प्रयास।

वे सपने नहीं हकीकत बुनते हैं,
तभी तो सब मोदी जी को चुनते हैं।।

हालिया संपन्न विधानसभा चुनावों में देश के तीन राज्यों (मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़) में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड जीत इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि देशवासियों को मोदी जी की गारंटी पर पूरा भरोसा है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह नया भारत है। आकांक्षी भारत है। युवा मतदाताओं का भारत है। इस चुनाव में युवा तरुणाई ने भी बढ़-चढ़कर अपने मत का प्रयोग करते हुए मोदी जी के विजन पर अपनी मुहर लगाई है।
यह अतिशयोक्ति नहीं है कि संपूर्णता समेटे मोदी जी के हर कर्म में सिद्वि झलकती है। वे अपने अदम्य साहस, मेहनत, उत्कृष्ट प्रबंधन, पुरुषार्थ और बेजोड़ कार्यशैली के लिए पहचाने जाते हैं। यथार्थपरक सोच और जमीनी काम के बूते उन्होंने भारत को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया है। वे आज विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं। पूरी दुनिया उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का लोहा मानती है। टाइम्स स्क्वॉयर हो या दुबई, हर जगह मोदी जी के नारे गूंजते हैं। वे जनता के दिलों पर राज करते हैं। यह महीने-दो महीने की बात नहीं, बल्कि उनकी वर्षों की तपस्या…सतत परिश्रम और दूरगामी सोच का परिणाम है।
संत शिरोमणि रविदास जी महाराज कहते थे,
ऐसा चाहूं राज मैं जहां सबन को मिले अन्न,
छोटा बड़ा सभ सम बसै, रविदास रहे प्रसन्न।
मोदी जी ऐसे ही सशक्त समाज की स्थापना कर रहे हैं। आजादी के बाद देश की सरकारें अमीर-गरीब, शहर-गांव, कृषि-उद्योग जैसे अनेक विरोधाभासों से ग्रस्त रहीं, लेकिन जब मोदी जी प्रधानमंत्री बने तो अमीर और गरीब की खाई पाटकर सबको एक साथ लेकर चलने की नीति अपनाई और इसमें निरंतर सफल रहे हैं। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। जहां दूसरों से उम्मीद खत्म होती है, वहां से मोदी जी की गारंटी शुरू होती है।
देश में भगवान बिरसा मुंडा की जयंती से शुरू की गई विकसित भारत संकल्प यात्रा के जरिए सरकार हितग्राही मूलक योजनाओं से वंचित लोगों को जोड़ने के लिए हर दरवाजे पर दस्तक दे रही है। जिन क्षेत्रों में यात्रा पहुंच रही है, वहां लोग खुशियां मना रहे हैं।

पूरा होने को है 500 वर्ष पुराना स्वप्न :-
500 वर्ष बाद अयोध्या धाम में सकल आस्था के प्रतिमान प्रभु श्रीरामलला के भव्य और दिव्य मंदिर का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। 22 जनवरी 2024 को अभिजीत मुहूर्त में प्रधानमंत्री जी के आतिथ्य में श्री रामलला मंदिर में विराजमान होंगे। हम भाग्यशाली हैं कि इस आयोजन के साक्षी बनेंगे। मोदी जी के नेतृत्व में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का जीर्णोद्धार और उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर के निर्माण ने प्राचीन इतिहास को और समृद्ध किया है।

एकजुटता की बयार :-
प्रधानमंत्री श्री मोदी की अगुवाई में हमारा देश 21वीं सदी की सबसे जागृत अवस्था में है। भारत आज आध्यात्मिकता, तकनीक और अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी है तो इसके पीछे देश की विविध पृष्ठभूमि से आने वाले 140 करोड़ देशवासियों के समर्थन वाली मजबूत और स्थिर सरकार की सबसे बड़ी भूमिका है। देश को एकजुट करने में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जो सफलता हासिल की है, वह आजादी के बाद कोई अन्य प्रधानमंत्री हासिल नहीं कर सके।

विश्वास का वातावरण :-
पारदर्शी छवि और साहसिक फैसले मोदी जी को वैश्विक राजनीति में पहले पायदान पर खड़ा करते हैं। बिना सुरक्षा घेरे के लाल किले से संबोधन उनकी निर्भीकता को दर्शाता है। यह कदम जनता जनार्दन में भी निर्भयता का वातावरण पैदा करता है। मेट्रो ट्रेन में आम जन की भांति यात्रा, बच्चों से स्नेह और नागरिकों से संवाद उनकी सादगी को प्रमाणित करता है। उनके भ्रष्टाचार पर कठोर प्रहार के कदम ने भ्रष्टाचारियों में भय और गरीबों में विश्वास का माहौल बनाया है।

वैश्विक क्षेत्र में नया जीवन :-
मोदी जी के नेतृत्व में आज हमारा भारत स्वच्छ से स्वस्थ हो रहा है। स्वस्थ से समरस हो रहा है। समरस से सशक्त हो रहा है। सशक्त से समृद्ध हो रहा है। यह अमृतकाल की जीवंत यात्रा है और इस यात्रा में अनेक बड़े कदम हैं, जैसे-अनुच्छेद-370, तीन तलाक, कोरोना से जंग एवं चांद पर दस्तक। जी-20 शिखर सम्मेलन की कामयाबी भी बता रही है कि मोदी जी की अगुवाई में भारत की संस्कृति, विविधता और सभ्यता वैश्विक क्षेत्र में फिर से नया जीवन ले रही है।

आत्मनिर्भर हो रहा भारत :-
प्रधानमंत्री जी ने भारत की अर्थव्यवस्था पांच ट्रिलियन करने का लक्ष्य रखा है और देश इस संकल्प को लेकर आगे बढ़ रहा है। हम देख रहे हैं कि भारत गरीबी से मुक्त हो रहा है। आर्थिक रूप से संपन्न हो रहा है। शिक्षा में अग्रणी हो रहा है। मोदी जी के व्यक्तित्व को हिन्दी शब्दकोष के शब्दों में व्यक्त करना मानो मुश्किल है। अब 2024 के बाद आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का स्वप्न मोदी जी के नेतृत्व में पूरी तरह साकार होगा, इसका पूर्ण विश्वास है।

अब और क्या बताऊं उनके किरदार के बारे में,
बस यूं समझ लीजिए.. चमकते चांद हैं…करोड़ों सितारों में..।।
आपका वंदन…।

नरेंद्र मोदी- एक अनुकरणीय व्यक्तित्व

कैलाश विजयवर्गीय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सम्पूर्ण जीवन, उनके विचार, संगठन और सरकार में रहते हुए कार्य हमारे लिए प्रेरणा हैं। गुजरात में भाजपा के महामंत्री, मुख्यमंत्री तथा अब केंद्र में प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी के कार्य केवल राजनीतिक क्षेत्र के ही नहीं बल्कि देश के हर व्यक्ति में एक नई ऊर्जा का संचार करते हैं। केंद्र में मोदी सरकार के दस वर्ष पूरे होने वाले हैं। मोदी सरकार की योजनाओं, परियोजनाओं और विकास कार्यों की जानकारी हर वर्ष आम जनता तक पहुंचाई जाती हैं। वाराणसी के सांसद के तौर पर किए गए विकास कार्य हर सांसद के लिए उदाहरण हैं। एक सांसद के तौर पर जिस तरह मोदीजी ने वाराणसी का विकास कराया है, वे हर जनप्रतिनिधि को अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिए उदाहरण हैं। जिस तरह से प्रधानमंत्री ने एक सांसद के तौर पर ग्रामों गोद लेकर विकास कराया, उससे भी हमें प्रेरणा मिलती है।
गुजरात में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक, गुजरात भारतीय जनता पार्टी के महासचिव, भाजपा के राष्ट्रीय सचिव और राष्ट्रीय महामंत्री संगठन के तौर उनकी रणनीतियां, कार्यकर्ताओं के लिए संदेश और मार्गदर्शन हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहे हैं। गुजरात के कार्यकर्ता अक्सर बातचीत में जिक्र करते हैं कि मोदीजी पार्टी के प्रशिक्षण शिविरों में एक आदर्श कार्यकर्ता में ये चार प्रमुख गुण होना जरूरी मानते थे। मोदीजी कार्यकर्ताओं को प्रेरणा देते हुए कहते थे कि एक आदर्श कार्यकर्ता में पग में चक्कर, जीभ में शक्कर, सर पे बर्फ और दिल में हमा रखने का मंत्र सिखाते थे। पग में चक्कर यानी लगातार सक्रिय रहो और जीभ में शक्कर का मतलब हमेशा मीठी वाणी बोलों। इसके साथ ही सर पे बर्फ यानी शांति से कार्य करो और दिल में हाम का अर्थ बताते थे कि हमेशा हिम्मत रखो। कार्यकर्ताओं को ऐसा मंत्र देते हुए मोदीजी ने गुजरात में भाजपा को मजबूती से जमा दिया। 1967 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडने के बाद 1984 में भाजपा के प्रदेश संगठन मंत्री, 1987 में प्रदेश महामंत्री का पद संभालने वाले मोदी ने अहमदाबाद नगर निगम में भाजपा का पहली बार परचम फहराने के बाद पार्टी को गुजरात में लगातार विजयश्री दिलाई। पिछले विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की अगुवाई गुजरात की जनता ने सारे रिकार्ड तोड़ते हुए भाजपा को 156 सीटों पर जीत दिलाई। गुजरात को नंबर एक राज्य बनाने के बाद नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत एक बड़ी ताकत बनकर उभरा। 2014 में विश्व की दसवीं अर्थव्यवस्था भारत आज पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। मोदीजी ने अगले कार्यकाल में भारत को तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य तय किया है। विदेशी मोर्चे पर देश की धाक बड़ी है। विश्व के बड़े-बड़े नेताओं के लिए अब भारत की राय महत्व रखती है। देश की सीमाएं सुरक्षित हैं तो आंतरिक शांति बढ़ी है। देश में आधारभूत ढांचा मजबूत हो रहा है तो खेती विकसित हुई है। किसान खुशहाल हुए हैं। मोदी सरकार में गरीबों की समस्याएं दूर हुई हैं। सरकार ने उनके लिए रोजगार, आवास, चिकित्सा, शिक्षा आदि की व्यवस्था की है। प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में स्वच्छ भारत अभियान के तहत गांवों और शहरों में 12 करोड़ शौचालय बने। जनधन योजना के मुद्रा योजना के तहत 40.82 करोड़ लोगों को 23.2 लाख करोड़ का कर्ज दिया गया। पीएम आवास योजना के तहत 3.45 करोड़ घर बनाए गए। उज्ज्वला योजना के तहत 9.59 करोड़ घरों में एलपीजी कनेक्शन दिया गया। जन आरोग्य योजना के तहत 4.44 करोड़ लोगों का इलाज हुआ। किसान सम्मान निधि योजना के तहत देशभर के 12 करोड़ किसानों को हर साल 6 हजार रुपये की सहायता राशि दी जाती है। हर घर जल योजना के तहत अब तक 11.66 करोड़ परिवारों को पीने का साफ पानी उपलब्ध कराया गया।
मोदीजी ने जिस तरह पुरातन काशी नव्य-भव्य-दिव्य रूप दिलाया है। बाबा विश्वनाथ कोरिडोर के निर्माण के बाद दर्शन करने वाले भक्तों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस बार सावन के महीने उमड़ी अपार भीड़ ने सभी रिकार्ड तोड़ दिए। पुरातन काशी की सड़कों चौड़ा किया गया है। काशी में 40 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की योजनाओं का लोकापर्ण किया गया। 2023 तक 500 से ज्यादा परियोजनाओं को लोकार्पण किया गया। काशी के आसपास के शहरों को हाइवे से जोड़ा गया है। काशी की जनता को रेल, सड़क, जल, हवाई यातायात की सुविधाएं दिलाई गईं हैं। गंगा के घाटों को नया रूप देने के साथ ही मोदीजी ने काशी की जनता को स्वस्छता संदेश दिया है। काशी की जनता भी अपने लोकप्रिय प्रधानमंत्री और सांसद के हर संदेश को मान रही है। अगर किसी को भव्य काशी के निर्माण पर विश्वास नहीं हो रहा हो तो काशी में बाबा विश्वनाथ दर्शन करने जाइये। वहां की जनता मोदीजी का गुणगान करते मिलेगी।

मोदी की सफल आर्थिक नीति

कैलाश विजयवर्गीय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल अमेरिका की यात्रा के दौरान 23 जून को अमेरिकी संसद को संबोधित करते हुए कहा था कि जब पहली बार यहां आया था तो भारत की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। आज भारत पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और हम जल्दी ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंगे। उन्होंने कहा था कि हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और भारत बढ़ता है तो दुनिया बढ़ती है। भारत आज दुनिया में विदेशी वित्त निवेश में सबसे आगे है। हाल ही में जारी की गई वर्ल्ड इन्वेस्टमेंट रिपोर्ट-2023 में बताया गया है कि 2022 में भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) दस प्रतिशत बढ़ा है। इस मामले में भारत ने अमेरिका,चीन और ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ दिया है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आज भारत की गिनती दुनिया के सशक्त देशों में होती है। रिपोर्ट के अनुसार विदेशी निवेश के कारण भारत अब विश्व स्तर नई परियोजनाओं की घोषणा करने वाला तीसरा और अंतरराष्ट्रीय परियोजना वित्त सौदों के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया। प्रधानमंत्री मोदी ने आर्थिक नीतियों, जवाबदेह प्रशासन, आतंकवाद पर काबू, जनकल्याणकारी योजनाएं, डिजिटल भुगतान, भ्रष्टाचार पर रोक, बुनियादी ढांचे का विस्तार, विश्वस्तरीय परिवहन, घरेलू उत्पादन पर जोर आदि के माध्यम से देश की एक नई छवि गढ़ी है।

मोदी की नीतियों के कारण ही देश को 2014 से 2022 के दौरान 525 अरब डॉलर के विदेशी निवेश मिला है। कांग्रेस की अगुवाई वाली मनमोहन सिंह सरकार में 2006 से 2014 के दौरान 289 अरब डॉलर का विदेशी निवेश देश को मिला था। इस तरह देखे तो मोदी सरकार में 82 प्रतिशत ज्यादा विदेशी निवेश देश को मिला है। 2021-22 में अबतक का सबसे ज्यादा रिकार्ड 84.84 अरब अमेरिकी डॉलर का विदेशी निवेश देश को मिला है। वर्ष 2014-15 में भारत में केवल 45.15 अरब अमेरिकी डॉलर विदेशी निवेश आया था।

वित्त वर्ष 2003-04 में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 4.3 अरब अमेरिकी डॉलर था। उस समय के मुकाबले आज एफडीआई 20 गुणा बढ़ गया है। यह तब है जब रूस और यूक्रेन में युद्ध जारी है। कोरोना महामारी के प्रकोप के दौरान 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज के माध्यम से मोदी सरकार ने किसी क्षेत्र को भी नुकसान नहीं होने दिया। मोदी सरकार की नीतियों के कारण भारत विनिर्माण के क्षेत्र में विदेशी निवेश में बहुत बड़ी छलांग मार चुका है। 2020-21 में 12.09 अरब अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 2021-22 में 21.32 अरब अमेरिकी डॉलर विनिर्माण क्षेत्र में एफडीआई इक्विटी 76 फीसदी बढ़ी थी। कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर, ऑटोमोबाइल उद्योग और शिक्षा के क्षेत्र में भी विदेशी निवेश बहुत तेजी से बढ़ा है। मोदी सरकार की नीतियों के कारण कोयला खनन, अनुबंध निर्माण, डिजिटल मीडिया, एकल ब्रांड खुदरा व्यापार, नागरिक उड्डयन, रक्षा, बीमा और दूरसंचार जैसे क्षेत्रों में भी एफडीआई बढ़ रहा है।

अगर वैश्विक परिदृश्य पर नजर डाले तो परिस्थितियां बहुत प्रतिकूल दिखाई देती है। ज्यादातर देश में अशांति छाई हुई है। पड़ोसी पाकिस्तान की जनता परेशान है। लोग सड़कों पर उतरे हुए हैं। अफगानिस्तान पूरी तरह अशांत है। दुनिया को स्थिति को भांपते हुए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 2023 की शुरुआत में कहा था कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण अमेरिकी अर्थव्यवस्था कमजोर रहेगी। यूरोपीय देशों को आर्थिक संकट से गुजरना पड़ेगा। पिछले नौ वर्षों में मोदी सरकार ने तमाम संकंटों का मुकाबला करते हुए देश को मजबूत स्थिति में खड़ा कर दिया है। आज भारत रक्षा उत्पादन निर्यात में तेजी से आगे बढ़ता जा रहा है। मेक इन इंडिया के कारण रक्षा उत्पादन एक लाख करोड़ से ज्यादा हो गया है। भारत की सीमाएं सुरक्षित हैं और देश में कुछ घटनाओं को छोड़ दें तो आंतरिक शांति व्याप्त है। नक्सलवाद कुछ जिलों तक सीमित रह गया है। सुरक्षित और सशक्त भारत आर्थिक मजबूती की तरफ बढ़ रहा है।

एक देश, एक कानून के प्रबल समर्थक थे डॉ मुखर्जी

कैलाश विजयवर्गीय

भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने ही सबसे पहले देश में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तुष्टीकरण की राजनीति का विरोध किया था। देश की आजादी के बाद कांग्रेस सरकार के विरोध में डॉ मुखर्जी ने ही सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाई थी। जवाहर लाल नेहरू को संसद और सड़कों पर घेरकर डॉ मुखर्जी ने प्रखर राष्ट्रवाद के मार्ग को प्रशस्त किया था। संसद में डॉ मुखर्जी के प्रश्नों का उत्तर देते समय तत्कालीन प्रधाननंत्री नेहरू बौखला जाते थे। इसी बौखलाहट में नेहरू ने प्रेस पर भी प्रहार किए थे। उस समय नेहरू के प्रभाव के कारण डॉ मुखर्जी के कार्यों को कम करके आंका गया। आज केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार डॉ मुखर्जी के सपनों को साकार करने में लगी है। भारत की एकता-अखंड़ता, विकास, महिलाओं और शिक्षा के क्षेत्र में डॉ मुखर्जी के योगदान को नकारते हुए कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने उनके बारे में गलत प्रचार किया था।

डॉ मुखर्जी के बारे में यह भ्रम फैलाया गया था कि उन्होंने हिन्दू कोड बिल का विरोध किया था। इतिहास के पन्नों को पलटे तो डॉ मुखर्जी ने सबसे पहले देश में समान नागरिक संहिता लाने के लिए जोरदार आवाज उठाई थी। नेहरू मंत्रिमंडल में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय संभालने वाले डॉ मुखर्जी ने मतभेद होने के बाद इस्तीफा दे दिया था। नेहरू-लियाकत पैक्ट को हिंदुओं के साथ धोखा मानते हुए 1950 में उन्होंने नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था। सोची समझी नीति के तहत अंग्रेजी हुकूमत ने मुस्लिम कानूनों में कोई बदलाव नहीं किया था। देश की स्वतंत्र होने से पहले अंग्रेजी सरकार ने हिन्दू कानूनों में सुधार का प्रारूप बनाया था। देश के स्वतंत्र होने के बाद हिन्दू कोड को लागू करने के लिए पहले कानून मंत्री डॉ भीमराव आम्बेडकर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। नेहरू के रूख को देखते हुए डॉ आम्बेडकर ने भी सरकार से इस्तीफा दे दिया था। डॉ मुखर्जी ने उस समय हिन्दू कोड बिल को भारतीय न बनाने पर सरकार की तीखी आलोचना की थी। उनका कहना था वह जानते है कि ऐसा क्‍यों नहीं किया गया। नेहरू सरकार की मुस्लिम समुदाय को छूने की हिम्‍मत नहीं है। वह हिंदुओं के साथ जो करना चाहती है वह कर सकती है।

आज राजनीतिक कारणों से तथाकथित समाजवादी नेता समान नागरिक संहिता का विरोध कर रहे हैं पर उस समय समाजवादी नेता आचार्य जेबी कृपलानी ने नेहरू का विरोध किया था। उन्होंने मुस्लिमों के लिए एक विवाह के लिए कानून लाने की आवाज उठाई थी। तुष्टीकरण की नीतियों के कारण ही हिन्दू कोड बिल को भारतीय नहीं बनाया गया। उस समय के मुस्लिम सांसद नेहरू के इस कार्य से बहुत खुश हुए थे।

डॉ मुखर्जी ने पश्चिम बंगाल को पाकिस्तान में जाने से बचाने के लिए बड़ी भूमिका निभाई थी। हिन्दुओं पर अत्याचारों का विरोध करने के कारण डॉ मुखर्जी को सांप्रदायिक नेता के तौर पर प्रस्तुत किया था। भारतीय संस्कारों के प्रबल समर्थक डॉ मुखर्जी ने मुस्लिम लीग के साथ सरकार चलाई थी। कलकत्ता विश्वविद्यालय में इस्लामिक अध्ययन केंद्र की स्थापना डॉ मुखर्जी ने कराई थी। महाबोधि सोसायटी के पहले गैर बौद्ध के तौर पर नेतृत्व किया था। मुस्लिम लीग की विभाजनकारी नीतियों के विरोध में ही डॉ मुखर्जी हिन्दू महासभा में शामिल हुए थे।

आज जम्मू-कश्मीर आतंकवाद से मुक्त होकर विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। कश्मीर में बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की उमड़ी भारी भीड़ वहां के परिवर्तन की गवाही दे रही है। डॉ मुखर्जी के एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे को नारे को केंद्र की लोकप्रिय नरेंद्र मोदी सरकार ने साकार किया है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद राज्य में नए अध्याय का प्रारम्भ किया गया। अयोध्या में भगवान श्रीराम भव्य मंदिर में जल्दी ही भक्तों को दर्शन देने वाले हैं। एक देश में एक कानून के लिए आवाज उठाने वाले डॉ मुखर्जी का यह सपना भी जल्दी पूरे होने वाला है। देश में समान नागरिक संहिता के लिए बना वातावरण इसका गवाह बन रहा है। देश प्रथम डॉ मुखर्जी का ध्येय वाक्य था। इसी भावना से काम करते हुए मोदी सरकार ने सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास के नारे को साकार कर दिया। भारत के महान राष्ट्रवादी और दूरदर्शी नेता डॉ मुखर्जी की जयंती पर कोटिशः नमन।

समान नागरिक संहिता के पक्ष में खड़ा है देश

कैलाश विजयवर्गीय

देश में लंबे समय से तुष्टीकरण की राजनीति के चलते समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर कुछ राजनीतिक दल विवाद खड़ा करते आ रहे हैं। इस विवाद के पीछे मुस्लिमों में भय फैलाकर चुनावों में केवल वोट बटोरना ही असली मकसद होता है। मुस्लिमों के रहनुमा बनकर वोट बटोरने वालों ने मजहब को मुद्दा बनाकर सत्ता तो हासिल की पर मुस्लिमों को खुशहाल बनाने के लिए कोई नीति तैयार नहीं की। डा.भीमराव आंबेडकर के नाम पर राजनीति करने वालों ने भी उनकी विचारधारा, सपने और नीतियों पर ध्यान नहीं दिया। समान नागरिक संहिता को लेकर आदिवासियों में भ्रम फैलाने की कोशिश हो रही है। भारतीय जनता पार्टी देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार दिलाने के लिए समान नागरिक संहिता लागू कराने की प्रबल पक्षधर रही है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट और कई राज्यों में हाई कोर्ट बार-बार समान नागरिक संहिता को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों से सवाल पूछती रही है। सुप्रीम कोर्ट ने तो बार-बार समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत पर जोर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो मामले में सरकार को समान नागरिक संहिता बनाने की राय दी थी। 23 अप्रैल 1985 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाईवी चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसले में शाह बानो के शौहर को उन्हें हर महीने 179.20 रुपये भरण-पोषण के लिए देने का आदेश दिया था। यह अलग बात है कि तुष्टीकरण की राजनीति के कारण तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने संसद में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया था। अगस्त 2017 में तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट ने नाजायज बताते हुए संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन करता है। यह प्रथा बिना कोई मौका दिए शादी को खत्म कर देती है।

तीन तलाक की समाप्ति के बाद मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिला। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद वहां की महिलाओं को संपति में अधिकार मिला। समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले यह भ्रम फैला रहे हैं कि संपति में पुरुषों का अधिकार समाप्त हो जाएगा। इसी तरह का भ्रम नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्ट्रर को लेकर फैलाया गया था। दरअसल तीन तलाक की समाप्ति के बाद मुस्लिम महिलाओं में भाजपा के बढ़ते जनाधार के कारण मुस्लिमों को वोट बैंक समझने वाले राजनीतिक दलों में चिंता बढ़ रही है। केंद्र और भाजपा शासित राज्यों में जनहितैषी योजनाओं के कारण भी प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी का विपक्षी दल मिलकर भी मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। मुस्लिमों में भ्रम फैलाकर विपक्षी दल उन्हें अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं।

ऐसे ही राजनीतिक दलों से सावधान रहने की जरूरत प्रधानमंत्री मोदी ने भोपाल की सभा में बताई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में भाजपा के बूथ कार्यकर्ताओं की सभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि कुछ लोग यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध कर रहे हैं, जिससे मुस्लिम भाई-बहन को काफी भ्रम हो रहा है। उन्होंने मुस्लिम भाई-बहनों को स्पष्ट तौर पर समझाया कि भारत के मुसलमानों को समझना होगा कि कौन से दल उन्हें भड़काकर उनका फायदा लेने के लिए बर्बाद कर रहे हैं। समान नागरिक संहिता के नाम पर भड़काने का काम हो रहा है। समान नागरिक संहिता की जरूरत बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि एक घर में परिवार के एक सदस्य के लिए एक कानून हो, दूसरे सदस्य के लिए दूसरा कानून हो तो क्या वह घर चल पाएगा क्या?’ प्रधानमंत्री का कहना था कि फिर ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा। लोग हम पर आरोप लगाते हैं लेकिन सच ये है कि यही लोग मुसलमान-मुसलमान करते हैं, अगर ये उनके सही मायने में हितैषी होते तो अधिकांश मुस्लिम परिवार शिक्षा, रोजगार में पीछे नहीं रहते।

प्रधानमंत्री मोदी के विपक्षी दलों को आइना दिखाने के बाद उनके बीच हायतौबा मचनी ही थी। सुन रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ एक सीट पर एक साझा उम्मीदवार तय करने के लिए बैठने वाले विपक्षी दलों के नेता अब समान नागरिक संहिता पर बातचीत करेंगे। मोदीजी ने तो उनका एजेंडा ही बदल दिया। भाजपा ने तो पिछले दो लोकसभा चुनावों में जारी घोषणापत्र में समान नागरिक कानून बनाने का वायदा किया था। भाजपा की 2019 में लोकसभा में सीटें भी बढ़ी। 2019 में तो शिवसेना भी समान नागरिक संहिता पर बढ़चढ़ कर दावा कर रही थी। तो क्या अब शिवसेना कांग्रेस की हां में हां मिलाते हुए इसे विभाजनकारी बताएगी। अगर ऐसा हुआ तो उद्धव ठाकरे की राजनीति समझो खत्म हुई। समान नागरिक संहिता का विरोध करना तो कांग्रेस समेत सभी दलों पर भारी पड़ेगा।

अब देश की जनता विपक्षी दलों की सभी चालों को समझ चुकी है। संविधान का अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू का करने का अधिकार देता है। इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है। भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है तो समान नागरिक कानून लागू में क्या आपत्ति हो सकती है। धर्म, मजहब, पंथ और वर्गों के आधार पर आप ईश्वर की आराधना अपने-अपने तरीके से करने की संविधान पूरी तरह स्वतंत्रता देता है पर विवाह और बच्चे पैदा करने के लिए एक जैसा कानून होना चाहिए। अनुच्छेद-25 में कहा गया है कि कोई भी अपने अनुसार धर्म को मानने और उसके प्रचार की स्वतंत्रता रखता है। महिलाओं को भी बराबरी का अधिकार देने वाला कानून होना चाहिए। भारतीय संविधान की ड्राफ्ट समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि हमारे पास पूरे देश में एक समान और पूर्ण आपराधिक संहिता है। संपत्ति के हस्तांतरण का कानून है। उन्‍होंने संविधान सभा में कहा था समान नागरिक संहिता के लिए कई कानूनों का हवाला दिया जा सकता है। डा.आंबेडकर की राय को उस समय दरकिनार कर दिया गया। भारतीय अनुबंध अधिनियम-1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम-1882, भागीदारी अधिनियम-1932, साक्ष्य अधिनियम-1872 में सभी नागरिकों के लिए समान नियम लागू हैं। तुष्टीकरण के लिए धार्मिक आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करने के लिए देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के पक्ष में एक बड़ा वर्ग खड़ा हो गया है। विधि आयोग ने नागरिक संहिता को लेकर फिर से राय मांगी थी। पिछले 14 दिन में साढ़े आठ लाख सुझाव दिए जा चुके हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश की जनता समान नागरिक संहिता लागू कराने की दिशा में आगे बढ़ा रही है।

विश्व शांतिदूत मोदी के अमेरिका यात्रा के नए संदेश

कैलाश विजयवर्गीय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी संसद को दूसरी बार संबोधित करते हुए विश्व के सामने देश की सशक्त तस्वीर ही प्रस्तुत नहीं बल्कि यह भी बता दिया कि विश्व के समक्ष चुनौतियों का भारत अमेरिका के साथ मिलकर मुकाबला करने में सक्षम है। जल्दी ही विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला भारत अमेरिका से साझेदारी करके आतंकवाद को समाप्त करने के लिए सक्षम होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश अमेरिका और सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की प्रगाढ़ मित्रता का उदाहरण देते हुए दुनिया में लोकतांत्रिक शक्तियों के भविष्य के लिए शुभ संकेत दिए हैं। उनका यह कहना कि भारत-अमेरिका की साझेदारी लोकतंत्र के भविष्य के लिए अच्छी है और बेहतर भविष्य और भविष्य के लिए बेहतर दुनिया के लिए यह अच्छी है। मोदीजी के इस विश्वास से तानाशाही से संकट झेल रहे देशों के नागरिकों को लोकतंत्र के उदय होने की उम्मीद बंधेगी। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की स्वतंत्रता के बाद ही दुनिया के परतंत्र देश स्वतंत्र देश हुए। मोदीजी ने मार्टिन लूथर किंग और महात्मा गांधी का प्रभाव बताते हुए यह संदेश भी दिया की भारत की जड़े अमेरिका में मजबूत हैं। इसका एक बड़ा उदाहरण अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का बताया।

ए-आई का अर्थ अमेरिका और भारत बताते हुए स्पष्ट कर दिया कि यह दोस्ती विश्व को नई राह दिखाएगी। उनकी इस राय से कि कुछ वर्षों में एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में बहुत तरक्की हुई है लेकिन साथ-साथ ही एक अन्य ए-आई यानी भारत-अमेरिका के रिश्तों में भी महत्वपूर्ण प्रगति से दोनों देशों के बीच नए आर्थिक साझेदारी से रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी संसद में भाषण के माध्यम से विश्व को यह संदेश भी दिया कि भारत के कारण विश्व में लोकतंत्र पनपा हैं। भारत में 2500 राजनीतिक दल, 22 सरकारी भाषाएं, हजारों बोलियां और हर सौ मील पर विभिन्न प्रकार भोजन के बावजूद लगातार तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए देश में आम लोगों का पूरा ध्यान रखा जा रहा है। प्रधानमंत्री का ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ दृष्टिकोण से उन लोगों की आंखे भी खुलनी चाहिए जो, विदेशों में भारत की छवि को राजनीतिक कारणों से उपजी हताशा के कारण धूमिल करते हैं। भारत में चार करोड़ लोगों को घर दिए गए हैं। पांच करोड़ लोगों को निशुल्क चिकित्सा सहायता दी जाती है। मोदीजी की इन घोषणाओं से दुनिया की आबादी के छठे हिस्से भारत में आम लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की वास्तविक तस्वीर सबके सामने आई है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण के माध्यम से दुनिया में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों को चेतावनी ही नहीं दी, बल्कि आतंकवाद की समाप्ति के सकंल्प को भी दोहराया। मोदीजी ने भाषण में जिक्र किया कि जब वे प्रधानमंत्री के तौर पहली बार अमेरिका आए थे तो भारत अर्थव्यवस्था के मामले में दसवें नंबर पर था। आज भारत पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। आतंकवाद और कोरोना महामारी का मुकाबला करते हुए भारत की यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने साफ जता दिया है कि हम न केवल बड़े हो रहे हैं बल्कि तेजी से भी बढ़ रहे हैं। जब भारत बढ़ता है तो पूरी दुनिया बढ़ती है। कट्टरवाद और आतंकवाद को दुनिया के सामने गंभीर खतरा मानते हुए आतंकवाद के नई पहचान और विचारधारा के आधार पर पनपने को उन्होंने नई चुनौती बताया। मोदीजी की इस धारणा से कि आतंकवाद की विचारधारा और नई पहचान मानवता के लिए खतरा है तो हमारा इसे मिटाने का भी पूरा इरादा है। उनका इरादा साफ है कि भारत बढ़ेगा तो दुनिया में शांति आएगी, आतंकवाद समाप्त होगा। विश्व शांतिदूत मोदीजी ने रूस-यूक्रेन युद्ध का शांतिपूर्ण समाधान की बात कही। उन्होंने इस युग को युद्ध नहीं बल्कि रक्तपात और मानवीय पीड़ा को रोकने के लिए संवाद और कूटनीति से हल निकालने मार्ग बताते नया युग बताया। प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जोरदार स्वागत किया।

अमेरिका में बसे भारतीयों ने मोदी-मोदी के नारे लगाते हुए पलक पांवड़े बिछा दिए। प्रधानमंत्री मोदी की इस अमेरिका यात्रा से कई क्षेत्रों में आर्थिक सहभागिता तो बढ़ेगी, साथ ही विश्व को नई राह भी मिली है।

मोदी सरकार- साहसिक निर्णयों के नौ वर्ष

कैलाश विजयवर्गीय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने साहसिक निर्णयों, धरातल पर ईमानदारी से योजनाओं का क्रियान्वयन, लाभार्थियों से सीधे संवाद, भष्ट्राचार के विरोध में अभियान, आपदा को अवसर में बदलने, जातिवादी और वंशवादी दलों पर प्रहार करके देश की राजनीति बदल दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीतिक हानि-लाभ की चिंता किए बिना राष्ट्र सर्वोपरि है मंत्र को साकार करते हुए त्वरित निर्णय लेकर दुनियाभर में देश की गरिमा स्थापित की है। दुनियाभर में भारत की छवि तेजी से विकसित होते, समर्थ, सशक्त और सक्षम राष्ट्र की बनी है। विश्व की बड़ी महाशक्तियों को प्रधानमंत्री की नीतियों ने प्रभावित भी किया है। कोरोना महामारी में आपदा को अवसर में बदलते हुए प्रधानमंत्री की नीतियों, कार्यों और योजनाओं के कारण भारत विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था बना है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता, संगठन के महामंत्री, गुजरात के मुख्यमंत्री, वाराणसी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री के तौर पर उनका जीवन और कार्य हमें प्रेरणा देता है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में पहली बार किसी गैरकांग्रेसी दल को 1984 के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार अपने दम पर बहुमत मिला। मोदी सरकार की जनहितैषी योजनाओं, आतंकवादी घटनाओं पर अकुंश लगाने, देश में शांति का वातावरण तैयार करने, भ्रष्टाचार पर रोक लगाने, नक्सलियों की कमर तोड़ने, दुश्मनों को उनके घर में तबाह करने के कारण उनके नेतृत्व में 2019 के लोकसभा चुनाव में जनता ने भाजपा के 303 सदस्यों को चुनकर भेजा। भाजपा आज विश्व में सबसे बड़ा राजनीतिक दल है।

स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित नरेंद्र मोदी जब किसी कार्य को करने को बीड़ा उठाते हैं तो असंभव को संभव करने की दिशा दिखाते हैं। इसी कारण 130 करोड़ देशवासी और करोड़ों कार्यकर्ता उनमें भारत को विश्वगुरु के पद पर स्थापित करने की क्षमता देखते हैं। मोदीजी केवल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तरह गरीबी हटाओ का नारा नहीं देते, वे गरीबों के कल्याण, उत्थान और आर्थिक विकास को धरातल पर साकार रूप देते हैं। यह अलग बात है कि मोदीजी के नारे, विचार, कार्य और योजनाएं विरोधी दलों के नेताओं को विचलित करते हैं। इसी कारण राजनीतिक हताशा के कारण पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों के अड्डे नेस्तनाबूद करने वाली सर्जिकल स्ट्राइक के प्रमाण मांगने पर अड़े कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को अमेठी की जनता ठुकरा देती है।

मोदीजी ने पहली 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही मोदीजी ने जन कल्याण के लिए योजनाओं की शुरुआत की। मोदीजी के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही देश की नौकरशाही अपने रवैये को बदलना पड़ा। ऊपर से लेकर नीचे तक तेजी से कार्य होने लगे। भ्रष्टाचार पर लगाम लगी। 8 नवंबर 2016 को एक हजार और पांच सौ के नोट बंद करने की घोषणा से देश में कालाधन जमा करने वालों पर बड़ा आघात किया गया। आतंकवादियों और नक्सलियों की ढांचा चरमरा गया। 2016 में जारी किए गए दो हजार के नोट का चलन बंद करने की घोषणा का असर भी कालेधन पर प्रहार है। नोटबंदी के बाद ऑनलाइन लेन-देन को बढ़ावा मिलने के कारण कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान लोगों को परेशानी नहीं हुई।

नोटबंदी की घोषणा से पहले 29 सितंबर 2016 को भारतीय सेना ने 16 सितंबर 2016 को कश्मीर के उरी में सेना शिविर में सोये हुए 18 जवानों की शहादत का बदला पाकिस्तान में घुसकर में लिया था। भारत के जवानों ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में तीन किलोमीटर अंदर घुसकर आतंकवादियों के ठिकानों को तबाह कर दिया था। यह पाकिस्तान को बड़ा सबक था। तमाम अंतरराष्ट्रीयों मंचों पर पाकिस्तान की बोलती बंद हो गई थी।

14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 78 वाहनों के काफिले को आतंकवादियों ने विस्फोट कर निशाना बनाया था। तब प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों को विश्वास दिलाया था कि जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी और गुनहगारों को सजा जरूर दी जाएगी। पुलवामा हमले के ठीक 12 दिन बाद 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना के मिराज-2000 विमानों ने रात को नियंत्रण रेखा पार कर पाकिस्तान के पूर्वोत्तर इलाके खैबर पख्तूनख्वाह के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक करके 300 आतंकवादियों को ढेर कर दिया था। इन दो साहसिक निर्णयों से भारतीय सेना का शौर्य विश्व के सामने आया। सेना को मजबूत बनाने के लिए 16 जून 2022 को अग्निपथ योजना की घोषणा की गई। इसके तहत थल सेना, नौसेना और वायु सेना में अग्निवीरों की भर्ती हो रही है। विपक्ष की हायतौबा मचाने के बावजूद देश के युवा सीमाओं की रक्षा के लिए आगे आ रहे हैं।

5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने ऐतिहासिक और साहसिक कदम उठाते हुए जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म किया था। केंद्रीय गृहमंत्री ने राज्यसभा में अनुच्छेद 370 को हटाने के साथ ही राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया था। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर केंद्र शासित विधानसभा वाला प्रदेश बना और लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्रशासित क्षेत्र बन गया। इस साहसिक कदम से एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे का नारा देने वाले जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की गई। 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का शिलान्यास किया। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद मंदिर निर्माण का कार्य तेजी से हो रहा है। 10 जनवरी 2020 को मोदी सरकार ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने के लिए नागरिकता संशोधन कानून लागू किया गया। मोदी सरकार ने बड़ा आर्थिक सुधार करते हुए 1 अप्रैल 2020 को 10 सरकारी बैंकों का चार बड़े बैंकों में विलय किया गया।

इसी तरह 1 जुलाई 2017 को एक देश, एक कर व्यवस्था के लिए जीएसटी लागू की गई। 19 सितंबर 2018 तो मुस्लिम महिलाओं की तीन तलाक जैसी कुप्रथा से मुक्ति दिलाई गई। मोदी सरकार ने तीन तलाक से पीड़ित महिलाओं के लिए गुजरा भत्ता भी दिलाया। मोदी सरकार के साहसिक निर्णयों की तरह की गरीबों, किसानों, मजदूरों, महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गों, अनुसूचित जाति-जनजातियों, पिछड़ों, अति पिछड़ों के कल्याण के लिए चल रही योजनाओं की लंबी सूची है। मोदीजी ने साहसिक निर्णयों के साथ ही सबका साथ, सबका विकास के साथ ही सबका विश्वास प्राप्त किया है।

विरोध के लिए विरोध है, नई संसद के उद्घाटन का बहिष्कार

कैलाश विजयवर्गीय

नरेंद्र मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला करने के लिए कोई मुद्दा ढूंढने में नाकाम विरोधी दल अब संसद के नए भवन के उद्घाटन को लेकर हायतौबा मचा रहे हैं। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रविड मुन्नेत्र कड़गम जनता दल, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी,  शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी,  इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, झारखंड मुक्ति मोर्चा,  नेशनल कांफ्रेंस,केरल कांग्रेस (मणि), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, विदुथलाई चिरुथिगल काट्ची, मारुमलार्ची द्रविड मुन्नेत्र कड़गम और राष्ट्रीय लोकदल ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संसद के नए भवन के उद्घाटन का बहिष्कार केवल विरोध करने की राजनीति के तहत किया है। विपक्ष को कोई मुद्दा नहीं मिलता तो मोदी सरकार की योजनाओं का विरोध करने पर उतारू हो जाता है। इसी तरह विपक्ष ने सेंट्रल विस्टा का विरोध किया था। अग्निपथ योजना का भी विरोध किया था। कई जनकल्याणकारी योजनाओं का विरोध भी विपक्षी दल करते रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने में नाकाम हताश और मुद्दाहीन विपक्ष ने अब संसद भवन के उद्घाटन में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को आमंत्रित न करने पर बहिष्कार की घोषणा की है। ये वहीं विपक्षी दल हैं जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में देश की पहली आदिवासी महिला उम्मीदवार का विरोध ही नहीं किया बल्कि अपमानजनक टिप्पणियां की थी। लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी की विवादित टिप्पणी को लेकर तो पूरे देश में निंदा की गई थी। इसी तरह राष्ट्रीय जनता और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने भी महिला आदिवासी राष्ट्रपति को लेकर गलत टिप्पणी थी। इन नेताओं के खिलाफ आदिवासी समाज की तरफ से देशभर में विरोध प्रदर्शन भी हुए थे।

कांग्रेस के राज में तमाम सरकारी योजनाओं, भवनों, विश्वविद्यालयों तथा शिक्षा संस्थानों, हवाई अड्डो, अस्पतालों, नए शहरों और कालोनियों के नाम गांधी परिवार के नाम पर रखे जाते थे। पूरे देश की बात न भी करें तो दिल्ली में ही देख लीजिए कि जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी के नाम पर कितने भवन और संस्थान है। हवाई अड्डे का नाम इंदिरा गांधी, विश्वविद्यालय का नाम जवाहर लाल नेहरू के नाम पर हैं। कनाट प्लेस का नाम बदला तो इंदिरा और राजीव चौक रखे गए। अस्पतालों के नाम भी गांधी परिवार के नाम पर रखे गए। अब गांधी परिवार के राहुल गांधी एक गरीब और पिछड़े परिवार से प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी को लेकर विरोध जता रहा है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने तो यह भी भुला दिया कि 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पार्लियामेंट एनेक्सी का उद्घाटन किया था। संसदीय ज्ञानपीठ का 1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास किया था। नए संसद भवन की नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखी थी। तब से विपक्ष संसद भवन को लेकर सवाल उठाता रहा है। विपक्ष की तरफ से अशोक चिन्ह स्थापित करने पर भी आपत्ति जताई गई थी।

सबसे बड़ी बात यह है कि एक-दूसरे का विरोध करने वाले विपक्षी दल इस मुद्दे पर इकट्ठे होकर यह जता रहे हैं कि देश में विपक्षी एकता हो गई है। बीजू जनता दल,बहुजन समाज पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस, एआईडीएमके और अकाली दल के प्रतिनिधि उद्घाटन में शामिल होंगे। विपक्ष की तरफ से यह संदेश देने की कोशिश हो रही है कि मोदी के खिलाफ विपक्ष एकजुट हो गया है। लंबे समय से देश की कांग्रेस की दोगुली राजनीति को देखता आ रहा है। खासतौर पर पश्चिम बंगाल की बात करें तो वामपंथी सरकार द्वारा कांग्रेसियों के कत्लेआम के बावजूद केंद्र में सरकार बनाने के लिए कम्युनिस्टों की मदद ली गई। पश्चिम बंगाल वामपंथी दलों से गठबंधन करके कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं की सरेआम हत्याओं को भी भुला दिए। कांग्रेसियों पर अत्याचार के विरोध में ही ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस बनाई थी। आज ममता बनर्जी को भी कम्युनिस्टों का साथ लेने में परहेज नहीं है। सच यही है कि विरोधी दलों का संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करना केवल विरोध करने के लिए विरोध है और विपक्षी एकजुटता का दावा एक छलावा है।

राजदंड ‘सेंगोल’, परिवारवाद और मोदी सरकार

कैलाश विजयवर्गीय

परिवारवाद वाले यह न भूलें की भारतीय राजदंड Sengol, जो की सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक था, उसे इलाहाबाद (प्रयागराज) संग्रहालय में ‘Golden walking stick gifted to Pandit Jawaharlal Nehru’ कहकर रखा गया था। वामपंथियों ने इसे “चलने वाली छड़ी” कहकर इसे संबोधित किया।

 

वास्तविकता में ‘सेंगोल’, तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से आता है, जिसका अर्थ है ‘न्याय’ यानी सेंगोल का अर्थ है न्याय का प्रतीक।

सेंगोल का इतिहास मौर्य और गुप्त वंश काल से ही शुरू होता है, लेकिन यह सबसे अधिक चोल वंश शासन काल में चर्चित हुआ. भारत के दक्षिण भाग में चोल साम्राज्य (907 से 1310 ईस्वी) का शासन रहा। तमिल साहित्य के इतिहास में चोल शासनकाल को स्वर्ण युग की संज्ञा दी जाती है। चोल राजाओं का राज्याभिषेक तंजौर, गंगइकोंडचोलपुरम्, चिदम्बरम् और कांचीपुरम् में होता था। उस समय पुरोहित राजाओं को चक्रवर्ती उपाधि के साथ ही सेंगोल सौंपते थे और इसे धन-संपदा और वैभव का प्रतीक मानते थे।

पर हमारे देश पर पीढ़ियों तक राज करने वाले परिवार का न्याय तो केवल स्वयं की ख्याति तक ही सीमित रहा। नंदी महाराज, जिस ‘सेंगोल’ पर विराजमान हों, उसे ‘सुनहरी छड़ी’ कहकर 70 सालों तक म्यूजियम में रखने वाले क्या भारत की संस्कृति और विरासत को कभी संभल पायेंगें?

 

     

यदि परिवारवादी इतिहासकार सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के साथ ऐसा कर सकते हैं, तो कल्पना करें कि उन्होंने हमारे प्राचीन इतिहास के साथ क्या किया होगा!

केंद्र की मोदी सरकार ने इस ऐतिहासिक सेंगोल को संसद भवन की नई बिल्डिंग में सभापति (स्पीकर) कुर्सी के पास रखने का फैसला किया है।

गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह के अनुसार

“सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से उपयुक्त और पवित्र स्थान कोई और हो ही नहीं सकता. इसलिए जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के अधीनम (मठ) से सेंगोल स्वीकार करेंगे और लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे.”

अक्षय तृतीया- कभी न हो क्षय, भरा रहे सदैव भंडार

कैलाश विजयवर्गीय

 

अक्षय तृतीया का पर्व हमें धार्मिक, सांस्कृतिक, समृद्ध आर्थिक स्थिति, फलती-फूलती कृषि और समाज को परोपकार की भावना के आधार पर जोड़ता है। पूरे देश में इस पर्व को अलग-अगल इलाकों में अलग-अलग तरीके से मनाते हों पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा सभी स्थानों पर होती है। माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर सबसे ज्यादा विवाह होते हैं। राजस्थान में अखा तीज के दिन सबसे ज्यादा जोड़े वैवाहिक बंधन में बंधते हैं। यह भी माना जाता है कि इस दिन बंधन में बंधने वालों की गांठ कभी नहीं खुलती है। बंगाल में हल खता के दिन नए कार्यों को प्रारम्भ किया जाता है। व्यवसायी गणेश जी और लक्ष्मी जी का पूजन करके अपने नए बही-खाते लिखना प्रारम्भ करते हैं। ओडिसा में भगवान जगन्नाथ की यात्रा शुरु होती है और किसान फसल बोकर मां लक्ष्मी से समृद्धि की कामना करते हैं। ओडिसा में मुथी चुहाना के रूप में मनने वाले पर्व के दिन लोग मांसाहार से बचते हैं। दक्षिण भारत में भगवान विष्णु, लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है। माना जाता है कि भगवान शंकर ने कुबेर को इसी दिन लक्ष्मी जी की पूजा करने को कहा था। पंजाब में इसे कृषि पर्व के तौर पर मनाया जाता है। उत्तर भारत में अक्षय तृतीया का अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग महत्व है।
शास्त्रों में बताया गया है कि ‘न क्षयः इति अक्षयः’ अर्थात जिसका क्षय नहीं होता वह अक्षय है। हमारे यहां रामनवमी, अक्षय तृतीया, विजय दशमी और कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को अक्षय मुर्हूत माना जाता है। कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा को भी आधा अबूझ मुर्हूत माना जाता है। बैशाख महीने की तृतीया यानी अक्षय तृतीया को सबसे अच्छा मुर्हूत माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए गए शुभ कर्म के फल का कभी क्षय नहीं होता है। इसी कारण इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है।

अक्षय तृतीया को कृतयुगादि भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार सतयुग का प्रारम्भ अक्षय तृतीया से हुआ था। इसी तिथि को भगवान परशुराम का अवतरण दिवस मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगीरथ के कठोर तप के बाद गंगा जी का पृथ्वी पर अवतार हुआ था। एक कथा में वर्णन है कि द्वापर युग में भरे दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ही दु:शासन ने द्रौपदी का चीर हरण किया था। महाभारत काल में द्रोपदी की करुणा पुकार भगवान कृष्ण ने अक्षय तृतीया को अक्षय चीर का वरदान दिया था। प्राचीन कथाओं में बताया गया है कि अक्षय तृतीया पर ही युधिष्ठिर को अक्षय पात्र मिला था। भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय पात्र हमेशा भोजन प्रदान करता था। अक्षय पात्र से ही राजा युधिष्ठिर भूखे लोगों को भोजन देते थे। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण के दीन मित्र सुदामा उनसे मिलने गए थे और मुट्ठी भर चावल भेंट करने पर भगवान ने उनकी झोपड़ी का भव्य महल में परिवर्तन कर दिया था। देवभूमि हिमालय के चार धामों में से एक भगवान बद्री विशाल के पट अक्षय तृतीया के दिन ही भक्तों के लिए खुलते हैं। वृंदावन में भगवान बांके बिहारी के चरणों के दर्शन अक्षय तृतीया के दिन ही होते हैं। बिहारी जी के चरण दर्शन करने से परिवार में समृद्धि आती है। ऋतु पर्व अक्षय तृतीया बसंत और गर्मी का संधि पर्व भी है। ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया को गंगा में स्नान करके पितरों का तिल से तर्पण करके पिंडदान करने से मोक्ष मिलता है।

कभी क्षय न होने के कारण अक्षय तृतीया को स्वर्ण खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सोने-चांदी के आभूषण घर में लाने से हमेशा समृद्धि रहती है। समृद्धि और वैभव की भरमार करने वाले पर्व अक्षय तृतीया को दान करने का भी विशेष महत्व है। कथाओं में वर्णन है कि अक्षय तृतीया को जल से भरे कलश, गाय, पंखे, जूते आदि का दान बहुत पुण्य देता है। गरीबों और कल्याणकारी संस्थाओं को भी भूदान का विशेष महत्व हैं। ऐसे कल्याणकारी, समृद्धिवर्धक और पुण्य देने वाले पर्व अक्षय तृतीया पर सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। हमारा देश समृद्ध बने, शाक्तिशाली बने और कृषि हमेशा फलती-फूलती रहे।