राजदंड ‘सेंगोल’, परिवारवाद और मोदी सरकार

कैलाश विजयवर्गीय

परिवारवाद वाले यह न भूलें की भारतीय राजदंड Sengol, जो की सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक था, उसे इलाहाबाद (प्रयागराज) संग्रहालय में ‘Golden walking stick gifted to Pandit Jawaharlal Nehru’ कहकर रखा गया था। वामपंथियों ने इसे “चलने वाली छड़ी” कहकर इसे संबोधित किया।

 

वास्तविकता में ‘सेंगोल’, तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से आता है, जिसका अर्थ है ‘न्याय’ यानी सेंगोल का अर्थ है न्याय का प्रतीक।

सेंगोल का इतिहास मौर्य और गुप्त वंश काल से ही शुरू होता है, लेकिन यह सबसे अधिक चोल वंश शासन काल में चर्चित हुआ. भारत के दक्षिण भाग में चोल साम्राज्य (907 से 1310 ईस्वी) का शासन रहा। तमिल साहित्य के इतिहास में चोल शासनकाल को स्वर्ण युग की संज्ञा दी जाती है। चोल राजाओं का राज्याभिषेक तंजौर, गंगइकोंडचोलपुरम्, चिदम्बरम् और कांचीपुरम् में होता था। उस समय पुरोहित राजाओं को चक्रवर्ती उपाधि के साथ ही सेंगोल सौंपते थे और इसे धन-संपदा और वैभव का प्रतीक मानते थे।

पर हमारे देश पर पीढ़ियों तक राज करने वाले परिवार का न्याय तो केवल स्वयं की ख्याति तक ही सीमित रहा। नंदी महाराज, जिस ‘सेंगोल’ पर विराजमान हों, उसे ‘सुनहरी छड़ी’ कहकर 70 सालों तक म्यूजियम में रखने वाले क्या भारत की संस्कृति और विरासत को कभी संभल पायेंगें?

 

     

यदि परिवारवादी इतिहासकार सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के साथ ऐसा कर सकते हैं, तो कल्पना करें कि उन्होंने हमारे प्राचीन इतिहास के साथ क्या किया होगा!

केंद्र की मोदी सरकार ने इस ऐतिहासिक सेंगोल को संसद भवन की नई बिल्डिंग में सभापति (स्पीकर) कुर्सी के पास रखने का फैसला किया है।

गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह के अनुसार

“सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से उपयुक्त और पवित्र स्थान कोई और हो ही नहीं सकता. इसलिए जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के अधीनम (मठ) से सेंगोल स्वीकार करेंगे और लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे.”