कोरोना महामारी के प्रकोप के बचाने के लिए जारी लॉकडाउन तो अगले कुछ दिनों बाद समाप्त हो सकता है, पर कोरोना का असर नहीं खत्म होगा। फिलहाल हमें कोविड-19 वायरस के साथ रहकर अपना जीवन बचाना है। सफर के दौरान जगह-जगह सड़क किनारे लिखा मिलता है न, सावधानी हटी- दुर्घटना घटी। यही सीख अब कोरोना के पूरी तरह समाप्त होने के तक हमें जारी रखनी है। हमें साफ रहना है। पौष्टिक भोजन करना है। स्वस्थ रहने के लिए घरों में ही प्राणायाम, आसन, योग और व्यायाम करना है। बाहर निकलना भी है तो मुहं पर मॉस्क लगाकर, हर जगह शारीरिक दूरी का ध्यान रखना है। स्वच्छता, पौष्टिक भोजन, व्यायाम और आयुर्वेद, हमारी संस्कृति और परम्परा के अभिन्न अंग रहे हैं। आपदाकाल में बिना साधन महानगरों से गांवों की ओर लौटते करोड़ों लोगों ने अहसास कराया कि हमें अपनी जड़ों को मजबूत करना होगा। हम अपनी परम्पराओं पर चलकर ही कोरोना जैसी आपदाओं का मुकाबला कर सकते हैं। महानगरों में रिक्शा चलाने, कारखानों में काम करने वाले या दूसरे काम करने वाले अब गांव आकर खेती कर रहे हैं या खेतों में मजदूरी कर रहे हैं। बहुत से लोग बटाई पर खेत लेकर सब्जियां उगा रहे हैं। यानी जो खेत मजदूरों के कारण खाली पड़े रहते हैं थे, आज उनमें सब्जियां पैदा हो रही हैं। कोरोना ने हमें सीख दी है कि अपना गांव ही सबसे बेहतर हैं। अब सरकार भी ऐसी योजनाएं बना रही हैं कि कारखाने-फैक्टरी लोगों के पास आएं, लोगों को कामकाज के लिए ज्यादा दूर न जाना पड़े।
दुनिया के बड़े-बड़े देश कोरोना के आगे मजबूर हो रहे हैं। भारत में 135 करोड़ की जनसंख्या के बावजूद संक्रमित मरीजों की संख्या बहुत कम है। हमारे यहां भोजन करने से पहले हमेशा अच्छे तरीके से हाथ धोने की परम्परा रही है। हाथ जोड़ने और हाथ धोने की परम्परा के कारण हमारे पर कोरोना की मार कम रही है। अमेरिका, चीन, इटली, फ्रांस, स्पेन और अन्य विकसित भी कोविड-19 से निपटने के लिए अभी कोई वेक्सीन विकसित नहीं कर पाए हैं। हो सकता है अभी इसमें समय लगेगा। हमारा देश अपने लोगों की प्रतिरोधक क्षमता के कारण भी जल्दी ही महामारी पर काबू पाने में सफल होगा। इस दौरान तमाम तरह की रिसर्च सामने आ रही हैं। आयुर्वेद की भूमिका भी बहुत बढ़ गई है। कोरोना दूर रहे, इसके लिए दूध और हल्दी के सेवन की सलाह दी जा रही है। प्राणायाम और योग करने को कहा जा रहा है। आयुर्वेद नुस्खे लेने की सलाह दी जा रही है। आयुर्वेद बीमारी के इलाज के साथ ही शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। हाल ही में मैंने पढ़ा कि हमारे संस्कार और आहार को लेकर दुनिया मे रिसर्च हुई। रिसर्च में पाया गया कि हमारे यहां पेट की बीमारी दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले बहुत कम है। दुनिया के बड़े-बड़े डॉक्टरों ने मान लिया है कि पौष्टिक, साधारण और ताजा भोजन करने के कारण भारतीयों को पेट की बीमारी कम होती हैं। पेट की बीमारी कम होने के कारण ही हमारे यहां कोरोना का असर ज्यादा नहीं हो पा रहा है। आप भी पढ़ रहे होंगे कि मरीजों में कोरोनो के लक्षण न होने के बावजूद उनमें संक्रमण पाया गया। कुछ लोग जांच किट में दोष बता रहे हैं पर असल में चिकित्सकों ने जो पाया वह हमारे लिए राहत की बात है। डॉक्टरों का मानना है कि भारतीयों में प्रतिरोधक क्षमता ज्यादा होने के कारण बीमारी पूरी तरह असर नहीं दिखा पाई। इसी कारण हमारे देश में एक चौथाई मरीज ठीक हो रहे हैं। बडी संख्या में क्वारंटाइन किए गए लोग भी तेजी से सही हुए। इससे पहले चीन ने भारतीय परम्परा के अनुसार कोरोना संक्रमित मरीजों के जलाने का आदेश दिया था। हमारे यहां माना जाता है कि अग्नि से वायु में विद्यमान विषाणु मर जाते हैं। हमारे वेद और उपनिषदों में इस बारे में विस्तार से बताया गया है। चीन जैसे देश को भी आखिर हमारी परम्परा पर चलना ही पड़ा है।
आयुर्वेद के चमत्कार और महत्ता के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर आयुष मंत्रालय ने कोविड-19 का उपचार खोजने के लिए टॉस्क फोर्स का गठन किया है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद भी रिसर्च कर रहा है। कोरोना के उपचार के लिए बड़ी संख्या में दवा बनाने के दावे भी सामने आए हैं। सरकार फिलहाल उनकी प्रमाणिकता का पता लगा रही है। केरल में इस दवा का ट्रायल भी प्रारम्भ हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत में कोरोना काल में एक नई छाप छोड़ी है। भारतीय संस्कृति, हमारी चिकित्सा पद्धति, भारतीय खानखान, हमारे मसालों की दुनियाभर में तेजी से चर्चा हो रही है। आयुर्वेद और मसालों का बाजार बढ़ रहा है। हमारी देशी चिकित्सा की तरफ दुनियाभर के लोग रुख कर रहे हैं। भारत के विश्वगुरु बनने की तरफ यह एक महत्वपूर्ण कदम है।