कोरोना महामारी से बचाव और चैत्र नवरात्र में साधना पर विशेष लेख

घर में करें मां भगवती की साधना – कैलाश विजयवर्गीय

आप सभी को 25 मार्च 2020 से प्रारम्भ होने वाले विक्रम संवत 2077 पर बहुत-बहुत शुभकामनाएं। इस वर्ष आप सभी स्वस्थ रहे और भारत की प्रगति में सहयोगी बने। 2077 संवत को प्रमादी बताया गया है। प्रमादी संवत के प्रभाव से कृषि और व्यापारिक क्षेत्र में विकास देखने को मिल सकता है। इस संवत के राजा बुध होंगे और मंत्री चंद्रमा होंगे। इसी दिन से चैत्र नवरात प्रारम्भ हो रहा है। नवरात देवी उपासना का अवसर है।

पूरे विश्व में कोरोना महामारी के प्रकोप से हाहाकार मचा हुआ है। 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर पूरे देश में जनता कर्फ्यू को भरपूर समर्थन मिला। बीमारी के बढ़ते प्रकोप के कारण को कई जिलों लॉक डाउन लागू किया गया। पंजाबं लॉक डाउन में लोगों की आवाजाही बंद न होने पर कर्फ्यू लगा दिया है। दिल्ली में लॉक डाउन में केवल आवश्यक सेवाओं की अनुमति दी गई है। उत्तर प्रदेश में भी सीमाओं को बंद कर दिया गया है। सरकार के तमाम कदमों के बावजूद महामारी प्रकोप से मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसकी वजह है कि लोग सरकार द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। आप सभी से अपील है कि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाए प्रतिबंधों का पालन करें। यह आपके और आपके परिवार की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।

महामारी के प्रकोप के दौरान हमें देवी उपासना और भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव मनाने का अवसर मिल रहा है। नवरात के दिनों में हम सब अपने-अपने घरों में कलश स्थापना करें और देवी के नौ रूपों की नौ दिन आराधना करें। देवी को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ और हवन की विशेष परम्परा रही है। धर्म ग्रंथ एवं पुराणों के अनुसार नवरात मां दुर्गा की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। नवरात्र तीन देवियों महाकाली (शौर्य की देवी), महालक्ष्मी (धन की देवी) तथा महासरस्वती (ज्ञान की देवी) को समर्पित है। महामारी के प्रकोप से बचाने के लिए

रोगानशेषानपहंसि शुष्य रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रितानां हाश्रयतां प्रयान्ति।।

कार्यों में आने वाली बाधाओं के निवारण के लिए मंत्र है
सर्व मंगल्य मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तुते।।

विश्व में शांति के लिए मंत्र जाप करें

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्ड विनाशिनी।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विशो जहि।।

नवरात में मां भगवती के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी l तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ll पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च l सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ll नवमं सिद्धि दात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः l

पहले नवरात को देवी शैलपुत्री का पूजन किया जात है। मंत्र है

ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ मंत्र से प्रार्थना करें।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्तुति करें।

दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी का पूजा मंत्र है।

ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

प्रार्थना मंत्र है

दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

स्तुति मंत्र है

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

तीसरे दिन देवी चंद्रघण्टा की पूजा करें और पूजा मंत्र है

ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥

प्रार्थना मंत्र है

पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

स्तुति मंत्र हैं

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की

ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥ मंत्र से आराधना करें।

प्रार्थना मंत्र है

सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

पांचवे दिन देवी स्कन्दमाता की

ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥ मंत्र का जाप करते हुए आराधना करे। और

सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥ मंत्र से पूजन करें।

स्तुति मंत्र हैं

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

छठे दिन मां कात्यायनी की

ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥ मंत्र के साथ आराधना की जाती है।

प्रार्थना मंत्र है

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

सातवें दिन देवी कालरात्रि की आराधना की जाती है।

पूजा मंत्र है

ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥

वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।

वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥ के साथ पूजन करें और

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ के साथ स्तुति करें।

आठवें दिन देवी महागौरी का पूजन किया जाता है और मंत्र है

ॐ देवी महागौर्यै नमः॥

प्रार्थना

श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

नवरात के अंतिम और नवें दिन

माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।

पूजा मंत्र है

ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥

प्रार्थना

सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

इसके अलावा नवरात में दुर्गा सप्तशती के पाठ करने की परम्परा रही है। अगर हम सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते हैं दुर्गा कवच और अर्गला स्त्रोत का पाठ नौ दिन तक अवश्य करें। मां भगवती निश्चय ही आपकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर आपकी मनोकामनाओं को पूरी करेंगी।

नवरात के दिनों में रामचरित मानस का पाठ करने से हमें सुख, समृद्धि और शांति मिलती है। परिवार में खुशहाली आती है और एकता बनी रहती है। रामचरित मानस का पाठ हम परिवार के सदस्य अलग-अलग 24 घंटें में कर सकते हैं। इस बार अच्छा होगा कि रामचरित मानस में दिए गए निर्देश के अनुसार नौ दिन तक रामचरित मानस का पाठ करें। नवरात में दुर्गा सप्तशती के साथ हनुमान जी की आराधना करना भी शुभ माना जाता है।

कोरोना महामारी के प्रकोप से खुद और परिवार को बचाने के लिए आवश्यक है इस बार नवरात पर सरकार द्वारा दिए निर्देश के अऩुसार मंदिर बंद रहेंगे। सभी लोग अपने-अपने घरों में ही स्थापित मां दुर्गा की आराधना करें। मां के भजन गाए और कीर्तन करें। यूटयूब पर मां भगवती के भजन सुने। नवरात में मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए साधना का विधान है। कोरोना महामारी से बचने के लिए आवश्यक है कि अपने घऱ में स्नान करके ही मां भगवती की साधना करें। यह भी ध्यान रखना है कि इस बार भूखे रहकर साधना नहीं करनी है। आप चाहे अन्न ग्रहण न करें पर शरीर को ताकत देने वाले और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले पदार्थ अवश्य ग्रहण करें। अंजीर, काजू, बादाम, अखरोट और खजूर प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करते हैं। स्वयं घरों में रहे और दूसरों को भी घरों में रहकर मां दुर्गा की साधना करने को कहें।

जैसा कि मैंने प्रारम्भ में कहा कि देवी को प्रसन्न करने के लिए हवन और यज्ञ करने की परम्परा रही है। प्राचीन काल में पशुबलि देने की परम्परा को अब बंद कर दिया गया है। नवरात के दिनों में हवन करने से घर में पवित्रता आती है और हमारे अंदर ऊर्जा भरती है। हम सबके लिए यह बहुत बड़ा अवसर है कि हम लोगों घरों में रहकर यज्ञ, हवन और ईश्वर की आराधना करें। विश्व कल्याण की भावना को लेकर भारत में वैदिक युग से यज्ञ करने की प्राचीन समृद्ध परम्परा रही है। यज्ञ में मंत्रोच्चार के अंत में स्वाहा के साथ ही आहुति देते ही उठती अग्नि हमारें अंदर सांस के माध्यम से तमाम रोगों से बचाती है। यज्ञ केवल कर्मकांड ही नहीं है बल्कि एक पूरी रोगों के उपचार की वैज्ञानिक पद्धति है। यज्ञ की उठती लपटें हमें जीवन में सत्य के पथ पर चलते हुए संकल्प की सिद्धि का मार्ग बताती है। यज्ञ में आहुति के लिए विभिन्न प्रकार की औषधियों के साथ गो के घी का उपयोग किया जाता है। कपूर जलाने से तमाम तरह का संक्रमण दूर होता है। यज्ञ से वातारवण में विद्यान दूषित तत्व समाप्त होते हैं और मनोरम तथा स्वस्छ वातावरण उत्त्पन्न होता है। श्रीराम शर्मा द्वारा स्थापित ब्रह्मवर्चस संस्थान वैज्ञानिक रूप से सिद्ध किया गया है कि यज्ञ से उत्पन्न धुआं सौ प्रतिशत आक्सीजन उत्पन्न कतरता है। अग्नि के माध्यम ईश्वर की उपासना की प्रक्रिया यज्ञ है।

ऋग्वेद में वर्णन है यज्ञं जनयन्त सूरयः। अर्थ हे विद्वानों! संसार में यज्ञ का प्रचार करो। अथर्ववेद में बताया गया है कि यज्ञ ही समस्त विश्व-ब्रह्मांड का मूल केंद्र है। अयं यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभिः। शतपथ ब्राह्मण में यज्ञ को देवों की आत्मा कहा गया है। यज्ञो वै देवानामात्मा। यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म बताया गया है। यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म। ‘यज्ञ’ शब्द पाणिनीसूत्र ‘‘यजयाचयतविच उप्रक्चरक्षो नड़्’’ में नड़् प्रत्यय लगाने पर बनता है। यज्ञ शब्द ‘यज्’ धातु से बना है। आज यज्ञ और हवन की महत्ता और महिमा समझने की आवश्यकता है। प्राचीन काल में संकटों से मुक्ति का मार्ग खोजने के लिए यज्ञ की परम्परा रही है। संकट से उबरने में जब कोई उपाय सफल नहीं होता तो ऋषि-मुनियों के द्वारा यज्ञ का आयोजन किया जाता था। वेदों में बताया गया है कि सुख, शांति और समृद्धि की कामना के लिए यज्ञ करें। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवत गीता में अर्जुन को यज्ञ का महत्व बताया था। भगवान कहते हैं कि हे अर्जुन! जो यज्ञ नहीं करते हैं, उनको परलोक तो दूर यह लोक भी प्राप्त नहीं होता है।

रोगों के उपचार में गोली लेना, इंजेक्शन लगवाना और सर्जरी आदि मुख्य साधन है। यज्ञ में श्वांस के माध्यम से बिना चीरफाड़, इंजेक्शन और औषधि के बिना उपचार होता है। संक्रमण होने पर श्वांस के माध्यम से रोगियों का उपचार होता है। इसे भैषज्य यज्ञ कहते हैं। भैषज्य यज्ञ शरीर में बल बढ़ाता है। वायु प्रदूषण को कम करने के लिए ऋषि-मुनि यज्ञ करते थे। आज भी कई इलाकों में महिलाएं अपने बच्चों पर आने वाली बलाओं से बचाने के लिए अग्नि में एक-दो मिर्च डालती है। अगर भारी मात्रा में मिर्च अग्नि में डाली जाए तो वातावरण विषैला हो जाता है और सांस लेना मुश्किल हो जाता है। यज्ञ में आम और चंदन की लकड़ी. हवन सामग्री, घी, औषधियों की आहुति से वातावरण पवित्र होता है। यज्ञ से पवित्र वातावरण होने से हमें रोगों से मुक्ति मिलती है। अगर यज्ञ करना संभव नहीं है तो गाय के उपला जलाकर घी, गुग्गल, लोबान, लौंग आदि की आहुति देकर भी रोगों से मुक्ति मिलती है। साथ ही प्रार्थना करें

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः