कैलाश विजयवर्गीय
कारण जो भी रहें हो, महान क्रांतिकारी समाज सुधाकर, विचारक, लेखक, दार्शनिक, वंचितों और महिलाओं को शिक्षा और बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए अभियान चलाने वाले ज्योतिबा फुले को उनके निधन से दो वर्ष पूर्व महात्मा की उपाधि देने के बावजूद कुछ खास वर्ग तक सीमित कर दिया गया। महाराष्ट्र के पुणे में 11 अप्रैल 1827 को जन्मे ज्योतिबा गोविन्दराव फुले ने तमाम कठिनाइयों के बावजूद पढ़ाई की और समाज को कुरीतियों को दूर करने का पाठ पढ़ाया। माली का काम करने वाले परिवार में जन्मे ज्योतिबा को पढ़ाई में अच्छा होने के बाद भी तथाकथित उच्च वर्ग के व्यवहार के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी। पहले मराठी पढ़ने वाले ज्योतिबा ने शिक्षा का महत्व समझते हुए 21 वर्ष की आयु में अंग्रेजी में सातवीं कक्षा उत्तीर्ण की। 1840 में सावित्रीबाई से विवाह किया और महिलाओं को शिक्षित बनाने और बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए महिला विद्यालय की स्थापना कराई। इस कार्य के लिए उन्होंने अपनी पत्नी को शिक्षित बनाकर देश की पहली महिला शिक्षिका बनाया। वंचितों के नायक और महिलाओं को सशक्त बनाने की प्रेरणा देने वाले महान क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले ने किसानों और खेती के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे। इसके लिए उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती भी दी थी। ज्योतिबा फुले ने प्रेस की आजादी को लेकर भी अंग्रेजी सरकार को चुनौती दी थी। बाल विवाह का विरोध और विधवा विवाह के पुरजोर समर्थक महात्मा फुले ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने का बीड़ा उठाया था। इसी कारण भारत रत्न डा. भीमराव अम्बेडकर ज्योतिबा फुले को अपना गुरू मानते थे।
जब ज्योतिबा फुले ने वंचितों के उत्थान के लिए अभियान चलाया तो उस समय महाराष्ट्र सहित देश के कई विभिन्न इलाकों में जातिवाद, महिलाओं को शिक्षा दिलाने, बाल विवाह, विधवा विवाह और धार्मिक सुधार आंदोलन जारी थे। महाराष्ट्र में महादेव गोविंद रानाडे और आरजी भंडारकर ने स्त्री शिक्षा, बाल विवाह के विरोध और विधवा विवाह के लिए अभियान चलाया था। इसके लिए रानाडे ने पुणे सार्वजनिक सभा की स्थापना की। स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी। बंगाल में राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज और केशवचंद सेन प्रार्थना समाज की स्थापना की। समाज में शूद्र और अति शूद्रों में जागृति के लिए ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की थी। ज्योतिबा फुले अछूतोद्धार के प्रथम महानायक थे।
बहुआयामी प्रतिभा से सम्पन्न, सामाजिक न्याय के पुरोधा, सामाजिक समानता, महिला सशक्तीकरण और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले ज्योतिबा फुले ने आंदोलनों के माध्यम से आजादी की अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ब्राह्मणवाद को चुनौती देने वाले और विवाह में पुरोहित की भूमिका समाप्त करने का अभियान चलाने वाले ज्योतिबा फुले ने समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए आवाज ही नहीं उठाई बल्कि उसे साकार रूप दिया। कुछ राजनीतिक कारणों से देश की स्वतंत्रता से पहले और बाद में ज्योतिबा फुले के समाज को जगाने और बराबरी का अधिकार दिलाने के बावजूद एक वर्ग का ही नायक माना गया। ज्योतिबा फुले को राजनीतिक कारणों से एक वर्ग तक की सीमित रखा गया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वंचितों को बराबरी के अधिकार हमेशा पक्षधर रहा है। संघ के संस्थापक पूज्यनीय डॉ. केशवराम बलिराम हेडगेवार के निमंत्रण पर डॉ. अम्बेडकर ने 1939 में संघ शिक्षा वर्ग में आकर स्वयंसेवकों के साथ भोजन किया था। डॉ अम्बेडकर ने संघ के कार्यों की प्रशंसा भी की थी। केंद्र में लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार और भाजपा शासित राज्यों में सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के तहत सभी वर्गों को लाभ मिल रहा है। मोदीजी के नेतृत्व में पूरा देश महात्मा ज्योतिबा फुले के सम्पूर्ण समाज को बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए समर्थन कर रहा है। केवल सत्ता के लिए दलितों के वोटों के लालच में समाज में कटुता फैलाने वाले दल आज मोदी सरकार के कार्यों के कारण हाशिये पर जा रहे हैं। समाज में कटुता फैलाने के प्रयासों के लिए जातिगणना कराई जा रही है। जातिवाद के नाम पर कुछ दलों ने अपने परिवारों का ही कल्याण किया है। ऐसे दलों को जनता ने नकार दिया है। महात्मा फुले ने जातिगत पूर्वाग्रह से मुक्ति के लिए जो अभियान चलाया था, उसे मोदी सरकार ने साकार किया गया है। वंचितों, महिलाओं, किसानों और युवाओं के कल्याण के लिए कार्य किए जा रहे हैं। सामाजिक समरसता के अगुवा महात्मा फुले को जयंती कोटिशः नमन।
(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं और सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक विषयों पर बेबाक टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं।)