Kailash Vijayvargiya blogs SEX sambandhon kee umr ghataane par savaal – der aae durust aae - Kailash Vijayvargiya Blog
kailash vijayvargiya kailash vijayvargiya
Nadda ji

SEX sambandhon kee umr ghataane par savaal – der aae durust aae

Kailash Vijayvargiya

ये कैसी बदकिस्मती है इस मुल्क की कि हमारे हुकमरान वतन की तमाम दुश्वारियों से दूर देश के बच्चों को सेक्स सिखाने पर आमादा हैं। हमारे वजीर-ए-आज़म डॉ. मनमोहन सिंह और उनकी सियासी आका मोहतरमा सोनिया गांधी को आवाम के पेट की भूख से ज्यादा बच्चों की जिस्मानी भूख की चिंता है। क्या मुल्क से गरीबी, मजलूमियत, दीनता-हीनता, बेरोजगारी-बेकारी, अशिक्षा-तालीम, और नासूर बन चुके भ्रष्टाचार की परेशानियां दूर हो चुकी हैं, जो हम इस बात को लेकर रूबरू हैं कि देश में सेक्स की उम्र क्या हो? आखिर ऐसा कौन सा पहाड़ टूट रहा था जो हम अपने बच्चों को दो साल पहले बड़ा बना देने की बात पर विचार भी कर रहे थे? कोई तो वाजिब वज़ह होना चाहिए।मैं समझ नहीं पा रहा हूँ कि इस सरकार का और कांग्रेस का संस्कारों से कोई नाता क्यों नहीं बचा। क्या यही महात्मा गांधी की कांग्रेस है? उन महात्मा गांधी की जो नैतिकता, मूल्यों, धर्म आधारित संस्कारों के पैरोकार थे और आज उन्हीं के नाम पर सियासी वोटों की फ़सल काटने वाले गांधी-नेहरू परिवार के नुमाइंदे भारतीय संस्कारों से इतर देश पर इतालवी संस्कृति लादने पर आमादा हैं। पश्चिम में 13-14 साल की बच्चियां अपनी मां के बायफ्रेंड के शोषण का शिकार होकर बिन ब्याही मां बनती रहती हैं। क्या मादाम सोनिया उस खतरनाक अपसंस्कृतिकरण को भारत में लाने की तैयारी कर रही हैं? सवाल यह है कि 16 वर्ष के नासमझ बच्चों को सेक्स का अधिकार देने से देश का क्या भला होता? क्या देश से दुष्कर्म की घटनाएं समाप्त हो जाती? क्या पुलिस थानों में दर्ज होने वाले बलात्कार के आंकड़े कम हो जाते? क्या देश के नौजवान सेक्स का अधिकार पाकर स्वामी विवेकानंद के उस सपने को साकार कर देते कि भारत विश्व गुरू है? फिर इस अधिकार को देने से हमारे देश के सिस्टम में कौन सा आमूलचूल परिवर्तन आने वाला था, जो हमारे प्रधानमंत्री सेक्स की उम्र घटाने के लिए इतने लालायित थे? आखिर क्यों? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब आने वाली पीढि़यों को नहीं हमें और आपको देना पड़ता।यदि हम चाहते हैं कि मुल्क में महिलाएं सुरक्षित हों, बच्चियों को सम्मान मिले, उनकी दैहिक अस्मिता हमारी गरिमा की प्रतीक हो तो हमें अपने बच्चों को सेक्स का अधिकार देने की नहीं संस्कार देने की जरूरत है। यदि हम अपने बच्चों को खासकर बेटों को पारिवारिक संस्कार दें, घर की ही नहीं बाहर की मां-बहनों की इज्जत करना भी सिखाएं, तो यकीनन देश में महिला दुष्कर्म और छेड़छाड़ की घटनाओं में कमी आएगी। जब हमारे बेटे देखते हैं कि अपने ही परिवार में महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं, उन्हें वह सम्मान नहीं मिल रहा है जिसकी वे हकदार हैं तो स्वभाविक रूप से उनके मन में यह भाव घर कर जाता है कि स्त्रियां पुरूषों से दोयम हैं और यहीं से वह समस्या शुरू होती है जिसे हम लिंग भेद के रूप में जानते हैं। देश में स्त्री-पुरूष की समानता परिवार में संस्कारों की स्थापना और आर्थिक अवसरों में बराबरी की अवधारणा से आएगी, सेक्स के अधिकार से नहीं। यदि हमें अपने बच्चों को अधिकार ही देना हैं तो हम उन्हें रोजगार का अधिकार दें, शिक्षा का अधिकार दें, विकास में भागीदारी का अधिकार दें, प्राकृतिक साधनों के सदुपयोग का अधिकार दें, अगर हम उन्हें ये सब अधिकार नहीं देना चाहते। ना दीजिए। मगर कम से कम 16 साल के नादान बच्चे को सेक्स का अधिकार भी तो मत दो। अरे उसे थोड़ा बड़ा तो होने दो। समझने-बूझने तो दो। अपने शरीर में उम्र के साथ होने वाले हार्मोंस के परिवर्तन के साथ तादात्मय और तालमेल स्थापित करने का अवसर तो दो। सरकार को क्या जल्दी है बच्चों को समय से पहले बड़ा करने की? क्यों छीनना चाहते हैं आप उनका बचपन?क्या संप्रग सरकार परिवार नामक संस्था का विघटन करना चाहती है? पहले सब्सिडी वाली रसोई गैस की टंकियों की संख्या घटाकर इस सरकार ने परिवार का विघटन कर दिया। बाप-बेटे-भाइयों के बीच रसोई का बंटवारा कर दिया। और अब 16 साल की उम्र में सेक्स का अधिकार। क्या सरकार की कोई जवाबदेही नहीं बनती कि वो राष्ट्रीय संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों के बारे में चिंतन-मनन करे? क्या सरकार सिर्फ भ्रष्टाचार के लिए होती है? क्या सरकार सिर्फ शासन करने के लिए होती है? क्या सरकार किसी गंभीर समस्या का सतही हल ढूंढने का नाम है? क्या मनमोहनसिंह सरकार ने दामिनी दुष्कर्म कांड का यह हल निकाला है कि सेक्स की उम्र 16 साल कर दी जाए? यदि यही हल है तो मुझे मुल्क के हुकमरानों की बुद्धि पर तरस आता है। सवाल बहुत सारे हैं। सवाल यह भी है कि क्या कोई मानव शिशु 16 वर्ष की उम्र में परिपक्व हो जाता है? सवाल यह भी है कि क्या 16 वर्ष की उम्र में किसी बच्चे में इतनी समझ आ जाती है कि वह यह समझ सके कि उसके लिए बेहतर क्या है? सवाल यह भी है कि क्या 16 साल की उम्र में शारीरिक संसर्ग मानव स्वास्थ्य के लिए अनुकूल होता है? सवाल यह भी है कि यदि 16 साल की कोई बच्ची गर्भवती हो गई तो क्या उसे इस नादान उम्र में मां बनने का अधिकार भी दिया जाएगा? सवाल यह भी है कि जब शादी की उम्र लड़की के लिए 18 साल और लड़के के लिए 21 साल है तो सेक्स की उम्र 16 क्यों? सवाल यह भी है कि क्या कोई जोड़ा विवाह की निर्धारित उम्र यानी 18-21 प्राप्त करने तक जो शारीरिक संसर्ग करेगा उसे कानूनी माना जाएगा और क्या इसे भारतीय समाज स्वीकार करेगा? सवाल यह भी है कि जब वोट देने का अधिकार 18 साल में मिलता है, गाड़ी चलाने का अधिकार 18 साल में मिलता है, वयस्क फिल्म देखने का अधिकार 18 साल में मिलता है, शराब की दुकान पर जाकर शराब खरीदने और पीने का अधिकार 18 साल में मिलता है तो फिर सेक्स करने का अधिकार 16 में क्यों दिया जा रहा था ? जब तक ये सवाल अनुतरित हैं तब तक सरकार को सेक्स की उम्र घटाने के बिल को कतई मंजूरी नहीं देनी चाहिए।देश के नौजवान रोजगार मांग रहे हैं, सरकार नहीं देती। देश के नौजवान शिक्षा की बेहतरीन व्यवस्था की मांग कर रहे हैं, सरकार नहीं देती। देष के नौजवान भ्रष्टाचार मुक्त शासन-प्रशासन मांग रहे हैं, सरकार नहीं देती। देश के नौजवानों ने सेक्स की उम्र घटाने की कहीं कोई मांग नहीं की। कहीं कोई ऐसा आंदोलन नहीं किया कि सेक्स करने की उम्र 16 साल की जाए। फिर सरकार की ऐसी क्या अटक रही थी जो वो बच्चों को जल्दी और कम उम्र में सेक्स कराने पर उतारू थी। दरअसल मौजूदा दौर अपसंस्कृतिकरण का दौर है। सांस्कृतिक प्रदूषण की आवोहवा ने हमारी परंपराओं, मान्यताओं, रीति-रिवाजों और सभ्यता को अपने शिकंजे में लेना शुरू कर दिया है। सेटेलाइट चैनल की तरंगों के जरिए सांस्कृतिक प्रदूषण की जो हवा हमारे ड्राइंगरूम में पहुंची उसने अब हमारी सरकार की मानसिकता को भी प्रदूषित कर दिया है। नेट पर डली नाना प्रकार की गंदी साइट्स फिल्म और फैशन के नाम पर परोसी जा रही अश्लीलता को विचार एवं अभिव्यक्ति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर सरकार भले ही ना रोक पाए, मगर उसे कम से कम अपनी ओर से पहल करते हुए नाबालिग सेक्स को कानूनी अमलीजामा पहनाने की सोच भी कैसे उत्पन्न हुई? सरकार सांस्कृतिक अपदूषण को नहीं रोक सकती, ना रोके। मगर कम से कम खुद तो उस अपदूषण में भागीदार ना बने।मीडिया में जो आया है अगर वह सही है तो कई केन्द्रीय मंत्री सेक्स की उम्र नहीं घटना चाहते थे। कई कांग्रेस सांसद भी इसके विरोध में थे। मगर हमारे विद्वान प्रधानमंत्री ने कह दिया इट्स ओके। क्या सच में यह इतनी साधारण बात थी? क्या यह सच में ओके था? क्या इतने महत्वपूर्ण अहम मुद्दे पर प्रधानमंत्री की इतनी संक्षिप्ततम टिप्पणी विवेकशील मानी जा सकती है? मनमोहनसिंह जी ने अपना लम्बा कार्यकाल विश्व बैंक और पश्चिमी विश्व विद्यालयों में बिताया है, मगर भारत पश्चिमी नहीं है। भारत की अपनी सभ्यता और संस्कृति है। पश्चिमी के यौन पिपासु मस्तिष्कों को भारत वर्ष की वैचारिक भूमि पर मानसिक बलात्कार करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। याद रखिए ये स्वामी विवेकानंद का देश है, फ्रायड का नहीं। भारत जैसे देश में वात्सायन जैसे ऋषि हुए हैं और कामसूत्र जैसी वैज्ञानिक रचनाएं भी रची गई हैं, लेकिन ये देश आज भी गौतम, महावीर, विश्वामित्र वशिष्ठ, अगस्त्य, दाधिची और गौस्वामी तुलसीदास जैसे ऋषि मुनियों के नाम से पहचाना जाता है, वात्सायन के नाम से नहीं।अंततः सभी बहसों के बाद सरकार देर आई दुरुस्त आई!