Kailash Vijayvargiya blogs ...kyoonki ve hee to mere sanskaar purush the !! - Kailash Vijayvargiya Blog
kailash vijayvargiya kailash vijayvargiya
Nadda ji

…kyoonki ve hee to mere sanskaar purush the !!

…………..क्यूंकि वे ही तो मेरे संस्कार पुरुष थे !!

सुदर्शन जी का अचानक हमारे बीच से जाना ठीक वैसा ही है जैसे बहुत बड़ी भयानक भीड़ में बच्चे का हाथ थामे पिता का गुम हो जाना होता है. हमारे राष्ट्र, हमारे धर्म, हमारी विरासत और हमारे विज्ञान से जितना प्रेम उनको था उतना ही प्रेम वे युवा पीढ़ी को करते थे. वे चाहते थे कि युवा पीढ़ी भी वैज्ञानिक विरासत पर उतना ही गर्व करे. मध्यप्रदेश शासन में विज्ञान व तकनीकी मंत्री का दायित्व जब मुझे मिला तो मैंने पाया कि वे निरंतर व्यक्तिगत रूप से मुझ में और विभाग में रूचि रख रहे हैं. हमारे आस-पास बिखरा प्लास्टिक और पॉलिथीन जमीन की उर्वरता तो समाप्त कर ही रहा है, वह पर्यावरण को भी असीम क्षति पहुंचा रहा है, इसलिए इसका सकारात्मक उपयोग होना चाहिए, यह सोचकर सुदर्शन जी ने प्लास्टिक से पेट्रोल बनाने की एक ‘प्रोजेक्ट रिपोर्ट’ बनवाई थी. इस रिपोर्ट के किर्यान्वयन पर वे सरकारों से सक्रिय व सतत संपर्क बनाए हुए थे. देश, समाज व व्यक्ति की आर्थिक आत्मनिर्भरता की चिंता वे प्रति क्षण  करते थे. कम से कम भूमि में अधिक, लाभदायी और स्वास्थ्यवर्धक खाद उत्पादन पर काम कर रहे कृषि वैज्ञानिक सुदर्शन जी के विशेष स्नेह पात्र होते थे.

विज्ञान और वैज्ञानिक विरासत को आत्मनिर्भरता का साधन बनाने पर सुदर्शन जी ने अनुपम काम किया है. उनके व्यक्तित्व का यह पक्ष कई लोगों को बाद में पता चला, किन्तु भाषा , दर्शन , इतिहास, राजनीति और धर्म के प्रकांड विद्वान के रूप में हमने उन्हें अपने बचपन से देखा है. साठ के दशक में मध्यभारत में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रान्त प्रचारक रहे थे. अपने नाम के अनुरूप ही ‘सुदर्शन’ और पठन पाठन में पारंगत सुदर्शन जी अत्यंत ही प्रभावी और लोकप्रिय प्रचारक थे. विश्वविद्यालयों के विद्वान प्रध्यापक और तेजस्वी छात्र उन्ही दिनों संघ से जुड़े थे. हमारी पीढ़ी ने सम्पूर्ण “इंसायक्लोपीडिया ब्रिटानिका” सुदर्शन जी के पास ही देखी थी. वे सन्दर्भ के लिए उस ग्रन्थमाला का नियमित अध्ययन करते थे. अपनी अनुपम बौद्धिकता, पढने, लिखने और अभिव्यक्त करने की अद्भुत क्षमता को उन्होंने मा. सुरेश जी  सोनी सहित हजारों-हज़ार स्वयं सेवकों में अंतरित किया है.

विराट हिन्दू समाज के विराट स्वरुप के लिए सुदर्शन जी ने आजीवन अथक प्रयास किए थे. सत्तर व अस्सी के दशकों में कई कारणों से सिख समाज में अलगाव का भाव आया था. स्व. इंदिरा जी की हत्या के बाद हुए दंगों ने इस अलगाव की खाई को और चौड़ा किया था. तब सुदर्शन जी ने सिख समाज में जाकर जो बातें की व ऐतिहासिक तथ्यों के साथ उन्हें विराट हिन्दू समाज का अभिन्न अंग बताया, उन्हें सुनकर सिख विद्वान भी कह पड़े कि सुदर्शन जी के पास हमारे धर्म का ज्ञान हमसे ज्यादा है. पिछले वर्ष उन्होंने इसी क्रम में एक आयोजन छत्तीसगढ़ में किया था. विभिन्न पंथ व पूजा पद्दति को मानने वाले हिन्दू समाज के ही सभी अंगों को एक साथ बैठाकर यह विमर्श किया था किभारत में रहने वाला, भारतमाता को प्रणाम करने वाला और यहाँ जीवन यापन करने वाला हर व्यक्ति ‘हिन्दू’ है.

इंदौर, मध्यप्रांत व मध्यप्रदेश सुदर्शन के असीम स्नेह के पात्र सदैव रहे थे. उनकी प्राथमिक, माध्यमिक व उच्चशिक्षा यहीं हुई थी. यहीं पहले बुंदेलखंड और बाद में मध्यप्रान्त मालवा में वे संघ के प्रचारक रहे थे. उनके एक शिक्षक डॉ. एस. एम. दासगुप्ता अपने जीवन भर उन्हें स्मरण कर गर्व से कहते थे कि मैं सुदर्शन का शिक्षक रहा व वे मेरे श्रेष्ठ विद्यार्थी थे. सुदर्शन जी के नीजी मित्र व सहपाठी शिरू भैया (मा. श्री गोपाल जी व्यास) की ही पुस्तक ‘सत्यमेव जयते’ के विमोचन हेतु वे रायपुर गए थे. वहां प्रातः शाखा में जाकर ध्वज प्रणाम व प्रार्थना के बाद प्राण त्याग कर सुदर्शन जी ने साबित किया कि वे भारत माता के योग्य पुत्र थे. उनकी अंतिम इच्छा भी यही थी कि प्राण त्याग के समय वे भारत माता कि प्रार्थना करते रहें.

मैं, प.पू. सुदर्शन जी के लाखों लाख प्रिय व अनुयायी स्वयं सेवकों में से एक हूँ. उनसे जब भी पिछले कुछ वर्षों में मिला, तो वे साथ खड़े अन्य लोगों से मेरा परिचय कराते हुए इंदौर के पित्रपर्वत का स्मरण बिना भूले करते थे. उस समय मुझे अपना जीवन धन्य लगने लगता था, क्यूंकि वे ही तो मेरे संस्कार पुरुष थे..