“अब पछताय होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत !”
देश में आर्मी का वन रैंक वन पेंशन का मुद्दा लगभग सुलझ चूका है। इस मुद्दे को लेकर राहुल गाँधी व अन्यों के राजनीति प्रेरित, घड़ियाली आंसू के साथ मौजूदा छटपटाहट देश देख रहा है।
इस संदर्भ में रविन्द्र नाथ टैगोर की कहानी मैं आपको सुनाना चाहूँगा।
एक भिखारी सुबह अपना झोला लिये , इसमें थोड़े से चावल डालकर निकला। कुछ ही क्षणों में राजा की सवारी आई। भीखारी के पास ही राजा रुका, उसने अपनी झोली भीखारी के समक्ष फैलाई। भीखारी ने कठोर मन से मात्र एक दाना चावल का उसमें डाला। राज्य पर आए संकट को टालने हेतु, अपने गुरु के बताए अनुसार राजा ने भिक्षा लेने का उपक्रम पूरा किया। इस सब के बाद जब भीखारी ने घर आकर झोला उंडेला तो उसे आश्चर्यजनक रूप से उसमे अन्न का एक दाना स्वर्ण का मिला। एक दाना जो उसने राजा को दिया था, वही स्वर्णिम हो गया। अत: पछताया, काश ज्यादा दाने दिये होते….. अब क्या अवसर बीत गया।
राहुल गाँधी भी अवसर चूक गए। वर्ष 2008- 2009 में मनमोहन जी की यूपीए सरकार ने आर्मी फ़ोर्सेस और वेटरंस को कितना हड़काया, हतोत्साहित किया था, वो जरा याद करें। उक्त वर्ष में छठा पैय कमीशन लाया गया। तब यूपीए सरकार, सेना के रेंक और पे ग्रेड को भारी गिरावट के साथ नीचे ले आई थी। इससे आहत सेना ओर वेटरंस तिलमिला उठे| उनके आत्म सम्मान व स्वाभिमान को करारी ठेस लगी।
माननीय मोदीजी ने अपनी सरकार के आते ही वन रेंक वन पेंशन के लिए जुलाई 2015 में आवश्यक राशि का आवंटन कर दिया। उनके इमानदार प्रयासों से आज यह योजना लागू है।
अब मैं वेटरंस रामकिशन ग्रेवाल की आत्महत्या पर गहन दिली दुःख व्यक्त करते हुए गरमाए मौजूदा मुद्दे पर भी आइना दिखाना चाहूँगा। स्व.श्री ग्रेवाल के परिवार को सरकार असहाय नही पड़ने देने वाली है। संपूर्ण सहानुभूति, संवेदना के साथ उनके हित में जो करना सर्वोतम होगा वही सरकार करेगी।
वर्तमान सरकार और मोदी जी के विकास कार्यो में भी व्यवधान आ रहे हैं, वे धीरज धारण किये है। अगर राहुल गाँधी और अरविन्द केजरीवाल अवरोध पैदा करने में पारंगत है, तो मोदी जी भी अवरोधों को सीढ़िया बनाना अच्छे से जानते है।