भारत की पहली महिला विदेशमंत्री, लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता रहीं, दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और हरियाणा में सबसे कम उम्र की मंत्री रही सुषमा स्वराज अब हमारे बीच नहीं रहीं, अचानक यह समाचार सुनकर विश्वास ही नहीं हुआ। उनके निधन से कुछ समय पहले ही उनका ट्वीट पढ़ रहा था। निधन का समाचार सुनते ही आंखों के सामने सुषमा जी का पूरा व्यक्तित्व दिखाई देने लगा। उनकी बातें याद कर मन विचलित हो उठा। विभिन्न कार्यक्रमों में उनके साथ रहने का अवसर मिला। उन्होंने हमेशा एक स्नेहमयी बहन का स्नेह दिया। उसी अधिकार के साथ समझातीं और सलाह देती थीं। कार्यकर्ता और उनके परिवार हमेशा उनकी चिंता के विषय रहते थे।
सुषमा स्वराज दुनियाभर में भारतीय नारी की प्रतिनिधित्व करती थीं। बार्डर वाली साड़ी पहने, सिंदूर से भरी हुई मांग और माथे पर लाल बिन्दी लगाए जब सुषमाजी विश्व भ्रमण करती थीं तो भारत की हर नारी गौरवान्वित महसूस करती थीं। अपने विचारों से उन्होंने भारतीय नारी की गरिमा का विश्व को अहसास भी कराया। प्रखर वक्ता के तौर पर भारतीय जनता पार्टी का पक्ष मीडिया में रखती तो प्रश्न पूछने वाले कम हो जाते थे। एक कुशल संगठक के तौर पर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं में अनूठी छाप रहेगी। एक कुशल संगठक के नाते उन्होंने कार्यकर्ताओं को गढ़ने का कार्य किया। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर उन्होंने सत्तापक्ष को हमेशा शालीनता से चुनौती दी। उनके तर्कपूर्ण बयानों से सामने वाला लाजवाब होते जाते थे।
भारत की पहली महिला विदेशमंत्री के रूप में विदेशों में रहने वाले भारतीयों को सुषमाजी से मां और बहन का प्यार मिला। विदेशों में रहने वाले भारतीयों की राय थी कि सुषमाजी के विदेशमंत्री रहने पर किसी भी संकट में उन्हें लगता था कि दिल्ली में उनकी चिंता करने वाला कोई बैठा है। सुषमाजी ने विदेशमंत्री रहते हुए दुनिया के हर कोने में रहने वाले भारतीयों की हर संकट में मदद की। विदेशों में रहने वाले भारतीयों में जो पहले सोचते थे कि हमारी कोई मदद करने वाला नहीं है, उन्होंने एक आत्मविश्वास भर दिया। ऐसे हजारों उदाहरण सामने हैं।
सुषमाजी की सबसे बड़ी विशेषता थी कि कार्यकर्ताओं का ध्यान रखना। एक कुशल संगठक के तौर पर तो कार्यकर्ताओं को गढ़ने का काम किया ही साथ उनके व्यक्तिगत जीवन में झांककर मां और बहन के रूप में चिंता करती और सलाह देती। जब मैं भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष था तो बहुत प्रवास करता था। उन दिनों प्रवास रेल या सड़क मार्ग के जरिये ज्यादा होते थे। उन्होंने पूछा कि कितने दिन घर से बाहर रहते हो। जब मैंने बताया कि एक माह में 25-26 दिन प्रवास पर ही रहता हूं तो इन्दौर में कम ही रह पाता हूं। इस पर एकदम से बोली कि अरे तो मां, पत्नी, भाई-बहनों और बच्चों को कब समय देते हो। जब मैंने बताया कि परिवार में सब हम मां के साथ रहते हैं। संयुक्त परिवार है। भाई परिवार का पूरा ध्यान रखते हैं। इस कारण कोई समस्या नहीं होती है। इस कारण कोई आवश्यकता नहीं लगती है। इस पर उनका कहना था कि आप कितने भी सफल नेता बन जाएं अगर आप अच्छे पुत्र नहीं है, आप अच्छे पति नहीं है। आप अपने बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं तो आप अच्छे पिता नहीं है तो मैं आपको सफल नेता नहीं मानूंगी। अपने भाई-बहनों के साथ समय नहीं बिता पाते हैं तो आप अच्छे भाई भी नहीं है। परिवार को समय देने के लिए क्वालिटी समय शब्द का उन्होंने इस्तेमाल किया। परिवार में सफल रहने के बाद ही आप राजनीति में सफल माने जाते हैं। यह सीख उन्होंने मेरे जैसे लगभग पूर्णकालिक कार्यकर्ता को दी थी। ऐसे सीख सुषमा सभी कार्यकर्ताओं को देती थीं। इसी कारण उन्हें कार्यकर्ताओं के परिवारों में मुखिया का दर्जा मिला हुआ था।
श्रीकृष्ण उनके आराध्य थे। कृष्ण भजन गाना और नृत्य करना उनका बहुत अच्छा लगाता था। इसी कारण उन्होंने बेटी का बांसुरी रखा। कुछ दिन बाद जन्माष्टमी हैं। ऐसे अवसर पर वे हमारे साथ नहीं होंगी। उनकी कमी हमेशा खलती रहेगी। बहुत याद आएंगी बड़ी दीदी सुषमाजी।
कैलाश विजयवर्गीय