पिछले लंबे समय से बाबा साहब डा.भीमराव अम्बेडकर का नाम लेकर कुछ लोग देश की एकता और अंखडता को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं। हैरानी की बात है कि मुसलमान और कम्युनिस्ट नेता भी बाबा साहब के आदर्शों पर चलने का दावा करते हुए हिन्दू समाज की आलोचना कर रहे हैं। नागरिकता संशोधन कानून 2019 के विरोध में जिस तरह दलित और मुस्लिम गठजोड़ दिखाने की कोशिश की गई, वास्तव में वह बाबा साहब की मुस्लिमों के बारे असली सोच के विरोध में था। बाबा साहब का नाम लेकर ही उनके विचारों का खत्म करने का प्रयत्न किया गया। बाबा साहब ने कभी हिन्दू धर्म का विरोध नहीं किया। बाबा साहब हिन्दू धर्म में जातिगत आधार पर भेदभाव के विरोधी थे। बाबा साहब समाज में समानता के प्रबल समर्थक थे। बाबा साहब राष्ट्र की एकता और अखंडता के प्रबल समर्थक थे। बाबा साहब ने गुलाम प्रथा के लिए इस्लाम को दोषी ठहराया था। उनका मानना था कि इस्लाम के कारण ही गुलामी की प्रथा लंबे समय तक कायम रही। इस्लाम के कारण ही भारत को कई बार परतंत्र होना पड़ा। इसी कारण उन्होंने देश के बंटवारे और आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का लागू करने का विरोध किया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यों का विरोध करने के लिए मुस्लिम नेता और कम्युनिस्ट बाबा साहब को अपना आदर्श बताते हैं। बाबा साहब मुस्लिमों के बारे कहते थे कि मुस्लिम महजब और कुरान के प्रति वफादरी रखते हैं। बाबा साहब ने कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति का विरोध किया था। इसी कारण कांग्रेस ने उन्हें लोकसभा चुनाव नहीं जीतने दिया। बाबा साहब और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के संबंध इसी कारण कभी अच्छे नहीं रहे। पंडित नेहरू ने पहले 1952 में हुए आम चुनाव में उत्तर मुंबई लोकसभा सीट से बाबा साहब को हराने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। बाबा साहब के पुराने नजदीकी साथी एनएस काजोलकर को कांग्रेस ने उनके सामने खड़ा किया था। नेहरू ने दो बार बाबा साहब के विरोध में जाकर वोट मांगे। चुनाव में बाबा साहब 15 हजार वोट से हार गए। इसके बाद 1954 में बंडारा लोकसभा चुनाव के उपचुनाव में कांग्रेस ने फिर हराने का काम किया। मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति का विरोध करने के कारण कांग्रेस ने कभी बाबा साहब की नीतियों और विचारों का सम्मान नहीं किया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बाबा साहब में कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों का विरोध करने में समानता नहीं थी। बाबा साहब भी संघ की तरह देश के विभाजन के खिलाफ थे। संघ ने समाज को जातिविहीन व्यवस्था के आधार पर जोड़ते हुए राष्ट्रीय एकता और अखंडता का कल्पना को साकार किया। संघ के संस्थापक डा.केशवराव बलिराम हेडगेवार कहते थे कि शाखा में आने वाला केवल स्वयंसेवक है। द्वितीय सरसंघचालक गुरु गोलवलकर जी ने स्वयंसेवकों को अन्तरजातीय विवाह करने के लिए प्रेरणा दी। गुरुजी ने 1942 संघ के एक स्वयंसेवक के परिवार में अंतरजातीय विवाह की सराहना की थी। जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 हटाने का बहुजन समाज पार्टी यह कहते हुए समर्थन देती है कि बाबा साहब इस व्यवस्था के खिलाफ थे। बाबा साहब ने अखंड राष्ट्र का पुरजोर समर्थन किया था। बाबा साहब ने “पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया” बुक में मुस्लिमों के बारे में बेबाकी से विचार प्रस्तुत किए हैं। उऩ्होंने लिखा है कि इस्लाम मुस्लिम और गैर—मुस्लिमों भेद करता है। इस्लाम का बंधुत्व मानवता का सार्वभौम बंधुत्व नहीं है। यह बंधुत्व केवल मुसलमान का मुसलमान के प्रति है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस्लाम कभी एक सच्चे मुसलमान को ऐसी अनुमति नहीं देगा कि आप भारत को अपनी मातृभूमि मानो और किसी हिंदू को अपना आत्मीय बंधु। किताब के 301 पन्ने पर लिखा है कि विभाजन के बाद भी अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक की समस्या बनी ही रहेगी। यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिए कि पाकिस्तान बनने से हिन्दुस्तान साम्प्रदायिक समस्या से मुक्त नहीं हो जाएगा। सीमाओं का पुनर्निर्धारण करके पाकिस्तान को तो एक सजातीय देश बनाया जा सकता है, परन्तु हिन्दुस्तान तो एक मिश्रित देश बना ही रहेगा। मुसलमान समूचे हिन्दुस्तान में छितरे हुए हैं-यद्यपि वे मुख्यतः शहरों और कस्बों में केंद्रित हैं।