कैलाश विजयवर्गीय
हमारे अटल बिहारी वाजपेयी जी आज हम सबके बीच होते तो हम उनका सौंवा जन्मदिवस मना रहे होते। 2014 से हम उनके जन्मदिवस को सुशासन दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं। राजनीति के अजातशत्रु, ओजस्वी वक्ता, भावुक कवि, संसदीय परम्परा के शिखर नेता, भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल विहारी वाजपेयी को सम्पूर्ण राष्ट्र उनकी सौंवीं जयंती पर नम आंखों से श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। 2018 की 16 अगस्त से वाजपेयी जी हमारे मध्य नहीं हैं, पर हवा में लहराते उनके हाथ, हृदय को झकझोरने वाली उनकी वाणी, करोड़ों लोगों को देश-धर्म के पथ पर चलने के लिए प्रेरित करने वाले उनके गीत, गरीबों, किसानों, युवाओं, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए उनके संकल्प आज भी हमारे कानों में गूंजते रहते हैं। उनके प्रेरक उद्बोधन, पराजय को विजय में बदलने के उनके मंत्र हमारी प्रेरणा और साहस को हमेशा बढ़ाते रहते हैं। हमें लगता है आज भी अटलजी हमारे मध्य हैं। उनका यह गीत
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
हमें सदैव अपने कर्तव्य पथ पर अटल रहकर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती रहती है।। एक महान नेता का सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र के लिए समर्पित रहा। बचपन में अंग्रेजी हूकुमत को उखाड़ फेंकने के लिए बाल्यकाल में जेल जाने वाले अटल विहारी वाजपेयी ने राजनीति में प्रवेश करने के साथ ही देश को दुनिया को तीसरी बड़ी ताकत बनाने का संकल्प लिया। आज भारत विश्व गुरू बनने की राह पर अग्रसर है। उन्होंने नारा दिया, जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान। हमारे लोकप्रिय प्रधान सेवक श्री नरेंद्र मोदी ने उनके सपनों का भारत गढ़ने के लिए जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान, जय अनुसंधान का नारा देकर भारत की विश्व में नई छवि प्रस्तुत की है। याद कीजिये, लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री के तौर पर उनका अंतिम आह्वान। 15 अगस्त 2003 को उन्होंने प्रधानमंत्री के तौर पर लालकिले की प्राचीर से आह्वान किया था कि 2020 तक भारत को विकसित देश बनाना है। अटलजी ने कहा था कि प्यारे देशवासियों, आज देश ऐसे मोड़ पर हैं, जहां से देश एक लंबी छलांग लगा सकता है। 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के बड़े ध्येय को हासिल करने की तमन्ना सारे देश में बल पकड़ रही है। जरा पीछे मुड़कर देखिये, बड़े-बड़े संकटों का सामना करके भारत आगे बढ़ रहा है। अटलजी का संकल्प पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के साथ पूरा देश साथ खड़ा है। उनका सपना था कि कश्मीर में शांति हो और शांतिपूर्ण चुनाव हों। कुछ समय पहले ही जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव हुए हैं, जो उनके आदर्शों की ओर एक कदम है।
अटलजी राजनीति में आने से पहले पत्रकार थे। कई समाचार-पत्रों के संपादक रहे। एक ऐसे संपादक रहे, जिनकी संपादकीय टिप्पणी पढ़ने के लिए लोग समाचार पत्र पढ़ते थे। कश्मीर में परमिट लेकर घुसने की व्यवस्था और अनुच्छेद 370 के विरोध में जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे के नारे के साथ अभियान प्रारम्भ किया था। यहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा शुरु हुई। 1951 में जनसंघ की स्थापना के समय उन्हें पद देने का अनुरोध किया था। उस समय उनकी इच्छा पत्रकार बने रहने की थी। पर देश की एकता-अखंडता के लिए उन्होंने डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ सचिव के तौर पर कश्मीर जाने का रास्ता चुना। डॉ मुखर्जी ने पठानकोट में गिरफ्तारी के बाद अटलजी को देश के लिए यह संदेश देने के लिए वापस भेजा कि डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बिना परमिट जम्मू-कश्मीर में प्रवेश किया है। 2019 में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के समाप्ति के साथ नया अध्याय शुरु हुआ।