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Nadda ji

Need a connoisseur of vision to assess Modi ji

मोदी जी का मुल्यांकन करने के लिए पारखी दृष्टि की ज़रूरत हैं।

प्रायः लोग अपने लक्ष्य की डगर पर बढ़ते नज़र आते हैं। पर सबके सब तो सफल नहीं होते हैं। तो व्यवधानों और कठिनाइयों से आहत होकर, राह छोड़ किनारे खड़े हो जाते हैं। कोई बुरी बात नहीं। पर ऐसे खड़े कुछ लोग कुंठावश, अन्य कर्मठ लोगों पर पत्थर फैकने लग जाते हैं। दूसरों की राह में कांटे बोन लग जाते हैं। ऐसी विकृति प्रशंसनीय तो नहीं हो सकती।

हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी पूरी निष्ठा, कर्मठता व स्पष्ट दृष्टि के साथ देश के विकास और हर आम-ओ -खास के हित का लक्ष्य लेकर बढ़ रहे हैं। उन पर भी कुंठित राह खड़े कुछ लोग पत्थर उछालने का प्रक्रम कर रहे हैं। उनके खिलाफ यहां तक बोला गया कि, वे देश को युद्ध कि ओर धकेल देंगे।

अजीब विडम्बना हैं, जिन्हें देश ने अपना विश्वास सोपा हैं, और जिनका ध्यान केवल और केवल देश के 1.35 अरब नागरिकों की सुख सुविधाओं पर केन्द्रित हैं, उन्हें भला ख़याल भी क्यों आएगा, देश का ध्यान गैर जरूरी स्थितियों की ओर बांटने का।

यह प्रधानमंत्री जी की स्पष्ट, सटीक और मानवीय सोच का नतीजा है की सरकार संपुर्ण विवेक के साथ गतिमान हैं। पहले हमें अपने दस्तावेजों का प्रमाणीकरण गजेटेड अधिकारी से कराना होता था। इस प्रक्रिया में कहां कहां कितने धक्के खाना पड़ते थे, उसकी पीड़ा हम सबने भुगती हैं। मोदीजी ने इस पीड़ा से मुक्ति दिलाई। इधर रेलवे के एक स्टेशन पर तबियत ख़राब होने का ट्वीट किया गया, की आगे के स्टेशन पर डॉक्टर नर्स सब इलाज के लिए हाज़िर मिले। एक ट्वीट पर आपकी समस्या का समाधान। कितनी सुखद और परिवर्तित व्यवस्था हमें मिल रही है।

मोदी सरकार समस्या के समाधान में जी जान लगाती हैं। तुरंत एक्शन लेती हैं। विगत सरकार की तरह हाथ खड़े नहीं कर देती, कि हम महँगाई भ्रष्टाचार आदि पर काबू करना हमारे बस में नहीं है। मौजूदा सरकार द्वारा डिजिटलाइज़ेशन व अन्य तरीकों से भ्रष्टाचार के मार्ग को पूर्णतः सील करने की प्रक्रिया जारी हैं। जबकि दूसरी तरफ आम उपयोगी वस्तुओं के दाम गिरने संबंधी समाचार लगातार अखबारों में देखे जा रहे हैं। समझना यह भी ज़रूरी है की हर समस्या के समाधान होने की प्रक्रिया में सामान्य समय लगता है। ऐसे में हमसे थोड़े धैर्य की अपेक्षा भी ज़रूर की जाती है।

मोदी जी की विदेश यात्राएँ कोई यूँ ही नहीं हैं। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर सरकार की पैनी नज़र हैं। अभी समाचार था सरकार ने अमेरिका से सामरिक संधि की। विशेषज्ञों की माने तो इससे देश की शक्ति और अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव बढ़ा है। मोदी जी ने देश की छवि और अपने व्यक्तित्व को दुनिया के समक्ष इतने प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया कि आज विश्व भारत की तरफ उम्मीद भरी दृष्टी से देख रहा हैं।
मोदी जी के मूल्यांकन के लिए जौहरी वाली पैनी दृष्टी जरुरी हैं। संत ने अपने शिष्य को कांचनुमा टुकड़ा देकर बोला, इसे ५ रुपये में बेचकर आओ। शिष्य एक सब्जीवाले के पास गया। उसने कीमत 8 आने लागई। फिर कपड़ा व्यापारी ने एक रुपय लगाई। ५ रुपय किसी ने नहीं लगाई। शिष्य वापस गुरु के पास आया और पूरी स्थिति बताई। गुरु ने बोला दो गली छोड़कर दुकानों में इसकी कीमत लगवा कर वापस आओ। शिष्य वहं गया, वहां दुकानदारो ने कीमत १० रुपये, १५ रुपये और इससे अधिक लगाई। शिष्य प्रसन्नता से वापस आया। गुरु ने बोला यह हिरा हैं। इसकी कीमत जोहरी ही जानता हैँ। इस सरकार और मोदी जी का मुल्यांकन करने के लिए हम सब को जोहरी वाली पारखी दृष्टि की ज़रूरत हैं।

Sri Krishna Suranam Mama:

श्री कृष्ण शरणम ममः

आनंद से जीवन जीने की कला सिखाने वाले भगवान कृष्ण के प्राकट्य दिवस जन्माष्टमी के पावन अवसर पर सभी विश्व बंधुओं को हार्दिक बधाई। सोलह कलाओं के अवतार श्रीकृष्ण ने स्वयं मानव जीवन जीकर लोगों को अपने जटिल जीवन को सरल, शांत और उल्लास पूर्ण बनाने का मार्ग दिखाया।
इस पावन अवसर पर हम श्रीकृष्ण के बताए मार्ग पर एक कदम बढ़ाने का प्रयास करें। हम सभी अपने अंतर्मन में झांके। आत्म विश्लेषण करें। चिंतन मनन करें। हमारी मन- मलितनताओं को चिन्हित करें। तदुपरान्त मन को मांजने और आत्मा को संवारने का प्रयास प्रारंभ करें। संभवतः इससे हृदय की गांठें सुलझें। जीवन में सहजता, सरलता को स्थान मिले। वरना वर्तमान भौतिकता पूर्ण जीवन में दिन भर की आपाधापी, उठापटक और थकाऊ परिश्रम के बाद भी हमारे चेहरों पर (इसमें मैं भी सम्मिलित हूं) प्रायः असंतोष, असमंजस, प्रश्न और संताप ही नजर आते हैं। जबकि हमारी भागमभाग संतोष, आनंद, प्रेम, समाधान, शांति, समृद्धि के लिये होती है। यानी कहीं न कहीं हमारे प्रयासों की दशा और दिशा गलत है।

श्रीकृष्ण की गीता में समभाव, को प्रसन्नता का आधार बताया है। समभाव यानी सुख में फूलें नहीं, दुख में रोव नहींंे। सुख दुःख की धूप छांव को धैर्य से सहें। आप सर्वशक्तिमान के विश्वास के साथ संपूर्ण विवेक और कुशलता से कर्म करके विजेता बन सकते हैं।

श्रीकृष्ण ने सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय का उपदेश दिया है। किस प्रकार उन्होंने मगध, हस्तिनापुर और मथुरा के राज्य सिंहासन दूसरों को दिये और वे सबके हृदय सिंहासन में आज भी विराज रहे हैं। यह सीख है हमारे लिए कीए त्याग से सभी मित्र बनते है, स्वार्थ से अमित्र।
हालाकि यह सब कहना- सोचना आसान है, करना कठिन। मौजूदा भौतिकवादी समाज में जहां स्वार्थ- जनिक कटुता हावी है, वहां ऐसी सीख या चर्चा भी अप्रांसगिक लग सकती है। पर आओ हम सभी श्रीकृष्ण के चरणों में नमन करें, उनसे एक छंद हो, जीवन में उनकी कृपा प्राप्त करें।

The wrong comment against the prime minister is not correct

महामहिम के खिलाफ गलत टिप्पणी सही नहीं

भारतीय परम्पराओं में मर्यादाओं का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इसका उल्लेख हमारे संविधान निर्माताओं ने अनेक बार अलग.अलग स्थानों पर किया है। इसी बात का उल्लेख महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भोपाल में राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी के समारोह में किया। महामहिम राष्ट्रपति ने न्यायाधीशों को न्यायिक सक्रियता के जोखिमों के प्रति सचेत करते हुए कहा था कि “अधिकारों का उपयोग करते हुए हर समय सामंजस्य स्थापित करना चाहिए और ऐसी स्थिति सामने आने पर आत्मसंयम का परिचय देना चाहिए”। संविधान को सर्वोच्च बताते हुए उनका कहना था कि “लोकतंत्र के हर अंग को अपने दायरे में रहकर काम करना चाहिए…

Prime Minister’s Interview

प्रधानमंत्री जी का साक्षात्कार

कुछ लोगों का जन्म ही होता है इतिहास रचने के लिए, उनके हर कदम पर एक नया कीर्तिमान खड़ा होता है उनके स्वागत के लिए। ऐसे युग पुरुष प्रकृति, सदियों में एक ही बनाती है जो आने वाली कई सदियों तक एक मिसाल बन जाते हैं। ऐसे ही एक युग पुरुष हैं हमारे मानीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी।

अभी हाल ही में उन्होंने एक साक्षात्कार दे कर इतिहास रच दिया क्योंकि इतिहास में पहली बार भारत के किसी प्रधानमंत्री द्वारा किसी निजी चैनल को इंटरव्यू दिया गया था। खुद को प्रधानमंत्री की बजाए प्रधान सेवक कहलाना पसंद करने वाले माननीय मोदी जी ने ना सिर्फ हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया बल्कि अपनी हर बात को सलीके से रखा भी।

चाहे वह विदेश नीति पर सवाल होचाहे वह NSG का मामला होकाले धन का मुद्दा होपाकिस्तान से रिश्ते हो या संसद में विपक्ष के तौर तरीके की बात हो हर सवाल पर माननीय प्रधानमंत्री जी ने अपनी बात रखी। हमे आशा है कि माननीय प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में आगे भी देश निरंतर विकास के पथ पर आगे बढ़ाते रहेगा।

Bhaarat maata kee jay to bolana hee hoga

भारत माता की जय तो बोलना ही होगा

“भारत माता की जय” और “वन्दे मातरम” के नारे ने अंग्रेजों को भगाकर देश को आजादी दिलाई। आज ऐसे ही नारों को लेकर कुछ फिरकापरस्ती ताकतें देश के माहौल को खराब करने की कोशिश कर रहीं हैं। भारत माता की जय न बोलने को लेकर ही पाकिस्तान की मांग की नींव रखी गई थी। मुसलमानों के लिए अलग देश बनाने की मांग करने वाले मोहम्मद अली जिन्ना ने भारत माता की जय न बोलने की बात कह के देश की आजादी के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले स्वतंत्रता सैनानियों का मनोबल तोड़ने की कोशिश की थी। जिन्ना अपनी राजनीति से देश…

India hopes for Balochis

बलूचियों की उम्मीद बना भारत

लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने पाकिस्तान की दुखती रग बलूचिस्तान का जिक्र क्या किया, कि उसकी पूरी बौखलाहट दुनिया के सामने आ गई। बलूचिस्तान, गिलगित, बाल्टिस्तान और पाक के कब्जे वाले कश्मीर में लोगों पर पाकिस्तानी हुकूमत के अत्याचारों के खिलाफ जारी मानवाधिकार आंदोलनों का समर्थन करने और वहां के लोगों की प्रतिक्रिया का प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में जिक्र किया।

उनका कहना था कि बलूचिस्तान के लोगों ने उनका मुद्दा उठाने पर भारत का आभार जताया है। इस बात पर पाकिस्तान को बौखलाना था, सो बौखालाया, इस पर तो कोई अचरज नहीं हुआ। पर पाकिस्तान की दुखती रग पर हाथ रखने से हुए दर्द से कांग्रेस के नेताओं, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, नेशनल कांफ्रेस और कुछ अन्य लोगों की बौखलाहट समझ से बाहर है।

पहले कांग्रेस के नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने इसे पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में दखल बताया। माकपा नेता सीताराम येचुरी ने भी कह दिया कि बलूचिस्तान का मुद्दा उठाकर हम पाकिस्तान को अवसर दे रहे हैं। अब पाकिस्तान कह सकता है कि चूंकि भारत बलूचिस्तान की बात करने लगा है तो उन्हें कश्मीर की बात करने का अधिकार है। इस तरह की विदेश नीति के साथ हम दूसरों को कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने का अवसर दे रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने बलूचिस्तान का मुद्दा उठाने के लिए केंद्र की निंदा की और कहा कि यह मुद्दा ऐसे समय में उठाया गया है जबकि कश्मीर हिंसा से जूझ रहा है। प्रधानमंत्री के पाकिस्तान को ललकारने का पूरे देश की जनता ने बड़े जोरदार ढंग से स्वागत किया। सलमान खुर्शीद के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया होने के बाद कांग्रेस के नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने प्रधानमंत्री के भाषण का समर्थन किया और कुछ और बातें भी जोड़ीं।

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के विदेश मामलों के सलाहकार सरताज अज़ीज़ ने भी कहा, कि इससे वहां हालात बिगाड़ने में भारत के हाथ की पुष्टि होती है। हमारे देश के नेता प्रधानमंत्रीजी के भाषण को पाकिस्तान के अंदरूनी मामलों में दखल बता रहे हैं, तो दूसरी तरफ दुनियाभर में उनकी प्रशंसा हो रही है।

बलूचिस्तान या अन्य मामलों को लेकर पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में दखल देने का आरोप लगाने वाले नेताओं को क्या यह जानकारी नहीं है, कि हमारा पड़ोसी देश हमारे पर पहले भी इस तरह के आरोप लगाता रहा है और वह भी बिना सुबूत। इस साल अप्रैल महीने में पाकिस्तानी सेना के एक वरिष्ठ अफसर ने भारत पर बलूचिस्तान प्रांत में हिंसा फैलाने का आरोप लगाया था। पाकिस्तानी सेना ने तब एक भारतीय जासूस की गिरफ्तारी का दावा भी किया था। पाकिस्तानी सेना के सभी आरोप फर्जी पाए गए।

पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिम में बसे बलूचिस्तान की सीमाएँ ईरान और अफगानिस्तान से लगती हैं। दक्षिण में अरब सागर के साथ लगा “बलूचिस्तान”, क्षेत्रफल में पाकिस्तान का आधा हिस्सा है। क्षेत्रफल में इतना बड़ा होने के बावजूद पाकिस्तान की कुल आबादी में से केवल 3.6 प्रतिशत लोग बलूचिस्तान में रहते हैं। प्राकृतिक संसाधनों से मालामाल बलूचिस्तान के लोग गरीबी की हालत में जी रहे हैं। लोगों को बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिली हैं। बलूचिस्तान में यूरेनियम, पेट्रोल, नेचुरल गैस, तांबा, सोना और अन्य धातुओं के खजाने को पहले अंग्रेजों ने लूटा और उनके जाने के बाद पाकिस्तानी हुकूमत की लूटमार जारी है।

1948 में पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान पर जबरन कब्जा जमा लिया था। एक समझौते के तहत, पहले पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को संप्रभु राज्य का दर्जा देने का प्रस्ताव माना था। पाकिस्तानी सेना के जबरन कब्जा करने के खिलाफ तब से वहां आजादी की लड़ाई चल रही है। पाकिस्तानी सरकार ने बलूचिस्तान में आजादी के लिए लड़ रहे संगठनों के खिलाफ 1948, 1858-59, 1962-63 और 1973-77 में सैन्य कार्रवाई की थी। साल 2000 से बलूचिस्तान में बड़े पैमाने पर संघर्ष शुरू हुआ।बलूचिस्तान लिबेरशन आर्मी, बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट, यूनाइटेड बलोच आर्मी, लश्कर-ए-बलूचिस्तान, बलूचिस्तान लिबेरशन यूनाइटेड फ्रंट जैसे कई और संगठन बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

2006 में तानाशाह परवेज मुशर्रफ सरकार ने बड़े पैमाने पर आंदोलनों को कुचलने के लिए सेना भेजी। बलूचों के सबसे बड़े नेता सरदार अकबर बुगती की 2006 में फौजी कार्रवाई में मौत के बाद से अत्याचार का सिलसिला और तेज हो गया। पाकिस्तान के इस संसाधन संपन्न और सबसे बड़े राज्य में राजनीतिक स्वायत्तता हासिल करने के लिए बुगती ने कबाइली आंदोलन की अगुवाई की थी। दक्षिण पश्चिमी प्रांत के दौरे के दौरान तानाशाह मुशर्रफ पर रॉकेट से हमला किया गया।

2005 के अंत में बलूचिस्तान में कबाइली आंदोलन कुचलने के लिए मुशर्रफ सेना के जरिये हमले कराए। बुगती की हत्या के खिलाफ मुशर्रफ पर हत्या के आरोप में मुकदमा भी चला। हाल ही बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा स्थित अदालत ने मुशर्रफ के साथ पूर्व प्रांतीय गृहमंत्री मीर शोएब नौशेरवानी और कौमी वतन पार्टी के प्रमुख एवं नेशनल असेंबली के सदस्य आफताब अहमद खान शेरपाओ को बरी कर दिया। अदालत के इस फैसले को लेकर बलूची नेताओं में भारी नाराजगी है।

बलूचिस्तान में नरसंहार का मुद्दा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी उठा है। इस बारे में मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट में बताया जाता रहा है, कि किस तरह बलूचिस्तान में लोगों को सताया जा रहा है। हजारों लोग जेल में हैं। बलूची नेताओं के खात्मे के लिए पाकिस्तानी सरकार ने आतंकी संगठनों को भी बढ़ावा दिया है। बलूचिस्तान की राजनीतिक स्वायत्ता की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना द्वारा मारे गए बलूची नेता अकबर बुगती के पोते बुद्राग बुगती ने भारत के प्रधानमंत्री का इस बात के लिए आभार जताया है।

बुद्राग स्विट्जरलैंड में हैं और बलूचिस्तान की आजादी के लिए जनमत जुटा रहे हैं। इसी तरह स्विट्जरलैंड में रह रहे बलूच रिपब्लिकन पार्टी के नेता अजीजुल्लाह बुगती ने भारत के समर्थन के बाद पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई में सहयोग की अपील की है। दुनियाभर में बलूचिस्तान के लिए समर्थन जुटाने में लगे बलूची नेता नाएला कादरी बलूत ने तो मोदी को एक महान राष्ट्र का महान नेता करार दिया है। भारत के साल 70 बाद बलूचिस्तान को मिले समर्थन पर भी उन्होंने खुशी जताई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी के बलूची नेताओं को समर्थन देने पर जो राजनीतिक दल सवाल उठा रहे हैं, उसका जवाब तो बलूची नेताओं ने दे दिया है। बलूची नेताओं ने याद दिलाया है कि 1970 में पाकिस्तानी हुकूमत के अत्याचारों से बचाने के लिए भारत ने दखल दिया था। तब भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पक्ष में पूरा देश खड़ा हो गया था। राजनीतिक दलों का पूरा समर्थन उन्हें मिला था।

नेशनल मूवमेंट के अध्यक्ष खलील बलूच के इस बयान पर कि दुनिया को यह समझना होगा कि पाकिस्तान के धार्मिक आतंकवाद को नीतिगत हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के काफी दूरगामी परिणाम होंगे, सभी को गौर करने की जरूरत है। पाकिस्तान के दोहरे चरित्र को भी बलूचिस्तान में जारी नरसंहार के खिलाफ दुनिया के सामने लाने में कामयाबी मिल रही है।

एक तरफ पाकिस्तान कश्मीर में घायल लोगों के इलाज के लिए दुनियाभर में ढिंढोरा पीट रहा है और दूसरी तरफ बलूची कबाइली नेताओं का केवल समर्थन करने से ही उसको जोर का दर्द उठा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों पर पाकिस्तानी सरकार के अत्याचारों के खिलाफ बोलने के बाद नवाज सरकार ने बलूची नेताओं को बातचीत के लिए बुलाया है।

भारत की पहल के बाद अब पाकिस्तान को वार्ता की सबसे बड़ा रास्ता दिखाई दे रहा है। बलूची नेताओं को भी भारत की पहल के बाद अपने वतन लौटने की उम्मीद जगी है।

With the protection of this Rakshabandhan sister, take the pledge of protecting India mother.

इस रक्षाबंधन बहन की रक्षा के साथ ही, प्रतिज्ञा लो भारत माँ की रक्षा की।

राखी बाँधना, सिर्फ भाई-बहन के बीच का कार्यकलाप नहीं रह गया है। राखी देश की रक्षा, पर्यावरण की रक्षा, हितों की रक्षा आदि के लिए भी बाँधी जाने लगी है।

यूँ तो भारत में भाई-बहनों के बीच प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं है, पर रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है। बरसों से चला आ रहा यह त्यौहार आज भी बेहद हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

हिन्दू श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्योहार, भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है। रक्षाबंधन पर बहनें भाइयों की दाहिनी कलाई में राखी बांधती हैं, उनका तिलक करती हैं और उनसे अपनी रक्षा का संकल्प लेती हैं। हालांकि रक्षाबंधन की व्यापकता इससे भी कहीं ज्यादा है।

महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा, कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी।

शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी। यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था। रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है।

आज यह त्योहार हमारी संस्कृति की पहचान है और हर भारतवासी को इस त्योहार पर गर्व है। लेकिन भारत में जहां बहनों के लिए इस विशेष पर्व को मनाया जाता है वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो भाई की बहनों को गर्भ में ही मार देते हैं।

आज कई भाइयों की कलाई पर राखी सिर्फ इसलिए नहीं बंध पाती क्योंकि उनकी बहनों को उनके माता-पिता ने इस दुनिया में आने ही नहीं दिया। बेटियों को बचाइए ताकि किसी भाई की राखी के दिन कलाई सुनी न रह पाए। और अगर आपकी बहन नहीं है, तो किसी भी जरुरत मंद बालिका या महिला से राखी बंधवा कर, उसकी रक्षा करने का वचन लीजिये। एक भाई होने की जो अनुभूति है, वो अपने आप में जीवन के सर्वश्रेष्ठ सुखों में से एक है। और कलाई पर राखी बंधवाने का जो आनंद है उसकी भी एक अलग ही बात है।

इस रक्षाबंधन, क्यों न हम एक रक्षा का प्रण और लें, एक राखी अपनी भारत माँ से बंधवाकर।
उसके दुखों को अपना दुःख बना ले, क्योंकि जब वो मुस्कुराती है तो साथ में हम सब स्वतः ही मुस्कुराते हैं। आखिर हमारे इस खुबसूरत चमन की रक्षा की सौगंध, हम नहीं लेंगे तो कौन लेगा?

शुभ रक्षाबंधन।

PM Modi’s reply to Pakistan’s response, said, “Slave Kashmir is also ours

पीएम मोदी का पाक को मुंहतोड़ जवाब, कहा- गुलाम कश्मीर भी हमारा

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा है कि गुलाम कश्मीर, यानी पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) भी भारत का अभिन्न हिस्सा है। सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि अपने नागरिकों पर लड़ाकू विमान से बम बरसाने वाले पाकिस्तान को गुलाम कश्मीर और बलूचिस्तान में होने वाले अत्याचारों का जवाब देना पड़ेगा। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होगा और आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।

जम्मू-कश्मीर में जारी उपद्रवी हिंसा पर संसद में जाहिर की गई चिंता के मद्देनजर शुक्रवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई गई थी। चार घंटे की इस बैठक में सभी दलों के नेताओं की राय सुनने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन की शुरुआत ही गुलाम कश्मीर को भारत का अभिन्न हिस्सा बताने से की। उन्होंने कहा कि जब हम जम्मू-कश्मीर की बात करते हैं तो फिर राज्य के चार भागों- जम्मू, लद्दाख, कश्मीर घाटी और पीओके की चर्चा करनी चाहिए।

पाक का दुष्प्रचार कोई स्वीकार नहीं करेगा
मोदी ने जम्मू-कश्मीर में पिछले 25 सालों में पाक के आतंकी करतूतों के कुछ आंकड़े देते हुए कहा कि पाकिस्तान लाख झूठ बोले, तब भी दुनिया कभी उसके दुष्प्रचार को स्वीकार नहीं करेगी। कश्मीर को लेकर पाक के घडि़याली आंसू पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने बलूचिस्तान और गुलाम कश्मीर में लोगों पर हो रहे गंभीर अत्याचारों का आईना दिखाया। मोदी ने कहा कि वह विदेश मंत्रालय को कहेंगे कि दुनिया भर में गुलाम कश्मीर के लोग जहां भी हैं, उनसे संपर्क कर पाक अत्याचार के कारनामों को दुनिया के सामने लाए। पीएम ने यह भी कहा कि इस हकीकत की अनदेखी नहीं की जा सकती कि सदियों से रह रहे कश्मीरी पंडितों को घाटी से विस्थापित करने के पीछे भी पाकिस्तान का हाथ रहा है। एक समुदाय विशेष के विरुद्ध इस प्रकार की ज्यादती पाकिस्तान में प्रशिक्षित और हथियारों से लैस किए गए आतंकवादियों और उनसे सहानुभूति रखने वालों का काम है। यह कश्मीरियत नहीं हो सकती।

मोदी ने कहा कि हम जल्द से जल्द जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित करना चाहते हैं और हाल की घटनाओं से उनके हृदय को भी काफी गहरा दुख पहुंचा है। उन्होंने कहा कि हम लोगों के बुनियादी अधिकारों के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसलिए फिर यह दोहराना चाहते हैं कि सरकार संवैधानिक और लोकतांत्रिक दायरे में लोगों की सभी जायज शिकायतें दूर कर शांति बहाल करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसके लिए सिविल सोसायटी और नागरिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाएगा। लेकिन इस बात में कोई दो मत नहीं है कि आतंकवाद से मुकाबले में कोई समझौता नहीं होगा।

युवाओं को आर्थिक गतिविधियों से जोड़ेंगे
पीएम ने कहा कि जिन राज्यों में जम्मू-कश्मीर के लोग रह रहे हैं, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, उन्हें अपने प्रदेश के लोगों से संपर्क कर भारत के दूसरे प्रदेशों की प्रगति के बारे में बताना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार कश्मीर के युवकों को राज्य की सक्रिय आर्थिक गतिविधियों से जोड़ने की प्रक्रिया तेज करेगी। राज्य के आर्थिक विकास के लिए पिछले दिनों 80 हजार करोड़ रुपये से अधिक का विशेष पैकेज देने का फैसला हुआ है।

जवाब मिलकर देना होगा
पीएम ने सभी राजनीतिक दलों से जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर एकजुटता के साथ रचनात्मक सहयोग मांगते हुए कहा कि आतंकवाद और विध्वंस का जवाब मिलकर ही देना होगा। उन्होंने कहा कि भारत के कानून के शासन और संयम को उसकी कमजोरी समझना विरोधी ताकतों की बड़ी भूल होगी। आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने की आड़ में हो रही हिंसा में सुरक्षा बलों के संयम और बड़ी संख्या में घायल होने के बाद भी प्रतिबद्धता की पीएम ने पूरी सराहना की।

सभी दलों के नेता हुए शामिल
इस बैठक में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल घाटी भेजे जाने पर फैसला नहीं हुआ और संसद में पारित प्रस्ताव को ही सभी दलों ने यहां दुहराया। इसमें संसद के दोनों सदनों के सभी दलों के नेता मौजूद थे। इसमें कांग्रेस की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गुलाम नबी आजाद और मल्लिकार्जुन खड़गे आदि शामिल थे।

Those who are not organized, they are lost.

जो संगठित नहीं होते, वे ख़त्म हो जाते हैं।

जो संगठित नहीं होते, वे ख़त्म हो जाते हैं।

मेरे और मुझ जैसे करोड़ों भारतीयों के लिए, स्वतंत्रता ही सब कुछ है।
आज़ादी …
क्या है इसका मतलब?

शायद यह हर किसी की सोच पर निर्भर करता है, लेकिन आम राय यही है, कि देश ने आज़ादी के 70 सालो के सफ़र में क्या खोया और क्या पाया? हर किसी की सोच भले ही मिले ना मिले, लेकिन इतना तय है, कि स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर पूरे देश में एक जुनून सा छा जाता है। जिसका उदाहरण आप गली के अधनंगे बच्चों से लेकर बूढों तक में देख सकते हैं, जिनके हाथों मे तिरंगा ज़रूर दिखाई देता है।

मगर हमेशा मेरे मन में एक ही सवाल उठता है, क्या हमने इस स्वाधीनता के पौधे को पूर्ण इमानदारी से सींचा। आज आज़ादी के 70 साल बाद भी हम संगठित नहीं हो पाए हैं।

एकता का अर्थ यह नहीं होता, कि किसी विषय पर मतभेद ही न हो। मतभेद होने के बावजूद भी, जो सुखद और सबके हित में है उसे एक रूप में, सभी स्वीकार कर लेते हैं। राष्ट्रीय एकता से अभिप्राय है, सभी नागरिक राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत हों, सभी नागरिक पहले भारतीय हों, फिर किसी जाति या धर्म के।

राष्ट्रीय एकता का मतलब ही होता है, राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न-भिन्न विचारों और विभिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना। राष्ट्रीय एकता में केवल शारीरिक समीपता ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उसमें मानसिक, बौद्धिक, वैचारिक और भावात्मक निकटता की समानता आवश्यक है।

विघटन समाज को तोड़ता है, और संगठन व्यक्ति को जोड़ता है। संगठन समाज एवं देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचा देता है। आपसी फूट एवं समाज का विनाश कर देती है। धागा यदि संगठित होकर एक हो जाए, तो वह हाथी जैसे शक्तिशाली जानवर को भी बांध सकता है। किन्तु वे धागे यदि अलग-अलग रहें तो, वे एक तिनके को भी बांधने में असमर्थ होते हैं।

भारत विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और सम्प्रदायों का संगम स्थल है। यहां सभी धर्मों और सम्प्रदायों को बराबर का दर्जा मिला है। हिंदु धर्म के अलावा जैन, बौद्ध और सिक्ख धर्म का उद्भव यहीं हुआ है। अनेकता के बावजूद उनमें एकता है। यही कारण है कि सदियों से उनमें एकता के भाव परिलक्षित होते रहे हैं। शुरू से हमारा दृष्टिकोण उदारवादी है। हम सत्य और अहिंसा का आदर करते हैं।

अगर हम फिर भारत को विश्व गुरु बनाना चाहते है, अगर हम फिर सनातनी भारत वर्ष का निर्माण करना चाहते है, तो हमे संगठित होना पड़ेगा। संघ के, अटल जी के, मोदी जी के विचारों पर चल कर ही हम भारत को विश्वगुरु बना सकते हैं। तो इस स्वतंत्रता दिवस आओ मिलकर प्रण ले, संगठित हो कर भारत के खोए सम्मान को हम वापस ले कर आएँ, हज़ारों साल पुरानी प्रतिष्ठा को वापस ले कर आएँ।

ऐसे कई उदाहरण हैं विश्व में, जिन्होंने विघटन के करारे दर्द को सहन किया। दूसरो की और दूर की क्या बात करें, हमने खुद ही विघटन का तीक्ष्ण दर्द झेला है, और उसके पहले भारत के गुलामी की जंजीरों में जकड़े जाने का कारण ही हमारे आपसी मतभेद और संगठित न होना रहा। जब हम संगठित हुए, तभी हम गुलामी की जंजीरों से हमारी भारत माँ को आज़ाद करा पाए।

मगर अफ़सोस, आज़ादी मिलने के बाद, कुछ लोगों ने स्वार्थवश हम लोगों को फिर बाँट दिया। अगर हम उस वक्त गुमराह न होकर संगठित रहते, तो आज भारत से अधिक शक्तिशाली कोई राष्ट्र नहीं होता, अगर हम संगठित होते तो तो आज अखंड भारत के टुकड़े -टुकड़े नहीं होते। अब भी समय है, अब तो हम अपनी पुरानी गलतियों से शिक्षा लें। और एक बात अपने ज़हन में उतार लें, जो संगठित नहीं हो पाते वे समाप्त हो जाते हैं। आगे आप खुद समझदार हैं, आप जानते हैं आपको क्या करना है।


स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएँ।
भारत माता की जय।
जय हिन्द। वन्दे मातरम्।

Modi government kneels ahead of inflation

मोदी सरकार के आगे घुटने टेकती महंगाई

पिछले साठ सालों में जो गड्डा पिछली सरकार खोद कर गई थी, वह दो सालों में नहीं भर सकता। यही बात माननीय वित्तमंत्री जी ने राज्य सभा में कहा था “सरकार महंगाई को काबू रखने के लिए सभी कदम उठा रही है। कांग्रेस पार्टी के कामों की वजह से रेलवे की हालत काफी खराब हो गई थी, रेलवे बोर्ड ने अंतरिम बजट से पहले सरकार से संपर्क साधा और किरायों में बढ़ोतरी की मांग की।” उनका कहना था कि रेलवे को 30 हजार करोड़ का घाटा हो रहा था, जिसकी भरपाई जरूरी थी।

मगर फिर भी मोदी सरकार ने दो साल के कार्यकाल में इस गड्डे को भरने का अथक प्रयास जरुर किया है और बहुत हद तक इसे भरने में सफलता भी हासिल की है। मोदी सरकार की “सर्वे भवन्तु सुखिनः” वाली योजनाएं इस बात का प्रमाण है –

1. हाशिए पर मौजूद लोगों को आर्थिक विकास में शामिल किया गया. इसके लिए कई योजनाएं शुरू की गई हैं. जैसे कि जन धन योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना और अटल पेंशन योजना.

2. बुनियादी सुविधाओं वाले सरकारी-निजी भागीदारी यानी पीपीपी मॉडल नाकाम होता जा रहा था. प्रधानमंत्री ने इस मॉडल में दोबारा जान फूंकी है.

3. रेलवे का आधुनिकीकरण शुरू हुआ.

4. प्राकृतिक संसाधनों के आवंटन में घोर पूंजीवाद की बू आती थी उसको हटाने की कोशिश की गई है. कोयला नीलामी और स्पेक्ट्रम नीलामी में हमने देखा कि वो ख़ास पूंजीपति का फायदा करा रहे हैं

5. निवेशकों के लिए माहौल तैयार करना, मेक इन इंडिया, ई-गवर्नेंस और डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं से निवेशकों को लुभाने की कोशिश करना. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में सुधार लाना

मोदी सरकार की चिंता की लकीरें महंगाई बढ़ने के साथ-साथ बढती जाती है। आए दिन महंगाई से ग्रस्त आम जनता के उत्थान के लिए बैठकें होती रहती है, एक उच्च-स्तरीय बैठक में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कृषि मंत्री राधामोहन सिंहखाद्य मंत्री रामविलास पासवानपरिवहन मंत्री नितिन गडकरीवाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण और शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू के साथ मूल्य नियंत्रण करने के रास्तों के बारे में विचार-विमर्श किया।

बैठक में इस बात पर चर्चा हुई कि जब भी राज्यों की ओर से मांग पैदा हो बफर स्टॉक से अधिक दलहन को निकाला जाए और इसके साथ कीमत को नियंत्रित करने के लिए म्यांमार और अफ्रीका से इसका आयात किया जाए।

वित्त मंत्री जी ने यह भी कहा कि कमी को पूरा करने के लिए सार्वजनिक और निजी रास्तों से आयात की व्यवस्था को और सुदृढ़ बनाया जाए। इस बैठक में आर्थिक मामलों के विभाग और राजस्व विभाग के सचिवों के साथ-साथ मुख्य आर्थिक सलाहकार ने भी भाग लिया।

सरकार ने स्थितियों से निपटने के लिए पहले ही बफर स्टॉक से बाजार में 10,000 टन दलहन को जारी कर रखा है। सरकार की अपने नवसृजित बफर स्टॉक से और आयात के जरिये आपूर्ति बढ़ाने की दोहरी नीति है।

महंगाई से ग्रस्त आम जनता को राहत देते हुए, कीमतों को नरम करने के लिए करीब 50 लाख टन चावल राज्य सरकारों के जरिए खुले बाजारों में जारी किया गया। साथ ही प्याज के निर्यात को हतोत्साहित करने तथा घरेलू बाजार में उपलब्धता बढ़ाने एवं कीमतों को नियंत्रित करने के मकसद से इस पर न्यूनतम निर्यात मूल्य 300 डॉलर प्रति टन लगाया गया है। इसी प्रकार की व्यवस्था वाणिज्य मंत्रालय आलू पर करेगा। वहीं दाल तथा खाद्य तेलों के संदर्भ में राज्यों को स्थानीय मांग पूरी करने के लिए इन जिंसों के सीधे आयात के लिए कर्ज सहायता दी जाएगी।

यहाँ तक की जमाखोरी को ‘राष्ट्र विरोधी’ गतिविधि बताते हुए खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने राज्य सरकारों से कहा कि वे महंगाई पर नियंत्रण के लिए राजनीति से ऊपर उठकर काम करें और आवश्यक वस्तू अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करें।

राम विलास पासवान जी ने राज्यसभा में कहा कि खाद्य वस्तुओं की कीमतों में मौजूदा उछाल जमाखोरों द्वारा पैदा किया गया है और यह अस्थायी घटनाक्रम है। पासवान ने कहा, ‘महंगाई को नियंत्रित करना राष्ट्रीय मुद्दा है। संघीय ढांचे में कीमतों पर अंकुश लगाने की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य दोनों की है। केंद्र और राज्यों के बीच कोई टकराव नहीं होना चाहिए। हमें इस मसले पर राजनीतिक लाभ नहीं लेना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि आवश्यक जिंस कानून अस्तित्व में है। मसला यह है कि कितना प्रभावी ढंग से इस कानून को लागू किया जा सकता है।

महंगाई पर लगाम लगाने की कोशिश के तहत सरकार ने जमाखोरी को गैर-जमानती अपराध बनाने के लिए कानून में संशोधन करने और राज्यों को बाजार में हस्तक्षेप करने में सक्षम बनाने के वास्ते एक मूल्य स्थिरीकरण कोष बनाने का निर्णय भी किया।

वो दिन भी दूर नहीं जब महंगाई पुर्णतः काबू में आ जायगी, काफी हद तक महंगाई की कमर तोड़ने में सफल रहीं मोदी सरकार आने वाले दिनों में महंगाई और विपक्ष दोनों को ही हाशिये पर ले आएगी।

एक कहावत है “बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी”, आज एक और आतंकवादी मारा गया, कल और मारे जाएँगे। आतंकवादियों का यही हश्र होता आया है, और आगे भी होता रहेगा। मुठभेड़ में मारा गया 10 लाख का इनामी हिजबुल आतंकी बुरहान वानी भी जाकिर नाइक का समर्थक था।

सभी जवानों की बहादुरी को सलाम तथा इस कामयाबी पर सह्रदय शुभकामनाएँ। और सभी आतंकवादियों को एक चेतावनी है कि जिस देश को यहाँ के युवा अपनी माँ समझे उस राष्ट्र का तुम बाल भी बांका नहीं कर सकते।