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Nadda ji

विश्व शांतिदूत मोदी के अमेरिका यात्रा के नए संदेश

कैलाश विजयवर्गीय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी संसद को दूसरी बार संबोधित करते हुए विश्व के सामने देश की सशक्त तस्वीर ही प्रस्तुत नहीं बल्कि यह भी बता दिया कि विश्व के समक्ष चुनौतियों का भारत अमेरिका के साथ मिलकर मुकाबला करने में सक्षम है। जल्दी ही विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला भारत अमेरिका से साझेदारी करके आतंकवाद को समाप्त करने के लिए सक्षम होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश अमेरिका और सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की प्रगाढ़ मित्रता का उदाहरण देते हुए दुनिया में लोकतांत्रिक शक्तियों के भविष्य के लिए शुभ संकेत दिए हैं। उनका यह कहना कि भारत-अमेरिका की साझेदारी लोकतंत्र के भविष्य के लिए अच्छी है और बेहतर भविष्य और भविष्य के लिए बेहतर दुनिया के लिए यह अच्छी है। मोदीजी के इस विश्वास से तानाशाही से संकट झेल रहे देशों के नागरिकों को लोकतंत्र के उदय होने की उम्मीद बंधेगी। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की स्वतंत्रता के बाद ही दुनिया के परतंत्र देश स्वतंत्र देश हुए। मोदीजी ने मार्टिन लूथर किंग और महात्मा गांधी का प्रभाव बताते हुए यह संदेश भी दिया की भारत की जड़े अमेरिका में मजबूत हैं। इसका एक बड़ा उदाहरण अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का बताया।

ए-आई का अर्थ अमेरिका और भारत बताते हुए स्पष्ट कर दिया कि यह दोस्ती विश्व को नई राह दिखाएगी। उनकी इस राय से कि कुछ वर्षों में एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में बहुत तरक्की हुई है लेकिन साथ-साथ ही एक अन्य ए-आई यानी भारत-अमेरिका के रिश्तों में भी महत्वपूर्ण प्रगति से दोनों देशों के बीच नए आर्थिक साझेदारी से रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी संसद में भाषण के माध्यम से विश्व को यह संदेश भी दिया कि भारत के कारण विश्व में लोकतंत्र पनपा हैं। भारत में 2500 राजनीतिक दल, 22 सरकारी भाषाएं, हजारों बोलियां और हर सौ मील पर विभिन्न प्रकार भोजन के बावजूद लगातार तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए देश में आम लोगों का पूरा ध्यान रखा जा रहा है। प्रधानमंत्री का ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ दृष्टिकोण से उन लोगों की आंखे भी खुलनी चाहिए जो, विदेशों में भारत की छवि को राजनीतिक कारणों से उपजी हताशा के कारण धूमिल करते हैं। भारत में चार करोड़ लोगों को घर दिए गए हैं। पांच करोड़ लोगों को निशुल्क चिकित्सा सहायता दी जाती है। मोदीजी की इन घोषणाओं से दुनिया की आबादी के छठे हिस्से भारत में आम लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की वास्तविक तस्वीर सबके सामने आई है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण के माध्यम से दुनिया में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों को चेतावनी ही नहीं दी, बल्कि आतंकवाद की समाप्ति के सकंल्प को भी दोहराया। मोदीजी ने भाषण में जिक्र किया कि जब वे प्रधानमंत्री के तौर पहली बार अमेरिका आए थे तो भारत अर्थव्यवस्था के मामले में दसवें नंबर पर था। आज भारत पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। आतंकवाद और कोरोना महामारी का मुकाबला करते हुए भारत की यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने साफ जता दिया है कि हम न केवल बड़े हो रहे हैं बल्कि तेजी से भी बढ़ रहे हैं। जब भारत बढ़ता है तो पूरी दुनिया बढ़ती है। कट्टरवाद और आतंकवाद को दुनिया के सामने गंभीर खतरा मानते हुए आतंकवाद के नई पहचान और विचारधारा के आधार पर पनपने को उन्होंने नई चुनौती बताया। मोदीजी की इस धारणा से कि आतंकवाद की विचारधारा और नई पहचान मानवता के लिए खतरा है तो हमारा इसे मिटाने का भी पूरा इरादा है। उनका इरादा साफ है कि भारत बढ़ेगा तो दुनिया में शांति आएगी, आतंकवाद समाप्त होगा। विश्व शांतिदूत मोदीजी ने रूस-यूक्रेन युद्ध का शांतिपूर्ण समाधान की बात कही। उन्होंने इस युग को युद्ध नहीं बल्कि रक्तपात और मानवीय पीड़ा को रोकने के लिए संवाद और कूटनीति से हल निकालने मार्ग बताते नया युग बताया। प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जोरदार स्वागत किया।

अमेरिका में बसे भारतीयों ने मोदी-मोदी के नारे लगाते हुए पलक पांवड़े बिछा दिए। प्रधानमंत्री मोदी की इस अमेरिका यात्रा से कई क्षेत्रों में आर्थिक सहभागिता तो बढ़ेगी, साथ ही विश्व को नई राह भी मिली है।

अक्षय तृतीया- कभी न हो क्षय, भरा रहे सदैव भंडार

कैलाश विजयवर्गीय

 

अक्षय तृतीया का पर्व हमें धार्मिक, सांस्कृतिक, समृद्ध आर्थिक स्थिति, फलती-फूलती कृषि और समाज को परोपकार की भावना के आधार पर जोड़ता है। पूरे देश में इस पर्व को अलग-अगल इलाकों में अलग-अलग तरीके से मनाते हों पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा सभी स्थानों पर होती है। माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर सबसे ज्यादा विवाह होते हैं। राजस्थान में अखा तीज के दिन सबसे ज्यादा जोड़े वैवाहिक बंधन में बंधते हैं। यह भी माना जाता है कि इस दिन बंधन में बंधने वालों की गांठ कभी नहीं खुलती है। बंगाल में हल खता के दिन नए कार्यों को प्रारम्भ किया जाता है। व्यवसायी गणेश जी और लक्ष्मी जी का पूजन करके अपने नए बही-खाते लिखना प्रारम्भ करते हैं। ओडिसा में भगवान जगन्नाथ की यात्रा शुरु होती है और किसान फसल बोकर मां लक्ष्मी से समृद्धि की कामना करते हैं। ओडिसा में मुथी चुहाना के रूप में मनने वाले पर्व के दिन लोग मांसाहार से बचते हैं। दक्षिण भारत में भगवान विष्णु, लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है। माना जाता है कि भगवान शंकर ने कुबेर को इसी दिन लक्ष्मी जी की पूजा करने को कहा था। पंजाब में इसे कृषि पर्व के तौर पर मनाया जाता है। उत्तर भारत में अक्षय तृतीया का अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग महत्व है।
शास्त्रों में बताया गया है कि ‘न क्षयः इति अक्षयः’ अर्थात जिसका क्षय नहीं होता वह अक्षय है। हमारे यहां रामनवमी, अक्षय तृतीया, विजय दशमी और कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को अक्षय मुर्हूत माना जाता है। कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा को भी आधा अबूझ मुर्हूत माना जाता है। बैशाख महीने की तृतीया यानी अक्षय तृतीया को सबसे अच्छा मुर्हूत माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए गए शुभ कर्म के फल का कभी क्षय नहीं होता है। इसी कारण इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है।

अक्षय तृतीया को कृतयुगादि भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार सतयुग का प्रारम्भ अक्षय तृतीया से हुआ था। इसी तिथि को भगवान परशुराम का अवतरण दिवस मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगीरथ के कठोर तप के बाद गंगा जी का पृथ्वी पर अवतार हुआ था। एक कथा में वर्णन है कि द्वापर युग में भरे दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ही दु:शासन ने द्रौपदी का चीर हरण किया था। महाभारत काल में द्रोपदी की करुणा पुकार भगवान कृष्ण ने अक्षय तृतीया को अक्षय चीर का वरदान दिया था। प्राचीन कथाओं में बताया गया है कि अक्षय तृतीया पर ही युधिष्ठिर को अक्षय पात्र मिला था। भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय पात्र हमेशा भोजन प्रदान करता था। अक्षय पात्र से ही राजा युधिष्ठिर भूखे लोगों को भोजन देते थे। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण के दीन मित्र सुदामा उनसे मिलने गए थे और मुट्ठी भर चावल भेंट करने पर भगवान ने उनकी झोपड़ी का भव्य महल में परिवर्तन कर दिया था। देवभूमि हिमालय के चार धामों में से एक भगवान बद्री विशाल के पट अक्षय तृतीया के दिन ही भक्तों के लिए खुलते हैं। वृंदावन में भगवान बांके बिहारी के चरणों के दर्शन अक्षय तृतीया के दिन ही होते हैं। बिहारी जी के चरण दर्शन करने से परिवार में समृद्धि आती है। ऋतु पर्व अक्षय तृतीया बसंत और गर्मी का संधि पर्व भी है। ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया को गंगा में स्नान करके पितरों का तिल से तर्पण करके पिंडदान करने से मोक्ष मिलता है।

कभी क्षय न होने के कारण अक्षय तृतीया को स्वर्ण खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सोने-चांदी के आभूषण घर में लाने से हमेशा समृद्धि रहती है। समृद्धि और वैभव की भरमार करने वाले पर्व अक्षय तृतीया को दान करने का भी विशेष महत्व है। कथाओं में वर्णन है कि अक्षय तृतीया को जल से भरे कलश, गाय, पंखे, जूते आदि का दान बहुत पुण्य देता है। गरीबों और कल्याणकारी संस्थाओं को भी भूदान का विशेष महत्व हैं। ऐसे कल्याणकारी, समृद्धिवर्धक और पुण्य देने वाले पर्व अक्षय तृतीया पर सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। हमारा देश समृद्ध बने, शाक्तिशाली बने और कृषि हमेशा फलती-फूलती रहे।

समरतसा के महानायक ज्योतिबा फुले

कैलाश विजयवर्गीय

कारण जो भी रहें हो, महान क्रांतिकारी समाज सुधाकर, विचारक, लेखक, दार्शनिक, वंचितों और महिलाओं को शिक्षा और बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए अभियान चलाने वाले ज्योतिबा फुले को उनके निधन से दो वर्ष पूर्व महात्मा की उपाधि देने के बावजूद कुछ खास वर्ग तक सीमित कर दिया गया। महाराष्ट्र के पुणे में 11 अप्रैल 1827 को जन्मे ज्योतिबा गोविन्दराव फुले ने तमाम कठिनाइयों के बावजूद पढ़ाई की और समाज को कुरीतियों को दूर करने का पाठ पढ़ाया। माली का काम करने वाले परिवार में जन्मे ज्योतिबा को पढ़ाई में अच्छा होने के बाद भी तथाकथित उच्च वर्ग के व्यवहार के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी। पहले मराठी पढ़ने वाले ज्योतिबा ने शिक्षा का महत्व समझते हुए 21 वर्ष की आयु में अंग्रेजी में सातवीं कक्षा उत्तीर्ण की। 1840 में सावित्रीबाई से विवाह किया और महिलाओं को शिक्षित बनाने और बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए महिला विद्यालय की स्थापना कराई। इस कार्य के लिए उन्होंने अपनी पत्नी को शिक्षित बनाकर देश की पहली महिला शिक्षिका बनाया। वंचितों के नायक और महिलाओं को सशक्त बनाने की प्रेरणा देने वाले महान क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले ने किसानों और खेती के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे। इसके लिए उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती भी दी थी। ज्योतिबा फुले ने प्रेस की आजादी को लेकर भी अंग्रेजी सरकार को चुनौती दी थी। बाल विवाह का विरोध और विधवा विवाह के पुरजोर समर्थक महात्मा फुले ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने का बीड़ा उठाया था। इसी कारण भारत रत्न डा. भीमराव अम्बेडकर ज्योतिबा फुले को अपना गुरू मानते थे।

जब ज्योतिबा फुले ने वंचितों के उत्थान के लिए अभियान चलाया तो उस समय महाराष्ट्र सहित देश के कई विभिन्न इलाकों में जातिवाद, महिलाओं को शिक्षा दिलाने, बाल विवाह, विधवा विवाह और धार्मिक सुधार आंदोलन जारी थे। महाराष्ट्र में महादेव गोविंद रानाडे और आरजी भंडारकर ने स्त्री शिक्षा, बाल विवाह के विरोध और विधवा विवाह के लिए अभियान चलाया था। इसके लिए रानाडे ने पुणे सार्वजनिक सभा की स्थापना की। स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी। बंगाल में राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज और केशवचंद सेन प्रार्थना समाज की स्थापना की। समाज में शूद्र और अति शूद्रों में जागृति के लिए ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की थी। ज्योतिबा फुले अछूतोद्धार के प्रथम महानायक थे।

बहुआयामी प्रतिभा से सम्पन्न, सामाजिक न्याय के पुरोधा, सामाजिक समानता, महिला सशक्तीकरण और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले ज्योतिबा फुले ने आंदोलनों के माध्यम से आजादी की अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ब्राह्मणवाद को चुनौती देने वाले और विवाह में पुरोहित की भूमिका समाप्त करने का अभियान चलाने वाले ज्योतिबा फुले ने समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए आवाज ही नहीं उठाई बल्कि उसे साकार रूप दिया। कुछ राजनीतिक कारणों से देश की स्वतंत्रता से पहले और बाद में ज्योतिबा फुले के समाज को जगाने और बराबरी का अधिकार दिलाने के बावजूद एक वर्ग का ही नायक माना गया। ज्योतिबा फुले को राजनीतिक कारणों से एक वर्ग तक की सीमित रखा गया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वंचितों को बराबरी के अधिकार हमेशा पक्षधर रहा है। संघ के संस्थापक पूज्यनीय डॉ. केशवराम बलिराम हेडगेवार के निमंत्रण पर डॉ. अम्बेडकर ने 1939 में संघ शिक्षा वर्ग में आकर स्वयंसेवकों के साथ भोजन किया था। डॉ अम्बेडकर ने संघ के कार्यों की प्रशंसा भी की थी। केंद्र में लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार और भाजपा शासित राज्यों में सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के तहत सभी वर्गों को लाभ मिल रहा है। मोदीजी के नेतृत्व में पूरा देश महात्मा ज्योतिबा फुले के सम्पूर्ण समाज को बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए समर्थन कर रहा है। केवल सत्ता के लिए दलितों के वोटों के लालच में समाज में कटुता फैलाने वाले दल आज मोदी सरकार के कार्यों के कारण हाशिये पर जा रहे हैं। समाज में कटुता फैलाने के प्रयासों के लिए जातिगणना कराई जा रही है। जातिवाद के नाम पर कुछ दलों ने अपने परिवारों का ही कल्याण किया है। ऐसे दलों को जनता ने नकार दिया है। महात्मा फुले ने जातिगत पूर्वाग्रह से मुक्ति के लिए जो अभियान चलाया था, उसे मोदी सरकार ने साकार किया गया है। वंचितों, महिलाओं, किसानों और युवाओं के कल्याण के लिए कार्य किए जा रहे हैं। सामाजिक समरसता के अगुवा महात्मा फुले को जयंती कोटिशः नमन।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं और सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक विषयों पर बेबाक टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं।)

इंदौर अभय जी के दिल में धड़कता था

कैलाश विजयवर्गीय
अभय जी छजलानी के साथ अपनी यादों को उसी तरह से लिपिबद्ध किया जा सकता है, जैसे उन्होंने कभी नईदुनिया में किया था—गुजरता कारवां लिखकर।शहर के मसलों पर इतना विस्तृत चिंतन और लेखन तब तक तो किसी ने नहीं किया था।उनसे जुड़े तमाम लोगों के पास इसी तरह यादों का विशाल भंडार होगा,क्योंकि संस्था रूप में जिस व्यक्ति ने करीब चार दशक तक इंदौर,देश,दुनिया को सुक्ष्म दृष्टि से देखने,विश्लेषण करने,समाधान प्रस्तुत करने और उससे तादात्म्य बिठा लेने की खूबी जो थी अभय जी में।पत्रकारिता और इंदौर के गौरव की एक महत्वपूर्ण कड़ी का टूटकर अलग होना अखरेगा तो सही।
यूं देखा जाए तो अभय जी के साथ जब दिल के तार नहीं जुड़े थे, तब हम दोनों के मन में एक—दूसरे के प्रति मत भिन्नताएं थीं, लेकिन 1999 में इंदौर का महापौर बनाने के बाद जब उनसे संवाद—मुलाकात होने लगी तो यह खाई ऐसे पट गई, जैसे कभी थी ही नहीं।तब मैंने जाना कि शहर के मसलों पर उनके मन में कमतरी के प्रति टीस और निवारण के प्रति उत्साह रहता था।हमारी परिषद और मेरी भी आलोचना,सुझाव और प्रशंसा में कभी कंजूसी नहीं की। मेरे अनेक कामों को सराहते हुए संपादकीय लिखे।
एक वाकया याद आता है। मैंने बच्चों से शास्त्री पूल की दीवारों पर चित्रकारी करवाई थी। कुछ ही समय बाद एक बड़े कांग्रेसी नेता के आगमन पर उसे मिटाकर नारे लिख दिए। अभय जी इससे बेहद व्यथित हुए,जिसका जिक्र तो उन्होंने मुझसे किया ही, इस प्रवृत्ति के खिलाफ संपादकीय भी लिखा। मुझे लगता है, उसके बाद शहर की दीवारों पर राजनीतिक लेखन बंद हो गया।
अभय जी की एक बात का खास तौर से उल्लेख करना चाहूंगा। वे अखबार में सपाट ढंग से किसी भी सम्मानित,जिम्मेदार व्यक्ति का नाम लिखना नापसंद करते थे। जैसे—अटल विदेश दौरे पर। वे लिखते थे अटल जी विदेश दौरे पर। नईदुनिया ने उनके संचालन कार्यकाल में हमेशा इस मर्यादा का पालन किया। वे कहते थे,सीधे नाम लिखना विदेशी तरीका है, जो भारतीय संदर्भ में अपमानजनक और अमर्यादित है।वे हिंदी पत्रकारिता में इस तरीके को अपना लिए जाने से असहज महसूस करते थे।
दरअसल, अभय जी छजलानी और नईदुनिया एक लंबे समय तक इंदौर की धड़कन की तरह थे। वे शहर की बेहतरी के लिए खबर, संपादकीय से आगे जाकर व्यक्तिगत पहल करते थे। इंदौर में नर्मदा के पानी को लाने के आंदोलन और बिक चुके राजबाड़ा को सरकार द्वारा अधिगृहीत कर लिए जाने तक चले आंदोलन को नईदुनिया ने जबरदस्त समर्थन दिया। इन्हीं कारणों से अभय जी और उनके कार्यकाल वाला नईदुनिया इंदौर के दिल में सदैव धड़कते रहेंगे।
(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं।