स्वच्छ भारत, श्रेष्ठ भारत
कल लाल बहादुर शास्त्री जी और महात्मा गाँधी जी की जयंती थी, इन दोनों महापुरुषों के विचार एक दिन तक सीमित नहीं हैं।
स्वच्छ भारत के प्रणेता महात्मा गाँधी और श्रेष्ठ भारत के उपासक लाल बहादुर शास्त्री जी के मूल्यों को उठाकर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने जो शुरुआत की है, उसके लिए हमे एक नहीं 365 दिन भारत को स्वच्छ और श्रेष्ठ बनाने हेतु निरंतर प्रयासरत रहना होगा।
गीता में कहा गया है, जैसा आचरण हमारे श्रेष्ठ लोग करते हैं, उनकी प्रेरणा से वैसा आचरण अन्य लोग करते हैं। गांधीजी और शास्त्री जी दोनों श्रेष्ठ आचरण का उत्कृष्ट आदर्श रहे हैं। उनके व्यवहार के छोटे-छोटे उदाहरण दृष्टव्य हैं।
स्वच्छता के लिए ज़रूरी है जागरूकता –
सन् 1936 की बात है। गांधीजी वर्धा में सेवाग्राम चले गए। वहां रहकर उन्होंने आसपास के ग्रामीण लोगों से संपर्क साधना शुरू किया। वे नियमित रूप से निकटवर्ती गांवों में जाते रहते, लोगों को स्वच्छता का महत्व समझाते, स्वयं झाड़ू लेकर गली-कुचों की सफाई करते तथा गरीब गंदे बच्चों को स्नान कराते। ग्रामीणों को स्वच्छता का पाठ पढ़ाने का यह क्रम महीनों तक नियमित रूप से चलता रहा।
बापू के इस प्रयास का कोई विशेष परिणाम निकलता न देख, एक कार्यकर्ता ने कहा- बापू, इन लोगों को समझाने एवं आपके स्वयं सफाई करने से भी इन पर कोई प्रभाव तो पड़ता नहीं, फिर भी आप क्यों तन्मय होकर इस कार्य में लगे रहते हैं?
बापू ने कहा- बस, इतने में ही धैर्य खो दिया। सदियों के गहरे संस्कार इतनी जल्दी थोड़े ही दूर हो जाएंगे। लंबे काल तक इनके मध्य रहकर इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई के प्रति अभिरूचि एवं जागरूकता पैदा करनी होगी।
हमारे प्रधानमंत्री श्री मोदी जी भी गांधी जी के स्वच्छ भारत-अभियान को आगे बढ़ाते हुए, देशवासियों को प्रेरित कर रहे हैं। यह अभियान केवल मोदी जी का नहीं, हम सब का है। देश हमारा है, इसे स्वच्छ हमें ही रखना है। मोदी जी हमें स्वच्छता के संस्कारों से भरना चाहते हैं। अतः देशहित में मोदीजी से कदम मिलाते हुए आओ! गांधीजी के जन्मदिन पर स्वच्छ भारत का संकल्प दोहराएँ। खुद श्रमदान करें, दूसरों को भी प्रेरित करें। बापू के सपनों के स्वच्छ, सुन्दर भारत का निर्माण करें।
शास्त्री जी के दोस्त ने अपनी पत्नी के इलाज के लिये उनसे पचास रूपये उधार मांगे। शास्त्री जी के पास इतने रूपये थे नहीं। उनकी पत्नी ललिता जी को यह स्थिति ज्ञात हुई। उन्होंने पचास रूपये शास्त्री जी को दिये ताकि वे अपने जरूंरतमंद दोस्त को सहयोग कर सकें। शास्त्री जी ने रुपए दोस्त को दे दिये। पर ललिताजी से पूछा इतने रूपये कहां से आए।
उन्होंने बताया हर माह दस रूपये की बचत करती हूँ। शास्त्री जी ने तुरंत अपने पार्टी कार्यालय को सूचित किया, मुझे वेतन पचास रू. प्रतिमाह के बजाय 40 रू. ही देवें। मेरी पत्नी ने चालीस रूपये में घर चलाना सीख लिया है। यह होता है देश व कर्तव्य के प्रति समर्पण। यही है कर्म को मात्र स्वार्थ साधन नहीं, इसे साधना बनाना। कर्म को पूजा बनाना।
आइये, ‘गांधीजी’ की स्वच्छता और ‘शास्त्री जी’ की श्रेष्ठता के आदर्शों पर मोदी जी के साथ चल, हम हमारे सपनों का स्वच्छ व श्रेष्ठ भारत बनाएँ।