आओ, नव संवत पर उत्सव मनाएं!
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हमारा नव संवत प्रारम्भ होगा। 18 मार्च 2018 को भारत के विभिन्न प्रांतों में नवदुर्गा की आराधना के साथ ही नव संवत्सर मनाया जाएगा। आप सभी को नव संवत 2075 की बहुत बहुत शुभकामनाएं। आजकल कुछ कारणों से अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार हर साल 31 दिसंबर की रात को नया साल मनाने की परम्परा तेजी से बढ़ी है। हम लोग रात के गहरे अंधकार में नए साल का स्वागत करते हैं। क्या रात को हम नए वर्ष की शुरुआत कर सकते हैं? कुछ वर्षों से यह बात भी देखने में आई हैं कि बड़ी संख्या में अंग्रेजों के नए साल पर बधाई या शुभकामना के संदेश में लोगों ने यह भी कहा कि अपना नया वर्ष तो चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरु होगा। नव संवत्सर का शुभारम्भ आईये हम उत्सव मनाकर करें।
भारत में नव संवत को पर्व या त्योहार की तरह मनाने की प्राचीन परम्परा है, जो कुछ कारणों से हम भूल गए। हिन्दू पंचांग पर आधारित विक्रम संवत या संवत्सर उज्जनीयि के सम्राट विक्रमादित्य ने प्रारंभ किया था। कल्प, मनवंतर, युग, संवत्सर आदि कालगणना का आधार माना जाता है। पुराणों में वर्णन है कि भारत का सबसे प्राचीन संवत है कल्पाब्ध। सृष्टि संवत और प्राचीन सप्तर्षि संवत का उल्लेख भी पुराणों में मिलता है। युग भेद से सतयुग में ब्रह्म-संवत, त्रेता में वामन-संवत और परशुराम-संवत तथा श्रीराम-संवत, द्वापर में युधिष्ठिर संवत और कलि काल में कलि संवत एवं विक्रम संवत प्रचलित हुए। पुराणों में उल्लेख है सतयुग का प्रारम्भ नव संवत से ही हुआ था। इसका उल्लेख अथर्ववेद तथा शतपथ ब्राह्मण में भी मिलता है। योगीराज भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की तिथि से कलियुग संवत का प्रारम्भ हुआ था। पुराणों में बताया गया है कि नव संवत को ही भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। भगवान राम का राज्याभिषेक भी नव संवत के दिन हुआ था।
यह माना जाता है कि इन सबके आधार पर सम्राट विक्रमादित्य ने संवत्सर को काल गणना के आधार पर प्रारम्भ कराया था। हैं। संवत्सर यानी 12 महीने का कालविशेष। उस समय उज्जनीयि के नागारिकों के लिए सम्राट की तरफ से कई घोषणाएं की थी। गरीबों को उपहार दिए गए। ब्रह्म पुराण के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। पुराणों में वर्णन है कि नव संवत पर देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गन्धर्वों, ऋषि-मुनियों, मनुष्यों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों आदि की पूजन किया जाता था। पूजन के माध्यम से हम सुख, समृद्धि, शांति, आरोग्य और सामर्थ्य की कामना करते हैं। नव संवत पर देवी उपासना से रोगों से मुक्ति है, शरीर स्वस्थ रहता है। भारत के प्रांतों में नव वर्ष अलग-अलग तिथियों के अनुसार मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाडी, चेटीचंड, चित्रैय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नव संवत्सर के आसपास ही आती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक के संस्थापक प्रथम सर संघचालक परम पूज्यनीय डॉ. केशवराव हेडगेवार का जन्म चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत 1946 (1 अप्रैल 1889) को हुआ था।
नव संवत को उत्सव की तरह मनाएं। घरों को रंगोली से सजाए। दिन का प्रारम्भ मां दुर्गा की आऱाधना से शुरु करें। रात को घरों में मिट्टी के दिए जलाएं। बंधु-बांधवों के साथ भजन-कीर्तन करें और उपहार के तौर पर प्रसाद बांटे। दिन में परिवार के साथ बैठकर खीर, पूड़ी, हलवा और पकवान ग्रहण करें। प्राचीन भारत की गरिमा को स्मरण करने के लिए गोष्ठियों का आयोजन करें। आईये, नव संवत पर हम सब भारतवासी अपने देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए एक साथ मिलजुल कर काम करने का संकल्प लें। यह अवसर ऐसा होगा कि जब हम अपनी जड़ों की तरफ लौटेंगे तो हमें वैज्ञानिक आधार पर बने संवत के अनुसार कार्य प्रारम्भ करने से अपने – अपने लक्ष्यों की प्राप्ति होगी। इसी संकल्प के साथ एक बार सभी देशवासियों को नव संवत पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ।
– कैलाश विजयवर्गीय