केरल- कम्युनिस्टों की रक्तरंजित राजनीति
हरे-भरे केरल को लाल खून से सींचने का काम कम्युनिस्ट लंबे समय से कर रहे हैं। केरल में जब-जब कम्युनिस्ट सत्ता में आते हैं, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं पर हमले तेज हो जाते हैं। सत्ता में बने रहने या अपना असर बढ़ाने के लिए कम्युनिस्ट हमेशा से विरोधियों का खून बहाने में विश्वास रखते हैं।
ईश्वर के अपने घर केरल में लाल आतंक देश की आजादी के तुरंत बाद ही शुरु हो गया था। 1948 में राष्ट्रीय स्वयंसेक संघ के द्वितीय सर संघचालक पूज्यनीय गुरुजी की एक सभा पर हमला किया गया था। केरल में संघ और भाजपा की बढ़ती ताकत से बौखलाकर कम्युनिस्टों ने पिछले कुछ समय से हमले और तेज किए हैं। केरल के मौजूदा मुख्यमंत्री पिनराई विजयन खुद संघ के कार्यकर्ता की हत्या के आरोपी हैं। विजयन और कोडियरी बालकृष्णन की अगुवाई में पोलित ब्यूरों के सदस्यों ने संघ के स्वयंसेवक वडिक्कल रामकृष्णन की हत्या 28 अप्रैल 1969 कर दी थी।
कन्नूर जिला केरल के मुख्यमंत्री विजयन का गृह जिला है। पिछले साल मई से अबतक हिंसा की 400 से ज्यादा वारदातें हुई हैं। केरल में वर्ष 2001 के बाद से अबतक राज्य में 120 कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्याएं की गई है। इनमें से 84 कार्यकर्ता तो केवल कन्नूर जिले में ही शहीद हुए हैं। 14 कार्यकर्ता तो केवल मुख्यमंत्री पिनरई विजयन के गृहनगर में कम्युनिस्टों की हिंसा के शिकार बने। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह की केरल के कन्नूर जिले से शुरु हुई जन रक्षा यात्रा से वामदलों के नेता बौखला गए हैं। दिल्ली में भी माकपा के कार्यालय पर भाजपा के कार्यकर्ता रोजाना प्रदर्शन कर रहे हैं। केरल में भाजपा अध्यक्ष की जन रक्षा यात्रा के माध्यम से पूरे देश में कम्युनिस्टों की रक्तरंजित राजनीति का सच देश की जनता के सामने आया है।
जन रक्षा यात्रा पूरे प्रदेश का भ्रमण करने के बाद 17 अक्टूबर को तिरुवनंतपुरम में समाप्त होगी।
सच में अमित शाह जी ने यह साबित कर दिखाया, कि अपने कार्यकर्ताओं पर हमलों के खिलाफ वे हर कदम पर पूरी तरह साथ हैं। इससे पूरे देश के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है। पूरे देश में वामदलों के खिलाफ जनता में गुस्से की लहर व्याप्त हो रही है।
‘सभी को जीने का हक!! जिहादी-लाल आतंक के खिलाफ’
इस नारे को लेकर जारी इस यात्रा का मकसद पूरे देश के सामने वामदलों की रक्तरंजित राजनीति का खुलासा करना है। अमित जी ने जनरक्षा यात्रा की शुरुआत में राज्य में सत्तारूढ लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने यह भी कहा कि जब भी राज्य में कम्युनिस्टों को सत्ता मिलती है, संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं की हत्या के मामले बढ़ जाते हैं। भाजपा अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री से हत्याओं को लेकर जवाब भी मांगा है। मुख्यमंत्री के पास भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या का कोई जवाब नहीं है। हताशा में भाजपा और संघ पर अनर्गल आरोप लगाकर राजनीति करने में लगे हैं।
पश्चिम बंगाल में भी कम्युनिस्टों का लंबे समय तक आतंक रहा। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी की भी कम्युनिस्टों ने राज्य की सत्ता में रहते हुए पिटाई की थी। ये सब भूलकर तृणमूल भी उसी राह पर अग्रसर है, ममता बनर्जी की शह पर उनकी पार्टी के गुंडे भाजपा व संघ के कार्यकर्ताओं को रोजाना निशाना बना रहे हैं। भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं पर सुनियोजित और संगठित तरीके से हमले किए जा रहे हैं। उनके घरों और दुकानों को आग लगाई जा रही है। वाहनों को फूंका जा रहा है। मां-बेटियों के डराया धमकाया जा रहा है। कई स्थानों पर बदसूलुकी भी की गई है। ममता बनर्जी की पुलिस का हाल यह है कि थाने तृणमूल के गुंडे चला रहे हैं। तृणमूल के नेताओं के कहने पर मुकदमे दर्ज होते हैं। पुलिस के बड़े अफसर भी तृणमूल कांग्रेस नेताओं के पालतू कर्मचारी की तरह काम करते हैं। पुलिस के जरिये संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं को फर्जी मुकदमे में फंसाकर जेल भेजा जा रहा है।
पिछले दिनों भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पश्चिम बंगाल में पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की व्यथा को जाना और ममता सरकार को रक्तरंजित राजनीति करने पर चेतावनी दी। अमित शाह ने केरल और पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या और जानलेवा हमले, फर्जी मुकदमों में फंसाने को लेकर आन्दोलन करने का ऐलान भी किया।
केरल में कम्युनिस्टों के बढते आतंक के कारण भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को खुद सड़क पर आना पड़ा है। वे पदयात्रा के जरिये वामदलों की रक्तरंजित राजनीति की तरफ देश की जनता का ध्यान खींचने में सफल हुए है। हैरानी की बात है, कि हमारे देश के मानवाधिकार संगठनों ने केरल और पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हत्याओं को लेकर हाय-तौबा मचाना तो दूर, एक उफ्फ तक नहीं की।
इन तथाकथित मानवाधिकार संगठनों का काम केवल कुछ सीमित घटनाओं तक ही सीमित रहता है। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ मानवाधिकार संगठन केवल राजनीतिक कारणों से ही हल्ला मचाते हैं। मानवाधिकार संगठन और देश के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने पिछले कुछ समय से देश में असहिष्णुता का आरोप लगाया है। ऐसे आरोप केवल राजनीतिक दलों के सहारे पलने वाले मानवाधिकार संगठन और बुद्धिजीवी ही लगा रहे हैं। इस बात की असलियत देश की जनता जान चुकी है।
मीडिया में भी, केवल एक सीमित वर्ग ने ही ऐसे प्रायोजित आरोपों को जगह दी है। मीडिया के ऐसे लोगों की असलियत भी अब जनता के सामने आ रही है। मैंने पश्चिम बंगाल में खुद यह अनुभव किया कि मीडिया घरानों पर ममता बनर्जी का कितना खौफ है। ममता के डर की वजह से पश्चिम बंगाल के अखबार और टीवी चैनल तृणमूल कांग्रेस की गुंडागर्दी, जबरन वसूली, लूटपाट और महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को प्रकाशित करने और दिखाने से डरते रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में भाजपा के ममता सरकार के खिलाफ बड़े आन्दोलनों के कारण मीडिया में अब सरकारी संरक्षण में होने वाले अत्याचारों का खुलासा होने लगा है। इसी तरह केरल में भी मीडिया पर सत्तारूढ़ वामपंथी सरकारों का दबाव रहा है। खासतौर पर वाममोर्चा सरकार ने तो अखबारों और चैनलों को बहुत अधिक डरा-धमका कर रखा हुआ है। राष्ट्रीय मीडिया में कुछ घटनाओं का जिक्र तो हुआ पर ज्यादातर घटनाओं को जगह ही नहीं दी गई। हाल ही में मीडिया के एक वर्ग पर भी केरल में हमले हुए हैं। केरल में तो पुलिस सरकार के इशारे पर मीडिया भी को निशाना बना रही है।
पश्चिम बंगाल में तो एक समुदाय को खुश करने के लिए ममता बनर्जी ने हिन्दुओं के त्यौहार और पर्व मनाने पर भी प्रतिबंध लगा दिए। यह बात बेशक मजाक में कही गई कि जिस बंगाल में पहले दुर्गा उत्सव मुख्य पर्व था, वहां अब मुहर्रम मुख्य पर्व हो गया है। किन्तु, यह एक खतरनाक संकेत है। राजनीतिक फायदे के लिए ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने पर तुली हैं। हिन्दुओं को डराया-धमकाया जा रहा है। गांवों से सुनियोजित तरीके से उन्हे घर-बार छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा है। उनके कारोबार तबाह किए जा रहे हैं। उनकी सम्पत्तियों पर तृणमूल के कार्यकर्ता पुलिस के सहयोग से कब्जे कर रहे हैं। ऐसे इलाकों में एक समुदाय को बसाया जा रहा है। ऐसी घटनाओं को मीडिया में स्थान नहीं मिला। मानवाधिकार संगठनों ने भी ऐसी घटनाओं की तरफ से मुहं मोड़ लिया।
वामदल हो या ममता बनर्जी, इन्हें अब यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत के 80 फीसदी हिस्से पर भाजपा का असर है। केन्द्र में सरकार और 18 राज्यों में भाजपा तथा सहयोगी संगठनों की सरकारें हैं। अब बारी केरल और पश्चिम बंगाल में कमल खिलाने की है।