शतरंज के माहिर खिलाड़ी अमित शाह को चुनावी बाजी पलटने में भी महारत हासिल है। इसी कारण भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष बनने पर उन्हें आधुनिक चाणक्य बताया गया। 50 साल से कम आयु के अमित शाह के अध्यक्ष बनने पर किसी को कोई हैरानी भी नहीं हुई।
विपक्षी दलों को जरूर झटका लगा, क्योंकि अमित शाह तमाम साजिशों के बावजूद उनकी हर शह को मात देते रहे हैं। फर्जी मुकदमों में फंसाकर उन्हें जेल भिजवाया एवं गुजरात से बाहर भेजा गया। सच को आंच नहीं में विश्वास रखने वाले अमित शाह ने तमाम सियासी साजिशों का पर्दाफाश करते हुए देश की राजनीति में नया इतिहास रचा है।
आने वाले दिनों में उनकी चुनावी रणनीति के और भी नए कमाल देखने को मिलेंगे। जिस उत्तर प्रदेश में भाजपा 2002 के बाद तीसरे पायदान पर खड़ी थी, आज अव्वल है। उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुकाबले खड़े सभी दल अमित शाह की रणनीति के कारण लड़खड़ाने लगे हैं। यही कारण है उन पर लगातार सियासी हमले हो रहे हैं।
चुनाव में “जय हो-विजय हो” यही उनकी रणनीति रहती है। 1989 से 42 चुनावों में लगातार जय पाने वाले अमित शाह को ऐसे ही चाणक्य नहीं कहा जा जाता है। अध्ययन करने के शौकीन अमित शाह ने 17 साल का पूरा होने से पहले ही चाणक्य का पूरा इतिहास पढ़ लिया था।
वीर सावरकर के जीवन से भी उन्होंने बहुत प्रेरणा ली। उनके कक्ष में चाणक्य और वीर सावरकर के चित्र लगे हुए हैं। व्यक्ति की क्षमता पहचानने में भी उन्हें महारत हासिल है। कौन व्यक्ति क्या कर सकता है, कैसे कर सकता है और उससे क्या कराया जा सकता है, यह उनकी बड़ी खासियत है। इन्ही कारणों के कारण अमित शाह विरोधियों पर भारी पड़ते रहे हैं।
इस साल 22 अक्टूबर को अमित जी 52 साल के हो रहे हैं। भाजपा में सबसे कम आयु के अध्यक्ष बने अमित भाई के नेतृत्व में पार्टी को दुनिया में सबसे बड़े राजनीतिक दल बनने का अवसर मिला। आज भाजपा के देशभर में 11 करोड़ सदस्य हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है, कि वे चुनावों के लिए बहुत पहले से उसी तरह तैयारी करते हैं, जैसे कोई मेधावी और मेहनती छात्र लगातार पढ़ाई करते हैं।
अक्सर यह देखा जाता है कि ज्यादातर विद्यार्थी परीक्षा आने पर पढ़ाई करते हैं। उसी तरह हमारे देश में राजनीतिक दल चुनाव के समय तेजी से सक्रिय होते हैं। अमित भाई इस मामले में एकदम अलग है। वे कहते हैं
“हम चुनाव के लिए राजनीति नहीं कर रहे हैं।
हम जनता की सेवा के लिए राजनीति में आए हैं।”
सेवा का चुनावों से कोई लेना-देना नहीं है। लगातार जनता के बीच जाइये, लगातार कार्यकर्ताओं से संपर्क में रहिये। लगातार संवाद करते रहिये। लगातार सक्रिय रहेंगे तो चुनाव के समय भी बहुत मारामारी नहीं करनी पड़ेगी।
समाज के कमजोर तबकों को आगे बढ़ाने और उन्हें बराबरी का दर्जा दिलाने के संस्कार, अमित जी को बचपन से ही मिले हैं। सम्पन्न कारोबारी अनिलचंद्र शाह के परिवार में जन्में अमित भाई जब छठीं कक्षा के विद्यार्थी तो ऐसा उदाहरण पेश किया, जिसे उनके गांव मानसा के लोग आज भी याद करते हैं।
उनके विद्यालय में सवर्णों और दलितों के लिए पानी की अलग-अलग टंकी थी।
दलितों के पानी की टंकी तोड़कर उन्होंने कहा कि, सब एक ही टंकी से पानी पिएंगे।
गांव के लोगों ने विरोध किया, तो उनके दादा ने कहा कि,
बच्चे ने सही किया और ऐसे अच्छे संस्कारों को बढ़ावा मिलना चाहिए।
अमित जी की माताजी बहुत ही धार्मिक और दृढ़ इच्छा वाली थीं,उन्होने ही अमित जी में पढ़ने की रूचि पैदा की। अपनी 17 वर्ष की आयु में ही उन्होंने चाणक्य, स्वामी विवेकानंद व लेनिन को पढ़ लिया था। बहुत कम लोगों को मालुम है कि, अमित शाह जी की लाईब्रेरी बहुत ही उच्च कोटि की किताबों का संग्रह है। उन्होंने इस लाईब्रेरी की संग्रहित 90 प्रतिशत किताबों का अध्ययन किया है। यह सब उनकी मां के अनुशासन प्रिय होने का नतीजा था कि आज अमित शाह जी की पहचान एक सामाजिक, धार्मिक और आक्रामक नेता के रूप में हुई है।
नकी राजनीतिक कुशलता के कारण ही उत्तर प्रदेश में भाजपा को 80 लोकसभा सीटों में से 71 सीटों पर कामयाबी मिली। दो सीटों पर हमारे सहयोगी अपना-दल के उम्मीदवार जीते। लोकसभा चुनाव से पहल जब उन्हें महासचिव बनाकर उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था, तब भाजपा के तमाम नेता भी चौंक गए थे, कि नरेंद्र मोदी का मिशन 273 कैसे पूरा होगा।
लोकसभा चुनाव में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जातिगत राजनीति के कारण भाजपा को ज्यादा सीटें मिलने की संभावना नहीं दिखाई दे रही थी। कारण भी थे कि 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केवल 10 सीटों पर विजय मिली थी। विधानसभा चुनावों में भाजपा 2002, 2007 और 2012 लगातार पिछड़ती जा रही थी।
ऐसे में अमित शाह को उत्तर प्रदेश भेजने के फैसले पर हैरानी भी थी। यह भी माना जा रहा था कि गुटों में बंटे भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओ को कैसे एकजुट करेंगे। अपनी चुनावी रणनीति के तहत अमित शाह ने सभी को अबकी बार-मोदी सरकार के नारे के साथ जोड़ दिया।
इसके लिए उन्होंने कुछ बहुत बड़े फैसले भी किए। जाति के नाम पर राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों की पूरी रणनीति को उन्होंने लोकसभा चुनाव में जमकर शिकस्त दी। सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार महज पांच सीटों पर जीत पाए।
सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव चुनाव में पराजय की संभावना के कारण दो सीटों पर लड़े। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद तो यह भी कहा गया कि अगर उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार नहीं होती, तो शायद उसके पांच सदस्य भी नहीं जीत पाते। जीतने वालों में खुद मुलायम सिंहए उनकी बहू और भतीजे हैं।
लोकसभा चुनाव से पहले मिशन 273 को लेकर भी भाजपा के नेता आश्वस्त नहीं थे। यह भी चर्चा होती थी कि उत्तर प्रदेश ज्यादा से ज्यादा सीटें कैसे सीटें आएंगी। 32 साल से साथ काम कर रहे नरेंद्र मोदी और अमित शाह को पूरा भरोसा था कि उत्तर प्रदेश ही इस मिशन को पूरा करेगा और किया। अमित जी ने भाजपा के शिखर पुरुष अटल विहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के चुनावो में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रहे नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके विरोधियों ने जमकर हमले बोले। मोदी जी के विशाल व्यक्तित्व के कारण विरोधी तमाम साजिशों में फंसाने नाकाम रहे। मोदीजी को को साजिशों में फंसाने में नाकाम रहने पर उनके नजदीकी अमित शाह को फर्जी मुठभेड़ मामले में फंसा दिया गया।
यू.पी.ए. सरकार में कांग्रेसी नेताओं के इशारे पर उन्हें फंसाया गया। जेल भेजा गया और 90 दिन बाद जमानत पर रिहा किया गया। निर्दोष साबित होने पर पहले हाई कोर्ट ने और फिर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है। 2015 में विशेष सीबीआई अदालत ने अमित भाई को सभी आरोपों से इस कथन के साथ मुक्त कर दिया कि यह केस राजनीति से प्रेरित था।
इतना ही नहीं सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में उनकी कोई भूमिका न होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में फिर चुनौती दी गई। सोहराबुद्दीन केस में क्लीनचिट के खिलाफ यह याचिका दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट का यह कहना बहुत मायने रखता है, कि इस केस में उन्हें बार-बार आरोपमुक्त किया गया, क्या उनके खिलाफ बार-बार कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।
इस समय देश के नौ राज्यों गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गोवा, हरियाणा, महाराष्ट्र असम और झारखंड में भाजपा की सरकारें हैं। आंध्र प्रदेशए नगालैंडए पंजाब और जम्मू.कश्मीर में सहयोगी दलों के साथ भाजपा सरकार में शामिल है। अरुणाचल प्रदेश में भी हाल ही में भाजपा सरकार में शामिल हुई है। अमित भाई के नेतृत्व में झारखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र और असम में भाजपा की सरकार बनी।
हरियाणा में जहां भाजपा को केवल शहरी लोगों की पार्टी बताया जाता था। भाजपा ने ज्यादातर चुनाव तालमेल से ही लड़े थे, वहां पार्टी ने अकेले चुनाव लड़कर सरकार बनवाने में कामयाबी हासिल की। यह मेरा सौभाग्य है कि अमित भाई ने मुझे हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान जिम्मेदारी सौंपी। उनके नेतृत्व में मुझे बहुत कुछ नया सीखने को मिला।
महाराष्ट्र में भी हमेशा शिवसेना को तरजीह दी जाती थी। वहां भी शिवसेना की तमाम धमकियों के बावजूद भाजपा ने अपना मुख्यमंत्री बनवाने में कामयाबी हासिल की। असम जैसे राज्य में तो भाजपा की सरकार बनाना वाकई चमत्कार है। अगले साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और गोवा में विधानसभा चुनाव होंगे। उत्तर प्रदेश में तो अमित भाई ने कमाल करके सभी राजनीतिक दलों के खेल बिगाड़ दिए।
अपनी खाट यात्रा के दौरान भाजपा पर हमला बोलने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की पार्टी से तो छोड़ने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। समाजवादी पार्टी में भी जमकर रार मची हुई है। बहुजन समाज पार्टी के नेता भी पार्टी छोड़ रहे हैं। छोटे.मोटे दलों को तो कोई सहारा ही नहीं मिल रहा है।