सूर्य संवेदना पुष्पे:, दीप्ति कारुण्यगंधने । लब्ध्वा शुभम् नववर्षेअस्मिन् कुर्यात्सर्वस्य मंगलम् ॥ जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, संवेदना करुणा को जन्म देती है, पुष्प सदैव सुगन्धित रहता है, उसी तरह यह नव विक्रम संवत 2080 आपके लिए हर दिन, हर पल के लिए मंगलमय हो।
विक्रम संवत 2080 के प्रथम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा हिन्दू नववर्ष है। हिंदू नववर्ष के दिन महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, सिंधी समाज चेटी चंड पर्व, कर्नाटक में युगादि और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में उगादि, गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग संवत्सर पड़वो, कश्मीर में नवरेह, मणिपुर में सजिबु नोंगमा पानबा का पर्व मनाते हैं। हिन्दू नववर्ष का प्रथम दिन प्रकृति पर्व है और इसका सम्पूर्ण देश के लिए सांस्कृतिक महत्व है। वासंतिक नवरात्र के प्रथम दिन ही मां भगवती के नव रूपों के दर्शन करने का अवसर भी है। नवरात्र में नौ दिनों तक मां भगवती के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नव संवत्सर का दिन हमें हमारी प्राचीन संस्कृति और पर्वों से जुड़ने का अवसर देती है। नव संवत्सर को हम धूमधाम से मनाएं और अपने बंधु-बांधवों को नव वर्ष का स्वागत, वंदन एवं अभिनंदन करते हुए इन दिन के महत्व की जानकारी देकर मनाने के लिए प्रोत्साहित करें। हमारे पुराणों और प्राचीन ग्रंथों के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। आज के दिन भगवानी श्री राम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था। स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्यसमाज का स्थापना भी इसी दिन की थी। इसी दिन संत झूलेलाल की जयंती मनाई जाती है। राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत करने वाले विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक पूज्यनीय डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी जन्मदिवस पर पुण्य स्मरण का दिवस भी है।
भारत के विभिन्न हिस्सों में जैसे महाराष्ट्र और गोआ के अलावा आसपास के राज्यों में नव संवत्सर को गुड़ी पड़वा मनाया जाता है। मराठी नव वर्ष भी ऋतु और संस्कृति से जुड़ा पर्व है। गुड़ी पड़वा को संवत्सर पड़वो के नाम से भी मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा में गुड़ी को भगवान ब्रह्मा का प्रतीक और पड़वा को चंद्रमा के चरण प्रथम दिन कहा जाता है। वैसे भी प्रतिपदा को उत्तर भारत में पड़वा कहा जाता है। गुड़ी का अर्थ विजय पताका भी होता है। माना जाता है कि एक कुम्हार-पुत्र शालिवाहन नाम ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से अपने शत्रुओं पर विजय पाई थी। इसलिए इस दिन विजय के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन से ही शालिवाहन शक का प्रारंभ भी होता है। भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना के कारण गुड़ी पड़वा के दिन भगवान ब्रह्मा की पूजा अर्चना की जाती हैं। इस पर्व पर समस्त बुराइयों का अंत होता है और सुख समृद्धि का आगमन होता है। मान्यता है कि दक्षिण भारत में भगवान श्रीराम ने राजा बलि का वध करके जनता को आतंक से मुक्ति दिलाई थी।
नव संवत्सर आतंक से मुक्ति दिलाने, बुराई का अंत करने के साथ सुख एवं समृद्धि की वृद्धि दिलाने वाला पर्व है। नव संवत्सर के दिन स्वच्छ होकर मां भगवती की उपासना करें। अपने परिवार में पकवान बनाएं और आसपास भी वितरित करें। अपने मित्रों को मिठाईं खिलाएं। मंदिरों में जाकर राष्ट्र में शांति और समृद्धि की कामना करें। रात में घरों में दीपक जलाकर नव संवत्सर का स्वागत करें।
सिंधी समाज चेटी चंड के अवसर पर वरुण देवता के अवतार भगवान झूलेलाल की जयंती मनाता है। माना जाता है कि पहले समय में सिंधी समाज के लोग जलमार्ग से अपनी यात्रा की सकुशलता के लिए जल देवता झूलेलाल से प्रार्थना करते थे। यात्रा की सफलता पर भगवान का आभार जताते हैं। सिंधी समाज के बंधु-बांधवों को चेटी चंड जूं लख-लख वाधायूं। आतंक से मुक्ति दिलाने वाले पर्व के अवसर जम्मू-कश्मीर में शांति सुखद अहसास कराती है। जम्मू-कश्मीर में 1990 के बाद नवरेह पर रौनक लौटी है। पिछले वर्ष 32 वर्ष बाद कश्मीर घाटी में नवरेह यानी नववर्ष बहुत धूमधाम से मनाया गया। कश्मीर में नववर्ष की पूर्व संध्या पर थाल बरुन यानी कांसे की चावल से भरी थाली पर अखरोट, बादाम, दूध, दही, लेखनी, स्याही की दवात नया पञ्चांग, अदरक, एक नोट, फूल और छोटा दर्पण रखा जाता है। आईना, नमक आदि सजाकर रखे जाते हैं। सोने से पहले एक दूसरे को नवरेह पोषतु यानी नववर्ष शुभ हो कहा जाता है। नवरेह के अवसर ऋद्धि- सिद्धि-समृद्धि, आरोग्य, दीर्घायु, सुख-शांति, धन-धान्य, औषधि, वनस्पति के लिए कामना की जाती है।
इस नव संवत्सर भारत के विभिन्न हिस्सों में प्राचीन मान्यताओं और परम्पराओं का स्मरण कराता पर्व है। आइये नव संवत्सर पर धूमधाम मनाएं और अपनी गौरवमयी संस्कृति पर गर्व करें और ईश्वर का आभार करें। पुनः सर्वेभ्यः नूतन संवत् 2080 हार्दिक्यः शुभाशयाः
कैलाश विजयवर्गीय