मूलभूत ज़रूरतों को भी पूरा करना हुआ दूभर…
पहले पेट्रोल के भाव और अब डीजल व रसोई गैस सिलेंडर, क्या प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी. रंगराजन को डीजल और रसोई गैस सिलेंडर की कीमतों में बढ़ोतरी करने की बात सोचने से पहले लाखों लोगों की दयनीय स्थिति नहीं दिखाई दी? क्या राजकोषीय घाटा आम नागरिकों की ज़िन्दगी से बढ़कर हो सकता है? अगर इस तरह महंगाई बढती ही जाएगी तो कहीं ऐसा न हो कि मूलभूत ज़रूरतों को पूरा करते-करते देश का सबसे बड़ा मध्यम वर्ग भी गरीबी रेखा के नीच आ जाए…
सरकार द्वारा संसद में कहा गया है कि डीज़ल की कीमतों को बाजार के हवाले करने के लिए सैद्धांतिक रूप से फैसला लिया जा चूका है. पर क्या इस फैसले के दुष्परिणामों के बारे में किसी ने गौर से सोचा? नियंत्रण हटने से निश्चित ही डीज़ल के भावों में बढ़ोतरी होगी और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से ट्रांसपोर्ट का भाव बढ़ने से रोज़मर्रा की हर चीज़ महंगी होगी. इतना ही नहीं पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी महंगा हो जाएगा.
क्या हम ऐसी ही केन्द्रीय सरकार चाहते हैं जो हमारी मूलभूत ज़रूरतों को भी हमारे लिए दूभर बना दे ??