रक्षाबंधन को मनाएं ही नहीं निभाएं भी!
पुरातन काल से रक्षाबंधन का यह त्यौहार चला आ रहा है और हम इसे भाई-बहन के अनमोल रिश्ते का प्रतीक मानते आए हैं. बचपन से ही यह राखी का त्यौहार अपनी बहन की रक्षा करने के लिए प्रेरित करता है और हर भारतीय पुरुष के मन में एक पावन भावना को जन्म देता है. संस्कारों और संस्कृति ने भी स्त्री का सम्मान व रक्षा करने की ही शिक्षा दी है. इतना ही नहीं बल्कि हर स्त्री को माँ, बहन, बेटी व देवी का रूप भी माना गया है.
राखी की शुरुआत कृष्ण भगवान के समय से हुई थी. भगवान श्री कृष्ण को रणभूमि से लौटने पर चोट लगी थी जिसे देखकर द्रौपदी ने व्याकुल होकर, बहुत ही पवित्र मन से अपनी रेशमी साड़ी की किनार फाड़कर उनकी कलाई पर बाँधी थी. तभी से श्री कृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन माना और उनकी सम्पूर्ण जीवन रक्षा की एवं चीरहरण के समय उनकी साड़ी को असीम कर भरी सभा में उनकी लाज बचाई. इसही प्रसंग से भाई की कलाई पर राखी यानी रेशम की डोर बाँधने की प्रथा चली जिसे हम आज तक रक्षाबंधन के त्यौहार के रूप में मनाते हैं. द्रौपदी वास्तव में भगवान श्री कृष्ण की बहन नहीं थी परन्तु भावनाओं से बढ़कर कोई रिश्ता नहीं होता. और आज हम यही बात भूल रहे हैं. वर्तमान में रक्षाबंधन की परिभाषा सिर्फ स्वयं की बहन तक ही सीमित रह गई है. इस सभ्य समाज में सम्पूर्ण नारी जाती की रक्षा करने की प्रथा नहीं रही और शायद इसही के परिणाम स्वरूप इन दिनों भरी सड़क पर लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार होने की कई घटनाएं सामने आई जिनमें सड़क पर खड़े लोग तमाशा देखते रहे पर किसी ने मदद नहीं की. क्या सड़क पर किसी लड़की के साथ ऐसी अमानवीय घटना होते देख आपका दिल नहीं दहलता? क्या आपके अंदर का भाई आपको झकझोरता नहीं? क्या ऐसे लोगों के विरुद्ध कदम उठाने के लिए आप स्वयं की बहन के साथ ऐसा होने का इन्तज़ार कर रहे हैं?
हर लड़की किसी की बहन होती है और राखी का फ़र्ज़ निभाने के लिए हर लड़की की सुरक्षा करना आवश्यक है. जब समाज में हर व्यक्ति ऐसा सोचेगा तभी हर बहन सुरक्षित होगी और लड़कियों के लिए एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो पाएगा. क्या आप मेरी बात से सहमत नहीं? क्या राखी का त्यौहार मनाने मात्र से हम अपनी बहनों को सुरक्षित रख पाएंगे?
आप सभी से मेरा इस राखी पर यही अनुरोध है कि आप रक्षाबंधन मनाएं ही नहीं निभाएं भी! रक्षाबंधन की आप सभी को हार्दिक बधाइयाँ!!