Kailash Vijayvargiya blogs Kailash Vijayvargiya Blog - Page 10 of 19 - Kailash Vijayvargiya Cabinet Minister Of B.J.P
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Nadda ji

Pink Glittery Republic Day

गुलाबी गर्माहट गणतंत्र दिवस की

कड़ाके की ठंड में भी देश में गुलाबी गर्माहट घुल रही है। गर्माहट है २६ जनवरी पर गणतंत्र दिवस मनाने के उल्लास की, जोश की, उमंग की। जोशीले हमारे इस राष्ट्रीय पर्व, 68 वें गणतंत्र दिवस की सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई, शुभकामनाएं।

सर्वज्ञात है 26 जनवरी 1950 से हमारे देश में हमारा संविधान लागू हुआ। इस दिन से देश असल में सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न गणतंत्र बना। राजेन्द्रप्रसाद ने देश के प्रथम राष्ट्रपति के पद की शपथ ली, देश के नाम प्रथम प्रेरक सन्देश दिया। केवल सन्देश ही नहीं अपितु राजेन्द्रजी, गांधीजी, सरदार पटेल जी जैसे हमारे अग्रजों का सम्पूर्ण जीवन ही हमारे लिए हमेंशा प्रेरणादायी रहा है।

राजेन्द्रप्रसाद के सन्दर्भ में यहाँ प्रस्तुत है उन्हीं के शब्दों में उनका देश-सेवा में आने का प्रेरक प्रसंग- गोपालकृष्ण गोखले जहां ठहरे थे, मैं वहां जाकर उनसे मिला । गोखले ने कुछ दिन पहले ही सर्वेंट ऑफ़ इंडिया सोसायटी का गठन किया था। मैंने यूनिवर्सिटी परीक्षा टॉप की थी और वकालात की तैयारी कर रहा था। गोखले ने कहा- हो सकता है तुम्हारी वकालात खूब चले, बहुत रुपये तुम पैदा कर सको और बहुत आराम और ऐश में दिन बिताओ। लेकिन मुल्क का भी दावा कुछ लड़कों पर होता है। तुम पढ़ने में अच्छे हो इसलिए यह दावा तुम पर अधिक मजबूत है। राजेन्द्र जी ने कुछ विचार किया और फिर अपना सम्पूर्ण जीवन देशसेवा में समर्पित कर दिया। यह है, देश सेवा हेतु सर्वस्व समर्पण का अनूठा उदाहरण।
गणतंत्र दिवस के इस पावन अवसर पर हम भी अपने दिल पर हाथ रखकर ज़रा सोचें- हम देश के प्रति कितने समर्पित हैं? क्या हम राजेन्द्र जी,गांधी जी,सरदार पटेल जी के सपनों का भारत-निर्माण कर पा रहे हैं?
इस प्रश्न का उत्तर पाने हेतु बेहतर होगा यदि हम स्वामी विवेकानंद द्वारा बताई कसौटी पर खुद को परखे। उन्होंने कहा था – यदि ज्ञानियों का ज्ञान, संघर्ष-शीलता की सोच, व्यापारी व उद्यमियों की वितरणशीलता, अंतिम वर्ग और ग्रामीणों की प्रगति को आगे ले जाया जाए तो राष्ट्र आदर्श बनता है। लेकिन इसे आदर्श बनाने में निश्चित ही देश के नेतृत्व और देशवासियों की समान रूप से भावपूर्ण और सघन कोशिश बहुत जरूरी है।
इस कसौटी पर यदि नेतृत्व को परखें तो हम अवश्य स्वीकारेंगे कि सौभाग्य से आज राष्ट्रपति जी और प्रधानमंत्री जी दोनों ही खरे नज़र आते हैं। राष्ट्रपति जी न्याय और सच के पक्षधर हैं तो मोदी जी राष्ट्रीय-प्रगति को लेकर साफ़ दृष्टि, सच और ईमानदार प्रयासों के साथ जूझ रहे हैं।
उदाहरण स्वरूप प्रधानमंत्री जी के कार्यों को, उनके भावों को केवल अंतिम वर्ग और ग्रामीणों के सन्दर्भ में ही देखें तो भी स्पष्ट हो जाएगा कि निस्संदेह वे उनकी उन्नति के लिए हरपल सजग व व्याकुल रहते हैं। इसका प्रमाण भी दृष्टव्य है कि हाल ही उन्होंने आई आई एम और आई आई टी के विशेषज्ञों को आमंत्रित किया है, उक्त वर्गों की प्रगति के लिए शोध, सुझाव और सहयोग हेतु।

दरअसल देश का नेतृत्व कर रहे मोदीजी की नेक नीयत, उनका दृढ़ इरादा, और पहल करने में जुट जाने की उनकी प्रवृत्ति ही बस उनकी विश्वसनीयता के लिए सभी देशवासी काफ़ी मानते हैं। हमारे प्रधानमंत्री जी की ईमानदारी और कर्मठता पर किसी को लेश मात्र भी शक नहीं है। यही उनकी ब्रांड वैल्यू है, इसीलिए उनके साथ खड़ा देश पूर्णतः आश्वस्त है, क्योंकि उनके उचित कार्यों के फल तो समय से अवश्य ही मिलते हैं।
नेतृत्व के अलावा अब हम खुद का भी तो मूल्यांकन करें। हम यह समझें कि केवल क़ानून के बल पर कोई देश महान नहीं हो सकता है। वह महान होता है, महान नागरिकों के कारण। जापान क्यों जापान है, स्विट्ज़रलैंड क्यों स्विट्ज़रलैंड है? क्यों ये उन्नत अनुशासित होकर विश्व में सिरमौर हैं? उनके आदर्श नागरिकों के कारण ही न! उनके उच्च राष्ट्रीय चरित्र के कारण ही न! अब चिंतन करें- “हम कितने आदर्श नागरिक हैं?
तो आओ! गणतंत्र दिवस पर हमारी सिरमौर संस्कृति,पूर्वजों जैसी नेक नीयत और अधुनातन ज्ञान के सहारे देश को आदर्श बनाने हेतु आदर्श नागरिक बनने की प्रतिज्ञा करें। इसे पूरा करने की दृढ़ पहल करें और आगे बढ़ते चलें –

Young and we understand the mother’s daughter dignity

युवा और हम समझें माँ बेटी बहन की गरिमा

हाल ही में युवा दिवस के रूप में स्वामी विवेकानंद जयंती मनाई गई। उम्मीद है युवा उनके व्यक्तित्व से प्रेरित होकर अपने आचरण का उन्नयन जरूर करेंगे। स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, गौतम बुद्ध और ऋषि-मुनियों का हमारा यह देश समृद्ध संस्कृति वाला देश है। इसमें यदि हमें, विशेषतः युवाओं को कलंकित करने वाले कोई हादसे सामने आयें तो हमारा अंतःकरण आहत होना स्वाभाविक है।

विगत कुछ दिनों में बंगलुरु, दिल्ली आदि नगरों में नववर्ष पर कुछ महिलाओं, युवतियों के साथ उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाने वाली हरकतें हुई और पूरा देश शर्मसार हुआ। ऐसे अनेक, अप्रिय कारनामे निश्चित ही हमें कई मुद्दों पर सोचने, चिंतन करने पर विवश करते हैं।

निस्संदेह हमारा आज का युवा वर्ग प्रेक्टिकल है,सकारात्मक है, आगे बढ़ने की चाहत उसमें है। लेकिन इस चाहत में अंधे होकर उसने गति इतनी तेज कर दी है कि भारतीय संस्कृति पीछे छूटती जा रही लगती है, लुप्त होती सी लग रही है। विभिन्न माध्यमों से प्राप्त सूचनाओं और संस्कारों की चकाचौंध में अंधा,वह खुद को तो नहीं खो रहा है? यह चिंतन करना भी उसके लिए जरूरी है।

ऐसा तो नहीं, कि कामनाएं इतनी फैला दी हैं कि पवित्र भावनाओं के लिए शायद कोई जगह ही न रही। वे आज़ादी का अर्थ “जीवन के हर मूल्य से आज़ादी” से तो नहीं ले रहे हैं?

संस्कृति की दुहाई देने वाले देश में, युवा अपनी ही संस्कृति का मखौल तो नहीं बना रहा? गलत को मान्यता दे रहा और उचित का तिरस्कार तो नहीं कर रहा?

आधुनिकता का अन्धानुकरण कर भावावेश में गलत दिशा में तो नहीं जा रहा! विदेशी संस्कृति से बुराई तो नहीं ले रहा! इस पर चिंतन और सुधार की गुंजाइश जरूर नज़र आती है

हमारे संस्कार तो बताते हैं कि भौतिकवादी-बौद्धिकता यदि हमारी सामाजिक समरसता, पवित्रता, नैतिकता का मूल्य चुका कर आये तो हम प्रायः इसे स्वीकारते नहीं हैं। अच्छे की प्रशंसा कर हम उसे स्वीकारते हैं, पर बुरे को गुलाबों से ढककर अच्छा कहने का प्रयास हमें प्रिय नहीं।

अब स्वामी विवेकानंद के इस कथन पर भी ध्यान दें- हमारे देश में माँ, बहन,बेटी का जीवन मात्र बाह्य अभिव्यक्ति की वस्तु है ही नहीं। वे तो हमारे आतंरिक,पारिवारिक और सामाजिक जीवन को समृद्ध बनाती हैं। इसका प्रमाण यही है कि आज भी भारतीय महिलाओं के कारण ही त्याग, पवित्रता, दया, संतोष,सेवा आदि गुणों का अस्तित्व देश में प्रभावी है।
वह माँ ही है जो परिवार के जरिये मार्गदर्शन देती है।हमें संस्कार देकर दुनिया में आगे बढ़ने की योग्यता देती है।अपने परिवार में सीखें,अपनी माँ और भारतमाता को शर्मसार करने वाली हरकतें तो न करें।
अंत में यही कहूँगा –

Why is this disturbance?

आखिर क्यों है यह बौखलाहट ?

आखिर हम जा कहां रहे है? देश की नब्ज़ का हाल बताने वाला थर्मामीटर कहां टिक रहा है? क्या इशारा कर रहा है? समझने की जरूरत है । बेंगलुरू में नववर्ष की बेला में, एक महिला के साथ दो व्यक्तियों ने बदतमीज़ी की इंतेहा कर दी । बचाने वाला कोई नहीं दिखा । देश के सुप्रीमकोर्ट ने एक जनवरी को आदेश जारी किया कि सार्वजनिक चुनाव में जाति, धर्म आदि के नाम पर लाभ लेना वर्जित रहेगा । दूसरे ही दिन एक दल की प्रमुख ने जाति आदि के टैग के साथ उम्मीदवारों का वर्गीकरण घोषित किया। और–और -पश्चिम बंगाल में भाजपा प्रदेश कार्यालय, केंद्रीय मंत्री बाबुल सूप्रियो के आवास, भाजपा के एक कार्यक्रम पर तृणमूल कांग्रेस के निरंकुश गुंडों ने क्रूरता से हमला किया, तोडफोड़ मचाई और आगजनी कर उश्रंखलता की पराकाष्ठा कर दी । और इस तरह अपना आतंकी चेहरा उजागर किया। सवाल है हम क्या चाहते हैं? स्वतंत्रता या उश्रंखलता,स्वानुशासन या अराजकता? इस परिप्रेक्ष्य में पश्चिम बंगाल के घटनाक्रम पर नज़र कराने से खुद को रोक नही पा रहा हूँ ।

नोटबंदी व भ्रष्टाचार उन्मूलन को लेकर पूरादेश जहाँ मोदीजी की नेकनीयत पर विश्वाश के साथ पूरे दिल से उनके साथ खड़ा है; वहीँ ऐसा देखकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री की कुंठित बौखलाहट उनके दल के वीभत्स प्रदर्शन के रूप में प्रकट हो रही है।

शायद ईर्ष्या एवं बौखलाहटवश वे खुद को असमंजस के ऐसे चौराहे पर खड़ी पा रही हैं, जहां विवेक शून्य होकर सही-गलत के निर्णय की स्थिती में वे हैं नहीं। अन्दर आग है मोदीजी और केंद्र सरकार के विरोध की; अन्दर भय है, अपने सांसदों के हज़ारों-करोड़ों के भ्रष्टाचार का भांडाफोड़ होने का भय है। केंद्र सरकार के आगमी बजट में सकारात्मक कल्याणकारी प्रभाव की संभावना का, और इसे लेकर खुद के नीचे की ज़मीन खिसकने का अंदेशा। ऐसे भय के साए में अपना सोचा न हो पाने पर; सनकी और अधीरता के आधीन व्यक्ति अधम हरकतों पर उतर आता है । ऐसा ही पश्चिम बंगाल में भी हो रहा है ।

वहां की मुख्यमंत्री को हजारों करोड़ों के चिटफंड घोटाले के मामले में टी एम सी सांसद सुदीप बन्दोपाध्याय की, सी बी आई द्वारा गिरफ़्तारी हजम नहीं हो रही । यदि हज़ारों करोड़ डकारे गये हैं तब सी बी आई हलक में से निकालने का प्रयास कर रही है, तो मुख्यमंत्रीजी को घबराहट क्यों ? कानून को अपना काम क्यों नहीं करने देना चाहती ?

मुख्यमंत्री कानून का रखवाला होता है, यदि वही कानूनों का मज़ाक बनाये तो आमजन के दुर्भाग्य का अंत कहाँ? बागड़ ही अगर खेत को खाने लग जाये तो खेत का विनाश
तय है।

गीता में कहा गया है:
यद्याचरति श्रेष्ठः, तत्त देवेत्तरो जन:।
सः यत्प्रमाणं कुरुते, लोकस्तदनुवर्तते ।

(ऊँचे पदासीन लोग जैसे आचरण करते हैं, आम लोग वैसे ही अनुसरण करते हैं।)

जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री विवेक खो रहीं हैं, उनके प्रलापों में केंद्र-सरकार, भाजपा के खिलाफ अनर्गल जहर उगला जा रहा है; तब उनके अनुयायी भाजपा कार्यालय पर, केंद्रीय मंत्री के आवास पर आक्रमण तोड़फोड़ करते हैं।
कार्यक्रम में आगजनी करते हैं, तो ऐसे कुकृत्यो को कोई भी आखिर कैसे न्योयोचित ठहराएगा? आमजन भी नहीं।पश्चिम बंगाल में धींगामुश्ती, गुंडई व अन्याय की पराकाष्ठा हो रही है। इससे आमजन भी भयभीत है।

समझना जरुरी है, कि जिसका स्वयं का व्यक्तित्व बौना है, वह दूसरों को ऊचाई कैसे देगा? जो खुद जोड़-तोड़ करता है, वह सत्य की बात कैसे करेगा! जो अन्याय का जनक है वह न्याय का मार्ग कैसे दिखा सकता है?

ऐसे में यदि पश्चिम बंगाल में आम जनमानस निराश है, तो इसमें अस्वाभाविक क्या है ?
पर भाजपा कार्यकर्ताओं का मनोबल ऐसे व्यवधानों से गिरने वाला नहीं। बल्कि मोदीजी की नेक नियत से प्रेरित, उनके अनुयायी भाजपाई सद्कर्म कीं राह पर निडर बढ़ रहे हैं। कारवां बढ़ रहा है। संघर्ष में पीठ दिखाकर पलायनवादी होना मोदीजी व उनके अनुयाइयों की तासीर में है ही नहीं।

पश्चिम बंगाल की आग से भाजपाइयों में संघर्ष की, प्रदेश के सदभावपूर्ण विकास की, जो चिंगारी उठी है, वहां के हर नागरिक के जेहन में वह ज़रूर फैलेगी और तय है भाजपा का परचम वहाँ लहराने से कोई रोक नहीं पाएगा।

By welcoming the ancient, welcome the new change.

पुरातन को अलविदा कर, नवीन बदलाव का स्वागत करें।

हमारे अन्दर नए उत्साह का संचार करते हुए,नए अंदाज़ में जीवन जीने के सन्देश के साथ आ रहे नववर्ष की सभी विश्वबंधुओं को शुभकामनाएँ। नववर्ष में आप सभी को समृद्धि, मन की शांति एवं आनंद की मनवांछित प्राप्ति होवे।

नववर्ष यानी पुरातन का समापन और नवींन बदलाव का आगमन। नवीन बदलाव हम ही लाते हैं, अतः हम सभी प्रायः नए वर्ष का स्वागत पूरे जोशो खरोश से करते हैं। इस दिन खासकर युवा वर्ग उमंग-उत्साह के सांतवें आसमान पर रमण करता है। इसी के आवेग में बदलाव के लिए अनेक संकल्प किये जाते हैं। पर व्यवहारिक धरातल पर अधिसंख्य जन इन्हें पूरा करने में सफल होते कम ही नज़र आते हैं। जब तक मन, वचन, कर्म से संकल्पों के प्रति एकाग्रता नहीं होगी, तब तक वे प्रामाणिक होंगे नहीं और हम सफल होंगे नहीं

हम धीरे धीरे उन्हें भूलने लगते हैं और तब वे औपचारिकता मात्र बनकर रह जाते हैं। ऐसे में बेहतर होगा हम थोड़ा गहन चिंतन, मनन पर उतरें। यह भी देखें कि 31 दिसम्बर और 1 जनवरी के दिनों को पाश्चात्य संस्कृति की तर्ज पर मनाना केवल धूम धड़ाका और बेतुकी धमाल बन कर ही न रह जाये।

हम उत्सवधर्मी, सहिष्णु, सभी संस्कृतियों का सम्मान करने वाले हैं। तो नववर्ष को उत्साह से ज़रूर मनावें पर दृढ़ संकल्पों के साथ इसे सार्थक बनाने के अपने प्रयासों को भी ढीला न करें।

नववर्ष के इस अवसर पर मैं यहाँ विषयांतर करते हुए थोडा अपनी संस्कृति की ओर भी आपकी नज़र चाहूँगा।

पिछले सप्ताह कनाडा से आये एक विद्वान् का कथन मेरे दिल को छू गया। उन्होंने कहा-भारतीय सभ्यता-संस्कृति इतनी समृद्ध और सार्वभौम है कि विश्वभर को वह सार्थक जीवन शैली सीखा सकती है। इसे तो पाश्चात्य या अन्य संस्कृतियों के अनुकरण की जरूरत ही कहाँ है? और इस कथन से प्रभावित में नववर्ष को लेकर कुछ इस तरह सोचने को विवश हुआ हूँ।

हमारे ऋषि मुनियों और महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने प्रतिपादित किया कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से दिन, मास, वर्ष, युगादि का प्रारम्भ हुआ। इसी तिथि को हम गुड़ीपडवा भी कहते हैं। हममें से ज़्यादातर लोग इस तिथि से हमारी भारतीय संस्कृति में नववर्ष का प्रारंभ होना जानते जरूर हैं, पर विडंबना है कि हम इसे मनाते कम ही हैं। जब कि यह तिथि पृकृति से तालमेल के साथ नववर्ष के इस विचार को सार्थक करती है: “नववर्ष यानी पुरातन का समापन, नए बदलाव का आगमन।”

यह तिथि वसंत के आगमन का समय है, जब वृक्ष -पौधे पुराने पत्ते त्यागते हैं और नए अंकुरित पल्लवित होते हैं। आम बोरा रहे, पलाश खिल रहे, वायु में सुगंध मादकता की ,मस्ती की अनुभूति हो रही है। पक्षियों का कलरव, कोयल की कूक, इन सभी से यह लगता है कि बड़े उत्सव की साजसज्जा है यह सब। तो फिर इस उत्सव में भी सम्मिलित होकर हमें अपनी संस्कृति -सभ्यता की धरोहर के रूप में गुड़ीपडवा के दिन भी नववर्ष का आगमन क्यों नहीं मनाना चाहिए?

ज्ञातव्य यह भी है कि १ जनवरी से नववर्ष मनाने की परिपाटी रोम के तानाशाह जुलियस सीज़र ने ईसा पूर्व ४५ वर्ष में की थी। अब इस सन्दर्भ में आप यह भी अवश्य विचारें कि एक तानाशाह की परिपाटी पर तो हम चल ही रहे हैं, तो फिर अपनी संस्कृति को समृद्ध करने वाली विरासत को भी क्यों न अपनाएं ?

Why Negativity?

नकारात्मकता क्यों ?

कितना आसान है किसी भी व्यक्ति के जीवनभर के त्याग,तपस्या ,कर्मठता को नजर अंदाज़ कर, उसकी आलोचना कर देना। खासकर राजनीति में, मात्र अपने स्वार्थी नजरिये से देखकर निराधार, अनर्गल छर्रे छोड़ देना कतई उपयुक्त नहीं कहा जा सकता।

राजनीति थर्मामीटर है देश और समाज की पूरी जिंदगी की असलियत दिखाने का। वहाँ जो होता है वह सब तरफ लोगों की जिंदगी में शुरू हो जाता है। वहां यदि बुरा, बेईमान या ग़ैर ज़िम्मेदार आदमी है, तो जीवन के सभी क्षेत्रों में बुरा आदमी सफल होने लगेगा। वहाँ ईमानदार है तो देश का बेईमान अवश्य भय खायेगा।

हमारे प्रधानमंत्री मोदीजी अगर देश को भ्रष्टाचार के मार्ग से हटाकर, इसे ईमानदारी के मार्ग पर लाने का प्रयास कर रहे हैं तो इस परिश्रम की प्रशंसा होना चाहिए। इस सुकर्म में दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर सबके सहयोग की अपेक्षा की जानी चाहिए, बजाय हर कदम पर नकारात्मक प्रतिक्रिया देने के।
उदाहरणस्वरूप मोदीजी यदि नोटबंदी करें, कालाधन रोकने हेतु सख्ती करें, अन्य देशों के साथ आपसी सहयोग से विकास करें, नोट बंदी के मार्ग में व्यवधान बने लोगों पर छापामारी करें या डिजिटलाइजेशन को अपनाएं।

वह कुछ भी करें, हमारे प्रतिपक्षी कहेंगे ये सब मत करो। विडम्बना यह है कि इन सद्कर्मों में भी उन्हें मोदीजी रिश्वत लेते दिखते हैं। स्वप्न में भी देश का आम आदमी ऐसा नहीं सोच सकता, पर हमारे धुरंधर प्रतिपक्षी ऐसा स्वप्न, दिन में भी देखने के आदि हैं। वे नकार ही से नकारात्मकता कायम रखना चाहते हैं।

नकारात्मकता सदा अकर्मण्यता लाती है जो देश के लिए घातक ही होती है। पलायनवाद एवं अकर्मण्यता ने ही हमारे देश में भ्रष्टाचार और अपराधवृत्ति को बढ़ाया है, फलस्वरूप देश का राष्ट्रीय चरित्र दागदार हुआ है, इसमें गिरावट देखी जा रही है।

मोदीजी इस गिरावट को थामने का प्रक्रम कर रहे हैं। भ्रष्टाचार और चरित्र संबंधी छिद्रों को सख्त कानून से बंद करने के लिए जूझ रहे हैं। इस तरह वे मौजूदा पीढ़ी के राष्ट्रीय चरित्र को सुधार सकें तो आने वाली पीढ़ी इन्हें देखकर ही राष्ट्रीय अनुशासन का अनुसरण स्वभावतः, सहज रूप से करेगी। बीस वर्ष में पीढ़ी बदल जाती है।

अतः हम पुराने विषाक्त वातावरण को विदा करें, नई उर्जा का स्वागत करें। नई पीढ़ी को सत्यम, शिवम्, सुन्दरम् की ओर गतिमान करें। मोदी जी की नज़र देशवासियों के खून में रचे-बसे ऐसे ही उज्ज्वल अनुशासन और राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण पर है, जो किसी भी राष्ट्र के विकास की पहली जरूरत है।

What will you take in the new year in advance? Think

क्या ले जायेंगे अग्रिम नव वर्ष में? …सोचें

वर्ष 2016 विदाई बेला में है, वर्ष 2017 क्षितिज पर उदय होने को आतुर है। नव वर्ष को लेकर हम भरपूर उत्साहित हैं। आगामी वर्ष हमारे लिए आनंददायी रहे, इसके लिए कम से कम एक बार वर्ष 2016 का सिंहावलोकन जरूर कर लेना चाहिए, ताकि हम बीते वर्ष की अपनी ताकत और अपनी कमजोरियों को समझें, तदनुसार नव वर्ष के संकल्प तय करें।

यहाँ यह समझना जरूरी है कि हमारा जीवन प्रतिध्वनि जैसा है, जैसी ध्वनि करेंगे, वैसी ही वापस आयेगी, जैसे कर्म करेंगे वैसे ही फल पाएंगे, यही प्रकृति का, कर्म का अकाट्य सिद्धांत है। इसका कुल इतना ही अर्थ है कि जो हम पाते हैं वह हमारा ही किया हुआ है।

हम ही अपना जीवन अर्जित करते हैं, जो बीज हम बोते हैं उन्ही की फसल हम काटते हैं। जैसी करनी जो करे तैसो ही फल पाय, यानी हम जिस हैसियत का जीवन जी रहे हैं वह हमारे मुताबिक है या नहीं, वह हमारे कर्मों पर आश्रित है।

हम जीवन केवल व्यक्तिगत आकाक्षाओं के लिए ही जी रहे हैं या कर्मों का विस्तार अन्य के हितों के लिये भी करते हैं इसका बहुत महत्व है।

यदि हम कुछ आदर्श और सिद्धांत जेहन में, हमारे कर्मों में उतारते हैं तो श्रेष्ठ कर्मों का माद्दा हममे आएगा। हम मानवता के संवाहक होंगे, हममे आदमियत बनी रहेगी, अन्यथा मानवीय गरिमा हममे गलने लगेगी।
तब हममे बैठा भगवान धूमिल होता चला जायेगा और जीवन में अंधकार व्यापेगा और तब जीवन में दुःख का आगमन होगा।

नव वर्ष में ऐंसा कतई नहीं चाहेंगे इसीलिए मेरा मानना है कि एक बार 2016 के कर्मों पर चिंतन जरूर करें, अपने लक्ष्य पर टिके रहें पर इसके परे भी सोचें।

जैसे अगर कोई रेलगाड़ी का एक्सीडेंट हो जाये, लोग कराह रहे हों तो डॉक्टर का यह कहना मुनासिब नहीं होगा कि हम सो रहे हैं ,हमें समय नहीं है। उन घायलों के लिए उसे एक रात जागना चाहिए, उसे अपनी जिम्मेदारी समझाना चाहिए, आगे का जीवन कहीं युँहीं व्यर्थ न हो जाये, इसके लिए यह जरूरी है कि हम कुछ आदर्शों का पालन करें, बल्कि जीवन में आपसी सहयोग और भाईचारे का व्यवहार जरूर करें।

जैसे उदाहरंणस्वरूप आपने एक दृष्टिबाधित दिव्यांग और पैर-बाधित दिव्यांग की कहानी जरूर पढ़ी होगी। दृष्टिबाधित ने चलकर, पैर-बाधित ने देखकर सारा काम आपसी सहयोग से पूरा कर लिया। हम और आप भी मिल जुल कर अगर कर्म कर पाते हैं तो सार्थक फल अवश्य मिलता है।

यह नियम सब पर लागू होता है,चाहे सरकार, संगठन, समाज, परिवार, हम, आप या अन्य कोई इकाई हो। आपसी सहयोग और भाईचारे से सबके हितार्थ कार्य करने से सबका हित सधेगा,हम सबका भला होगा।
तो अब आप अपने लक्ष्य के सन्दर्भ में विदा हो रहे वर्ष में किये अपने कर्मों पर नए सिरे से एक निगाह डालें, अपनी कमजोरियों को पहचानें, नए वर्ष में इन्हें दूर करते हुए अपनी ताकत के बल पर अपना संकल्प पूरा करने हेतु तन्मयता से जुट जाएँ। अपना भाव इस तरह का रखें :-

“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।”

और अंत में यह भी याद रखें कि भौतिक सुख व अन्य वस्तुएं कर्मों से भले मिल जाएँ, पर ज्यादा महत्वपूर्ण चीजें जैसे प्रेम, आराधना, आस्था, परमात्मा का सान्निध्य केवल कर्म से नहीं मिलता, ये सभी मिलते हैं भाव से, तो अपना भाव हरदम अच्छा रखें। शुद्ध रखना श्रेयस्कर होगा ।

What will you take in the new year in advance? Think

क्या ले जायेंगे अग्रिम नव वर्ष में? …सोचें

वर्ष 2016 विदाई बेला में है, वर्ष 2017 क्षितिज पर उदय होने को आतुर है। नव वर्ष को लेकर हम भरपूर उत्साहित हैं। आगामी वर्ष हमारे लिए आनंददायी रहे, इसके लिए कम से कम एक बार वर्ष 2016 का सिंहावलोकन जरूर कर लेना चाहिए, ताकि हम बीते वर्ष की अपनी ताकत और अपनी कमजोरियों को समझें, तदनुसार नव वर्ष के संकल्प तय करें।

यहाँ यह समझना जरूरी है कि हमारा जीवन प्रतिध्वनि जैसा है, जैसी ध्वनि करेंगे, वैसी ही वापस आयेगी, जैसे कर्म करेंगे वैसे ही फल पाएंगे, यही प्रकृति का, कर्म का अकाट्य सिद्धांत है। इसका कुल इतना ही अर्थ है कि जो हम पाते हैं वह हमारा ही किया हुआ है।

हम ही अपना जीवन अर्जित करते हैं, जो बीज हम बोते हैं उन्ही की फसल हम काटते हैं। जैसी करनी जो करे तैसो ही फल पाय, यानी हम जिस हैसियत का जीवन जी रहे हैं वह हमारे मुताबिक है या नहीं, वह हमारे कर्मों पर आश्रित है।

हम जीवन केवल व्यक्तिगत आकाक्षाओं के लिए ही जी रहे हैं या कर्मों का विस्तार अन्य के हितों के लिये भी करते हैं इसका बहुत महत्व है।

यदि हम कुछ आदर्श और सिद्धांत जेहन में, हमारे कर्मों में उतारते हैं तो श्रेष्ठ कर्मों का माद्दा हममे आएगा। हम मानवता के संवाहक होंगे, हममे आदमियत बनी रहेगी, अन्यथा मानवीय गरिमा हममे गलने लगेगी।
तब हममे बैठा भगवान धूमिल होता चला जायेगा और जीवन में अंधकार व्यापेगा और तब जीवन में दुःख का आगमन होगा।

नव वर्ष में ऐंसा कतई नहीं चाहेंगे इसीलिए मेरा मानना है कि एक बार 2016 के कर्मों पर चिंतन जरूर करें, अपने लक्ष्य पर टिके रहें पर इसके परे भी सोचें।

जैसे अगर कोई रेलगाड़ी का एक्सीडेंट हो जाये, लोग कराह रहे हों तो डॉक्टर का यह कहना मुनासिब नहीं होगा कि हम सो रहे हैं ,हमें समय नहीं है। उन घायलों के लिए उसे एक रात जागना चाहिए, उसे अपनी जिम्मेदारी समझाना चाहिए, आगे का जीवन कहीं युँहीं व्यर्थ न हो जाये, इसके लिए यह जरूरी है कि हम कुछ आदर्शों का पालन करें, बल्कि जीवन में आपसी सहयोग और भाईचारे का व्यवहार जरूर करें।

जैसे उदाहरंणस्वरूप आपने एक दृष्टिबाधित दिव्यांग और पैर-बाधित दिव्यांग की कहानी जरूर पढ़ी होगी। दृष्टिबाधित ने चलकर, पैर-बाधित ने देखकर सारा काम आपसी सहयोग से पूरा कर लिया। हम और आप भी मिल जुल कर अगर कर्म कर पाते हैं तो सार्थक फल अवश्य मिलता है।

यह नियम सब पर लागू होता है,चाहे सरकार, संगठन, समाज, परिवार, हम, आप या अन्य कोई इकाई हो। आपसी सहयोग और भाईचारे से सबके हितार्थ कार्य करने से सबका हित सधेगा,हम सबका भला होगा।
तो अब आप अपने लक्ष्य के सन्दर्भ में विदा हो रहे वर्ष में किये अपने कर्मों पर नए सिरे से एक निगाह डालें, अपनी कमजोरियों को पहचानें, नए वर्ष में इन्हें दूर करते हुए अपनी ताकत के बल पर अपना संकल्प पूरा करने हेतु तन्मयता से जुट जाएँ। अपना भाव इस तरह का रखें :-

“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।”

और अंत में यह भी याद रखें कि भौतिक सुख व अन्य वस्तुएं कर्मों से भले मिल जाएँ, पर ज्यादा महत्वपूर्ण चीजें जैसे प्रेम, आराधना, आस्था, परमात्मा का सान्निध्य केवल कर्म से नहीं मिलता, ये सभी मिलते हैं भाव से, तो अपना भाव हरदम अच्छा रखें। शुद्ध रखना श्रेयस्कर होगा ।

Check the integrity, Modi’s Pippalika efforts

समग्रता से परखें, मोदी जी के पिप्पलिका प्रयासों को

छोटे-छोटे काम करते चलो, एक दिन बुलंदी छूँ लोगे। हमारे प्रधानमंत्री जी, इस उक्ति का उपयुक्त आदर्श हैं, अपने सतत् प्रयासों से कामयाबी के मार्ग पर वे अग्रसर हैं।

टाइम पर्सन ऑफ़ द इयर के लिये हुए रीडर्स पोल में ओबामा, ट्रम्प जैसे दिग्गजों को पीछे छोड़ते हुए वे विजयी रहे, विश्वभर में इनकी साफसुथरी, ताकतवर छवि का प्रमाण निश्चित ही ये परिणाम माने जा रहे हैं,पर क्योंकि सरकार के प्रतिपक्षी अपने स्वार्थ का चश्मा लगाये हुए हैं अतः उन्हें सुपरिणाम नजर ही नहीं आते और अपने ही स्वार्थ में अंधे वे अवांछित धमाल मचाये रखना ही हितकर मान बैठे हैं।

अनेक प्रतिपक्षियों और गिरगिट नुमा मुख्यमन्त्री जी को प्रायः मनमाफिक सफलता नहीं मिल रही क्योंकि उनकी प्रवृत्ति कुछ इस तरह की होती है:-

एक बन्दर ने किस्मत से एक फल मुंह में लपक लिया। अप्रत्याशित ख़ुशी और अधीरता के अतिरेक में वह डाल-डाल पर उछल कूद करने लगा।
लक्ष्यहीन कूदाफान्दी में फल मुंह से छूट गया और बंदर जी हाथ मलते उसे देखते रह गए। सही ही कहा है- यदि आदर्श को दृढ़तापूर्वक न पकड़ा जाए तो विभिन्न घटनाक्रम में फल खो दिया
जाता है।

हमारे प्रधानमंत्रीजी के प्रयास बंदरनुमा नहीं ,चींटी जैसे हैं। चींटी धीरे धीरे अपने वांछित लक्ष्य की ओर बढ़ती है,सही तरीके से पदार्थ मुंह में लेकर अपने गंतव्य तक पंहुचती है और उचित समय पर फल का भरपूर सदुपयोग करती है।

मोदीजी का भी लक्ष्य स्पष्ट होता है। वे सतत् प्रयास से उसकी प्राप्ति में जुट जाते हैं। चींटी समान लक्ष्य पर पकड़ बनाते हैं और इच्छित परिणाम हासिल करने में सफल होते हैं। ऐसा ही तथ्य उनका भ्रष्टाचार व काले धन पर नियंत्रण के सन्दर्भ में प्रकट होने वाला है। उनकी योजनाओं को अँधेरे में हाथी को भिन्न अंगों में समझने जैसे न आंक कर ,प्रकाश में धीरज से समग्र रूप में समझना उपयुक्त होगा।

मोदीजी की दूरदृष्टि ,लक्ष्य की स्पष्टता और सुनियोजित प्रयासों को इस तरह समझ सकते हैं, सर्वप्रथम मोदीजी ने जनधन खाते खुलवाए ताकि अधिसंख्य देशवासी बैंक से जुड़ें। कालाधन घोषित कर इस अपराध से बचने का अवसर दिया गया फिर अकस्मात् नोट बंदी। नोट बंदी से उपजे क्षणिक व्यवधानों, असुविधाओं को भी मोदीजी सीढ़ियों में बदल रहे हैं। अब अधिकतम भुगतान व अन्य सरकारी-अर्द्धसरकारी कार्य ऑनलाइन कर रहे हैं ,ताकि भ्रष्टाचार और कालेधन के छिद्र और रास्ते बंद किये जा सकें।

ऐसे में जब सम्पूर्ण विश्व मोदीजी के प्रयासों को मान्यता दे रहा है तब हम देशवासी भी धैर्य ,विवेक से प्रतीक्षा करें, वांछित फल का स्वाद जरूर पाएंगे।


सत्य की एक बूंद, असत्य के पूरे सागर से ज्यादा शक्तिशाली होती है।

सत्य की एक बूंद, असत्य के पूरे सागर से ज्यादा शक्तिशाली होती है।

एक माली ने एक फलदार पौधा लगाया, उसे वह नियमित खाद पानी देने लगा। लेकिन एक बच्चा रोज़ मिटटी हटाकर देखता, पौधा बढ़ नहीं रहा, फल नहीं दे रहा।

माली ने कहा- इसे छेड़ो मत, धीरज से प्रतीक्षा करो, फल आएंगे।

बच्चा अहंकारी और जिद्दी था, बालहठ कर बीज को निकाल फेंकने लगा।

स्वार्थी, जिद्दी बच्चा माली के सद्कर्म क्या समझे! माली बीज की रक्षा के ज़रूरी उपाय में लग जाता है।

दो विरोधी बातें हैं:- बच्चे का नकारात्मक हठ, और माली का रचनात्मक सम्यक संकल्प। किसका साथ दिया जाए?

सम्यक संकल्प यानी जो करने योग्य है, वह करना। उसकी सफलता हेतु सब कुछ दांव पर लगाने का साहस रखना। हमारे प्रधानमंत्री जी का सम्यक संकल्प है, ‘काला धन पर प्रहार और आतंकी फंडिंग रोककर आतंक की जड़ को कुचलना’। अपना संकल्प पूरा करने के लिए उन्होंने नोटबंदी का पौधा लगाया है। हमारे विवेकशील देशवासी इससे फल प्राप्ति हेतु ज़रूरी धीरज, प्रतीक्षा और सहिष्णुता के साथ पसीना बहा रहे हैं क्योंकि उन्हें ज्ञात है कि-

“धीरे धीरे रेमना, धीरे सबकुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतू आये फल होय”

इधर दूसरी तरफ हमारी मंजिल की राह में प्रतिपक्षी अपने अहंकार, पूर्ण स्वार्थ और विवेकहीन, जिदवश कांटे बोने और गड्ढे खोदने जैसे नकारात्मक कर्म करते दिख रहे हैं। उन्हें स्मरण रहे, विगत सरकारें कालाधन और आतंकवाद के नियंत्रण संबंधी केवल विचार ही करती रही हैं अरसे तक। स्थिति ज्यों की त्यों बनाए रखते हुए, केवल लोगों को भरमाते रहे, किया कुछ नहीं। इससे जरुरी यह समझें कि हजारों मील चलने का विचार वर्षो करते रहने की अपेक्षा लक्ष्य की ओर सूझबूझ भरा एक कदम बढ़ा लेना ज्यादा मूल्यवान है। यह भी ख्याल रहे कि प्रकृति के आकर्षण का नियम और स्वयं ईश्वर भी सकारात्मक विचारों के साहसी कार्यों का ही संकल्प पूरा करते हैं, जैसे मोदीजी का संकल्प।

अपने लक्ष्य की राह में आ रही परेशानियों को दूर करते जा रहे मोदीजी के पीछे लोगों का कारवां बढ़ रहा है, क्योंकि देशवासी अप्रत्यक्ष लाभ के अलावा इन कुछ प्रत्यक्ष लाभों को भी स्पष्ट देख रहे हैं –

सी.आई.आई के मुताबिक १४ लाख करोड़ रु. के नोट बदले जाने हैं, पर २०– २५ फीसदी नोट दर से नही बदले जाएंगे। यानि लगभग ३.५ से ४ लाख करोड़ रु. सरकार को मिलेंगे।

इतनी बड़ी राशि का उपयोग इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार, लोन सस्ता करने आदि में होगा। इससे हम आमजन को ही सर्वाधिक लाभ होगा।

बाजार में आगे से काला धन घटेगा, नया नहीं बनेगा तब मकानों व अन्य उपयोगी वस्तुओं की कीमत जरुर घटेंगी।

नोटबंदी से सरकारी-गैरसरकारी स्तर पर डिजिटलाइजेशन बढेगा, इससे भ्रष्टाचार घटेगा। इससे कई सुविधए फलेंगी – फूलेंगी और कीमतें सिकुड़ने लगेंगी और टैक्स घटेंगे। आज लाइन में लगकर ईमानदार परेशान ज़रूर नज़र आ रहा है, पर यह पक्के से समझ लें कि 31 दिसम्बर के बाद ईमानदार हाइवे पर होगा और परेशानी के कांटे स्थायी रूप से बेईमानों की राह में होंगें।

ऐसे में आओ प्रधानमंत्री जी के साथ और हमारी राह में कांटे खड़े करने वाले और हम पर पत्थर फेकने वालें हताश प्रतिपक्षियों के नापाक मंसूबे नाकाम करें और उनके असली चेहरे सभी देशवासियों के सामने लाएं।

Better than all the world is our India

सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा

हम भारत वासियों को समरसता, धैर्य, जिवरता के गुण सांस्कृतिक विरासत के रूप में मिले है।
इसी कारण हाल ही के प्रमुख अख़बारों में नोट बंदी के संदर्भ में देशवासियों के सुझाव, उनके भाव और देश संवारने की उनकी दिल छु लेने वाली ललक देखने को मिली। जैसे किसी परिवार का मुखिया अपने परिवार के हित के लिए एक बार कोई निर्णय ले लेता है, तब फिर परिवार का हर सदस्य बिना कोई कुतर्क या असंतोष के उनकी नेक नियत पर विश्वास करता है। सारा परिवार संपूर्ण निष्ठा से उस निर्णय को वांछित परिणाम तक पहुँचाने में जुट जाता है, और उसे पूरा करके ही दम लेता है। वैसे ही हमारा पूरा देश एक घर है, और हम सभी देशवासी इस घर-परिवार के आत्मीय सदस्य है।

हमारे मुखिया प्रधानमंत्रीजी ने देशहित में मुद्रा व्यवस्था में बदलाव का निर्णय लिया है। उनके प्रति हम सबका विश्वासपूर्ण नजरिया है। हमारा ऐसा आपसी व्यवहार ही विश्व के सामने हमारा राष्ट्र के प्रति आत्मीय भाव प्रकट करने का जीवंत उदाहरण है।

पारिवारिक आत्मीयता और त्याग का भाव दर्शाने वाले कुछ सुझाव आए हैं, उन पर एक नजर:

विरेंद्रजी कमलियाजी ने लिखा– “जरूरत से ज्यादा रकम न निकालें, दूसरों का ध्यान रखें।” (त्याग भाव)

“किसानों की खड़ी फसलें सड़ रही हैं, नकद खरीदे सरकार” (सबका हित चिंतन)

“कालाधन ठिकाने लगाने वालों की शिकायत के लिये नम्बर हो” (चौकन्नी सजगता)

“रिटायर्ड बैंक कर्मियों और बैंकिंग छात्रों की मदद लें” (सुखद तथ्य है कि वे स्वैच्छा से सहयोग कर रहे हैं)

मोदीजी के मुरीद होकर कुछ नक्सली बोले- “नोट बंदी से विषमता घटेगी, हम भी फैंक देंगे बंदूकें” (ह्रदय परिवर्तन)

जब नेक अभियान में प्रधानमंत्रीजी के साथ कूद ही गये हैं, तो इसे सफल करके ही रहेंगे। देशवासियों का ऐसा जज्बा तो हम देख ही रहे हैं। इधर देशभर के बैंक कर्मियों की कर्तव्य परायणता, उनके प्रेरणाप्रद त्याग और मृदु व्यवहार पर भी एक नजर डालें। इससे निश्चित ही देश के प्रति हमारा भाव ज्यादा मिठास और प्रेमरस से भरापूरा हो जाएगा।

पुरे देश में बैंकिंग स्टाफ व सहयोगी प्रधानमंत्री जी की नोट बंदी योजना को, लक्ष्य तक सफलता पूर्वक ले जाने हेतु जी जान से लगे हुए हैं। अत्यंत सुखद, संतोष व सुकून देने वाली कर्तव्य परायणता, ये है हमारा असली भारत! सभी देशवासी अपने देश के विकास हेतु ह्रदय से जूझ रहे हैं। दृष्टी लक्ष्य पर और हर हाथ सरकार के साथ। किसी मधुर संगीत के साथ यह गाते नहीं थकते…

सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा, हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलिस्थान हमारा। जय हिन्द!