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Nadda ji

Terminated Prime Minister – Surgical Strike No. 2

शतावधानी प्रधानमंत्री जी – सर्जिकल स्ट्राइक नं . २

एक सज्जन थे रायचंद भाई| महात्मा गांधीजी के सहयोगी और सलाहकार, जिन्हें गांधीजी शतावधानी कहते थे| शतावधानी, यानि वह जो एक साथ सौ बातें सुनकर उन्हें याद रखे, उचित उत्तर दे, सलाह दे और हर मोर्चे पर चोकन्नेपन से एक्शन लेवे.

कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी की एक अरसे बाद हमारे देश को सौभाग्य से शतावधानी प्रधानमंत्री जी मिले हैं| मोर्चा कोई भी हो, सेना, डिजिटलइजेशन, भ्रष्टाचार नियंत्रण, विदेशी साख, आर्थिक ग्रोथ, या काले धन का ही मामला क्यों न हो, हर जगह प्रधानमंत्री जी की प्रभावी उपस्थिति महसूस की जा रही है|

फ़िलहाल 500 और 1000 के नोट बंदकर नए नोट की जो प्रक्रिया जारी है, इस पूरी कवायद को सर्जिकल स्ट्राइक नं 2 कहा जा रहा है| सच है, सेना द्वारा की गई सर्जिकल स्ट्राइक नं 1 भी देशहित से प्रेरित थी, और नोट में बदलाव की प्रकिया भी एक तीर से कई निशाने साधने वाली स्ट्राइक साबित होगी| ऐसी साहसिक, दूरदर्शी स्ट्राइक के लिये प्रधानमंत्री जी को देश नमन कर रहा है|

एक्सपर्ट भी प्राय: स्वीकार कर रहे हैं कि, आर्थिक क्षेत्र के शुद्धिकरण के लिये उठाए गए उक्त वांछित कदम में प्रधानमंत्री जी का आत्मविश्वास, नैतिक साहस, उनकी दूरदृष्टी और प्रबंधकीय कौशल नजर आता है | यह कदम कालेधन की समस्या के समाधान में सहयोग के अलावा आतंकियों की फंडिंग, बढ़ती महंगाई आदि के नियंत्रण में भी प्रभावी रहेगा।

इस निर्णय से देश की अर्थव्यवस्था के साथ आम लोगों को क्षणिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है, पर इस के दूरगामी परिणाम अवश्य सुखद ही होंगे| इस योजना को गहनता से देखें तो आपको प्रधानमंत्रीजी की विगत लम्बे समय से चलने वाली अतिगोपनीय भरी रणनीतिक तैयारी और इसी के साथ शासन पर उनका उपयुक्त नियंत्रण नजर आएगा|

रही बात कुछ प्रतिपक्षियों की, उनकी हताशा दर्शाने वाली निराशाजनक प्रतिक्रियाओं कि, तो इस मामले में उनकी सोच इस तरीके से समझें |

एक हंस समुद्र से आकर एक कुएं की मुंडेर पर बैठा |
कुएं के भीतर से एक मेंढक ने पूछा- भाई कहां से आ रहे हो?
बहुत दूर से – हंस ने कहा|
मेंढक ने कुएं में दो-चार छलांग लगाकर पूछा– इतनी दूर से?
हंस: नहीं, समुद्र पार से|
मेंढक ने कुएं में ही तीन–चार चक्कर लगाए और बोला– इतनी दूर से|
हंस- हंसा, फिर बोला, तुम कुएं में रहकर समुद्र पार का अंदाजा नहीं लगा सकते|
मेंढक झुंझलाकर बोला– ऐसी भी क्या दुरी होगी, झूठ की भी कोई सीमा होती है|

“Now regrets when the bird gets thrived!”

“अब पछताय होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत !”

देश में आर्मी का वन रैंक वन पेंशन का मुद्दा लगभग सुलझ चूका है। इस मुद्दे को लेकर राहुल गाँधी व अन्यों के राजनीति प्रेरित, घड़ियाली आंसू के साथ मौजूदा छटपटाहट देश देख रहा है।

इस संदर्भ में रविन्द्र नाथ टैगोर की कहानी मैं आपको सुनाना चाहूँगा।

एक भिखारी सुबह अपना झोला लिये , इसमें थोड़े से चावल डालकर निकला। कुछ ही क्षणों में राजा की सवारी आई। भीखारी के पास ही राजा रुका, उसने अपनी झोली भीखारी के समक्ष फैलाई। भीखारी ने कठोर मन से मात्र एक दाना चावल का उसमें डाला। राज्य पर आए संकट को टालने हेतु, अपने गुरु के बताए अनुसार राजा ने भिक्षा लेने का उपक्रम पूरा किया। इस सब के बाद जब भीखारी ने घर आकर झोला उंडेला तो उसे आश्चर्यजनक रूप से उसमे अन्न का एक दाना स्वर्ण का मिला। एक दाना जो उसने राजा को दिया था, वही स्वर्णिम हो गया। अत: पछताया, काश ज्यादा दाने दिये होते….. अब क्या अवसर बीत गया।

राहुल गाँधी भी अवसर चूक गए। वर्ष 2008- 2009 में मनमोहन जी की यूपीए सरकार ने आर्मी फ़ोर्सेस और वेटरंस को कितना हड़काया, हतोत्साहित किया था, वो जरा याद करें। उक्त वर्ष में छठा पैय कमीशन लाया गया। तब यूपीए सरकार, सेना के रेंक और पे ग्रेड को भारी गिरावट के साथ नीचे ले आई थी। इससे आहत सेना ओर वेटरंस तिलमिला उठे| उनके आत्म सम्मान व स्वाभिमान को करारी ठेस लगी।

माननीय मोदीजी ने अपनी सरकार के आते ही वन रेंक वन पेंशन के लिए जुलाई 2015 में आवश्यक राशि का आवंटन कर दिया। उनके इमानदार प्रयासों से आज यह योजना लागू है।

अब मैं वेटरंस रामकिशन ग्रेवाल की आत्महत्या पर गहन दिली दुःख व्यक्त करते हुए गरमाए मौजूदा मुद्दे पर भी आइना दिखाना चाहूँगा। स्व.श्री ग्रेवाल के परिवार को सरकार असहाय नही पड़ने देने वाली है। संपूर्ण सहानुभूति, संवेदना के साथ उनके हित में जो करना सर्वोतम होगा वही सरकार करेगी।

वर्तमान सरकार और मोदी जी के विकास कार्यो में भी व्यवधान आ रहे हैं, वे धीरज धारण किये है। अगर राहुल गाँधी और अरविन्द केजरीवाल अवरोध पैदा करने में पारंगत है, तो मोदी जी भी अवरोधों को सीढ़िया बनाना अच्छे से जानते है।

What justice do terror?

आतंक को क्या न्याय ?

गांधीजी ने कहा है – ‘‘ प्रत्येक वस्तु (या घटना) को कम से कम सात दृष्टि से देखा जा सकता है। और उस उस दृष्टि से वह वस्तु सच नजर आ सकती है। पर सब दृष्टियाँ एक ही समय और एक ही अवसर पर कभी सच नहीं होती।’’ इसी के साथ यह भी कहा जा सकता है कि घटना के वक्त जो सक्रिय उससे जुड़ा हो, जिसने उसकी अनुभूति की हो, वह सही होता है। जैसे आम खा लेने वाला उसके बारे में प्रामाणिकता से तथ्य कहता है।

मेरे व्यक्तिगत मतानुसार किसी भी घटना की सम्पूर्ण स्थिति को धैर्यपूर्वक, विवेक से समझने की जरुरत है। कारण कि व्यक्ति-व्यक्ति के प्रतीक और सोच समझ में फर्क है। कुछ केवल स्थूलता से स्थिति को बाह्य रुप में देखकर मत दे देते हैं, जो प्रायः भ्रामक होते हैं। जबकि संपूर्ण घटना के सच को सूक्ष्म दृष्टि से देखना, समझना जरुरी है।

जब अन्याय, अत्याचार, हिंसा व्यक्ति के स्वभाव का अंग बन जाते हैं, तो वह अनीति, अत्याचार उतने सहज भाव से करता हैं, जैसे कसाई नितांत ठंडेपन से कत्ल करता है। ऐसे पतितों का हिंसा के प्रति प्रेम हो जाता है, और उन्हें हिंसा में पाप की गंध नहीं आती। वे केवल हिंसा व अन्याय के मार्ग पर चल कर मनमानी पूर्वक सुख लेना चाहते हैं। यह चाहत उन्हें संवेदनहीन कर देती है। यानी उनका निषेधात्मक, नकारात्मक आचरण दूसरे मनुष्य को दुख देकर खुश होता है। ऐसे मनुष्य को हम क्या कहेंगे? राक्षस, आततायी !

हमारा मानव समाज और विवेकशील नागरिक ऐसे निरंकुश आतताइयों से अवश्य अपनी सुरक्षा चाहेगा। तब हमारा शासन-प्रशासन, यदि उचित सुरक्षा न दे पाए तो यह समाज के प्रति घोर अन्याय होगा। ऐसे में अपने समक्ष अकस्मात् आ खड़ी हुई परिस्थिति में न्यूनतम नुकसान की कीमत पर विध्वंस नियमन के जो त्वरित उपाय शासन कर सकता है, विवेक से वही करेगा, और करना ही चाहिये। ऐसे में, उस पर बिना बारीक जानकारी और समझ के दोषारोपण कर देना समझदारी तो नहीं ही कही जाएगी।

पुनष्च:- बरनि न जाई अनीति घोर निसाचर जो करहिं।
हिंसा पर अति प्रीति तिन्ह के पापहि कवनि मिति ।।

(राक्षस जैसे लोग जो घोर अनीति करते हैं उनके पापों का क्या ठिकाना? उनके अत्याचारों का क्या अंत ? ऐसे पापियों का क्या किया जाए?)

The second name to destroy the evils is Diwali.

बुराइयों को मिटाने का दूसरा नाम दिवाली है।

प्रकाश पर्व दिवाली पर उल्लास, आनंद और उत्साह के उजियारे में नहाए हम स्वयं को ऊर्जा से भरे पूरे पा रहे हैं।
इस पर्व पर न केवल हमारा देश प्रकाशमान है, अपितु इसका उजियारा विश्व को आलोकित करता सा लग रहा है। सिंगापुर जैसे कई देशों के साथ अमेरिका और फिर संयुक्त राष्ट्र में दिवाली मनाई गई। ऐसा पहली बार है जब विश्व के इस प्रमुख संगठन ने अपने मुख्यालय पर हैप्पी दिवाली का संदेश भी थ्रीडी लाइटिंग से, दीये के साथ दिखाया और यह त्यौहार मनाया। विश्व की प्रमुख संस्था द्वारा प्रकट यह भाव निश्चित ही हमारे देश के प्रति विश्व के बदलते नजरिये और उसकी हमारे प्रति बढ़ती रूचि का परिचायक है। दूसरी तरफ हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने दिवाली पर अपने मन के जो व्यवहारिक भाव प्रकट किये हैं, उन पर भी यदि चिंतन व अमल किया जाऐ तो देश में वांछित परिवर्तन अवश्य संभव है।

बुराइयों को मिटाने का दूसरा नाम दिवाली है। दिवाली पर हम आपस में मेलजोल करते हैं। इससे हृदय की गांठें खुल जाती हैं, सरलता आती है, आपसी प्रेम बढ़ता है और प्रेम में ही ईश्वर है। जहां प्रेम है वहां त्याग अवश्य होगा और जहां ये दोनों हैं, वहां बुराई के लिये कोई स्थान नहीं.. अब जरा ज्यादा गहराई में उतर कर अन्य अर्थ का मोती ढूंढ़ें। जैसे, यदि प्रेम पैदा करना है, मन की मलिनता दूर करनी है तो सर्वप्रथम पहल खुद से शुरू करनी होगी। यानी अपने भीतर प्रकाश करना होगा। तात्पर्य यह कि आत्मज्ञान प्राप्त करना होगा।

जन जीवन में उत्सव लाने का अवसर है दिवाली। यहां मुझे दक्षिणी राजस्थान के गढ़ी जैसे कुछ कस्बों की एक परंपरा याद आ रही है। वहां दिवाली वाली रात में सुबह चार पांच बजे उठकर बच्चे-युवाओं, बड़े दीपकनुमा मिट्टी का बर्तन, जिसके नीचे पकड़ने का छोटा सा सीधा हैंडल होता है, उसे अपने हाथ में लेते है। उसमें तेल-बाती रखते है । एक बच्चा अपने दीये को जलाता है, उससे दूसरा जलाता है, आपस में सभी अपने-अपने दीये जला लेते हैं। इन्हें लेकर कुछ गीत गाते हुए अपने दोस्तों, परिचितों या अपरिचितों के यहां जाते है। वहां घर के बड़े लोग उनके दीयों में तेल डालते हैं। जिससे दीये सतत् जलते हैं। कोई, कोई बच्चों को सिक्के भी देते हैं।

इस परंपरा का परिणाम उत्सव का असली तात्पर्य स्पष्ट करने वाला है। सर्वप्रथम अपना दीया जलाओ, ज्ञान का प्रकाश करो, फिर अन्यों को प्रकाशमान बनाने में सहयोग करो। बड़े लोग इनके ज्ञान और सहभाव को चैतन्य रखने में सहयोग करते हैं। इस प्रक्रिया में संबंधित परिवारों में आपसी घनिष्टता बढ़ती है।

दिवाली एक स्वच्छता अभियान है। सही भी है। दिवाली पर अपने घरों की, गलियों और शहर की सफाई पूरी शिद्दत से की जाती है। जरूरत है इसअभियान और सफाई के भाव को वर्ष-भर जारी रखने की। “स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है- कोई देश महान इसलिये नहीं होता है कि वहां की संसद ने यह या वह बिल पास कर दिया है। वह महान होता है श्रेष्ठ, महान नागरिकों और उनके उच्च राष्ट्रीय चरित्र के कारण।“तो हमें भी दिवाली और हमारे प्रधानमंत्री जी के मन-भाव से प्रेरित होकर, बुराईयां दूर करने के संकल्प को, सौहार्द्रपूर्ण सौमनस्य के भाव को और स्वच्छता अभियान सभी को हमारे राष्ट्रीय चरित्र के केन्द्र में लाकर देश को महान बनाए रखना चाहिये।

Vishv bandhutv ka parv deepaavalee

बंदनवार हार फूल से सजा संवरा हर घर,
बच्चे, जवान, बूढ़े सभी सजे धजे सुन्दर स्वरुप में उल्लसित,प्रसन्न,
रामजी, सीताजी, लक्ष्मण जी के दर्शन को सभी आकुल-व्याकुल, अधीर-आतुर।

सबका मनोरथ पूरा करने रामजी ने न केवल सबको दर्शन दिए अपितु आलौकिक ऐश्वर्य प्रकट कर जितने लोग उतने स्वरुप बनाए और सबके गले लगे। सबको अपने स्नेह से नहला कर कृतार्थ कर दिया और अपना बिरद, अपनी सहज सरलता के भी दर्शन करा दिए। अवसर था कार्तिक माह की अमावस्या का। वह दिन जब रामजी, सीताजी और लक्ष्मणजी चौदह वर्ष के वनवास के बाद अपनी अयोध्या नगरी में लौटे थे। उनके आगमन और रामजी के राज्यारोहण के अवसर को लेकर असीम प्रसन्नता में डूबे अयोध्या वासियों ने अपने घरों, गलियों और सम्पूर्ण नगरी को दीपमालाओं से जगमग कर दिया। और तब से अबतक हमारी यह ससमृद्ध धार्मिक-सांस्कृतिक परंपरा हमारे रक्त और संस्कार में रची बसी हुई है। अतः आज भी हम कार्तिक मास की उस शुभ अमावस्या के उपलक्ष्य में दिवाली का त्यौहार उसी उल्लास, प्रेम व भक्तिभाव से सुमधुर मिष्टान, जगमग दीपों और आतिशबाजी के साथ मानते है।

दीपावली के इस पावन अवसर पर सभी विश्व बंधुओं को बधाई, शुभकमनाएं। ज़रूरत है हम सहज-प्रेम-पूर्वक, अहंकार रहित विनम्रता से गणेशजी, लक्ष्मी-नारायणजी का आह्वान करें, पूजन करें। ईश्वर ज़रूर हमारे मनोनुकूल कृपा करेंगे। सतरंगी संस्कृति में रंग हमारे देश की विशेषता है, अनेकता में एकता। इसी के अनुकूल हमारे जैन बंधू और सिख भाई भी अपनी परंपरा को जोड़कर सबके साथ दिवाली मानते है। इनकी मान्यताएं दृष्टव्य है।

चौबीसवे तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी का निर्वाण कार्तिक मास की अमावस्या को हुआ। उनके प्रमुख शिष्य गौतम स्वामीजी को इसका दुःख हुआ, पर अगले ही क्षण उन्हें सम्यक ज्ञान प्राप्त हुआ। तब सबने मिलकर इस रात को दियें जलाकर रोशनदार कर दिया। तभी से महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस पर वे दिवाली मानते है।

सिक्खों के छठे गुरु हर गोबिंद साहीब को मुग़ल शहंशाह जहाँगीर ने ग्वालियर के किले में कैद कर लिया था। बाबा बुढाजी के प्रयास से साईं मिया मिरजी ने गुरूजी को छुडाने का आदेश प्राप्त किया। गुरूजी ने अपनी मुक्ति से अन्य 52 कैदी राजाओं को भी अपने साथ मुक्त कराया। जब गुरूजी अमृतसर पहुँचे तब सभी ने दिए जलाकर उनका स्वागत किया। श्री हरमिंदर साहिब में भी दिये जलाए गए। वह दिन कार्तिक मास की अमावस्या दिवाली का था। इस दिन को दिवाली त्यौहार के रूप में जोश, उल्लास, प्रेम से मनाया जाता है।

उल्लेखनीय है, एकसूत्र से बंधे हम गणेशजी, लक्ष्मीजी, माताजी की पूजा करते हैं, मिलजुल कर आनंद से दिवाली मानते हैं। हम उस सितार की तरह है जिसमे अलग अलग सुर के तार है, पर संतुलित अनुशासित तरीके से बजकर वह मधुर संगीत देती है। हम भी समता-रमरसता से मिलझुलकर मधुर जीवन संगीत का आनंद लेते हैं, और हमे अपना देश अपनी मातृभूमि स्वर्ग से भी ज्यादा सुन्दर लगती है। श्रीरामजी ने भी हमे यही सिखाया है। लंका विजय के अवसर पर उन्होंने अपने भाव लक्ष्मीजी के समक्ष प्रकट किए थे :-

अपि स्वर्णमय लंका न में रोचते लक्ष्मण।
जननि जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।।

( हे लक्ष्मण मुझे स्वर्ण लंका भी नहीं भाती है, अपनी मातृभूमि ही स्वर्ग से बढ़कर लगती है ।)

Modern Chanakya – Amit Shah

शतरंज के माहिर खिलाड़ी अमित शाह को चुनावी बाजी पलटने में भी महारत हासिल है। इसी कारण भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष बनने पर उन्हें आधुनिक चाणक्य बताया गया। 50 साल से कम आयु के अमित शाह के अध्यक्ष बनने पर किसी को कोई हैरानी भी नहीं हुई।

विपक्षी दलों को जरूर झटका लगा, क्योंकि अमित शाह तमाम साजिशों के बावजूद उनकी हर शह को मात देते रहे हैं। फर्जी मुकदमों में फंसाकर उन्हें जेल भिजवाया एवं गुजरात से बाहर भेजा गया। सच को आंच नहीं में विश्वास रखने वाले अमित शाह ने तमाम सियासी साजिशों का पर्दाफाश करते हुए देश की राजनीति में नया इतिहास रचा है।

आने वाले दिनों में उनकी चुनावी रणनीति के और भी नए कमाल देखने को मिलेंगे। जिस उत्तर प्रदेश में भाजपा 2002 के बाद तीसरे पायदान पर खड़ी थी, आज अव्वल है। उत्तर प्रदेश में भाजपा के मुकाबले खड़े सभी दल अमित शाह की रणनीति के कारण लड़खड़ाने लगे हैं। यही कारण है उन पर लगातार सियासी हमले हो रहे हैं।

चुनाव में “जय हो-विजय हो” यही उनकी रणनीति रहती है। 1989 से 42 चुनावों में लगातार जय पाने वाले अमित शाह को ऐसे ही चाणक्य नहीं कहा जा जाता है। अध्ययन करने के शौकीन अमित शाह ने 17 साल का पूरा होने से पहले ही चाणक्य का पूरा इतिहास पढ़ लिया था।

वीर सावरकर के जीवन से भी उन्होंने बहुत प्रेरणा ली। उनके कक्ष में चाणक्य और वीर सावरकर के चित्र लगे हुए हैं। व्यक्ति की क्षमता पहचानने में भी उन्हें महारत हासिल है। कौन व्यक्ति क्या कर सकता है, कैसे कर सकता है और उससे क्या कराया जा सकता है, यह उनकी बड़ी खासियत है। इन्ही कारणों के कारण अमित शाह विरोधियों पर भारी पड़ते रहे हैं।

इस साल 22 अक्टूबर को अमित जी 52 साल के हो रहे हैं। भाजपा में सबसे कम आयु के अध्यक्ष बने अमित भाई के नेतृत्व में पार्टी को दुनिया में सबसे बड़े राजनीतिक दल बनने का अवसर मिला। आज भाजपा के देशभर में 11 करोड़ सदस्य हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत यह है, कि वे चुनावों के लिए बहुत पहले से उसी तरह तैयारी करते हैं, जैसे कोई मेधावी और मेहनती छात्र लगातार पढ़ाई करते हैं।

अक्सर यह देखा जाता है कि ज्यादातर विद्यार्थी परीक्षा आने पर पढ़ाई करते हैं। उसी तरह हमारे देश में राजनीतिक दल चुनाव के समय तेजी से सक्रिय होते हैं। अमित भाई इस मामले में एकदम अलग है। वे कहते हैं

“हम चुनाव के लिए राजनीति नहीं कर रहे हैं।
हम जनता की सेवा के लिए राजनीति में आए हैं।”

सेवा का चुनावों से कोई लेना-देना नहीं है। लगातार जनता के बीच जाइये, लगातार कार्यकर्ताओं से संपर्क में रहिये। लगातार संवाद करते रहिये। लगातार सक्रिय रहेंगे तो चुनाव के समय भी बहुत मारामारी नहीं करनी पड़ेगी।

समाज के कमजोर तबकों को आगे बढ़ाने और उन्हें बराबरी का दर्जा दिलाने के संस्कार, अमित जी को बचपन से ही मिले हैं। सम्पन्न कारोबारी अनिलचंद्र शाह के परिवार में जन्में अमित भाई जब छठीं कक्षा के विद्यार्थी तो ऐसा उदाहरण पेश किया, जिसे उनके गांव मानसा के लोग आज भी याद करते हैं।

उनके विद्यालय में सवर्णों और दलितों के लिए पानी की अलग-अलग टंकी थी।
दलितों के पानी की टंकी तोड़कर उन्होंने कहा कि, सब एक ही टंकी से पानी पिएंगे।
गांव के लोगों ने विरोध किया, तो उनके दादा ने कहा कि,
बच्चे ने सही किया और ऐसे अच्छे संस्कारों को बढ़ावा मिलना चाहिए।

अमित जी की माताजी बहुत ही धार्मिक और दृढ़ इच्छा वाली थीं,उन्होने ही अमित जी में पढ़ने की रूचि पैदा की। अपनी 17 वर्ष की आयु में ही उन्होंने चाणक्य, स्वामी विवेकानंद व लेनिन को पढ़ लिया था। बहुत कम लोगों को मालुम है कि, अमित शाह जी की लाईब्रेरी बहुत ही उच्च कोटि की किताबों का संग्रह है। उन्होंने इस लाईब्रेरी की संग्रहित 90 प्रतिशत किताबों का अध्ययन किया है। यह सब उनकी मां के अनुशासन प्रिय होने का नतीजा था कि आज अमित शाह जी की पहचान एक सामाजिक, धार्मिक और आक्रामक नेता के रूप में हुई है।

नकी राजनीतिक कुशलता के कारण ही उत्तर प्रदेश में भाजपा को 80 लोकसभा सीटों में से 71 सीटों पर कामयाबी मिली। दो सीटों पर हमारे सहयोगी अपना-दल के उम्मीदवार जीते। लोकसभा चुनाव से पहल जब उन्हें महासचिव बनाकर उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था, तब भाजपा के तमाम नेता भी चौंक गए थे, कि नरेंद्र मोदी का मिशन 273 कैसे पूरा होगा।

लोकसभा चुनाव में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जातिगत राजनीति के कारण भाजपा को ज्यादा सीटें मिलने की संभावना नहीं दिखाई दे रही थी। कारण भी थे कि 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को केवल 10 सीटों पर विजय मिली थी। विधानसभा चुनावों में भाजपा 2002, 2007 और 2012 लगातार पिछड़ती जा रही थी।

ऐसे में अमित शाह को उत्तर प्रदेश भेजने के फैसले पर हैरानी भी थी। यह भी माना जा रहा था कि गुटों में बंटे भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओ को कैसे एकजुट करेंगे। अपनी चुनावी रणनीति के तहत अमित शाह ने सभी को अबकी बार-मोदी सरकार के नारे के साथ जोड़ दिया।

इसके लिए उन्होंने कुछ बहुत बड़े फैसले भी किए। जाति के नाम पर राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों की पूरी रणनीति को उन्होंने लोकसभा चुनाव में जमकर शिकस्त दी। सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार महज पांच सीटों पर जीत पाए।

सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव चुनाव में पराजय की संभावना के कारण दो सीटों पर लड़े। लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद तो यह भी कहा गया कि अगर उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार नहीं होती, तो शायद उसके पांच सदस्य भी नहीं जीत पाते। जीतने वालों में खुद मुलायम सिंहए उनकी बहू और भतीजे हैं।

लोकसभा चुनाव से पहले मिशन 273 को लेकर भी भाजपा के नेता आश्वस्त नहीं थे। यह भी चर्चा होती थी कि उत्तर प्रदेश ज्यादा से ज्यादा सीटें कैसे सीटें आएंगी। 32 साल से साथ काम कर रहे नरेंद्र मोदी और अमित शाह को पूरा भरोसा था कि उत्तर प्रदेश ही इस मिशन को पूरा करेगा और किया। अमित जी ने भाजपा के शिखर पुरुष अटल विहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के चुनावो में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रहे नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके विरोधियों ने जमकर हमले बोले। मोदी जी के विशाल व्यक्तित्व के कारण विरोधी तमाम साजिशों में फंसाने नाकाम रहे। मोदीजी को को साजिशों में फंसाने में नाकाम रहने पर उनके नजदीकी अमित शाह को फर्जी मुठभेड़ मामले में फंसा दिया गया।

यू.पी.ए. सरकार में कांग्रेसी नेताओं के इशारे पर उन्हें फंसाया गया। जेल भेजा गया और 90 दिन बाद जमानत पर रिहा किया गया। निर्दोष साबित होने पर पहले हाई कोर्ट ने और फिर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है। 2015 में विशेष सीबीआई अदालत ने अमित भाई को सभी आरोपों से इस कथन के साथ मुक्त कर दिया कि यह केस राजनीति से प्रेरित था।

इतना ही नहीं सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में उनकी कोई भूमिका न होने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट में फिर चुनौती दी गई। सोहराबुद्दीन केस में क्लीनचिट के खिलाफ यह याचिका दाखिल की गई थी। सुप्रीम कोर्ट का यह कहना बहुत मायने रखता है, कि इस केस में उन्हें बार-बार आरोपमुक्त किया गया, क्या उनके खिलाफ बार-बार कानूनी कार्यवाही की जा सकती है।

इस समय देश के नौ राज्यों गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गोवा, हरियाणा, महाराष्ट्र असम और झारखंड में भाजपा की सरकारें हैं। आंध्र प्रदेशए नगालैंडए पंजाब और जम्मू.कश्मीर में सहयोगी दलों के साथ भाजपा सरकार में शामिल है। अरुणाचल प्रदेश में भी हाल ही में भाजपा सरकार में शामिल हुई है। अमित भाई के नेतृत्व में झारखंड, हरियाणा, महाराष्ट्र और असम में भाजपा की सरकार बनी।

हरियाणा में जहां भाजपा को केवल शहरी लोगों की पार्टी बताया जाता था। भाजपा ने ज्यादातर चुनाव तालमेल से ही लड़े थे, वहां पार्टी ने अकेले चुनाव लड़कर सरकार बनवाने में कामयाबी हासिल की। यह मेरा सौभाग्य है कि अमित भाई ने मुझे हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान जिम्मेदारी सौंपी। उनके नेतृत्व में मुझे बहुत कुछ नया सीखने को मिला।

महाराष्ट्र में भी हमेशा शिवसेना को तरजीह दी जाती थी। वहां भी शिवसेना की तमाम धमकियों के बावजूद भाजपा ने अपना मुख्यमंत्री बनवाने में कामयाबी हासिल की। असम जैसे राज्य में तो भाजपा की सरकार बनाना वाकई चमत्कार है। अगले साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और गोवा में विधानसभा चुनाव होंगे। उत्तर प्रदेश में तो अमित भाई ने कमाल करके सभी राजनीतिक दलों के खेल बिगाड़ दिए।

अपनी खाट यात्रा के दौरान भाजपा पर हमला बोलने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की पार्टी से तो छोड़ने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। समाजवादी पार्टी में भी जमकर रार मची हुई है। बहुजन समाज पार्टी के नेता भी पार्टी छोड़ रहे हैं। छोटे.मोटे दलों को तो कोई सहारा ही नहीं मिल रहा है।

Global Investor Summit, Indore 2016

इंदौर नगर में आयोजित हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट,निसंदेह मध्य प्रदेश की प्रगति और इसको ब्रांड स्वरुप में खड़ा करने की महत्वकांक्षी औधोगिक, वणिज्यिक गतिविधि थी। लेकिन मैंने इसकी नीव में हमारे प्रधानमंत्री जी की प्रेरणा व शिवराजसिंह जी की कुशल समर्पित नेतृत्व की ताकत भी महसूस की।

ऐसे में यहाँ मुझे महान आविष्कारक एडिसन का एक प्रसंग याद आ रहा है। एडिसन की पत्नी ने उनसे कहा- आप सतत कार्य से (प्रयोगशाला में) थक गए हैं। अब कुछ समय आप अपने मनपसंद स्थान पर जाओ, आनंद से कुछ समय वहीँ बिताओ। एडिसन ने कहा- बिलकुल ठीक, ऐसा ही होगा, और उनकी पत्नी की आश्चर्य का ठिकाना ना रहा जब उसने देखा कि एडिसन तुरंत अपनी प्रयोगशाला में चले गए।

हमारे प्रधानमंत्री जी और शिवराज सिंह जी की भी यही मानसिकता है। समर्पणभाव से अथक कर्तव्य कर्म करते हुए मानवसेवा (आमजन की) से आनंदित होना। यही तो कर्मयोग है, साधना है। यथा संभव जन मानस के हितों को ध्यान में रख अपनी नीतियां बनाना और नैतिकता के आधार पर उन्हें क्रियान्वित करना।

इस तर्ज़ पर कार्य करने वाले देश, प्रदेश, संगठन की विश्वसनीयता निश्चित ही प्रगाढ़-प्रबल होती है और इसी के बल पर निवेश, निवेशकर्ता आकर्षित होते हैं। कौन लोग, देश या निवेशकर्ता ऐसे होंगे जो ऐसों से औधोगिक, व्यापारिक सम्बन्ध बनाना चाहेंगे जिनकी ईमानदारी की ख्याति अच्छी ना हो। यानी निवेश की पहली शर्त विश्वसनीयता है। और मोदी जी व शिवराजसिंह जी की साफ़ छवि के कारण ही आज मेक इन इंडिया विद मध्य प्रदेश के आव्हान पर लगभग 2000 देशी-विदेशी प्रतिनिधियों के समिट में शिरकत करने की संभावना बनी है।

दूसरे क्रम पर अधोसंरचना, बिजली, पानी, उद्योग स्थापना हेतु फ्रेंडली व्यवस्था व परिवेश जरुरी है। ऐसी सभी परिपूर्णताओं के कारण ही यूके, कोरिया, जापान, युएई, सिंगापुर जैसे उन्नत औद्योगिक देश समिट में शिरकत कर रहे हैं, ज्ञातव्य है। मध्य प्रदेश Ease Of Doing business के मामले में देश के शीर्ष पांच राज्यों में गिना जा रहा। इसके लिये प्रदेश सरकार, प्रशासन सभी के प्रयास प्रशंसनीय हैं।

समर्पित कर्म के संदर्भ में महान धावक ओलंपियन कार्ल लुईस का जिक्र भी यहाँ करना चाहूँगा- उनके कोच ने उन्हें कहा था तुम यश और धन कमाने पर केन्द्रित रहोगे तो ऐसा कभी नहीं होगा। श्रेष्ठ बनने पर (काबिलियत पर) ध्यान केन्द्रित करो तो चैंपियन बन सकते हो। लुईस ने ऐसा किया और एक ही ओलम्पिक में चार स्वर्ण पदक जीते। हमारे प्रधानमंत्री जी भी देश-प्रदेश को काबिल बनाने हेतु समर्पित हैं, परिणामस्वरूप निवेश रूपी मैडल के हकदार देश-प्रदेश बन रहे हैं ।

“War continues with terror”

“आतंक से जारी है लड़ाई”

गोवा की राजधानी पणजी में 16/10/2016 को ब्रिक्स समिट सम्प्पन हुई। पांच देशों के इस सम्मेलन में तमाम आपसी और वैश्विक मुद्दों पर चर्चा हुई, साथ ही आपसी सहयोग को नई ऊंचाई देने के उपायों पर भी सदस्य देशों ने प्रमुख बातें की। इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी की सदस्य देशों के प्रमुखों के साथ द्विपक्षीय मुलाकातें भी हुई।

पांच देशों, ब्राजील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ्रीका का ग्रुप ब्रिक्स, की कुल जीडीपी दुनिया की जीडीपी का 23.1% है। साथ ही यह समूह दुनिया की 43% आबादी का रिप्रेजेंट करता है। दुनिया की पांच उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का ब्रिक्स सम्मेलन भारत में होने से पूरी दुनिया की नजरें इस बार हम पर टिकी रही।

इस सम्मेलन में कारोबार एवं निवेश बढ़ाने और आतंकवाद के खतरे से मुकाबले जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा की गयी। इस सम्मेलन में भारत ने, आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की कवायद जारी रखते हुए अपना कूटनीतिक हमला तेज किया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने नाम न लिए बगैर कई बार आतंक समर्थक पाकिस्तान पर तीखा हमला बोला।

पीएम नरेंद्र मोदी जी ने दो दिन के समिट में सीमा पार आतंकवाद फैलाने के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहरते हुए कहा…..”हमारा एक पड़ोसी देश आतंकवाद को पालने-पोसने में लगा है।” और “आतंकवाद हमारे पड़ोसी देश का दुलारा बच्चा बन गया है और अब यही बच्चा अपने मां-बाप के नेचर के बारे में बता रहा है।”

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सामने भी पीएम मोदी ने एनएसजी सदस्यता और मसूद अजहर का मामला उठाया। दो दिन के समिट में भारत का पूरा जोर आतंकवाद के मुद्दे पर रहा। लेकिन चीन की वजह से ब्रिक्स के ज्वाइंट डिक्लेरेशन में सीमा पार आतंकवाद और लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे पाकिस्तानी आतंकी संगठनों का जिक्र करने पर सहमति नहीं बन पाई।

विकास की धारा में आतंकवाद एक बड़ा अवरोध है, और इसी वजह से भारत ने हर स्तर पर आतंक के समर्थकों के खिलाफ लड़ाई छेड़ दी है। भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि, आतंक के खिलाफ केवल निंदा करने का समय अब गया, यह कार्रवाई का समय है। उरी हमले के बाद, भारत की तरफ से आतंक के आका पकिस्तान के खिलाफ अब बड़ी मुहीम छेड़ी जा चुकी है। और फिर भी अगर पकिस्तान अपनी हरकतों से बाज़ नही आता है, तो फिर आर-पार की लड़ाई होगी, जिसमे पकिस्तान का नामो-निशान मिटा दिया जाएगा।

Aakhir kya mahatv hai “garabe” ka?

नवरात्री के पर्व पर पूरे देश में रास उल्लास का माहौल है और सभी भक्त माँ दुर्गा की पूजा, आराधना में लगे हुए हैं। हर कोई अपनी पूरी श्रद्धा से माँ की भक्ति में डूबा हुआ है… और साथ ही आया है शारदीय नवरात्री की पहचान “गरबा”, जो स्वयं में भक्ति और सकारात्मकता की अभिव्यक्ति है।

नवरात्री के “गरबे” बच्चों, युवाओं, बड़ों.. सभी को छू जाते हैं।
गरबों में ऐसा आकर्षण है कि, विश्व भर के लोग गरबे के प्रति आकर्षित होते हैं। गरबा सिर्फ एक नृत्य नहीं है, एक भक्तिमय भावना है, यह हमारी एक सांस्कृतिक धरोहर है।

सर्वप्रथम, नवरात्री के इस अवसर पर, सभी लोग एक जगह एकत्रित होकर, माँ की आराधना करते हैं, जिससे तन, मन और चारों ओर का वातावरण भी पवित्र और उर्जावान हो जाता है। माँ का आशीर्वाद ले, खुद को भुलाकर सभी भक्त, माँ की भक्ति में मग्न हो, गरबे में लीन हो जाते हैं।

व्यस्तता के इस दौर में, आज हर किसी को अपने विभिन्न कार्यों के चलते, अपने प्रियजनों से मिलने का मौका भी बहुत कम मिल पाता है, ऐसे में गरबा आयोजन सभी को एक-दूसरे से जुड़ने का एक मौका देता है, जब हम जाने-अनजाने लोगों से मिल अपनी खुशियाँ और कुछ गम बाँट सकते हैं।

गरबे का वृत्त जिसमे माँ के भक्त “गरबा” करते हैं, वह भगवान की परिक्रमा के समान है, जो नृत्य करते समय माँ दुर्गा के अत्यंत समीप ले जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने भी कहा है कि, भगवान की आराधना में परिक्रमा लेना, आपको भगवान के और समीप ले जाता है और ईश्वर के सानिध्य में होने का एहसास दिलाता है।

गरबे की सबसे अच्छी और शक्तिशाली बात है “ताली”। यह वैज्ञानिकों द्वारा सिद्ध है, कि ताली बजाने से सकारात्मक शक्ति बढ़ती है, और गरबा करते समय आप निरंतर कई बार ताली बजाते हैं, इससे एक ऐसी अद्भुत सकारात्मक शक्ति उत्पन्न होती है, जो आपके शरीर को पूर्णरूप में ऊर्जा से भरकर, आपको तरोताज़ा कर देती है।

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रास उल्लास से भरा “गरबा” हर किसी को स्वयं ही अपनी ओर खींच लेता है, और इतने उल्लास से भरे होने के बाद भी, गरबे के लिए अनुशासन बहुत ज़रूरी है। एक चूक हुई और आप गिर भी सकते हो। इसलिए ‘गरबा’ हमें जोश के साथ होश बनाए रखने का सन्देश भी देता है। अर्थात, ऊर्जावान रहो, किन्तु सजग भी।

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हमारा व्यव्हार हमारी सबसे बड़ी खूबसूरती होता है, और ‘गरबा’ हमारी इसी खूबसूरती को कई गुना निखारता है। एक-दूसरे का साथ निभाना, कदम से कदम मिलाना, साथ वालों को आगे बढ़ाना, कोई डगमगाए तो उसे संभालना।

Kailash Vijayvargiya
और गरबे की एक खास बात होती है गरबे की सांस्कृतिक वेशभूषा। हमारी संस्कृति से हमें जोड़े रखना तो इसकी सबसे बड़ी विशेषता है ही, और साथ ही ये गरबे की वेशभूषा रंगों से सराबोर होती है, जिससे सब ओर कई तरह के रंग ही रंग दिखाई देते हैं, जो हमें ये महसूस कराते हैं, कि ज़िन्दगी कितनी खुशनुमा कितनी रंगों से भरी हुई है।

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गरबे का सबसे बड़ा लाभ यह है, कि जो लोग इसे मात्र मनोरंजन का साधन मानते हैं, गरबा उनके साथ भी कोई पक्षपात नहीं करता। वे माने न माने, अनजाने में ही सही, वे एक भक्ति करते हैं, और इसके सभी फायदे उन्हें मिलते ही हैं। हाँ! जो माँ का नाम मन में लेकर गरबे करते हैं, उन्हें जो सिद्धि प्राप्त होती है, उसकी तो बात ही कुछ और है।

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हमारे स्वास्थ्य और आंतरिक बल में सुधार लाने वाला ‘गरबा’, हमें हमारे परिवार, दोस्तों, प्रियजनों के और करीब कब ले जाता है, हमें पता ही नहीं चलता। हाँ, जब इसके परिणामस्वरूप हम साथ मिलकर कुछ मुस्कराहटें बाँट लेते हैं, तब अन्दर कहीं महसूस होता है, कि कुछ तो बदला है, कुछ है, जो फिर सही हो गया है। और ‘गरबे’ के माध्यम से रिश्तों में आई ये करीबी, लम्बे समय के लिए एक डोर से बंध सी जाती है।

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इस नवरात्री में आपने अभी तक गरबा नहीं खेला है,
तो मेरा निज़ी सुझाव है, कि बस कुछ ही दिन बचे हैं, गरबा ज़रूर खेलें और वो भी माता का नाम लेकर खेलें।

और हाँ!
नवरात्री के बाद भी व्यायाम ना छोड़े। कम से कम रोज़ दौड़ तो ज़रूर लगाएँ, चाहे गरबे को याद करके ही सही। आखिर, हमारी सेहत ही तो हमारा सबसे बहुमूल्य खज़ाना है।
जय माता दी।

Raavan Mukti

श्रीरामजी की रावण पर विजय के दिवस दशहरे के पावन अवसर पर सभी विश्वबंधुओं को शुभकामनाएं।

रावण युद्ध भूमि में उतरता है , राम से घोर संघर्ष करता है। बहुत परिश्रम के बाद भी जब रावण वध नहीं हो पा रहा था तब रामजी ने विभीषण की तरफ देखा। विभीषण ने रावण की नाभि में अमृत होना बताया। बस,रामजी ने एक साथ 31बाणों का संधान किया,इन्हें छोडा़। बीस बाणों से हाथ,दस से सिर कटे व एक से नाभि भेदन हुआ। रावण धराशायी हुआ। शिव ब्रह्मा भी प्रसन्न हुए। पर यह देख सभी अचांभित हुए कि रावण की आत्मा का तेज प्रभु रामजी में समा गया। कुंभकर्ण की मृत्यु पर भी ऐसा ही हुआ था। इसका रहस्य जानने की जिज्ञासा सबको थी। इस रहस्य को समझें तो श्रीराम कृपा उनकी करुणा,सरलता के दर्शन कर कृतार्थ हो जाएंगे।

रावण,कुम्भकर्ण की आत्मा का तेजस रामजी में समाया,यानी उनकी मुक्ति,उनका मोक्ष हुआ। जन्म मरण से मुक्त हुए। इसका अर्थ हुआ वे अन्याय अत्याचार का नया अध्याय शुरु नहीं कर पाएंगे। रामजी ने ऋषियों के सामने भुजा उठाकर राक्षसों के विनाश का जो प्रण किया था, धर्म की स्थापना और अन्याय अत्याचार के खात्मे के लिये जन्म लेने की प्रभु ने जो घोषणा की थी,उसकी पूर्ति उन्होंने की। राक्षस दुबारा पृथ्वी का बोझ बनने मानवता को दुःख देने न आवें,इसकी व्यवस्था प्रभु ने उन्हें मुक्ति देकर की। मानव और जीव मात्र के प्रति रामजी का ऐसा चिंता-भाव ही उन्हें जन-जन के मन प्राण में बैठाता है।

अगर इस घटना को अधिक गहराई से समझें तो इसके मूल में हमें रामजी की करुणा,दया के साथ “गए शरण प्रभु राखिहें ” वाला विलक्षण,कोमल प्रेम भाव नजर आएगा। रावण कुम्भकर्ण की मृत्यु के वक्त उनके हृदय में रामजी ही रामजी थे। भले ही शत्रुभाव से ही सही। ऐसी मृत्यु मोक्ष दिलाएगी ही। रामजी का स्मरण करने वाले को वे अपनाते ही हैं, उसका दुःख दर्द दूर करते ही हैं। सच ही कहा है :– भांय कुभांय,अनेख अलसहुं , नामजपत मंगल दिसी दसहुं।

तुलसी दासजी ने भाी कहा है :-
तुलसी अपने रामको,रिझ भजो या खीझ !!
उलटो सीधो उगहे, खेत पडे़ को बीज।
भाव से कुभाव से,प्रसन्नता से या क्रोध से,कैसे भी रामजी को भजेंगे,मंगल ही होगा। जैसे खेत में बीज उलटा सीधा कैसे भी पडे़ उगता ही है।
रामजी को सुख धाम कहा जाता हैं। अपने अवतार काल में उन्होंने तीव्र दुःख झेले,अतः हमारी पीडा़ उन्हें द्रवित करती है। इसी कारण कैसा भी दुराचारी,क्रोधी हो,उनकी शरण लेगा तो वह शुद्ध तो हो ही जाएगा,प्रभु उसे अवश्य अपनाएंगे। पीडा़ दूर करेंगे।
आओ ! शुद्ध भाव से हम भी इस पावन अवसर पर श्रीरामजी की शरण होवें,शांति आंनद हेतु प्रार्थना करें।