Kailash Vijayvargiya blogs Kailash Vijayvargiya Blog - Page 6 of 19 - Kailash Vijayvargiya Cabinet Minister Of B.J.P
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Nadda ji

Shubho Nobo Borso

शुभो नोबो बोरसो’

कैलाश विजयवर्गीय

सभी बंगाली बंधु और बहनों को शुभो नोबो बोरसो। नव वर्ष बंगाल के लोगों के लिए लोकतंत्र की खुली बयार लेकर आए। बंगाल के लोग नव वर्ष में खुली हवा में सांस लें। बंगाल के लिए नव वर्ष नई-नई खुशियां लाएं। पिछले कुछ वर्षों से राज्य में रुकी हुई विकास की गति में तेजी जाए। भ्रष्टाचार कम हो और लोगों को राहत मिले। ऐसी शुभकामनाओं के साथ नव वर्ष का स्वागत करते हैं, अभिनंदन करते हैं।

मेरा बंगाल और बंगाली संस्कृति से बहुत नजदीक का संबंध रहा है। मुझ पर बंगाल के महान संतों, क्रांतिकारियों, साहित्यकारों, कलाकारों और लोगों का बहुत असर रहा है। जनसंघ के संस्थापक डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी के कश्मीर में हुए बलिदान ने मुझे झकझोर दिया था। उनके बलिदान से मुझे देश के लिए कार्य करने की प्रेरणा मिली। उनकी प्रेरणा से ही मैं राजनीति में आया। बंगाल के समाज सुधारकों का मुझ पर बचपन से प्रभाव रहा। मैंने बंगाली साहित्य भी खूब पढ़ा। सबसे बड़ी बात यह है कि मेरी पत्नी बंगाल की है। इस कारण हमारे घर में मालवा के साथ बंगाल के उत्सव भी लगातार मनते रहते हैं।

बंगाल में नववर्ष को पोहला बोईशाख भी कहा जाता है। इसका अर्थ है बैशाख का पहला दिन। पोएला यानी पहला और बोइशाख यानी बैशाख महीना। बंगाली कलैंडर हिन्दू सौर मास पर ही आधारित है। बंगाली नववर्ष के साथ ही केरल में विशु मनाया जाता है। विशु मलयाली नववर्ष होता है। अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों में इनके आसपास ही नव वर्ष की शुरुआत होती है। उत्तर भारत में चैत्र बैशाख शुक्ल प्रतिपदा से भारतीय नववर्ष प्रारम्भ होता है। पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, औडिशा, असम और आसपास के राज्यों में पहला बोइशाखा पर बहुत धूमधाम होती है। असम में इससे एक दिन पहले बिहू की मस्ती रहती है।

बोइशाखा का शुभ माह बंगाल के लिए शुभ हो। जिस तरह पोइला बोइशाख पर हम अपने घरों की सफाई करते हैं। रंग-रोगन करते हैं। सकाले जागते हैं, नहाते हैं, नए-नए वस्त्र पहनते हैं। पूजापाठ करते हैं। रिश्तेदारों और बंधुओं से मिलते हैं। घरों में उत्सव मनाते हैं, पकवान बनाते हैं और आपस में वितरित करते हैं। पोइला बोइशाख परिवार की समृद्धि और कल्याण के लिए मां काली की आराधना का पर्व है। इस अवसर पर सभी को कोशिश होती है कालीघाट मंदिर में जाकर मां काली का आशीर्वाद लिया जाए। पोइला बोइशाखा पर हम बंगाल में लोकतंत्र की अलख जगाने के लिए मां काली से प्रार्थना करें। हे मां काली हम पर नोबों बोरसों में कृपा बरसाएं। हमें राज्य में आतंक से मुक्ति मिले। बोइशाखा के पोइला दिन सूर्य की उपासना का दिन भी है। प्रातकाल उठकर सूर्य को देखने से परिवार में शुभ कार्य होते हैं। भगवान श्री गणेश और देवी लक्ष्मी की उपासना की जाती है। पोइला बोइशाखा के दिन बंगाल में हर जगह में पूरे वर्ष अच्छी बारिश हो, इसके लिए बादलों की पूजा की जाती है। यह प्रकृति की उपासना का दिन भी है। पोइला बोइशाख व्यापारियों के लिए नई बहीखाते शुरु करने का दिन होता है। बंगाल में इसे हालखाता कहा जाता है। यह दिन बंगाल की महान परम्पराओं का हिसाब किताब याद रखने का दिन भी हैं। बंगाल में दूर्गा पूजा पर रोक, रामजन्मोत्सव मनाने पर रोक, हनुमान जयंती पर प्रतिबंध, सरस्वती पूजा की मनाही, हिन्दुओं के त्योहारों पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाए जाते हैं। वोट बैंक के लालच में हमारी समृद्ध परम्पराओं को धराशायी किया जा रहा है।

एक समय राज्य में बैशाली मेलों की धूम होती थी। आज भी जगह-जगह मेले लगते हैं। इन मेलों में आतंक के कारण मस्ती खत्म होती जा रही है। पोइला बोइशाख पर जगह-जगह रवीन्द्रनाथ टैगोर का गीत एशो है बोइशाख एशो एशो गाते हुए लोग दिखाई देते थे। यह परम्परा कम होती जा रही है। आइये नोबो बोरसों पर हम संस्कृति का बढ़ाने के लिए संकल्प लेते हैं। मां काली से प्रार्थना करते हैं कि पूरे वर्ष हम पर कृपा बरसाएं। बंगाल में धन-धान्य की वृद्धि हो। साथ ही बंगाल के लोगों को राजनीतिक आतंक से मुक्ति से मिले।

माँ के आशीर्वाद से प्रेरित: कैलाश विजयवर्गीय जी का आत्मीय स्मरण

कैलाश विजयवर्गीय

आज से ६३ वर्ष पूर्व परम ममतामयी पूज्य काकी जी ने मुझे इस संसार में पदार्पण कराया था, बहुत बचपन की तो याद नहीं, लेकिन जबसे होश संभाला है तो किसी विपत्ति के समय मुझे माँ की वात्सल्यमयी गोद सभी संकटों से बचाव के लिए एकमात्र आश्रय के रूप में सदैव उपलब्ध रही। अपने राजनैतिक कार्यों के दौरान कई-कई दिनों तक घर नहीं जा पाता था। तब घर जाने का आकर्षण की कुछ और था। पांच मिनिट के लिए ही सही,यदि मैं काकी जी के पास बैठ जाता, उनके चरण स्पर्श कर लेता तो मानों सारे संसार की विपत्तियाँ समाप्त हो जाती थीं। उनका हाथ सिर पर अनुभव होते है मनो गंगाजल का स्पर्श हो जाता था।

बचपन से गत वर्ष तक प्रत्येक बार अपने जन्मदिन पर मैं कैसे भी करके माँ के पास अवश्य पहुँच जाता था। वे प्रत्येक बार मेरे मस्तक पर टीका लगाती, सर पर हाथ फेरती, आशीर्वाद के कुछ शब्द बोलती और हाथ में श्रीफल के साथ कुछ रुपये रख देती थी। मुझे एसा लगता था कि उनके आशीर्वाद के शब्दों में माता सरस्वती जी, सिर पर रखे हाथ में माता महाकाली और हाथ में रखे रुपये में माता लक्ष्मी माता की कृपा मुझे प्राप्त हो गई हो। मस्तक पर उनके हाथों से लगाया गया टीका मुझमें मानो नवीन ऊर्जा का शक्तिपात कर देता था। उनके द्वारा दिया गया श्रीफल साक्षात भगवन नारायण का स्वरूप लगता था। मैं उनके द्वारा दिए गए रुपये पूरे वर्ष भर संभालकर रखता ये मुझे उनकी ममता के अमोघ कवच के रूप में स्वरक्षित रखते थे वो कहती थी कि सावर्जनिक जीवन में हमेशा सत्कर्म करना, खूब काम करना, अपनी आलोचनाओं से विचलित नहीं होना। जब तक तुम दर्पण में अपनी आँख में आँख डालकर देख सकते हो, तब तक तुम निष्पाप हो उनके इन कथनों के कारण ही मैं सत्य और नैतिकता के पथ पर सदैव चलते रहने के लिए प्रतिज्ञावध्य रहा हूँ।

आज ६३वें जन्मदिन पर कैसा संयोग हैं कि ६३ का आंकड़ा एक दूसरे से मिलने का प्रतीक हैं, पर मेरी और मेरे असंख्य कार्यकर्ता बंधुओं की पूज्य काकी जी से मैं नहीं मिल पाऊंगा। आज उनकी अनुपस्थिति में मेरे जन्मदिवस पर मेरी आत्मा कांप रही हैं। नेत्रों से अविरल अश्रुधार प्रवाहित है। उनके हाथ का स्पर्श अपने सिर पर लेने के लिए पूरा शरीर व्याकुल है उनके चरणों का स्पर्श हाथ मानों तडफ रहे है। मेरे बाल मन में अभी भी काकी जी की गोद में मस्तक रखने की अतृप्त प्यास पूरी तीव्रता से जोर मार रही है।

मैं जानता हूँ कि जीवन भर अयोध्या नाम को धारण करने वाली काकी जी पूरी नैतिकता से जीवन यापन करते हुए स्वयं भगवान श्री अयोध्यानाथ की शरण में चली गई है उनके महाप्रस्थान से मेरे जीवन में जो विराट शून्य उत्पन्न हुआ हैं, वह कभी भी भर नहीं पायेगा। पर यह समय अवसाद में जाने का नहीं हैं, काकी जी तो जीवित अवस्था में ही विदेह हो गई थी. उनका प्रत्येक श्वास मुझ सहित अनेक कार्यकर्ताओ की मंगल कामनाओं की प्रार्थना करते निकलता था। उन्होंने मुझसे कहा था कि देश के लिए खूब काम करना, राष्ट्र के कल्याण के लिए समर्पित रहना, अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए दिन रात कार्य करना। अब समय है उनके इन्ही उपदेशों और आदेशों का पालन करने का, अब समय है कि उनकी आध्यात्मिक और दिव्य उपस्थिति को अनुभव करते हुए राष्ट्र के लिए काम करने का..

उनके अनंत आशीर्वचन मेरा मार्ग सदैव प्रशस्त कर रहें हैं आज भारत माता को परम वैभव के सर्वोच्च शिखर पर ले जाने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने मुझे बंगाल में कार्य करने का दायित्व सौपा हैं। मैं अपने सम्पूर्ण प्राण प्रण से बंगाल में पार्टी की ऐतिहासिक विजय और अंतत: राष्ट्र की समृद्धि के लिए कार्य कर परम पूज्य काकी जी के श्री चरणों में पुष्पांजलि अर्पित करूँगा.. मैं उनके आदर्शों और मार्गदर्शन के अनुरूप आजीवन कार्य करने के लिए वचनबद्ध हूँ।

मैं अपने समस्त कार्यकर्ता बंधुओं, भगिनियों तथा शुभचिंतकों को इस अवसर पर उनकी शुभकामनाऔं के लिए धन्यवाद देता हूँ तथा विश्वास करता हूँ आपका स्नेह मझे सदैव की भान्ति आगे भी उपलब्ध रहेगा..

Crossing Laxman-Rekha is always Dangerous!

Crossing Laxman-Rekha is always Dangerous!

Ek hi shabd hai – Maryada!
Maryada ka ulanghan hota hai, toh Sita-haran ho jata hai. Laxman-Rekha har vyakti ki khichi gayi hai. Us Laxman-Rekha ko koi bhi par karega, toh Rawan samne baitha hai, woh Sita-haran karke le jayega. (One has to abide by certain moral limits. If you cross this limit you will be punished, just like Sita was abducted by Ravana)

Ek saath chunaav kee jaroorat

एक साथ चुनाव की जरूरत

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की विधानसभाओं के चुनाव की तैयारियों के मद्देनजर ज्यादातर राजनीतिक दल चुनावी मोड में हैं। इन तीन विधानसभा चुनावों के बाद देश एक बार फिर जल्दी ही लोकसभा के लिए चुनावी मोड में होगा। अगले वर्ष सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, तेलंगाना, ओडिसा और आंध्र प्रदेश विधानसभाओं के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ होंगे। अगले वर्ष ही कुछ समय बाद हरियाणा और महाराष्ट्र की विधानसभाओं के चुनाव होंगे। 2020 में झारखंड, दिल्ली और बिहार में विधानसभा के चुनाव होंगे। 2021 में जम्मू-कश्मीर,असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुद्दूचेरी में विधानसभाओँ के चुनाव होंगे। लोकसभा और विधानसभा के चुनावों के अलावा सभी राज्यों में स्थानीय निकायों के चुनाव भी होगें। यानी हर दो-तीन महीने बाद देश चुनावी मोड में होगा, सरकारें साइलेंट मोड में होंगी और नौकरशाही फ्लाइट मोड में चलेगी। ऐसी स्थिति से बचाने के लिए लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के विचार पर देश में बहस छेड़ी गई है। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री अमित शाह ने इसी मुद्दे पर विधि आयोग को एक पत्र सौंपा है। इस पत्र में उन्होंने महाराष्ट्र का उदाहरण देते हुए लिखा है वहां 365 दिनों में से 307 दिनों तक चुनावों के कारण आचार संहिता लगी रही। इस कारण विकास कार्यों में रुकावट आई और ऐसी स्थिति कई राज्यों में रही। श्री शाह ने सुझाव दिया है कि एक साथ चुनाव कराने से प्रशासनिक व्यय में कमी आएगी और विकास कार्यों में तेजी आएगी। साथ ही राजनीतिक दलों के चुनावी खर्च में भी कमी आएगी।

लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने का सुझाव नया नहीं है। देश में 1952, 1957, 1962 और 1967  के आम चुनावों के साथ ही विधानसभाओं के चुनाव होते रहे हैं। 1967 के लोकसभा चुनाव के साथ हुए विधानसभा चुनावों में बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु और केरल में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला था। आठ विधानसभाओं में पहली बार विपक्ष की संविद सरकारें बनीं। 1967 से पहले देश में गैर कांग्रेसवाद का नारा बुलंद हुआ था। विपक्ष ने मिलजुलकर कांग्रेस को बहुमत नहीं मिलने दिया। संयुक्त विपक्ष की सरकारें ज्यादा समय तक नहीं चल पाईं तो मध्यावधि चुनाव की शुरुआत हुई। 1969 में कांग्रेस टूटने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा देते हुए लोकसभा चुनाव समय से पहले कराने का फैसला लिया और 1971 में पांचवीं लोकसभा के चुनाव हुए। इस तरह लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराने की परम्परा समाप्त हो गई। इंदिरा कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में जबरदस्त बहुमत मिला तो 18 विधानसभाओं को भंग करके मध्यावधि चुनाव कराए गए। 1977 में लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद कई राज्यों की विधानसभाओं को भंग करके चुनाव कराए गए। 1980 में जनता पार्टी के विघटन और इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी के बाद फिर से विधानसभाओं को भंग करके चुनाव कराए गए। इस स्थिति में एक साथ चुनाव का कराने का सबसे पहले चुनाव आयोग ने 1983 में सुझाव दिया। 1999 में विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया। समय-समय पर कुछ राजनीतिज्ञ भी एक साथ चुनाव कराने का सुझाव देते रहे। 2003 में तत्कालीन उपप्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी ने चुनावों में बढ़ते खर्च के मद्देजनर लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभाओं के चुनाव कराने का सुझाव दिया। श्री आडवाणी ने 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले भी एक देश-एक चुनाव का सुझाव दिया। 2012 में उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी को पत्र भेजकर चुनाव सुधार के लिए कदम उठाने की अपील की थी। इस मुद्दे पर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री डा.मनमोहन सिंह से भी चर्चा की थी। तब श्री सिंह ने इस मुद्दे पर सहमति जताई थी। श्री आडवाणी ने बार-बार होने वाले मध्यावधि चुनावों को लेकर भी लोकसभा और विधानसभाओं की अवधि तय करने का सुझाव भी दिया था। तब चुनाव आयोग या केंद्र सरकार ने इस सुझाव पर कोई ध्यान नहीं दिया। 2015 में ससंदीय समिति ने भी एक साथ चुनाव कराने के लिए अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी देश की जनता के सामने यह सुझाव रखा और सभी राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर चर्चा करने का अनुरोध किया। डा.प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति रहते हुए कुछ अवसरों पर लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने पर सहमति जताई। राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने भी इस मुद्दे पर सहमति जताई। भाजपा अध्यक्ष श्री अमित शाह ने चुनावी खर्च में तेजी से हो रही बढ़ोतरी को लेकर भी एक साथ चुनाव कराने का सुझाव आगे बढ़ाया है। चुनाव में खर्चों में बढ़ोतरी को लेकर सभी दल इसमें कटौती करने के पक्ष में हैं। 1952 के लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों पर दस करोड़ खर्च हुए थे। 2014 के लोकसभा चुनाव पर ही सरकार ने 4500 करोड़ खर्च किए। एक अनुमान के अनुसार राजनीतिक दलों की तरफ से 30 हजार करोड़ खर्च करने का हिसाब लगाया गया है। 1999 से लेकर 2014 के आम चुनावों के दौरान 16 बार ऐसा हुआ है कि छह महीनों के भीतर ही विधानसभाओं के चुनाव हुए हैं।

मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष एकजुट होने की कोशिश में हैं। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, कम्युनिस्ट, तेलुगूदेशम पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, एआईएमआईएम और आम आदमी पार्टी एक राष्ट्र-एक चुनाव के पक्ष में नहीं है। कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात करने वाली समाजवादी पार्टी ने एक साथ चुनाव कराने पर रजामंदी जताई है। तेलंगाना राष्ट्र समिति, अन्नाद्रमुक, बीजू जनता दल और शिरोमणि अकाली दल भी एक साथ चुनाव कराने पर सहमत हैं। कुछ दल इस मसले पर संविधान संशोधन की जरूरत बता रहे हैं। भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त ने वीवीपीएटी मशीनों की कमी के आधार पर एक साथ चुनाव कराने में असमर्थता जताई है। 1952 में हुए लोकसभा और विधानसभाओं के चनाव की तुलना में आज हमारे पास ज्यादा संसाधन हैं। देश में और राज्यों में कई गुणा सुरक्षा बल हैं। परिवहन के साधन बहुत बढ़े हैं। पहले के मुकाबले सूचना तेजी से दी जा सकती हैं। चुनावों पर नजर रखने के पूरे संसाधन हैं। कांग्रेस और कुछ दलों को लगता है कि एक साथ चुनाव हुए तो नरेंद्र मोदी का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। मोदी के नाम पर राजग के दलों को राज्यों में लाभ हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक राष्ट्र-एक चुनाव का सुझाव देश की तेजी से विकास करने और चुनाव खर्च में कमी लाने के मकसद से की है। राजनीति के शिखर पुरुष पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल विहारी वाजपेयी ने 1996 में विश्वासमत के दौरान कहा था कि ‘सत्ता का खेल तो चलेगा..सरकारें आएंगी जाएंगी। पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी। मगर ये देश रहना चाहिए। इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए। भारतीय जनता पार्टी भी इसी उदेश्य को लेकर आगे बढ़ रही है। चुनाव में जनता किसे चुनेगी, यह जनता का अधिकार है। हमारा कर्तव्य है कि हम देश को तेजी से तरक्की के रास्ते पर लाने के लिए एक राष्ट्र-एक चुनाव के सुझाव पर एकजुट हों।

Atulan Atal Ji

अतुलनीय अटल जी

प्रशंसकों ने तो श्रद्धांजलि दी ही, साथ पूरे देश को उनका जाना झकझोर गया। विदेशों में उनके प्रशंसकों को उनका जाना खल रहा है। पाकिस्तान की जनता भी उनके न रहने से स्तब्ध रह गई। सभी को लगा कि उनके बीच से एक ऐसी महान शख्सियत चली गई, जिसने भारतीय राजनीति को नये आयाम दिए। विश्व में कूटनीति की नई परिभाषा गढ़ी। अटल इरादों के विशाल ह्रद्य वाले अटलजी राजनीति में शुचिता, पवित्रता,नैतिकता, पारदर्शिता और सौहार्दता के लिए देशवासियों के मन में हमेशा छाये रहेंगे। 12 साल से मौन अटलजी के महाप्रयाण पर करोड़ों लाखों ने उन्हें विदाई दी। महाप्रयाण के अवसर पर नम हुईं करोड़ों आंखें हमें बताती हैं कि अटलजी का न रहना, एक राजनीतिक युग के समाप्त होने जैसा है। अटलजी ने चाहे 12 साल से एक शब्द नहीं बोला था, पर भारतीय जनता पार्टी के सक्रिय करोड़ों कार्यकर्ताओं के पास उनसे जुड़ा कोई न कोई संस्मरण जरूर था। गांव-देहात के कार्यकर्ता हो या प्रदेश की राजधानी के कार्यकर्ता हो या दिल्ली के। सभी अटलजी का जिक्र आते ही अपने-अपने संस्मरण सुनाने लगते। कितना विशाल संपर्क था अटलजी का। एक बार जिस शहर में गए, वहां सैंकड़ों लोगों के दिलों में बस जाते थे। उनके व्यक्तित्व में एक ऐसा आकर्षण था, जो बरबस ही सबको अपनी ओर खींच लेता था। उनके विरोधी भी उनकी इस बात के कायल थे। भाजपा के विरोधी दलों के नेताओं के पास भी अटलजी के सहयोग के बहुत से संस्मरण हैं। भाजपा के धुर विरोधी रहे लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष श्री सोमनाथ चटर्जी ने तो अपनी किताब में अटलजी के महान व्यक्तित्व का उल्लेख किया है। माकपा के प्रमुख नेता रहे सोमनाथ चटर्जी का जो काम तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी टालती रहीं, उसे अटलजी ने दो घंटे में कर दिखाया।

अटलजी के व्यक्तित्व और कृतित्व की तुलना हम किसी से नहीं कर सकते। महात्मा गांधी हो या पंडित जवाहर लाल नेहरू। डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी हो या पंडित दीनदयाल उपाध्याय। इनमें से किसी से भी अटलजी की तुलना नहीं हो सकती। अटलजी की तुलना अगर होगी तो स्वयं अटलजी से ही होगी। अटल वाकई बहुत बड़े थे। भारतीय राजनीति में उन्होंने स्वयं को बेशक कभी बहुत बड़ा सिद्ध करने का प्रयत्न नहीं किया पर उनके कार्यों और विचारों के आधार पर हम उन्हें बहुत बड़ा मानते हैं। पहली बार ही लोकसभा में पहुंच कर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को चुनौती देने वाले अटल बिहारी वाजपेयी को सुनकर उन्हें कहना पड़ा था यह युवक अवश्य प्रधानमंत्री बनेगा। राजनीति में कभी उन्होंने पद पाने की लालसा नहीं जताई। भाजपा में तो वे प्रारम्भ से ही एक स्वाभाविक पसंद थे। भाजपा का हर कार्यकर्ता और शुभचिंतक ही नहीं देश की जनता की भी चाहत थी कि अटलजी लालकिले से झंडा फहरायें। 13 दिन की सरकार चलाने के बाद देशवासियों ने उन्हें 13 महीने और फिर पांच साल सरकार चलाने का अवसर दिया। यह अवसर उनके विचारों और कार्यों के कारण ही मिला। देश की समस्याओं को लेकर चिंता करने वाले और उनका हल निकालने में जुटे रहने वाले अटलजी उदास पलों में भी लोगों को हास्य से भर देते थे। उनका कहना था कि चुनौतियों का हंसकर सामना करेंगे तो चिंताएं भी ज्यादा देर तक नहीं टिकेगी।

अटलजी पर प्रधानमंत्री रहते हुए कोई दाग नहीं लगा पाया। इसी तरह हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का कार्यकाल रहा। साढ़े चार साल के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी सरकार पर कोई उंगली नहीं उठा पाया। अटलजी के व्यक्तित्व के तमाम पहलू हमें मोदीजी में दिखाई देते हैं। लोगों को यह जानकारी नहीं थी कि मोदीजी अटलजी के स्वास्थ्य को लेकर हमेशा चिंतित रहते थे। रोजाना वे अटलजी के स्वास्थ्य की रिपोर्ट लेते। महीने में एक बार उन्हें देखने घर जाते और परिवार को उनके शीघ्र स्वस्थ होने का ढांढस बताते। पूरे देश की जनता ने देखा कि अटलजी के निधन के बाद अंतिम यात्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रोटोकाल को तोड़ते हुए सुरक्षा नियमों की परवाह न करते हुए पैदल चलते रहे। एक पुत्र की भांति उन्होंने अटलजी को विदाई दी। देश हैरान कि ऐसा इस देश में किसी ने नही देखा कि अपने आदर्श रहे एक महान व्यक्तित्व को किसी प्रधानमंत्री ने ऐसी विदाई दी हो। मोदी के साथ उनके मंत्रिमंडल के सभी साथी और सांसद भी साथ थे। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी साथ-साथ चलते रहे। ऐसे नजारे ने भी माहौल को और भावुक बना दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा ने जिस गति से आधार बढ़ाया है, उसे देखकर हर कोई यही कहता है कि अटल-अडवाणी ने दो सदस्यों की भाजपा को सत्ता तक पहुंचाया तो मोदी-शाह की जोड़ी ने पार्टी को देश के हर कोने में पहुंचा दिया। सचमुच अटलजी के एकदम सही उत्तराधिकारी नरेंद्र मोदी को देशवासियों ने राष्ट्र को विकास के मार्ग पर ले जाने के लिए नेतृत्व सौंपा है। अटलजी की लेखनी, वाणी और कर्म हमारे लिए हमेशा प्रेरणा के माध्यम रहेंगे। आने वाली पीढ़ियों के लिए अटलजी एक नए सशक्त और समृद्ध भारत की नींव रखने के लिए जाने जाएंगे।

India is much Bigger than the Premier League!

……और भी गम हैं ज़माने में, क्रिकेट के सिवाय !

आज सड़क से लेकर संसद तक I P L छाया हुआ है! कैसा दुर्भाग्य है कि जिस देश की संसद में I P L यानि इंडियन पॉवर्टी लाइन पर चर्चा होनी चाहिए उस देश की संसद में इंडियन प्रीमियर लीग पर चर्चा हो रही है. किसी शायर के शब्दों में बस इतना ही कहा जा सकता है कि – और भी गम हैं ज़माने में, क्रिकेट के सिवाय !!</div>
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<div>यह सही है कि इस देश में क्रिकेट एक जुनून है ! एक जुस्तजू  है! लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं है कि देश की संसद सारे ज़रूरी काम छोड़कर I P L पर बहस करने लगे !! क्या देश में महंगाई कम हो गई? क्या देश का रूपया डॉलर की तुलना में मजबूत हो गया? क्या चीनी ने अरुणाचल में हथियाई गई भारतीय ज़मीन को छोड़ दिया है? क्या गरीबी, भुखमरी और बेरोज़गारी जैसी समस्याएँ खत्म हो गई हैं? जो हमारे सांसद इन तमाम बड़े मुद्दों को छोड़कर I P L पर अपना सिर खपा रहे हैं !!

माना कि आई.पी.एल. में कुछ घटनाएं ऐसी हुई हैं जिन्होंने क्रिकेट को कलंकित किया है. स्पॉट फिक्सिंग का मामला हो या शाहरूख़ खान का विवाद, ल्यूक कि बदतमीजी हो या फिर प्रीती ज़िंटा की दादागिरी, इन सब मसलों ने भद्रलोक के खेल क्रिकेट को बदनाम किया है लेकिन ऐसा कहाँ नहीं होता? क्या हर जगह, हर संस्था में सब कुछ ठीक चल रहा है? क्या संसद और विधानसभाओं में सब कुछ ठीक है? क्या संवैधानिक संस्थाओं में हंगामे नहीं होते? क्या विधानसभाओं में कुर्सियां, माइक और जूते नहीं फेंके जाते? तो फिर आई.पी.एल. को लेकर इतना हंगामा क्यों? कहीं यह तमाम गंभीर समस्याओं से जन-मानस का ध्यान भटकाने का हथकंडा तो नहीं?

Value Every Relationship Wholeheartedly by Celebrating them.

आज मदर्स-डे है. सामान्य लोग इसे मनाएंगे, 

आदर्श लोग कहेंगे माँ के लिए तो हर दिन समर्पित होना चाहिए, संस्कृति के रखवाले कहेंगे ये पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव है और माँ कहेंगी ‘बेटा मैं तो तुझे हमेशा खुश देखना चाहती हूँ और कुछ नहीं चाहिए’.

क्या आपने कभी यह सोचा कि इस तरह ‘माँ’, ‘पिता’, ‘दोस्त’, ‘बहन’, ‘भाई’ और हर रिश्ते को एक दिन समर्पित करने का उद्देश्य क्या है? अगर नहीं सोचा तो एक बार इस विषय पर ज़रूर सोचें. मैं यह मानता हूँ कि आज की प्रतिस्पर्धात्मक जीवनशैली में जब छोटा सा बच्चा भी रैंक बनाने में लगा है और हर सुबह सात बजे से इस दौड़ में निकल पड़ता है, रिश्तों को समय देना वाकई मुश्किल हो गया है और ऐसे में साल में एक दिन हर रिश्ते को समर्पित करना शौक या किसी का प्रभाव नहीं बल्कि समय की मांग है.
<div>हमारी भारतीय संस्कृति के अनुसार अगर हम जीवन व्यापन करें तो शायद इन चीज़ों की आवश्यकता नहीं पड़ती परन्तु समय के साथ-साथ विकास और प्रतिस्पर्धा दोनों ही बढती जा रहे हैं और सदियों पुराने सिद्धांतों में भी समय के साथ परिवर्तन अनिवार्य होता है. वैसे तो जन्मदिन मनाना भी आवश्यक नहीं क्यूंकि हम हर दिन अपने जीने की ख़ुशी मनाते हैं तो फिर साल में एक दिन क्यूँ निर्धारित करें? अगर जन्मदिन मनाना उचित है तो फिर रिश्तों की जीवंतता मनाना उनुचित कैसे हो सकता है? मैं आप सभी से यह अनुरोध करूँगा कि इन विभिन्न दिवसों को मनाने के उद्देश्य को समझें और रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक समय दें.</div>
<div>आप सभी को मदर्स-डे की हार्दिक शुभकामनाएँ!</div>

Tripura, Nagaland and Meghalaya – Modi-Shah’s works gave the biggest victory

त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय- मोदी-शाह के कार्यों ने दिलाई सबसे बड़ी जीत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह की चुनावी रणनीति ने त्रिपुरा में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का मजबूत गढ धराशायी कर दिया।

मेघालय और नगालैंड में भाजपा गठबंधन की बड़ी जीत हुई है। कांग्रेस का त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में सफाया हो गया। त्रिपुरा में तो कांग्रेस को कोई सीट ही नहीं मिली। त्रिपुरा की 20 जनजाति सीटों में कम्युनिस्ट एक भी सीट नहीं जीत पाए।

2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 36 फीसदी वोट मिले थे और इस बार केवल दो फीसदी। त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली जीत, अब तक सबसे बड़ी जीत है।

त्रिपुरा में कम्युनिस्टों के सफाये ने साबित कर दिया है कि किसी भी राज्य में अब जनता निरकुंश सरकारों को सहन नहीं करेगी। यह दिखाई दे रहा है कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी सरकार और ओडिशा में नवीन पटनायक की सरकार भी अब चलता होगी। त्रिपुरा में भाजपा की जीत ने पश्चिम बंगाल और केरल के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और पार्टी कार्यकर्ताओं का हौंसला बुलंद कर दिया है। हमें पूरी उम्मीद है आने वाले दिनों में पश्चिम बंगाल की जनता ममता बनर्जी की सरकार को उखाड़ फेकेंगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर पूर्व के राज्यों के लिए पूरी ईमानदारी से कार्य किया। असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश के बाद अब त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में भी भाजपा की सरकारें होंगी। नरेंद्र मोदी सरकार ने पहली पूर्वोत्तर के विकास पर ध्यान दिया। पहले पूर्वोत्तर के राज्यों में रही सरकारों ने केंद्र सरकार द्वारा भेजे जाने वाली राशि का इस्तेमाल ही नहीं किया।
जनता विकास के लिए तरसती रही। मोदी सरकार के कार्यों और नीतियों में आस्था जताते हुए त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड की जनता ने यह एतिहासिक निर्णय सुनाया है। अगर त्रिपुरा की बात करें तो वहां पिछले 25 साल से माकपा की सरकार थी। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने प्रपंच करके अपनी छवि एक साधारण और ईमानदार नेता की बना रखी थी। जनता ने उनके भ्रष्टाचार और निरकुंश होने की पूरी पोल खोल दी है। सभी जानते हैं कि त्रिपुरा में कम्युनिस्ट पहले ताकत के बल पर चुनावों में धांधली करके जीतते रहे हैं। इस बार जनता ने राज्य में कम्युनिस्टों को उखाड़ फेंकने का संकल्प लेते हुए कम्युनिस्टों को चुनावों में धांधली करने का मौका ही नहीं दिया।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी त्रिपुरा में ऐसी चुनावी रणनीति बनाई कि कम्युनिस्ट धराशायी हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को बार-बार त्रिपुरा भेजा। बाकी पूर्वोत्तर के राज्यों में मंत्रियों ने दौरे किए। जनता से मुलाकात की, उनकी समस्याओं का जाना और निराकरण किया। पहली बार पूर्वोत्तर की जनता ने प्रधानमंत्री को बार-बार इतने नजदीक से देखा।

प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और अमित शाह की रणनीति ने भाजपा को पूरे देश की पार्टी बना दिया है। ध्यान देने वाली बात है कि 2013 के चुनाव में भाजपा को कम्युनिस्टों के गढ़ में केवल डेढ़ फीसदी वोट मिले थे। इस बार भाजपा गठबंधन को लगभग 50 फीसदी मत मिले हैं।

भाजपा को खुद 42 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि उसकी सहयोगी पार्टी पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा को 8.5 फीसदी वोट मिले हैं। इस तरह त्रिपुरा की आधी जनता ने भाजपा वोट दिया है। पहले कम्युनिस्ट पश्चिम बंगाल से साफ और अब त्रिपुरा से, बस अब बचे हैं केरल में हैं। अब देश की जनता विकास के एजेंडे पर चलना चाहती है। त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय की जनता ने बता दिया है कि अब उन्हें विकास करने वाली सरकारें चाहिए। ये तीनों राज्य भी केंद्र सरकार के साथ मिलकर तेजी से विकास की तरफ बढेंगे।

Save children’s childhood!

“हर चीज़ के फायदे और नुक्सान होते हैं, यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस पहलु को स्वयं पर हावी होने देते हैं.” मैं आज तक यही सोचता आया था लेकिन आज एक गाँव से गुज़रते वक़्त कुछ बच्चों को सड़क पर खेलते देख मुझे एकाएक शहरों की खाली गलियों का नज़ारा याद आया. शहरों की आधुनिक जीवनशैली ने कहीं न कहीं बच्चों से उनका बचपन छीन लिया है. आज बच्चे गलियों में नहीं बल्कि मोबाइल और कंप्यूटर पर गेम खेलते दिखाई देते हैं. भाग-दौड़ वाले खेल जैसे अब कहीं लुप्त होते जा रहे हैं. कुछ खेल जो बच्चे खेलते…

Jan Sunwai in Omkareshwar

Jan Sunwai in Omkareshwar

ओमकारेश्वर में जन सुनवाई के दौरान मन में सिर्फ यही ख्याल है कि मैं आप सभी की पीड़ा को बेहतर रूप से समझ सकूँ और सर्वश्रेष्ठ विकल्प निकाल सकूँ जिससे आप सभी की परेशानियां दूर हो सकें!