सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, कर्नाटक में शपथ ग्रहण पर नहीं लगी रोक
भारतीय जनता पार्टी के नेता बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री की शपथ ले ली है। देर रात सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर की कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला के भारतीय जनता पार्टी के नेता बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से न्यायपालिका की गरिमा बढ़ी है। जनता का न्यायपालिका में विश्वास बढ़ा है। इस मामले में देर रात याचिका स्वीकार करना, सुबह तक सुनवाई करना और फैसला देना, वाकई एक ऐतिहासिक क्षण है। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब आधी रात को अदालती कार्यवाही चली। इससे पहले 29 जुलाई 2015 को पहली बार आधी रात को सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की याचिका पर सुनवाई की थी। सुप्रीम कोर्ट, गवर्नर और बाद में राष्ट्रपति से याकूब मेनन की याचिका खारिज होने के बाद फांसी से ठीक पहले आधी रात को प्रशांत भूषण समेत 12 वकील सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के घर पहुंचे थे। उन्होंने याकूब मेमन की फांस पर रोक लगाने की मांग की। उनकी इस मांग पर तत्कालीन चीफ जस्टिस एच एल दत्तू ने वर्तमान मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई में तीन जजों की बेंच गठित की। देर रात को ही जज सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और मामले की सुनवाई शुरू हुई। तीन जजों की इस बेंच ने याकूब की फांसी की सजा को बरकरार रखा था। कांग्रेस और जेडीएस की याचिका पर ही रात में अर्जी डाली गई, बेंच बनी, कार्यवाही हुई और फैसला दिया गया।
कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला के बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के फैसले के खिलाफ कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) ने सुप्रीम कोर्ट में रात 11.35 बजे अर्जी लगाई थी। कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर की दो अर्जियों पर सुप्रीम कोर्ट के असिस्टेंट रजिस्ट्रार देर रात मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के आवास पर पहुंचे। कुछ देर बाद सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिकारी भी उनके आवास पर पहुंच गए। मुख्य न्यायाधीश ने रात पौने दो बजे सुनवाई करने का फैसला किया और जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस अर्जन कुमार सीकरी और जस्टिस शरद अरविंद बोबडे को इस मामले की सुनवाई सौंपी। रात 1.55 बजे सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने सुनवाई शुरु की। न्यायाधीशों ने कांग्रेस और जेडीएस के तर्क सुनने के बाद येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को माना है कि विश्वास मत साबित करने के लिए दिए गए 15 दिन के समय पर सुनवाई हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने शपथ ग्रहण का समय बढ़ाने से भी इंकार कर दिया। अभी कांग्रेस और जेडीएस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को सुनवाई करेगा।
सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। सत्ताच्युत कांग्रेस बौखलाहट में देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल खड़ा कर रही है। कभी चुनाव आयोग पर हमला करती है तो कभी जांच एजेंसियों पर सवाल उठाती है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने के प्रस्ताव से उन्होंने न्याय पालिका की गरिमा को भी ठेस पहुंचाई है। सत्ता से बेदखल होती जा रही कांग्रेस देश के राजनीतिक परिद्श्य से भी सिमटती जा रही है। अब कांग्रेस की सरकारें केवल पंजाब, पुद्दुचेरी और मिजोरम में बची हैं। भाजपा और सहयोगी दलों की 21 राज्यों में सरकारें हैं। इस समय भाजपा के विधायकों की संख्या 1518 है। कांग्रेस के मौजूदा विधायक 727 हैं। 1989 में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 1877 थी।
कांग्रेस और जेडीएस की येदियुरप्पा को शपथ दिलाने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करने वाली बेंच के जज जस्टिस सीकरी और जस्टिस बोबडे उपराष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव खारिज करने के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करने वाली सांविधानिक पीठ में थे। संवैधानिक पीठ गठन करने को लेकर भी कांग्रेस ने सवाल उठाये थे। दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव खारिज किए जाने के उपराष्ट्रपति के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को कांग्रेस ने वापस ले लिया था। सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस और जेडीएस की याचिका खारिज होने के बाद यह साफ हो गया है कि अब कर्नाटक विधानसभा में बहुमत का फैसला होगा। न्यायालय के फैसले को लेकर तो आलोचना हो सकती है पर किसी फैसले को लेकर न्यायपालिका को निशाना बनाना, किसी भी तरह से उचित नहीं है। कांग्रेस को न्यायपालिका के साथ ही जनता की अदालत के फैसले का भी आदर करना चाहिए।