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Nadda ji

Supreme Court’s historic verdict, the ban on swearing in Karnataka

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, कर्नाटक में शपथ ग्रहण पर नहीं लगी रोक

भारतीय जनता पार्टी के नेता बीएस येदियुरप्पा ने कर्नाटक के नए मुख्यमंत्री की शपथ ले ली है। देर रात सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर की कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला के भारतीय जनता पार्टी के नेता बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के फैसले पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से न्यायपालिका की गरिमा बढ़ी है। जनता का न्यायपालिका में विश्वास बढ़ा है। इस मामले में देर रात याचिका स्वीकार करना, सुबह तक सुनवाई करना और फैसला देना, वाकई एक ऐतिहासिक क्षण है। सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में यह दूसरा मौका है जब आधी रात को अदालती कार्यवाही चली। इससे पहले 29 जुलाई 2015 को पहली बार आधी रात को सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की याचिका पर सुनवाई की थी। सुप्रीम कोर्ट, गवर्नर और बाद में राष्ट्रपति से याकूब मेनन की याचिका खारिज होने के बाद फांसी से ठीक पहले आधी रात को प्रशांत भूषण समेत 12 वकील सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के घर पहुंचे थे। उन्होंने याकूब मेमन की फांस पर रोक लगाने की मांग की। उनकी इस मांग पर तत्कालीन चीफ जस्टिस एच एल दत्तू ने वर्तमान मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई में तीन जजों की बेंच गठित की। देर रात को ही जज सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और मामले की सुनवाई शुरू हुई। तीन जजों की इस बेंच ने याकूब की फांसी की सजा को बरकरार रखा था। कांग्रेस और जेडीएस की याचिका पर ही रात में अर्जी डाली गई, बेंच बनी, कार्यवाही हुई और फैसला दिया गया।

कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला के बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाने के फैसले के खिलाफ कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर) ने सुप्रीम कोर्ट में रात 11.35 बजे अर्जी लगाई थी। कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर की दो अर्जियों पर सुप्रीम कोर्ट के असिस्टेंट रजिस्ट्रार देर रात मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के आवास पर पहुंचे। कुछ देर बाद सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिकारी भी उनके आवास पर पहुंच गए। मुख्य न्यायाधीश ने रात पौने दो बजे सुनवाई करने का फैसला किया और जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस अर्जन कुमार सीकरी और जस्टिस शरद अरविंद बोबडे को इस मामले की सुनवाई सौंपी। रात 1.55 बजे सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने सुनवाई शुरु की। न्यायाधीशों ने कांग्रेस और जेडीएस के तर्क सुनने के बाद येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को माना है कि विश्वास मत साबित करने के लिए दिए गए 15 दिन के समय पर सुनवाई हो सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने शपथ ग्रहण का समय बढ़ाने से भी इंकार कर दिया। अभी कांग्रेस और जेडीएस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को सुनवाई करेगा।

सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। सत्ताच्युत कांग्रेस बौखलाहट में देश की सभी संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल खड़ा कर रही है। कभी चुनाव आयोग पर हमला करती है तो कभी जांच एजेंसियों पर सवाल उठाती है। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने के प्रस्ताव से उन्होंने न्याय पालिका की गरिमा को भी ठेस पहुंचाई है। सत्ता से बेदखल होती जा रही कांग्रेस देश के राजनीतिक परिद्श्य से भी सिमटती जा रही है। अब कांग्रेस की सरकारें केवल पंजाब, पुद्दुचेरी और मिजोरम में बची हैं। भाजपा और सहयोगी दलों की 21 राज्यों में सरकारें हैं। इस समय भाजपा के विधायकों की संख्या 1518 है। कांग्रेस के मौजूदा विधायक 727 हैं। 1989 में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 1877 थी।

कांग्रेस और जेडीएस की येदियुरप्पा को शपथ दिलाने के फैसले के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करने वाली बेंच के जज जस्टिस सीकरी और जस्टिस बोबडे उपराष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव खारिज करने के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करने वाली सांविधानिक पीठ में थे। संवैधानिक पीठ गठन करने को लेकर भी कांग्रेस ने सवाल उठाये थे। दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव खारिज किए जाने के उपराष्ट्रपति के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका को कांग्रेस ने वापस ले लिया था। सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस और जेडीएस की याचिका खारिज होने के बाद यह साफ हो गया है कि अब कर्नाटक विधानसभा में बहुमत का फैसला होगा। न्यायालय के फैसले को लेकर तो आलोचना हो सकती है पर किसी फैसले को लेकर न्यायपालिका को निशाना बनाना, किसी भी तरह से उचित नहीं है। कांग्रेस को न्यायपालिका के साथ ही जनता की अदालत के फैसले का भी आदर करना चाहिए।

The increasing radius of ideology

विचारधारा का बढ़ता दायरा

भारतीय जनता पार्टी 38 वर्ष में 11 करोड़ से ज्यादा सदस्यों के साथ आज दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। भाजपा के तौर पर हमारी राजनीतिक यात्रा चाहे 38 वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुई हो वास्तव में हमारी राजनीतिक जड़े 1951 में जनसंघ की स्थापना के समय से ही पूरे देश में विकसित होती रहीं हैं। 1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सर संघचालक परम पूज्यनीय गुरु गोलवलकर जी की प्रेरणा से 21 अक्टूबर 1951 को भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी। डॉ.मुखर्जी पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार में उद्योग और आपूर्ति मंत्री थे। डॉ. मुखर्जी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली और नेहरू के बीच हुए समझौते से नाराज होकर 6 अप्रैल 1950 को मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया था। 1951-52 के पहले आमचुनाव में डॉ.मुखर्जी सहित जनसंघ के तीन सदस्य चुने गए थे।

जम्मू-कश्मीर में हर भारतीय से अनुमति पत्र लेने के निर्णय के विरोध में डॉ.मुखर्जी ने 1953 में सत्याग्रह प्रारम्भ किया और बिना अनुमति कश्मीर पहुंचे। कश्मीर में गिरफ्तारी के बाद 22 जून 1953 में वे देश के लिए न्यौछावर हो गए। डॉ.मुखर्जी के बलिदान के बाद देश में हजारों कार्यकर्ताओं ने जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी के लिए अपना खून बहाया। आज भाजपा के 15 राज्यों में मुख्यमंत्री हैं और छह राज्यों में हम मिलीजुली सरकारें चला रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बार-बार कहा है कि यह सब हमारे कार्यकर्ताओं के बलिदान और परिश्रम के कारण हुआ है।

विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल भाजपा ही कार्यकर्ताओं की एकमात्र पार्टी है। देश में एकमात्र लोकतांत्रिक दल भाजपा ही है। कांग्रेस समेत ज्यादातर दल आज वंशवाद और जातिवाद के आधार पर राजनीति में टिके रहने की कोशिश रहे हैं तो भाजपा सबका साथ-सबका विकास नारे को लेकर चप्पे-चप्पे पर छा रही है।

देश में आज राष्ट्रपति,  उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, प्रधानमंत्री और 15 राज्यों में मुख्यमंत्री भाजपा के कार्यकर्ता हैं। छह राज्यों में सहयोगी दलों की सरकारें हैं लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी है। राज्यसभा में 69 सदस्यों के साथ भाजपा सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। राज्यसभा में पहली बार भाजपा के 69 सदस्य पहुंचे हैं। यह सब भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं की तपस्या का परिणाम है। हमारे नेताओं और कार्यकर्ताओं के समर्पण, बलिदान और त्याग के कारण ही आज हम इस मुकाम पर पहुंचे हैं।

डॉ.मुखर्जी के बाद जनसंघ को विस्तार को कुछ झटका तो लगा पर कार्यकर्ताओं के दम पर पार्टी बढ़ती रही है। जनसंघ को दूसरा झटका पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बलिदान से लगा। देश की आजादी के बाद देश की एकता और अखंडता के लिए किसी भी राजनेता का ये पहला बलिदान था। पंडित दीनदयालजी की हत्या के बाद माननीय अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, कुशाभाऊ ठाकरे, सुंदर सिह भंडारी, प्यारेलाल खंडेलवाल और अन्य नेताओं के मार्गदर्शन में जनसंघ आगे बढ़ती रही। 1975 में आपातकाल में सबसे ज्यादा अत्याचार राष्ट्रीय सेवक संघ और जनसंघ के कार्यकर्तांओं ने सहे। 1977 में देश में लोकतंत्र की स्थापना की खातिर जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कर दिया गया। लंबे राजनीतिक घटनाक्रम के बाद 6 अप्रैल 1980 को भाजपा की स्थापना हुई और अटल बिहारी वाजपेयी पहले अध्यक्ष बने। भाजपा डॉ.मुखर्जी के आदर्शों और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के मार्ग पर आगे बढ़ती रही। भाजपा पर इस दौरान कई संकट आए पर धीरे-धीरे भाजपा का असर पूरे देश में बढ़ता रहा।

2004 के लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की हार के बाद केंद्र पर कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार का कब्जा रहा। 2014 में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़े गए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने नया इतिहास रचा। लोकसभा में पहली बार भाजपा को 282 सीटों पर कामयाबी तो मिली साथ ही 30 साल बाद किसी राजनीतिक दल को भी सदन में पूर्ण बहुमत मिला। माननीय मोदीजी के नेतृत्व में देश को ऐसी पहली सरकार भी मिली कि जिसके किसी मंत्री पर कोई दाग नहीं लगा पाया।

मोदी सरकार ने वोट बैंक की परवाह न करते हुए नोटबंदी, कालेधन के खिलाफ कार्रवाई, तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने जैसे फैसले किए। गांव, गरीब, किसान, मजदूर, महिला, बुजर्ग, बच्चे और समाज के कमजोर तबकों की तरक्की के लिए योजनाओं की शुरुआत की। यही कारण है मोदी सरकार के कार्यों और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की जमीनी राजनीतिक रणनीति के कारण पार्टी के 2014 के बाद हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश और त्रिपुरा में भाजपा की मुख्यमंत्री बने। गोआ और गुजरात में फिर से भाजपा जीती। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी भाजपा सरकारें हैं। देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस अब केवल कर्नाटक, पंजाब, मिजोरम और पुद्दूचेरी तक सिमट गई है। कम्युनिस्टों का लगातार पतन हो रहा है। त्रिपुरा में भाजपा की सरकार बनने के बाद कम्युनिस्टों की सरकार अब केवल केरल में है। जाति और मजहब को लेकर राजनीति करने वाले दल भी भाजपा की बढ़ती ताकत से परेशान हैं। देश में तीसरे मोर्चे बनाने की कवायद चल रही है।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने त्रिपुरा में पार्टी की सरकार बनने के बाद कहा था कि अभी भाजपा का स्वर्ण युग नहीं आया है। उन्होंने कहा है कि केरल, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भाजपा की सरकार बनने के बाद पार्टी का स्वर्ण युग आएगा। इस समय कर्नाटक में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि वहां भाजपा की सरकार बनेगी। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भाजपा की बढ़ती ताकत से परेशान होकर कभी दिल्ली की तरफ दौड़ लगाती है तो कभी दूसरे राज्यों में विपक्षी नेताओं से फोन पर बात करती हैं। भाजपा के खिलाफ आवाज उठाने वाली ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र का गला घोंट दिया है।

भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं को झूठे मामले बनाकर जेल भेजा जा रहा है। भाजपा कार्यकर्तोओं पर जानलेवा हमले किए जा रहे हैं। हमारे कई कार्यकर्ताओं हिंसक वारदातों में बलिदान हुए हैं। कर्नाटक, केरल जैसे राज्यों में भी हमारे कार्यकर्ताओं की हत्याएं हुई हैं। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कर्नाटक में कहा भी है कि कार्यकर्ताओं का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा।

भाजपा स्थापना दिवस पर देशहित हेतु सदैव बलिदान देने वाले हजारों कार्यकर्ताओं को भावभीनी श्रद्धाजंलि। साथ ही भाजपा की राजनीतिक यात्रा में भागीदार बने, करोड़ो साथियों को नए संघर्ष हेतु शुभकामनाएं।

आईए! देश में नई राजनीति का प्रारम्भ करने वाले मोदी और शाह की अगुवाई में हम अभी से आगामी आमचुनाव और राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए एकजुट होकर लग्न के साथ कार्य करें।

Come on, celebrate the festival!

आओ, नव संवत पर उत्सव मनाएं!

चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को हमारा नव संवत प्रारम्भ होगा। 18 मार्च 2018 को भारत के विभिन्न प्रांतों में नवदुर्गा की आराधना के साथ ही नव संवत्सर मनाया जाएगा। आप सभी को नव संवत 2075 की बहुत बहुत शुभकामनाएं। आजकल कुछ कारणों से अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार हर साल 31 दिसंबर की रात को नया साल मनाने की परम्परा तेजी से बढ़ी है। हम लोग रात के गहरे अंधकार में नए साल का स्वागत करते हैं। क्या रात को हम नए वर्ष की शुरुआत कर सकते हैं? कुछ वर्षों से यह बात भी देखने में आई हैं कि बड़ी संख्या में अंग्रेजों के नए साल पर बधाई या शुभकामना के संदेश में लोगों ने यह भी कहा कि अपना नया वर्ष तो चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरु होगा। नव संवत्सर का शुभारम्भ आईये हम उत्सव मनाकर करें।

भारत में नव संवत को पर्व या त्योहार की तरह मनाने की प्राचीन परम्परा है, जो कुछ कारणों से हम भूल गए। हिन्दू पंचांग पर आधारित विक्रम संवत या संवत्सर उज्जनीयि के सम्राट विक्रमादित्य ने प्रारंभ किया था। कल्प, मनवंतर, युग, संवत्सर आदि कालगणना का आधार माना जाता है। पुराणों में वर्णन है कि भारत का सबसे प्राचीन संवत है कल्पाब्ध। सृष्टि संवत और प्राचीन सप्तर्षि संवत का उल्लेख भी पुराणों में मिलता है। युग भेद से सतयुग में ब्रह्म-संवत, त्रेता में वामन-संवत और परशुराम-संवत तथा श्रीराम-संवत, द्वापर में युधिष्ठिर संवत और कलि काल में कलि संवत एवं विक्रम संवत प्रचलित हुए। पुराणों में उल्लेख है सतयुग का प्रारम्भ नव संवत से ही हुआ था। इसका उल्लेख अथर्ववेद तथा शतपथ ब्राह्मण में भी मिलता है। योगीराज भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की तिथि से कलियुग संवत का प्रारम्भ हुआ था। पुराणों में बताया गया है कि नव संवत को ही भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। भगवान राम का राज्याभिषेक भी नव संवत के दिन हुआ था।

यह माना जाता है कि इन सबके आधार पर सम्राट विक्रमादित्य ने संवत्सर को काल गणना के आधार पर प्रारम्भ कराया था। हैं। संवत्सर यानी 12 महीने का कालविशेष। उस समय उज्जनीयि के नागारिकों के लिए सम्राट की तरफ से कई घोषणाएं की थी। गरीबों को उपहार दिए गए। ब्रह्म पुराण के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। पुराणों में वर्णन है कि नव संवत पर देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गन्धर्वों, ऋषि-मुनियों, मनुष्यों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों आदि की पूजन किया जाता था। पूजन के माध्यम से हम सुख, समृद्धि, शांति, आरोग्य और सामर्थ्य की कामना करते हैं। नव संवत पर देवी उपासना से रोगों से मुक्ति है, शरीर स्वस्थ रहता है। भारत के प्रांतों में नव वर्ष अलग-अलग तिथियों के अनुसार मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाडी, चेटीचंड, चित्रैय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नव संवत्सर के आसपास ही आती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक के संस्थापक प्रथम सर संघचालक परम पूज्यनीय डॉ. केशवराव हेडगेवार का जन्म चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत 1946 (1 अप्रैल 1889) को हुआ था।

नव संवत को उत्सव की तरह मनाएं। घरों को रंगोली से सजाए। दिन का प्रारम्भ मां दुर्गा की आऱाधना से शुरु करें। रात को घरों में मिट्टी के दिए जलाएं। बंधु-बांधवों के साथ भजन-कीर्तन करें और उपहार के तौर पर प्रसाद बांटे। दिन में परिवार के साथ बैठकर खीर, पूड़ी, हलवा और पकवान ग्रहण करें। प्राचीन भारत की गरिमा को स्मरण करने के लिए गोष्ठियों का आयोजन करें। आईये, नव संवत पर हम सब भारतवासी अपने देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए एक साथ मिलजुल कर काम करने का संकल्प लें। यह अवसर ऐसा होगा कि जब हम अपनी जड़ों की तरफ लौटेंगे तो हमें वैज्ञानिक आधार पर बने संवत के अनुसार कार्य प्रारम्भ करने से अपने – अपने लक्ष्यों की प्राप्ति होगी। इसी संकल्प के साथ एक बार सभी देशवासियों को नव संवत पर बहुत बहुत शुभकामनाएँ।

– कैलाश विजयवर्गीय

Congress busted in Gujarat elections

गुजरात चुनावों में होगा कांग्रेस का पर्दाफाश

गुजरात के चुनाव जैसे जैसे नज़दीक आ रहे हैं वैसे भाजपा की जीत और सुनिश्चित नज़र आ  रही है. इसी के चलते बौखलाए हुए कांग्रेसी नेता जनता की आँखों में धूल झोंकने की कोशिश कर रहे हैं. बेबुनियाद आरोपों का सहारा लेकर चरित्र हनन करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन असल बात तो ये है कि इलेक्शन दर इलेक्शन कांग्रेस की नैया डूबती जा रही है. यही बात उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय चुनावों के परिणामों ने और साफ़ कर दी है. जो कांग्रेस अपने नेता के संसदीय क्षेत्र में मुंह की खा चुकी है, वही कांग्रेस बड़ी बेशर्मी से गुजरात राज्य जीतने के दावे कर रही है. उत्तर प्रदेश से भगाए जाने के बाद अब वो गुजरात को डूबोने चली आई है. इसी से पता चलता है कि कांग्रेस चुनावी वास्तव से किस कदर दूर है.

कांग्रेस के झूठे आरोप और निंदा के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी और भाजपा की लोकप्रियता अबाधित रही है, यह तथ्य कांग्रेस पचा नही पा रही है. और इसीलिए जातिवाद, साम्प्रदायिकता और तुष्टिकरण की राजनीति का सहारा लेकर गुजरात की जनता को भ्रमित करने का प्रयास कर रही है. सर्जिकल स्ट्राइक,  नोटबंदी और जीएसटी जैसे देशहित के निर्णयों पर सवाल उठाकर लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है.

‘विकास’ को ‘पागल’ करार देनेवाले ये नहीं समझ पा रहे हैं कि ऐसा करके वो गुजरात की जनता का अपमान कर रहे हैं. गुजरात के विकास पर सवाल उठानेवाले ये आसानी से भूल चुके हैं कि २२ साल पहले उन्होंने गुजरात की कैसी दुर्दशा कर दी थी. भाजपा की अगुवाई में उसी गुजरात ने जो विकास किया है, उसे केवल देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सराहा गया है. उल्लेखनीय बात तो ये है कि ये विकास किसी एक क्षेत्र में नहीं बल्कि कृषि, उद्योग और सेवा इन तीनों क्षेत्रों में हुआ है. और ये विकास सिर्फ शहरी या संपन्न लोगों तक सीमित नहीं रहा है. गरीब कल्याण मेला और वनबन्धु कल्याण योजना जैसी कई योजनाओं के तहत आखरी व्यक्ति तक विकास के लाभ पहुँचाने के भरसक प्रयास किए गए हैं.  यही वजह है कि सिर्फ आदिवासी ही नहीं, मुस्लिम मतदाता का भी भाजपा के प्रति रुझान साफ़ दिखाई दे रहा है.

अलग अलग सर्वेक्षणों से ये स्पष्ट रूप से  पता चलता है कि गुजरात की जनता जातिवाद के बजाय विकास को महत्व देगी. वंशवाद का सहारा लेकर नहीं बल्कि विकास के जरिये सामाजिक न्याय स्थापित करने में भरोसा दिखायेगी. गुजरात का मतदाता भलीभांति जानता है कि गुजरात और भारत के लिए अगर कोई दीर्घकालिक आशा है तो वह है भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी! उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों के परिणामों से कांग्रेस की पोल बुरी तरह खुल ही चुकी है. लेकिन गुजरात चुनावों के परिणाम उसके झूठ का पूरी तरह पर्दाफाश कर देंगे इसमें कोई दोराय नहीं है. ये परिणाम भारत को कांग्रेस मुक्त करने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम रहेगा, ये निश्चित है.

Thing of mind – November 27

लेसकैश की आदत डालें तो कैशलेस सोसायटी अपने आप बनेगी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी नोटबंदी के बाद आज पहली बार ‘मन की बात’ कार्यक्रम में देश को संबोधित किया। कार्यक्रम में मोदी ने कहा कि इस बार मैंने दिवाली पर चीन की सीमा पर तैनात जवानों के साथ दिवाली मनाई। 500 और एक हजार के नोट के बंद करने के अपने फैसले का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि पूरा विश्व हमें इस उम्मीद से देख रहा है कि क्या हम इसमें सफल होंगे। लेकिन हम सवा सौ करोड़ देशवासी इसे सफल करके ही रहेंगे। उन्होंने कहा कि लेस कैश की आदत डालिए तो कैशलेस सोसायटी अपने आप बनेगी।

जवानों के साथ मनाई दिवाली

मन की बात कार्यक्रम में पीएम मोदी ने सबसे पहले सीमा पर तैनात जवानों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि मैंने इस पर सीमा पर तैनात जवानों से साथ दिवाली मनाई। उन्होंने कहा कि देश ने जिस अनूठे अंदाज़ में दिवाली पर सेना के जवानों को, सुरक्षा बलों को समर्पित की, इसका असर वहां हर जवानों के चेहरे पर अभिव्यक्त होता था।

सेना के एक जवान ने मुझे लिखा कि हम सैनिकों के लिये होली, दिवाली हर त्योहार सरहद पर ही होता है, हर वक्त देश की हिफाजत में डूबे रहते हैं लेकिन घर की याद आ ही जाती है लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। ऐसा प्रतीत हुआ इस बार हम भी सवा सौ करोड़ देश वासियों के साथ त्योहार मना रहे हैं। पीएम ने लोगों से अपील की हम समाज के रूप में एक राष्ट्र के रुप में एक माहौल बनाएं और सेना का जवानों का हौंसला बढ़ाएं.

कश्मीर में स्कूलों को जलाने की बात का जिक्र

कुछ समय पहले मुझे जम्मू-कश्मीर से, वहां के गांव के सारे प्रधान मिलने आये थे, काफी देर तक उनसे मुझे बातें करने का अवसर मिला | वे अपने गांव के विकास की कुछ बातें लेकर के आए थे। मैंने उनसे आग्रह किया था कि आप जाकर के इन बच्चों के भविष्य पर अपना ध्यान केंद्रित करें। जम्मू-कश्मीर के हमारे बच्चे उज्ज्वल भविष्य के लिये, शिक्षा के माध्यम से विकास की नई ऊंचाइयों को पाने के लिये कृतसंकल्प हैं।

पांच सौ और हजार के नोट के बैन पर की बात

इस बार जब मैंने ‘मन की बात’ के लिये लोगों के सुझाव मांगे, तो मैं कह सकता हूं कि एकतरफा ही सबके सुझाव आए, सब कहते थे कि 500 और 1000 रुपये वाले नोटों पर और विस्तार से बातें करें। मैंने सबसे कहा था कि निर्णय सामान्य नहीं है, कठिनाइयों से भरा है। निर्णय लेने से ज्यादा कठीन है इसे लागू करना। इससे निकलने में 50 दिन लग ही जाएंगे। तब जाकर हम इससे निकल पाएंगे। 70 साल से हम जिस बीमारी को झेल रहे थे, इसके बाद हम इससे निकल जाएंगे।

आपकी पेरशानियों को मैं समझता हूं। भ्रमित करने के प्रयास चल रहे हैं फिर भी देशहित की इस बात को आपने स्वीकार किया है। कभी-कभी मन को विचलित करने वाली घटनायें सामने आते हुए भी, आपने सच्चाई के इस मार्ग को भली-भांति समझा है।

पूरा विश्व उम्मीद से देख रहा है

500 और 1000 के नोट के चलन से बाहर होने के फैसले को पूरा विश्व इसे देख रहा है। सभी लोग सोच रहे हैं क्या इसमें सफल होंगे क्या। लेकिन सवा सौ करोड़ देशवासी इसे सफल करके ही रहेंगे। इसका कारण आप हैं। इस सफलता का मार्ग ही आप हैं।

सभी बैंककर्मियों को सराहा

केंद्र सरकार, राज्य सरकार एक लाख तीस हजार बैंक, उनके कर्मचारी, पोस्ट ऑफिस सभी इसमें जुटे हुए हैं। सभी लोग इसे देशहीत में मानकर काम शुरू करते हैं। सुबह से शाम तक इसमें जुटे रहते हैं। इससे ये साबित होता है कि ये सफल होगा।

खंडवा में एक बुजुर्ग इंसान का एक्सीडेंट हो गया। बैंककर्मी को जब ये मालूम चला तो उनके जाकर मदद पहुंचाई। ऐसे कई कहानियां हैं जो मीडिया और अखबारों में आती रहती हैं।

जनधन योजना के दौरान सभी बैंककर्मी ने जो एक जुटता दिखाई थी वहीं एक बार फिर वे इसे सच कर दिखाएंगे। कई लोगों को लगता है कि इसके बावजूद वे अपने कालेधन को ठीकाने लगा लेंगे। इसके लिए भी उनलोगों ने गरीबों का इस्तेमाल कर रहे हैं। मैं ऐसे लोगों से कहना चाहता हूं कि आप गरीबों की जिंदगी के साथ न खेलें। आप ऐसा न करें कि गरीब का नाम आए जाए और जब जांच हो तो आपक नाम आए।

मध्य प्रदेश के आशीष ने कालेधन के खिलाफ चलाए गए इस अभियान को लेकर मुझे फोन किया और बताया कि आपका ये कदम स्वागतयोग्य है।

Kerala-Bloody Politics of Communists

केरल- कम्युनिस्टों की रक्तरंजित राजनीति

हरे-भरे केरल को लाल खून से सींचने का काम कम्युनिस्ट लंबे समय से कर रहे हैं। केरल में जब-जब कम्युनिस्ट सत्ता में आते हैं, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं पर हमले तेज हो जाते हैं। सत्ता में बने रहने या अपना असर बढ़ाने के लिए कम्युनिस्ट हमेशा से विरोधियों का खून बहाने में विश्वास रखते हैं।

ईश्वर के अपने घर केरल में लाल आतंक देश की आजादी के तुरंत बाद ही शुरु हो गया था। 1948 में राष्ट्रीय स्वयंसेक संघ के द्वितीय सर संघचालक पूज्यनीय गुरुजी की एक सभा पर हमला किया गया था। केरल में संघ और भाजपा की बढ़ती ताकत से बौखलाकर कम्युनिस्टों ने पिछले कुछ समय से हमले और तेज किए हैं। केरल के मौजूदा मुख्यमंत्री पिनराई विजयन खुद संघ के कार्यकर्ता की हत्या के आरोपी हैं। विजयन और कोडियरी बालकृष्णन की अगुवाई में पोलित ब्यूरों के सदस्यों ने संघ के स्वयंसेवक वडिक्कल रामकृष्णन की हत्या 28 अप्रैल 1969 कर दी थी।

कन्नूर जिला केरल के मुख्यमंत्री विजयन का गृह जिला है। पिछले साल मई से अबतक हिंसा की 400 से ज्यादा वारदातें हुई हैं। केरल में वर्ष 2001 के बाद से अबतक राज्य में 120 कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्याएं की गई है। इनमें से 84 कार्यकर्ता तो केवल कन्नूर जिले में ही शहीद हुए हैं। 14 कार्यकर्ता तो केवल मुख्यमंत्री पिनरई विजयन के गृहनगर में कम्युनिस्टों की हिंसा के शिकार बने। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह की केरल के कन्नूर जिले से शुरु हुई जन रक्षा यात्रा से वामदलों के नेता बौखला गए हैं। दिल्ली में भी माकपा के कार्यालय पर भाजपा के कार्यकर्ता रोजाना प्रदर्शन कर रहे हैं। केरल में भाजपा अध्यक्ष की जन रक्षा यात्रा के माध्यम से पूरे देश में कम्युनिस्टों की रक्तरंजित राजनीति का सच देश की जनता के सामने आया है।

जन रक्षा यात्रा पूरे प्रदेश का भ्रमण करने के बाद 17 अक्टूबर को तिरुवनंतपुरम में समाप्त होगी।

सच में अमित शाह जी ने यह साबित कर दिखाया, कि अपने कार्यकर्ताओं पर हमलों के खिलाफ वे हर कदम पर पूरी तरह साथ हैं। इससे पूरे देश के कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है। पूरे देश में वामदलों के खिलाफ जनता में गुस्से की लहर व्याप्त हो रही है।

‘सभी को जीने का हक!! जिहादी-लाल आतंक के खिलाफ’

इस नारे को लेकर जारी इस यात्रा का मकसद पूरे देश के सामने वामदलों की रक्तरंजित राजनीति का खुलासा करना है। अमित जी ने जनरक्षा यात्रा की शुरुआत में राज्य में सत्तारूढ लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने यह भी कहा कि जब भी राज्य में कम्युनिस्टों को सत्ता मिलती है, संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं की हत्या के मामले बढ़ जाते हैं। भाजपा अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री से हत्याओं को लेकर जवाब भी मांगा है। मुख्यमंत्री के पास भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या का कोई जवाब नहीं है। हताशा में भाजपा और संघ पर अनर्गल आरोप लगाकर राजनीति करने में लगे हैं।

पश्चिम बंगाल में भी कम्युनिस्टों का लंबे समय तक आतंक रहा। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी की भी कम्युनिस्टों ने राज्य की सत्ता में रहते हुए पिटाई की थी। ये सब भूलकर तृणमूल भी उसी राह पर अग्रसर है, ममता बनर्जी की शह पर उनकी पार्टी के गुंडे भाजपा व संघ के कार्यकर्ताओं को रोजाना निशाना बना रहे हैं। भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं पर सुनियोजित और संगठित तरीके से हमले किए जा रहे हैं। उनके घरों और दुकानों को आग लगाई जा रही है। वाहनों को फूंका जा रहा है। मां-बेटियों के डराया धमकाया जा रहा है। कई स्थानों पर बदसूलुकी भी की गई है। ममता बनर्जी की पुलिस का हाल यह है कि थाने तृणमूल के गुंडे चला रहे हैं। तृणमूल के नेताओं के कहने पर मुकदमे दर्ज होते हैं। पुलिस के बड़े अफसर भी तृणमूल कांग्रेस नेताओं के पालतू कर्मचारी की तरह काम करते हैं। पुलिस के जरिये संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं को फर्जी मुकदमे में फंसाकर जेल भेजा जा रहा है।

पिछले दिनों भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पश्चिम बंगाल में पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं की व्यथा को जाना और ममता सरकार को रक्तरंजित राजनीति करने पर चेतावनी दी। अमित शाह ने केरल और पश्चिम बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या और जानलेवा हमले, फर्जी मुकदमों में फंसाने को लेकर आन्दोलन करने का ऐलान भी किया।

केरल में कम्युनिस्टों के बढते आतंक के कारण भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को खुद सड़क पर आना पड़ा है। वे पदयात्रा के जरिये वामदलों की रक्तरंजित राजनीति की तरफ देश की जनता का ध्यान खींचने में सफल हुए है। हैरानी की बात है, कि हमारे देश के मानवाधिकार संगठनों ने केरल और पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हत्याओं को लेकर हाय-तौबा मचाना तो दूर, एक उफ्फ तक नहीं की।

इन तथाकथित मानवाधिकार संगठनों का काम केवल कुछ सीमित घटनाओं तक ही सीमित रहता है। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ मानवाधिकार संगठन केवल राजनीतिक कारणों से ही हल्ला मचाते हैं। मानवाधिकार संगठन और देश के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने पिछले कुछ समय से देश में असहिष्णुता का आरोप लगाया है। ऐसे आरोप केवल राजनीतिक दलों के सहारे पलने वाले मानवाधिकार संगठन और बुद्धिजीवी ही लगा रहे हैं। इस बात की असलियत देश की जनता जान चुकी है।

मीडिया में भी, केवल एक सीमित वर्ग ने ही ऐसे प्रायोजित आरोपों को जगह दी है। मीडिया के ऐसे लोगों की असलियत भी अब जनता के सामने आ रही है। मैंने पश्चिम बंगाल में खुद यह अनुभव किया कि मीडिया घरानों पर ममता बनर्जी का कितना खौफ है। ममता के डर की वजह से पश्चिम बंगाल के अखबार और टीवी चैनल तृणमूल कांग्रेस की गुंडागर्दी, जबरन वसूली, लूटपाट और महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को प्रकाशित करने और दिखाने से डरते रहे हैं।

पश्चिम बंगाल में भाजपा के ममता सरकार के खिलाफ बड़े आन्दोलनों के कारण मीडिया में अब सरकारी संरक्षण में होने वाले अत्याचारों का खुलासा होने लगा है। इसी तरह केरल में भी मीडिया पर सत्तारूढ़ वामपंथी सरकारों का दबाव रहा है। खासतौर पर वाममोर्चा सरकार ने तो अखबारों और चैनलों को बहुत अधिक डरा-धमका कर रखा हुआ है। राष्ट्रीय मीडिया में कुछ घटनाओं का जिक्र तो हुआ पर ज्यादातर घटनाओं को जगह ही नहीं दी गई। हाल ही में मीडिया के एक वर्ग पर भी केरल में हमले हुए हैं। केरल में तो पुलिस सरकार के इशारे पर मीडिया भी को निशाना बना रही है।

पश्चिम बंगाल में तो एक समुदाय को खुश करने के लिए ममता बनर्जी ने हिन्दुओं के त्यौहार और पर्व मनाने पर भी प्रतिबंध लगा दिए। यह बात बेशक मजाक में कही गई कि जिस बंगाल में पहले दुर्गा उत्सव मुख्य पर्व था, वहां अब मुहर्रम मुख्य पर्व हो गया है। किन्तु, यह एक खतरनाक संकेत है। राजनीतिक फायदे के लिए ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने पर तुली हैं। हिन्दुओं को डराया-धमकाया जा रहा है। गांवों से सुनियोजित तरीके से उन्हे घर-बार छोड़ने पर मजबूर किया जा रहा है। उनके कारोबार तबाह किए जा रहे हैं। उनकी सम्पत्तियों पर तृणमूल के कार्यकर्ता पुलिस के सहयोग से कब्जे कर रहे हैं। ऐसे इलाकों में एक समुदाय को बसाया जा रहा है। ऐसी घटनाओं को मीडिया में स्थान नहीं मिला। मानवाधिकार संगठनों ने भी ऐसी घटनाओं की तरफ से मुहं मोड़ लिया।

वामदल हो या ममता बनर्जी, इन्हें अब यह ध्यान रखना चाहिए कि भारत के 80 फीसदी हिस्से पर भाजपा का असर है। केन्द्र में सरकार और 18 राज्यों में भाजपा तथा सहयोगी संगठनों की सरकारें हैं। अब बारी केरल और पश्चिम बंगाल में कमल खिलाने की है।

Why Rohingya Muslims do not surrender

रोहिंग्या मुसलमानों को शरण क्यों नहीं

पिछले महीने म्यांमार की सेना पर हमले के बाद वहां से खदेड़े गए रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में शरण देने, न देने के फैसले पर कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन मानवाधिकारों के नाम पर घडियाली आंसू बहाने में लगे हुए हैं।

म्यांमार में सेना पर रोहिंग्या रक्षा सेना के हमले के बाद वहां से अवैध रूप से भारत में आए रोहिंग्या मुसलमानों को शरण न देने के फैसले पर भारत सरकार पर सवाल उठाएं जा रहे हैं। 

दरअसल जिन कारणों से म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों को खदेड़ा गया था, ऐसे ही कारण भारत में बनने की आशंका हैं।
सरकार ने साफ तौर पर कहा है कि रोहिंग्या मुसलमानों से देश की शांति एवं सुरक्षा को खतरा है।

म्यांमार में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को वहां का नागरिक नहीं माना जाता है। उसके कई कारण हैं।
इसके बावजूद रोहिंग्या मुसलमान वहां तमाम सुविधाओं के साथ रह रहे थे। म्यांमार सरकार ने 1982 में राष्ट्रीयता कानून बनाकर ‘नागरिक दर्जे’ को खत्म कर दिया था। म्यांमार सरकार का कहना था कि रोहिंग्या मूल रूप से ‘बांग्लादेशी’ हैं।

कुछ वर्षों से इस्लाम खतरे में है का नारे देते हुए खाड़ी देशों से गए इस्लामिक गुरुओं ने म्यांमार सरकार के खिलाफ रोहिंग्या मुसलमानों को खड़ा कर दिया।

इस्लाम खतरे में हैं, उसे बचाने लिए हथियार चलाना सिखाया

आतंकी गतिविधियों का प्रशिक्षण सिखाया, सेना से लड़ने का जज्बा पैदा किया। पहली बार 2012 में रोहिंग्या मुसलमानों ने बौद्धों पर हमला किया तो उन्हें जवाब भी मिला।
पिछले महीने की 25 तारीख को रोहिंग्या रक्षा सेना के हमले में 71 लोगों की मौत हो गई है।

यह हमला रखाइन राज्य में हुआ। रखाइन को अराकान भी कहा जाता है।रोहिंग्या मुसलमानों ने करीब 30 पुलिस चौकियों और एक सैन्य अड्डे को निशाना बनाया था। म्यांमार सेना की जवाबी कार्रवाई में 59 विद्रोही और 12 सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं।

इसके बाद म्यांमार सेना की बड़ी कार्रवाई के बाद रोहिंग्या मुसलमानों को वहां से भागना पड़ रहा है।

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अन्य मुस्लिम देशों ने रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने से इंकार कर दिया है।
सबसे बड़ी तो यह है कि बरसों से म्यांमार में बसे रोहिंग्या मुसलमानों को इस्लाम के नाम पर बंदूक थमाने वाले देशों ने भी शरण देने से इंकार कर दिया है।

भारत सरकार ने भी रोहिंग्या मुसलमानों के शरण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा है कि उनसे देश की सुरक्षा को खतरा है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी, जिन्हें राज्य में मुसलमानों का सरपरस्त माना जाता हैं, रोहिंग्या मुसलमानों को शऱण देने की परोकारी कर रही हैं।

बांग्लादेशी मुसलमानों को वोट के लालच में पश्चिम बंगाल में बसाने वाली ममता बनर्जी की सरकार ने तो आतंकवादी, घुसपैठियों के राशन कार्ड भी बनवा दिए हैं।

आतंकवादी घटनाओं में पकड़े गए रोहिंग्या मुसलमान के जन्म प्रमाणपत्र भी पश्चिम बंगाल में बन रहे हैं।
रोहिंग्या आतंकी मोहम्मद इस्माइल को हाल ही में हैदराबाद पुलिस ने गिरफ्तार किया था। 
उसके पास से पश्चिम बंगाल में बना बर्थ सर्टिफिकेट प्राप्त हुआ था। इस घटना ने वहां की सुरक्षा-व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है।

रोहिंग्या आतंकी मोहम्मद इस्माइल को दमदम नगरपालिका ने बर्थ सर्टिफिकेट जारी किया है।

उसके पास से मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, पैन कार्ड, यूएनएचआरसी कार्ड भी बरामद किया गया है।

इस बात से यह सच्चाई तो सामने आ गई है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री केवल और केवल वोटों के लालच में और एक समुदाय को खुश करने के लिए ही रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने की परोकारी कर रही हैं।

सारी दुनिया जानती है कि प्राचीन काल से ही भारत की छवि एक उदार राष्ट्र की रही है। तमाम धर्म और समुदाय भारत में विकसित हुए हैं। भारत हमेशा यहां आने वालों का स्वागत करता रहा है।

हमारा इतिहास बताता है कि विदेशी आक्रांताओं ने शरण लेने के नाम पर हमेशा छल किया।

पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी की 17 बार जान बख्शी, पर उसने क्या किया। कितने मुगलों को भारत में शऱण दी गई। पुतर्गालियों को भारत में शरण दी गई। व्यापार करने के नाम पर भारत में आने वाले अंग्रेजों ने राजा-महाराजाओं से विश्वासघात करते हुए एक-दूसरे को लड़ा कर अपना साम्राज्य कायम कर लिया।

सिकंदर के महान बनने की कहानी के पीछे भी धूर्तता की बड़ी भूमिका थी। भारत में आजादी के बाद लगातार लोग शऱण के लिए यहां आते रहे हैं। यहूदियों को लाखों हिन्दुओं और सिखों को पाकिस्तान में मुसलमानों द्वारा किए गए कत्ले आम के कारण भारत आना पड़ा।

1950 में बड़ी संख्या में तिब्बत के लोगों को भारत में चीन के कड़े विरोध के बावजूद शरण दी गई। अफगानिस्तान से बड़ी संख्या में लोग भारत के कई शहरों में रह रहे हैं। बांग्लादेश से निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन को भारत में ही शरण मिली। भारत में पांच हजार से ज्यादा यहूदी रह रहे हैं।

कुछ समय पहले भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की इजरायल यात्रा के दौरान भारत के यहूदियों ने कहा था कि हमें भारत में डर नहीं लगता है, लेकिन देश के बाहर पैदा होने वाले आतंक से खतरा बताया था।

ऑल इंडिया मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एइएमइएम) के औवेसी ने तो तस्लीमा को शऱण देने के बहाने रोहिंग्या मुसलमानों को शऱण देने की वकालत की है।

कुछ मामलों को छोड़ दें तो शरण देने वालों का इतिहास विश्वासघात से ही भरा हुआ है। उदारता के कारण भारतीयों को शऱण देने के कारण खामियाजा ही भुगतना पड़ा है।

दरअसल इस समय केंद्र सरकार की सबसे बड़ी चिंता रोहिंग्या मुसलानों को शरण देने के बाद उनसे होने वाली असुरक्षा से ज्यादा है। बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमानों के आतंकवादी संगठनों में शामिल होने की सूचना के बाद केंद्र सरकार ने यह कदम उठाया है।

2015 में श्रीनगर के दक्षिण में 30 किलोमीटर दूर एक एनकाउंटर में मारे गए दो आतंकवादियों में से एक की पहचान रहमान-अल-अरकानी उर्फ बर्मी के तौर पर की गई थी।

अराकान ही वह इलाका हैं जहां से रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार सेना ने खदेड़े थे। म्यांमार सरकार ने 9 अक्टूबर 2016 को बांग्लादेश से लगी सीमा चौकियों पर हुए आतंकी हमलों को अंजाम देने वाले संगठन अका-मुल- मुजाहिदीन और उसके सरगना हाविसतुहार के पाकिस्तान से संबंध होने की बात कही थी।
म्यांमार सरकार ने घोषणा की थी मुंगदॉ इलाके के रहने वाले हाविसतुहार ने पाकिस्तान में 6 महीने की तालिबानी आतंकी ट्रेनिंग ली थी।

आतंकवादी अब्दुल करीम टुंडा ने भी पकड़ने के बाद पुलिस को बताया था कि लश्कर म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के जरिये आतंकवाद फैला रहा है। म्यांमार में बौद्धों पर हमला करने के लिए रोहिंग्या मुसलमानों को उकसाने में बर्मी की भूमिका रही है। बर्मी के बारे में कहा जा रहा है कि अलकायदा के लिए भी उसने लड़ाई लड़ी है। इस समय देश में अवैध रूप से रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या 42 हजार से ज्यादा बताई गई है। सबसे ज्यादा रोहिंग्या घुसपैठी जम्मू में रह रहे हैं।

भारत में रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। रोहिंग्या मोहम्मद सलीमुल्लाह और मोहम्मद शाकिर ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर भारत में शऱण मांगी है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत यह शऱण मांगी गई है।

सरकार ने कहा है कि धारा 21 के तहत मिला जीने का अधिकार धारा 19 से जुड़ा है और यह धारा केवल भारतीय नागरिकों के लिए हैं। जो लोग रोहिंग्या मुसलमानों के लिए आंसू बहा रहे हैं, उन्होंने पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं या दूसरे धर्मों के नागरिकों पर होने वाले जुल्मों के खिलाफ कभी कुछ बोला है।

पाकिस्तान में हिन्दू लड़कियों की जबरन मुस्लिमों से शादी कराईं जा रही हैं, उनके मंदिरों पर हमले हो रहे हैं।

यह सब शायद मानवाधिकार की श्रेणी में नहीं आता है। मानवाधिकार की श्रेणी में आता है कि पहले अवैध रूप से किसी देश में घुसों। वहां की सेना पर हमले करो और फिर जवाबी कार्रवाई हो तो मानवाधिकार की बात करों।
भारत सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने का सही निर्णय लिया है। भारत 1951 संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कनवेंशन का हिस्सा नहीं है। किसी को भी शरणार्थी का दर्जा प्राप्त करने के लिए एक प्रक्रिया का पालन करना होता है। रोहिंग्या मुसलमानों में से तो किसी ने प्रक्रिया का पालन नहीं किया है।

Celebrate your Inner self this Dussehra

India is a land of fests, customs and religions. We, in India as spiritual and religious citizens believe in celebrating every religion in India. No matter from which religion we belong to. Like recently, we witnessed a Muslim celebrity celebrating Diwali. Festivals are part of our lives. For youngsters dwelling in hostels, festivals are the best opportunity to get back to their homes and enjoy mom’s delicious recipes. For aged people, it is the best or the only time when they get to meet their grown-up responsible children who have also got children. And for children festival is about getting a handful of prasad, wearing new clothes, enjoying aarti and much more.

Dussehra is one of the most auspicious and exhilarating occasion when Indians unite to celebrate it. It isn’t just a festival. Dussehra in itself comes up with a message that we all should remember and follow throughout our lives. This exquisite festival lays down the message that ‘Good always wins over the Evil’. And so applies in our lives too. We all face obstacles. In Fact, the biggest devil that resides today is in our “ourselves”. Today we do not have Ravana physically. But the truth is that Lord Ram and Lord Ravana both are within us. Everything is within us. The good as well as bad. It depends on us what to use, how to use and why to use. The Evil that is assassinating many of us in today’s world is jealousy, hatred, comparison, fear, illogical believes. This all together makes today’s Ravana which is much devastating and destructive than the earlier one

Dussehra rightly reminds us to kill such thoughts timely and clean our inner selves intermittently. So as to not only survive but to live better, healthier and stronger.  Dussehra is basically like celebrating life every year by implementing its core message every day and spreading it every hour at least to self and our beloveds if not feasible to spread it to many.

We face several evils in our life. Be it in the form of people who are enemies or be it in the form of the situation which completely opposes us. Remember! Every evil fosters us. Cowards give up. And the brave ones continue even after facing the worst. Ravana had all the powers yet he failed. Lord Rama too had powers but he used them sagaciously. Using yourself rightly is important. Stand for what’s right even after others favouring the wrong.

Happy Dussehra! Let’s kill the devil and celebrate the new us.

Challenges to the Constitution in West Bengal

पश्चिम बंगाल में संविधान को चुनौती

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के साथ उनके मंत्री और पार्टी नेता लोकतांत्रिक अधिकारों का गला घोटते हुए संघीय व्यवस्था पर कुठाराघात करने में लगे हुए हैं। एक समुदाय को खुश करने के लिए हिन्दुओं पर अत्याचार किए जा रहे हैं। ममता शायद यह दिखाने की कोशिश कर रही हैं कि एक समुदाय के लिए वह संविधान और लोकतंत्र से भी टकराने का दम रखती हैं। बात-बात पर संविधान और लोकतंत्र की दुहाई देने वाली सीधी-सादी होने का दिखावा करने वाली मां,माटी और मानुष की बातें कर सत्ता हासिल करने वाली ममता आज मैं, माफिया और मुसलमान के नारे के साथ खड़ी है। पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के बढ़ते जनाधार से बौखला कर ममता, उनके मंत्री, पार्टी के नेता, तृणमूल के गुंडे सब मिलकर जनता और विरोधी राजनीतिक दलों पर हमला कर रहे हैं। पुलिस तमाशबीन नहीं बल्कि अब तो जो थाने में शिकायत करने जाता है, उसी को आरोपी बना दिया जाता है। पश्चिम बंगाल में पुलिस व्यवस्था आईपीएस अधिकारियों के हाथ में नहीं बल्कि तृणमूल के दबंगों के हाथों में हैं। तृणमूल के दबंग ही नवान्न में काबिज हैं, पुलिस मुख्यालय में दादागीरी कर रहे हैं और थानों में बैठकर जुल्म ढहा रहे हैं तथा रंगदारी वसूलने में लगे हुए हैं।

पश्चिम बंगाल के लाइब्रेरी व जन शिक्षा मंत्री और जमायत उलेमा हिन्द के अध्यक्ष सिद्दीकुल्ला चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट के तीन तलाक को लेकर दिए गए फैसले को ही चुनौती दे दी। यह पहला मौका नहीं है जब ममता सरकार या तृणमूल के नेता अदालती आदेशों को ही खुलेआम चुनौती दे रहे हैं, इससे पहले भी इस तरह की चुनौतिया अदालतों को देते रहे हैं। ममता बनर्जी ने तो केंद्र सरकार के स्वतंत्रता दिवस पर सरकारी स्कूलों में कार्यक्रम आयोजित करने का निर्देश मानने से इंकार कर दिया था। यह कार्यक्रम नई पीढ़ी में जोश जगाने के लिए पूरे देश में मनाया गया। 9 अगस्त को देशभर में ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आंदोलन की 75वीं वर्षगांठ मनाई गई। संसद में विशेष सत्र का आयोजन हुआ। पूरे देश में शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई पर ममता बनर्जी ने राज्य के 23 जिलों के जिला अधिकारियों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक कार्यक्रम में शरीक होने से रोक दिया। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर प्रधानमंत्री ने देश के 700 जिलों के जिलाधिकारियों से बातचीत की। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये प्रधानमंत्री ने जिलाधिकारियों के साथ ‘विजन2022’ पर चर्चा की। उन्होंने ‘मंथन’ के दौरान नया भारत गढ़ने में जिलाधिकारियों की भूमिका पर चर्चा की। पश्चिम बंगाल के अधिकारी भी जानते हैं कि देश का राजकाज चलाने में प्रधानमंत्री कार्यालय की बड़ी भूमिका होती है, ममता के होने वाले जुल्मों के कारण राज्य के आईएएस अफसर भी मजबूर नजर आ रहे हैं।

पश्चिम बंगाल के मंत्री सिद्दीकुल्ला चौधरी ने तो संविधान और संघीय व्यवस्था को धता बताते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार को इस्लाम के आंतरिक मामलों में दखल देने का हक नहीं है। जिस सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की प्रथा को गैर इस्लामी और असंवैधानिक करार दिया है, हमारे देश की उसी सर्वोच्च अदालत को उन्होंने असंवैधानिक बता दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से इंकार करते हुए चौधरी ने माननीय न्यायाधीशों को एक तरह से कानून और इस्लाम की जानकारी न होने का तमगा भी दे दिया। इस तरह सिद्दीकुल्ला ने न केवल सुप्रीम कोर्ट का अपमान किया बल्कि संवैधानिक व्यवस्था को ही चुनौती दी है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ऐसे बयानों पर चुप्पी साध रखी है। इसकी एक बड़ी वजह है कि पश्चिम बंगाल में मुसलमानों को खुश करने के लिए अपराध करने की छूट दे रखी है। सत्ता बनाये रखने के लालच में मुसलमानों को छूट देने के साथ ही हिन्दुओं पर अत्याचार किए जा रहे हैं। उनके त्योहार मनाने पर भी रोक लगाई जाती है। भाजपा पर साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाने वाली ममता ने एक बार फिर दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर रोक लगा दी है। पिछले साल भी ममता बनर्जी ने विजयदशमी के मौके पर मूर्ति विसर्जन करने पर रोक लगाने का आदेश दिया था। 2016 में दशहरा 11 अक्टूबर को था, जबकि उसके अगले दिन यानी 12 अक्टूबर को मुहर्रम था। इस बार 1 अक्टूबर को मुहर्रम है। ममता बनर्जी दुर्गा पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन को लेकर 30 सितंबर की शाम 6 बजे से लेकर 1अक्टूबर तक रोक का आदेश दिया है। ममता बनर्जी ने कहा है कि मुहर्रम के जुलूसों के चलते दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन पर यह रोक रहेगी। श्रद्धालु विजयदशमी को शाम 6 बजे तक ही दुर्गा प्रतिमा का विसर्जन कर सकेंगे। ममता बनर्जी ने यह आदेश पिछली बार कोलकाता हाई कोर्ट से फटकार लगने के बावजूद दिए हैं। ममता बनर्जी सरकार के फैसले के खिलाफ कोलकाता हाई कोर्ट ने साफतौर पर कहा था कि यह फैसला एक समुदाय को रिझाने जैसा है। अदालत ने 1982 और 1983 का भी उदाहरण देते हुए कहा था कि उस समय दशहरे के अगले दिन ही मुहर्रम मनाया गया था, लेकिन मूर्तियों के विसर्जन पर रोक नहीं लगी थी।

भाजपा को अपने लिए चुनौती मानते हुए ममता बनर्जी के इशारे पर तृणमूल के गुंडे पूरे राज्य में भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं पर कातिलाना हमले कर रहे हैं। तृणमूल कांग्रेस के लोगों ने हाल ही में सिलीगुडी की पार्षद और दलित नेता मालती राय पर कातिलाना हमला किया। उन्हें बाल खींचते हुए घर से बाहर निकाला गया और तलवार से गला काटने की कोशिश की गई। कातिलाना हमले के विरोध में भाजपा कार्यकर्ताओं ने थाने पर प्रदर्शन किया। एक दिन पहले जलपाईगुड़ी सदर ब्लाक के बहादुर, गड़ालबाड़ी, पहाड़पुर, नंदनपुर बोआलमारी समेत आसपास के इलाकों में भाजपा कर्मियों पर हमले किए गए। पुलिस के रवैये के खिलाफ भाजपा कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह प्रदर्शन किए। इस साल लालबाजार में भाजपा के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर पुलिस और तृणमूल के गुंडों ने बमों से हमला किया, फायरिंग की, लाठियां भांजी, महिलाओं को पीटा। हमारे कार्यकर्ताओं को ही जेल में बंद कर दिया गया। हमारे 200 से ज्यादा कार्यकर्ता घायल हुए। अप्रैल में दिनाजपुर में भाजपा कार्यकर्ताओं के घरों पर और दुकानों पर हमले किए गए। पीड़ित कार्यकर्ताओं को देखने के लिए जब पार्टी का प्रतिनिधिमंडल वहां गया तो उन पर पुलिस की मौजूदगी में हमला किया गया। वाहन फूंक दिए गए। घरों को आग लगा दी गई। दुकानों को लूट लिया गया। पुलिस महज तमाशा देखती रही है। राज्य में कई जगह पर भाजपा के कार्यकर्ताओं को पुलिस के पक्षपात रवैये के खिलाफ प्रदर्शन करने पड़ रहे हैं। भाजपा नेताओं पर कातिलाना हमले ही नहीं किए जा रहे हैं बल्कि उन्हें झूठे मामलों में फंसाकर जेलों में बन्द किया जा रहा है। ममता बनर्जी को यह याद रखना चाहिए कि अन्याय, लूटमार और अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले पश्चिम बंगाल के लोगों ने लंबे समय राज करने वाली कांग्रेस तथा वामदलों को उखाड़ फेंका था तो आप तो बिना किसी विचारधारा के सत्ता में आई हो, ज्यादा दिन नहीं टिक पाओगी।

कैलाश विजयवर्गीय भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं और पश्चिम बंगाल के प्रभारी हैं। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक विषयों पर टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं।

Dil Do Sports Ko!

Indian women Cricket Team reached in World Cup Final Yesterday. So, after 1983, this sunday will witness another Indian Team contesting for the World Cup at Lords. Whole nation is talking about the magnificent show put-up by Captain Mithali Raj & her team.

And this again shows our love with sports. From snatching the cricket World Cup trophy, to Sachin Tendulkar’s soul-stirrer retirement to being the undefeated Kabaddi champions to Mary Kom’s stunning upturn, and the inspiring Olympic Medals the girls brought recently… India has encountered so many important snapshots of Indian games history that you will love to backpedal in time and remember them, again and again!

Indian sports persons, keeps gifting us those moments, in different fields and games every now & then. Though the cricket is most discussed sport, it was never the only one. Hockey, Badminton, Tennis, Wrestling, Kabaddi, Athletic Games, Football, Chess & a lot more… India is progressively expanding award counts at global occasions, and has made considerable progress in every front.

The historical backdrop of games in India goes back to the Vedic time. Physical culture in antiquated India was sustained by a capable fuel- religious customs. There were some all around characterized esteems like the mantra in the Atharva-Veda, saying,” Duty is in my right hand and the fruits of triumph in my left”. The organizers of the Olympic thought had India particularly at the top of the priority list when they were settling on the different controls.

Did you realize that India has won each of the five Kabaddi world cups played till now? How astounding is that! With the current 2014 Asian Games win by both the men and ladies Kabaddi groups, India has denoted its unbeaten domain in this game. In spite of the fact that kabaddi is basically an Indian diversion, very little is thought about the cause of this amusement. There is, nonetheless, solid proof, that the diversion is 4,000 year old.

The game which is requires the duo of aptitude and power, and joins the attributes of wrestling and rugby, was initially intended to create self preservation, notwithstanding reactions to assault, and reflexes of counter assault by people, and by gatherings or groups. It is a somewhat straightforward and cheap diversion, and neither requires a gigantic playing zone, nor any costly gear. This clarifies the notoriety of the diversion in country India. Kabaddi is played all finished Asia with minor varieties.

Going back to the 1960s, the great years for the Indian Football group and it positioned among the main 20 groups of the world. Under the tutelage of the incredible Syed Abdul Rahim, they won the Asian Games. Amid the group’s pinnacle time frame, they were naturally best in class to play in the FIFA World Cup. In any case, they couldn’t take an interest in the amusements because of absence of assets, money related limitations and other inward issues. It’s time for the hidden talent to emerge like that of 1960s, and bring back Indian football into the league.

Talking about the league and not mentioning about the Flying Sikh, Milkha Singh’s commitment to Indian games would be truly an injustice! What’s more, when we discuss some of India’s most critical donning minutes, we can’t avoid Singh’s execution in the 1960 Olympics where he broke the 400m Olympic record.

Similarly, With regards to Hockey, the commitment of Major Dhyanchand can’t be skipped. “The Wizard” drove the Indian Hockey group to triumph many a times including the 1936 Berlin Olympics triumph over Germany which was seen by more than 40,000 individuals including Hitler.

Youth in the world of today must be appreciated for the Craze among Cricket but not limited to Cricket! Latest example lies when the India’s hockey heroes kept the banner flying on a dismal day for cricket in CT17. All thanks to  the 2010 Commonwealth Games, badminton got a really high-class framework, and now the the Badminton World Federation (BWF) sees a tremendous potential for showcasing the amusement in India. India’s most recent badminton heartthrob, P.V. Sindhu added another quill to India’s eminence as of late by turning into the main Indian lady to win a silver award at Rio Olympics 2016.

In a nation like India where addiction on cricket is not shrouded, we saw another games sensation in Narain Kathikeyan when this youthful racer turned into India’s first Formula One engine hustling driver. After him, Karun Chandok excessively joined the game, and on account of their underlying force, now there is an Indian F1 group and an Indian Grand Prix circuit.

These legendary illustrations represent a solid structure of Sports in india and additionally significant extent of various games in the country! All, the country demands is equivalent appreciation as that of Cricket and there would be better open doors for sportspersons who are enthusiastic about the games like Football, Kabaddi, Badminton, Hockey and so forth to come into solid spotlight of gratefulness and support.

KHELEGA INDIA to aur bhi jaldi BADHEGA INDIA!!