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श्रीरामजी की रावण पर विजय के दिवस दशहरे के पावन अवसर पर सभी विश्वबंधुओं को शुभकामनाएं।

रावण युद्ध भूमि में उतरता है , राम से घोर संघर्ष करता है। बहुत परिश्रम के बाद भी जब रावण वध नहीं हो पा रहा था तब रामजी ने विभीषण की तरफ देखा। विभीषण ने रावण की नाभि में अमृत होना बताया। बस,रामजी ने एक साथ 31बाणों का संधान किया,इन्हें छोडा़। बीस बाणों से हाथ,दस से सिर कटे व एक से नाभि भेदन हुआ। रावण धराशायी हुआ। शिव ब्रह्मा भी प्रसन्न हुए। पर यह देख सभी अचांभित हुए कि रावण की आत्मा का तेज प्रभु रामजी में समा गया। कुंभकर्ण की मृत्यु पर भी ऐसा ही हुआ था। इसका रहस्य जानने की जिज्ञासा सबको थी। इस रहस्य को समझें तो श्रीराम कृपा उनकी करुणा,सरलता के दर्शन कर कृतार्थ हो जाएंगे।

रावण,कुम्भकर्ण की आत्मा का तेजस रामजी में समाया,यानी उनकी मुक्ति,उनका मोक्ष हुआ। जन्म मरण से मुक्त हुए। इसका अर्थ हुआ वे अन्याय अत्याचार का नया अध्याय शुरु नहीं कर पाएंगे। रामजी ने ऋषियों के सामने भुजा उठाकर राक्षसों के विनाश का जो प्रण किया था, धर्म की स्थापना और अन्याय अत्याचार के खात्मे के लिये जन्म लेने की प्रभु ने जो घोषणा की थी,उसकी पूर्ति उन्होंने की। राक्षस दुबारा पृथ्वी का बोझ बनने मानवता को दुःख देने न आवें,इसकी व्यवस्था प्रभु ने उन्हें मुक्ति देकर की। मानव और जीव मात्र के प्रति रामजी का ऐसा चिंता-भाव ही उन्हें जन-जन के मन प्राण में बैठाता है।

अगर इस घटना को अधिक गहराई से समझें तो इसके मूल में हमें रामजी की करुणा,दया के साथ “गए शरण प्रभु राखिहें ” वाला विलक्षण,कोमल प्रेम भाव नजर आएगा। रावण कुम्भकर्ण की मृत्यु के वक्त उनके हृदय में रामजी ही रामजी थे। भले ही शत्रुभाव से ही सही। ऐसी मृत्यु मोक्ष दिलाएगी ही। रामजी का स्मरण करने वाले को वे अपनाते ही हैं, उसका दुःख दर्द दूर करते ही हैं। सच ही कहा है :– भांय कुभांय,अनेख अलसहुं , नामजपत मंगल दिसी दसहुं।

तुलसी दासजी ने भाी कहा है :-
तुलसी अपने रामको,रिझ भजो या खीझ !!
उलटो सीधो उगहे, खेत पडे़ को बीज।
भाव से कुभाव से,प्रसन्नता से या क्रोध से,कैसे भी रामजी को भजेंगे,मंगल ही होगा। जैसे खेत में बीज उलटा सीधा कैसे भी पडे़ उगता ही है।
रामजी को सुख धाम कहा जाता हैं। अपने अवतार काल में उन्होंने तीव्र दुःख झेले,अतः हमारी पीडा़ उन्हें द्रवित करती है। इसी कारण कैसा भी दुराचारी,क्रोधी हो,उनकी शरण लेगा तो वह शुद्ध तो हो ही जाएगा,प्रभु उसे अवश्य अपनाएंगे। पीडा़ दूर करेंगे।
आओ ! शुद्ध भाव से हम भी इस पावन अवसर पर श्रीरामजी की शरण होवें,शांति आंनद हेतु प्रार्थना करें।