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Socho agar sinhasth na hota to!

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सोचो अगर सिंहस्थ ना होता तो !

भारतीय भूमि आस्था की भूमि कही जाती है। हम भारतीयों की मान्यता है की इस मिट्टी के कण-कण में भगवान हैं। कई देश आये विश्व भर में अपना परचम फहराया और जल्द ही उनका विजय पताका काल की गोद में समा गया। आज वे महज एक कहानी बनकर ही रह गयें हैं। किन्तु भारत ही एक मात्र ऐसा राष्ट्र है, जो विश्व के मानचित्र पर जस का तस सदियों से खड़ा है। क्योंकि हमने हमेशा अपने अंदर अपनी संस्कृति अपनी आस्था को जीवित रखा।

किन्तु आज हम “शस्त्रों के अभाव में नहीं शास्त्रों के अभाव में पराजित हो रहे हैं”। आने वाली पीढ़ी सिंहस्थ को महज एक त्यौहार मान रही है। क्योंकि वे आस्था के इस महापर्व का सही अर्थ नहीं समझ पा रहे हैं। पहले ही हमारी ना जाने कितनी ही महत्वपूर्ण परम्परा सिर्फ इसलिए विलुप्त हो चुकीं हैं, क्योंकि शायद हम उनका उचित अर्थ हमारी भावी पीढ़ी को नहीं समझा सके।

विश्व प्रसिद्ध सिंहस्थ महाकुंभ एक धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महापर्व है।

ऋग्वेद में कहा गया है-
“जधानवृतं स्वधितिर्वनेव स्वरोज पुरो अरदन्न सिन्धून्।
विभेद गिरी नव वभिन्न कुम्भभा गा इन्द्रो अकृणुत स्वयुग्भिः”।।

कुंभ पर्व में जाने वाला मनुष्य स्वयं दान-होमादि सत्कर्मों के फलस्वरूप अपने पापों को वैसे ही नष्ट करता है, जैसे कुठार वन को काट देता है। जैसे गंगा अपने तटों को काटती हुई प्रवाहित होती है, उसी प्रकार कुंभ पर्व मनुष्य के पूर्व संचित कर्मों से प्राप्त शारीरिक पापों को नष्ट करता है और नूतन (कच्चे) घड़े की तरह बादल को नष्ट-भ्रष्ट कर संसार में सुवृष्टि प्रदान करता है। वस्तुतः वेदों में वर्णित महाकुम्भ की यह सनातनता ही हमारी संस्कृति से जुड़ा अमृत महापर्व है, जो आकाश में ग्रह-राशि आदि के संयोग से ……………………….. की अवधि में उज्जैन में क्षिप्रा के किनारे मनाया जा रहा है।

जब ज्ञान और विज्ञान का इस तरह अद्भुत संगम हो तो, अमृत अपने आप छलक पड़ता है। किसी के बारे में जानने के बाद उसका महत्व उसका उत्साह और दुगुना हो जाता है।
सिंहस्थ शब्द का अर्थ होता है – “सिंह राशी में स्थित कोई गृह”

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अमृत कलश की रक्षा में सूर्य, गुरु और चंद्रमा की महत्वपूर्ण भूमिका थी, इसी कारण वश जब यह तीनों गृह एक साथ मिलते हैं, तब ही सिंहस्थ महा पर्व का आयोजन किया जाता है। उज्जैन सिंहस्थ में भी यही स्थति निर्मित हो रही है।

सिंह राशी में गुरु,
मेष राशी का सूर्य
तुला का चंद्रमा

अपनी संस्कृति अपनी आस्था को जानना चाहते हो तो, कुछ समय अपने बुजुर्गो के साथ बिताया करो, क्यों की हर चीज़ गूगल के पास नहीं होती।