श्री कृष्ण शरणम ममः
आनंद से जीवन जीने की कला सिखाने वाले भगवान कृष्ण के प्राकट्य दिवस जन्माष्टमी के पावन अवसर पर सभी विश्व बंधुओं को हार्दिक बधाई। सोलह कलाओं के अवतार श्रीकृष्ण ने स्वयं मानव जीवन जीकर लोगों को अपने जटिल जीवन को सरल, शांत और उल्लास पूर्ण बनाने का मार्ग दिखाया।
इस पावन अवसर पर हम श्रीकृष्ण के बताए मार्ग पर एक कदम बढ़ाने का प्रयास करें। हम सभी अपने अंतर्मन में झांके। आत्म विश्लेषण करें। चिंतन मनन करें। हमारी मन- मलितनताओं को चिन्हित करें। तदुपरान्त मन को मांजने और आत्मा को संवारने का प्रयास प्रारंभ करें। संभवतः इससे हृदय की गांठें सुलझें। जीवन में सहजता, सरलता को स्थान मिले। वरना वर्तमान भौतिकता पूर्ण जीवन में दिन भर की आपाधापी, उठापटक और थकाऊ परिश्रम के बाद भी हमारे चेहरों पर (इसमें मैं भी सम्मिलित हूं) प्रायः असंतोष, असमंजस, प्रश्न और संताप ही नजर आते हैं। जबकि हमारी भागमभाग संतोष, आनंद, प्रेम, समाधान, शांति, समृद्धि के लिये होती है। यानी कहीं न कहीं हमारे प्रयासों की दशा और दिशा गलत है।
श्रीकृष्ण की गीता में समभाव, को प्रसन्नता का आधार बताया है। समभाव यानी सुख में फूलें नहीं, दुख में रोव नहींंे। सुख दुःख की धूप छांव को धैर्य से सहें। आप सर्वशक्तिमान के विश्वास के साथ संपूर्ण विवेक और कुशलता से कर्म करके विजेता बन सकते हैं।
श्रीकृष्ण ने सर्वजनहिताय सर्वजनसुखाय का उपदेश दिया है। किस प्रकार उन्होंने मगध, हस्तिनापुर और मथुरा के राज्य सिंहासन दूसरों को दिये और वे सबके हृदय सिंहासन में आज भी विराज रहे हैं। यह सीख है हमारे लिए कीए त्याग से सभी मित्र बनते है, स्वार्थ से अमित्र।
हालाकि यह सब कहना- सोचना आसान है, करना कठिन। मौजूदा भौतिकवादी समाज में जहां स्वार्थ- जनिक कटुता हावी है, वहां ऐसी सीख या चर्चा भी अप्रांसगिक लग सकती है। पर आओ हम सभी श्रीकृष्ण के चरणों में नमन करें, उनसे एक छंद हो, जीवन में उनकी कृपा प्राप्त करें।