बुराइयों को मिटाने का दूसरा नाम दिवाली है।
प्रकाश पर्व दिवाली पर उल्लास, आनंद और उत्साह के उजियारे में नहाए हम स्वयं को ऊर्जा से भरे पूरे पा रहे हैं।
इस पर्व पर न केवल हमारा देश प्रकाशमान है, अपितु इसका उजियारा विश्व को आलोकित करता सा लग रहा है। सिंगापुर जैसे कई देशों के साथ अमेरिका और फिर संयुक्त राष्ट्र में दिवाली मनाई गई। ऐसा पहली बार है जब विश्व के इस प्रमुख संगठन ने अपने मुख्यालय पर हैप्पी दिवाली का संदेश भी थ्रीडी लाइटिंग से, दीये के साथ दिखाया और यह त्यौहार मनाया। विश्व की प्रमुख संस्था द्वारा प्रकट यह भाव निश्चित ही हमारे देश के प्रति विश्व के बदलते नजरिये और उसकी हमारे प्रति बढ़ती रूचि का परिचायक है। दूसरी तरफ हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने दिवाली पर अपने मन के जो व्यवहारिक भाव प्रकट किये हैं, उन पर भी यदि चिंतन व अमल किया जाऐ तो देश में वांछित परिवर्तन अवश्य संभव है।
बुराइयों को मिटाने का दूसरा नाम दिवाली है। दिवाली पर हम आपस में मेलजोल करते हैं। इससे हृदय की गांठें खुल जाती हैं, सरलता आती है, आपसी प्रेम बढ़ता है और प्रेम में ही ईश्वर है। जहां प्रेम है वहां त्याग अवश्य होगा और जहां ये दोनों हैं, वहां बुराई के लिये कोई स्थान नहीं.. अब जरा ज्यादा गहराई में उतर कर अन्य अर्थ का मोती ढूंढ़ें। जैसे, यदि प्रेम पैदा करना है, मन की मलिनता दूर करनी है तो सर्वप्रथम पहल खुद से शुरू करनी होगी। यानी अपने भीतर प्रकाश करना होगा। तात्पर्य यह कि आत्मज्ञान प्राप्त करना होगा।
जन जीवन में उत्सव लाने का अवसर है दिवाली। यहां मुझे दक्षिणी राजस्थान के गढ़ी जैसे कुछ कस्बों की एक परंपरा याद आ रही है। वहां दिवाली वाली रात में सुबह चार पांच बजे उठकर बच्चे-युवाओं, बड़े दीपकनुमा मिट्टी का बर्तन, जिसके नीचे पकड़ने का छोटा सा सीधा हैंडल होता है, उसे अपने हाथ में लेते है। उसमें तेल-बाती रखते है । एक बच्चा अपने दीये को जलाता है, उससे दूसरा जलाता है, आपस में सभी अपने-अपने दीये जला लेते हैं। इन्हें लेकर कुछ गीत गाते हुए अपने दोस्तों, परिचितों या अपरिचितों के यहां जाते है। वहां घर के बड़े लोग उनके दीयों में तेल डालते हैं। जिससे दीये सतत् जलते हैं। कोई, कोई बच्चों को सिक्के भी देते हैं।
इस परंपरा का परिणाम उत्सव का असली तात्पर्य स्पष्ट करने वाला है। सर्वप्रथम अपना दीया जलाओ, ज्ञान का प्रकाश करो, फिर अन्यों को प्रकाशमान बनाने में सहयोग करो। बड़े लोग इनके ज्ञान और सहभाव को चैतन्य रखने में सहयोग करते हैं। इस प्रक्रिया में संबंधित परिवारों में आपसी घनिष्टता बढ़ती है।
दिवाली एक स्वच्छता अभियान है। सही भी है। दिवाली पर अपने घरों की, गलियों और शहर की सफाई पूरी शिद्दत से की जाती है। जरूरत है इसअभियान और सफाई के भाव को वर्ष-भर जारी रखने की। “स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है- कोई देश महान इसलिये नहीं होता है कि वहां की संसद ने यह या वह बिल पास कर दिया है। वह महान होता है श्रेष्ठ, महान नागरिकों और उनके उच्च राष्ट्रीय चरित्र के कारण।“तो हमें भी दिवाली और हमारे प्रधानमंत्री जी के मन-भाव से प्रेरित होकर, बुराईयां दूर करने के संकल्प को, सौहार्द्रपूर्ण सौमनस्य के भाव को और स्वच्छता अभियान सभी को हमारे राष्ट्रीय चरित्र के केन्द्र में लाकर देश को महान बनाए रखना चाहिये।