जो संगठित नहीं होते, वे ख़त्म हो जाते हैं।
जो संगठित नहीं होते, वे ख़त्म हो जाते हैं।
मेरे और मुझ जैसे करोड़ों भारतीयों के लिए, स्वतंत्रता ही सब कुछ है।
आज़ादी …
क्या है इसका मतलब?
शायद यह हर किसी की सोच पर निर्भर करता है, लेकिन आम राय यही है, कि देश ने आज़ादी के 70 सालो के सफ़र में क्या खोया और क्या पाया? हर किसी की सोच भले ही मिले ना मिले, लेकिन इतना तय है, कि स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर पूरे देश में एक जुनून सा छा जाता है। जिसका उदाहरण आप गली के अधनंगे बच्चों से लेकर बूढों तक में देख सकते हैं, जिनके हाथों मे तिरंगा ज़रूर दिखाई देता है।
मगर हमेशा मेरे मन में एक ही सवाल उठता है, क्या हमने इस स्वाधीनता के पौधे को पूर्ण इमानदारी से सींचा। आज आज़ादी के 70 साल बाद भी हम संगठित नहीं हो पाए हैं।
एकता का अर्थ यह नहीं होता, कि किसी विषय पर मतभेद ही न हो। मतभेद होने के बावजूद भी, जो सुखद और सबके हित में है उसे एक रूप में, सभी स्वीकार कर लेते हैं। राष्ट्रीय एकता से अभिप्राय है, सभी नागरिक राष्ट्रप्रेम से ओत-प्रोत हों, सभी नागरिक पहले भारतीय हों, फिर किसी जाति या धर्म के।
राष्ट्रीय एकता का मतलब ही होता है, राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न-भिन्न विचारों और विभिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना। राष्ट्रीय एकता में केवल शारीरिक समीपता ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उसमें मानसिक, बौद्धिक, वैचारिक और भावात्मक निकटता की समानता आवश्यक है।
विघटन समाज को तोड़ता है, और संगठन व्यक्ति को जोड़ता है। संगठन समाज एवं देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचा देता है। आपसी फूट एवं समाज का विनाश कर देती है। धागा यदि संगठित होकर एक हो जाए, तो वह हाथी जैसे शक्तिशाली जानवर को भी बांध सकता है। किन्तु वे धागे यदि अलग-अलग रहें तो, वे एक तिनके को भी बांधने में असमर्थ होते हैं।
भारत विभिन्न संस्कृतियों, धर्मों और सम्प्रदायों का संगम स्थल है। यहां सभी धर्मों और सम्प्रदायों को बराबर का दर्जा मिला है। हिंदु धर्म के अलावा जैन, बौद्ध और सिक्ख धर्म का उद्भव यहीं हुआ है। अनेकता के बावजूद उनमें एकता है। यही कारण है कि सदियों से उनमें एकता के भाव परिलक्षित होते रहे हैं। शुरू से हमारा दृष्टिकोण उदारवादी है। हम सत्य और अहिंसा का आदर करते हैं।
अगर हम फिर भारत को विश्व गुरु बनाना चाहते है, अगर हम फिर सनातनी भारत वर्ष का निर्माण करना चाहते है, तो हमे संगठित होना पड़ेगा। संघ के, अटल जी के, मोदी जी के विचारों पर चल कर ही हम भारत को विश्वगुरु बना सकते हैं। तो इस स्वतंत्रता दिवस आओ मिलकर प्रण ले, संगठित हो कर भारत के खोए सम्मान को हम वापस ले कर आएँ, हज़ारों साल पुरानी प्रतिष्ठा को वापस ले कर आएँ।
ऐसे कई उदाहरण हैं विश्व में, जिन्होंने विघटन के करारे दर्द को सहन किया। दूसरो की और दूर की क्या बात करें, हमने खुद ही विघटन का तीक्ष्ण दर्द झेला है, और उसके पहले भारत के गुलामी की जंजीरों में जकड़े जाने का कारण ही हमारे आपसी मतभेद और संगठित न होना रहा। जब हम संगठित हुए, तभी हम गुलामी की जंजीरों से हमारी भारत माँ को आज़ाद करा पाए।
मगर अफ़सोस, आज़ादी मिलने के बाद, कुछ लोगों ने स्वार्थवश हम लोगों को फिर बाँट दिया। अगर हम उस वक्त गुमराह न होकर संगठित रहते, तो आज भारत से अधिक शक्तिशाली कोई राष्ट्र नहीं होता, अगर हम संगठित होते तो तो आज अखंड भारत के टुकड़े -टुकड़े नहीं होते। अब भी समय है, अब तो हम अपनी पुरानी गलतियों से शिक्षा लें। और एक बात अपने ज़हन में उतार लें, जो संगठित नहीं हो पाते वे समाप्त हो जाते हैं। आगे आप खुद समझदार हैं, आप जानते हैं आपको क्या करना है।
स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाएँ।
भारत माता की जय।
जय हिन्द। वन्दे मातरम्।