आज मदर्स-डे है. सामान्य लोग इसे मनाएंगे,
आदर्श लोग कहेंगे माँ के लिए तो हर दिन समर्पित होना चाहिए, संस्कृति के रखवाले कहेंगे ये पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव है और माँ कहेंगी ‘बेटा मैं तो तुझे हमेशा खुश देखना चाहती हूँ और कुछ नहीं चाहिए’.
क्या आपने कभी यह सोचा कि इस तरह ‘माँ’, ‘पिता’, ‘दोस्त’, ‘बहन’, ‘भाई’ और हर रिश्ते को एक दिन समर्पित करने का उद्देश्य क्या है? अगर नहीं सोचा तो एक बार इस विषय पर ज़रूर सोचें. मैं यह मानता हूँ कि आज की प्रतिस्पर्धात्मक जीवनशैली में जब छोटा सा बच्चा भी रैंक बनाने में लगा है और हर सुबह सात बजे से इस दौड़ में निकल पड़ता है, रिश्तों को समय देना वाकई मुश्किल हो गया है और ऐसे में साल में एक दिन हर रिश्ते को समर्पित करना शौक या किसी का प्रभाव नहीं बल्कि समय की मांग है.
<div>हमारी भारतीय संस्कृति के अनुसार अगर हम जीवन व्यापन करें तो शायद इन चीज़ों की आवश्यकता नहीं पड़ती परन्तु समय के साथ-साथ विकास और प्रतिस्पर्धा दोनों ही बढती जा रहे हैं और सदियों पुराने सिद्धांतों में भी समय के साथ परिवर्तन अनिवार्य होता है. वैसे तो जन्मदिन मनाना भी आवश्यक नहीं क्यूंकि हम हर दिन अपने जीने की ख़ुशी मनाते हैं तो फिर साल में एक दिन क्यूँ निर्धारित करें? अगर जन्मदिन मनाना उचित है तो फिर रिश्तों की जीवंतता मनाना उनुचित कैसे हो सकता है? मैं आप सभी से यह अनुरोध करूँगा कि इन विभिन्न दिवसों को मनाने के उद्देश्य को समझें और रिश्तों को बेहतर बनाने के लिए आवश्यक समय दें.</div>
<div>आप सभी को मदर्स-डे की हार्दिक शुभकामनाएँ!</div>