इस बात को भी ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है…
पहले फौरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (FDI)
और बाद में कई प्रकार के अलग-अलग कानून, जो कि थोपे हुए करों के रूप में छोटे-छोटे खुदरा व्यापारियों पर लगाए गए, उनसे कहीं न कहीं ऐसा प्रतीत हो रहा है कि ये जो कानून बनाए जा रहे हैं वो भारतवासियों के बजाय विदेशियों को ध्यान में रख कर बनाए जा रहे हैं और मल्टी-नेशनल कम्पनीस को भारत में नींव मज़बूत करने के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा आधार उपलब्ध करवाया जा रहा है !!
मैं ऐसा मानता हूँ कि भारत में यदि किसी भी प्रकार के कानून बनाए जाएँ तो न सिर्फ ‘अर्थ व्यवस्था’ बल्कि भारत की सेकड़ों वर्षों से स्थापित ‘सामाजिक अर्थ व्यवस्था’ को ध्यान में रखकर बनाए जाना चाहिए क्यूंकि भारत में छोटे-बड़े कई प्रकार के व्यवसायी न्यूनतम से न्यूनतम पूँजी के आधार पर अपना व्यवसाय करते आ रहे हैं और ऐसे में उनके भविष्य के साथ क्या होगा और क्या वे जीवित रह पाएंगे, इस बात को भी ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है…