Kailash Vijayvargiya blogs West Bengal: The Killing of Democracy - Kailash Vijayvargiya's Scathing Critique
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West Bengal – The killing of democracy

प बंगाल- लोकतंत्र की हत्या

दुनियाभर में भारतीय लोकतंत्र की शक्ति का डंका बजता है। इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में पश्चिम बंगाल में होने वाले पंचायत के चुनावों ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कलकत्ता हाई कोर्ट ने राज्य चुनाव आयोग को नामांकन भरने के दौरान सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम न होने पर फटकारा भी। राज्य चुनाव आयोग की पहले नामांकन की तारीख बढ़ाने और फिर वापस लेने के फैसले पर भी सवाल उठाये। पश्चिम बंगाल सरकार और राज्य चुनाव आयोग ने हाई कोर्ट के निर्देशों का पालन भी नहीं किया। ऐसे में पश्चिम बंगाल में पंचायत के चुनाव के दौरान आम लोगों के लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है। चुनाव में नामांकन भरने के दौरान हिंसा का सहारा लेकर तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने सरकार और पुलिस के संरक्षण में राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को नामांकन भरने से रोका। भारतीय जनता पार्टी और अन्य दलों के उम्मीदवारों को डराने के लिए बम फेंके गए, सरेआम पिटाई की गई, दलों के दफ्तर फूंक दिए गए। राज्य चुनाव आयोग द्वारा नामांकन भरने से रोकने की शिकायतों के बावजूद राज्य चुनाव आयोग ने तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों को 34 फीसदी से ज्यादा यानी 20 हजार पंचायत सीटों पर निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिया। यह भारतीय लोकतंत्र में इतिहास में एक काला अध्याय माना जाएगा।

इस तरह से पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव के दौरान सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के समर्थक गुंडों ने हिंसा फैलाकर लोकतंत्र की हत्या कर दी है। विरोधी दलों के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को चुनाव में हिस्सा न लेने देने के लिए प्रशासन और पुलिस ने तृणमूल कांग्रेस के गुंडों का पूरा साथ दिया। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी की सरकार में महिलाओं की इज्जत भी लगातार तार-तार हो रही है। तृणमूल कांग्रेस की गुंडागर्दी की ताजा घटना ने सब को झकझोर कर रख दिया है। नादिया की एक महिला भाजपा प्रत्याशी के घर तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने मारपीट की। प्रत्याशी के न मिलने पर उनकी छह महीने की गर्भवती देवरानी के साथ बलात्कार किया। इतना ही नहीं इस कृकत्य को छिपाने के लिए सरकारी अस्पताल ने ममता बनर्जी के डर से उसका इलाज करने से भी मना कर दिया। इस गर्भवती महिला का इलाज एक निजी अस्पताल में चल रहा है और बच्चे के जीवित बचने की संभावना न के बराबर है। चुनाव में जीत का परचम फहराने के लिए तृणमूल समर्थकों द्वारा दलितों और अल्पसंख्यकों को भी निशाना बनाया जा रहा है। पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र की हत्या कर ममता बनर्जी पंचायत चुनाव में किसी भी तरह जीत दर्ज कर अगले लोकसभा चुनाव में विरोधी दलों की तरफ से प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर दावा पेश करने वाली हैं। हैरानी की बात है कि हाई कोर्ट के तमाम निर्देशों के बावजूद पंचायत चुनाव में सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए जा रहे हैं। हत्या, मारपीट, बमबारी और बलात्कार की लगातार जारी घटनाओं के बीच सरकारी संरक्षण में तृणमूल समर्थकों ने पंचायत चुनाव में एक तिहाई सीटों पर जीत हासिल कर ली है। कम्युनिस्टों की गुंडागर्दी को खत्म करने के लिए सत्ता हासिल करने वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी ने अब उन्हें भी विरोधियों का खात्मा करने की नीति में पीछे छोड़ दिया है।

राज्य चुनाव आयोग ने जानकारी दी है कि तृणमूल कांग्रेस ने त्रिस्तरीय पंचायतों में 34.2 फीसदी सीटों पर निर्विरोध जीत हासिल की है। इसी तरह का खेल 2003 के पंचायती चुनावों में कम्युनिस्टों की सरकार के समय खेला गया था। तब कम्युनिस्टों ने 11 फीसदी सीटों पर बिना मुकाबले के जीत हासिल की थी। ममता बनर्जी कम्युनिस्टों से तीन गुणा ज्यादा बढ़ गई हैं, इस कारण कम्युनिस्टों के मुकाबले उनका पतन भी जल्दी होगा। अबकी बार तृणमूल कांग्रेस ने त्रिस्तरीय पंचायतों में लगभग 20 हजार सीटों पर जीत हासिल की है। तृणमूल कांग्रेस के गुंडों ने सभी जिलों में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस और वाममोर्चो के कार्यकर्ताओं को चुनाव में नामांकन करने से रोकने के लिए हिंसा का सहारा लिया। जहां-जहां भाजपा के कार्यकर्ताओं ने नामांकन भरा, वहां उन्हें भगाने की कोशिश की गई। घरों में तोड़फोड़ की गई। बड़ी संख्या में भाजपा समर्थकों को दूसरी जगह जाकर शरण लेनी पड़ रही है। तृणमूल समर्थकों की बमबारी, हत्या, बलात्कार आदि की घटनाओं के बावजूद भाजपा ने पंचायत चुनाव में नामांकन करने में कम्युनिस्टों को भी पीछे छोड़ दिया है। भाजपा की बढ़ती ताकत के कारण निर्विरोध जीते गए हमारे उम्मीदवारों को धमकाकर तृणमूल में शामिल करने की कोशिश की जा रही है।

पश्चिम बंगाल में 3,358 ग्राम पंचायतों की 48,650 सीटों, 341 पंचायत समितियों की 9,217 सीटों और 20 जिला परिषदों की 825 सीटों 14 मई को होने वाले चुनाव पर कलकत्ता हाई कोर्ट की ताजा टिप्पणी के बाद संशय है। लेकिन पंचायत चुनाव में दाखिल नामांकन पत्रों को देखे तो तृणमूल की तरफ से एक हजार, भाजपा ने 782, माकपा ने 537 और कांग्रेस की तरफ से 407 पर्चे सही पाए गए हैं। पंचायत समितियों के लिए तृणमूल कांग्रेस के 12,590 उम्मीदवार, भाजपा के 6,149, माकपा के 4400 और कांग्रेस के 1740 उम्मीदवार मैदान में हैं। ग्राम पंचायतों के लिए तृणमूल ने 58,978, भाजपा ने 27,935, माकपा ने 17,319 और कांग्रेस ने 7,313 नामांकन दाखिल किए हैं। उम्मीदवारों की संख्या में तो भाजपा ने कम्युनिस्टों और कांग्रेसियों को पीछे छोड़ ही दिया है साथ ही तृणमूल कांग्रेस की गुंडागर्दी का जवाब देने में में भाजपा ने पूरी हिम्मत दिखाई है। भाजपा के कार्यकर्ता तृणमूल समर्थकों की तमाम कोशिशों के बावजूद नामांकन पत्र भरने में सफल रहे हैं पर तृणमूल उम्मीदवारों के 34 फीसदी सीटों पर बिना मुकाबला जीतने की घोषणा से पूरी चुनाव प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो गए हैं। राज्य चुनाव आयोग को पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से पर्याप्त सुरक्षा भी उपलब्ध नहीं कराई जा रही  है। केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात करने की बजाय दूसरे राज्यों से फोर्स मांगी जा रही है। पंचायत चुनाव के लिए 58 हजार से ज्यादा बूथों पर मतदान होगा और राज्य के पास 46 हजार हथियार वाले और 12 हजार लाठीदार पुलिस वाले हैं। सरकार के पास एक बूथ पर दो सुरक्षाकर्मी तैनात करने का इंतजाम भी नहीं है। जब नामांकन भरने के दौरान जितनी हिंसा तृणमूल समर्थकों ने फैलाई है, उससे अंदाजा लगा सकते हैं कि मतदान के दिन क्या हो सकता है। तृणमूल कांग्रेस की तरफ से पूरी कोशिश हो रही है कि विरोधियों का चुनाव से सफाया कर दिया जाए। हिंसा की तमाम घटनाओं के खिलाफ जगह-जगह भाजपा, माकपा और कांग्रेस की तरफ से धरना-प्रदर्शन भी हुए पर वामदलों और कांग्रेस के बड़े नेताओं की चुप्पी क्या साबित कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी बार-बार ममता बनर्जी की तारीफ तो कर रहे हैं पर अपने कार्यकर्ताओं की पिटाई पर चुप क्यों हैं। इसी तरह वामदलों के नेताओं ने भी ममता सरकार पर कोई हमला नहीं बोला है। पश्चिम बंगाल में भाजपा की ममता सरकार की मनमानी का जवाब दे रही है। ममता बनर्जी के पूरी तरह से राहुल गांधी को नकारने के बावजूद उनकी चुप्पी क्या साबित कर रही है। शायद विपक्षी दलों की एकता के नाम पर राहुल गांधी ने पश्चिम बंगाल में अपने कार्यकर्ताओं की बलि देना भी मंजूर कर लिया है। पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र की हत्या को लेकर उठे सवालों का जवाब वहां की जनता आने वाले दिनों में जरूर देगी।