Kailash Vijayvargiya blogs The Resilience of Rohingya Muslims: Kailash Vijayvargiya's Perspective
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Why Rohingya Muslims do not surrender

रोहिंग्या मुसलमानों को शरण क्यों नहीं

पिछले महीने म्यांमार की सेना पर हमले के बाद वहां से खदेड़े गए रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में शरण देने, न देने के फैसले पर कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन मानवाधिकारों के नाम पर घडियाली आंसू बहाने में लगे हुए हैं।

म्यांमार में सेना पर रोहिंग्या रक्षा सेना के हमले के बाद वहां से अवैध रूप से भारत में आए रोहिंग्या मुसलमानों को शरण न देने के फैसले पर भारत सरकार पर सवाल उठाएं जा रहे हैं। 

दरअसल जिन कारणों से म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों को खदेड़ा गया था, ऐसे ही कारण भारत में बनने की आशंका हैं।
सरकार ने साफ तौर पर कहा है कि रोहिंग्या मुसलमानों से देश की शांति एवं सुरक्षा को खतरा है।

म्यांमार में रह रहे रोहिंग्या मुसलमानों को वहां का नागरिक नहीं माना जाता है। उसके कई कारण हैं।
इसके बावजूद रोहिंग्या मुसलमान वहां तमाम सुविधाओं के साथ रह रहे थे। म्यांमार सरकार ने 1982 में राष्ट्रीयता कानून बनाकर ‘नागरिक दर्जे’ को खत्म कर दिया था। म्यांमार सरकार का कहना था कि रोहिंग्या मूल रूप से ‘बांग्लादेशी’ हैं।

कुछ वर्षों से इस्लाम खतरे में है का नारे देते हुए खाड़ी देशों से गए इस्लामिक गुरुओं ने म्यांमार सरकार के खिलाफ रोहिंग्या मुसलमानों को खड़ा कर दिया।

इस्लाम खतरे में हैं, उसे बचाने लिए हथियार चलाना सिखाया

आतंकी गतिविधियों का प्रशिक्षण सिखाया, सेना से लड़ने का जज्बा पैदा किया। पहली बार 2012 में रोहिंग्या मुसलमानों ने बौद्धों पर हमला किया तो उन्हें जवाब भी मिला।
पिछले महीने की 25 तारीख को रोहिंग्या रक्षा सेना के हमले में 71 लोगों की मौत हो गई है।

यह हमला रखाइन राज्य में हुआ। रखाइन को अराकान भी कहा जाता है।रोहिंग्या मुसलमानों ने करीब 30 पुलिस चौकियों और एक सैन्य अड्डे को निशाना बनाया था। म्यांमार सेना की जवाबी कार्रवाई में 59 विद्रोही और 12 सुरक्षाकर्मी मारे गए हैं।

इसके बाद म्यांमार सेना की बड़ी कार्रवाई के बाद रोहिंग्या मुसलमानों को वहां से भागना पड़ रहा है।

पाकिस्तान, बांग्लादेश और अन्य मुस्लिम देशों ने रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने से इंकार कर दिया है।
सबसे बड़ी तो यह है कि बरसों से म्यांमार में बसे रोहिंग्या मुसलमानों को इस्लाम के नाम पर बंदूक थमाने वाले देशों ने भी शरण देने से इंकार कर दिया है।

भारत सरकार ने भी रोहिंग्या मुसलमानों के शरण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा है कि उनसे देश की सुरक्षा को खतरा है।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी, जिन्हें राज्य में मुसलमानों का सरपरस्त माना जाता हैं, रोहिंग्या मुसलमानों को शऱण देने की परोकारी कर रही हैं।

बांग्लादेशी मुसलमानों को वोट के लालच में पश्चिम बंगाल में बसाने वाली ममता बनर्जी की सरकार ने तो आतंकवादी, घुसपैठियों के राशन कार्ड भी बनवा दिए हैं।

आतंकवादी घटनाओं में पकड़े गए रोहिंग्या मुसलमान के जन्म प्रमाणपत्र भी पश्चिम बंगाल में बन रहे हैं।
रोहिंग्या आतंकी मोहम्मद इस्माइल को हाल ही में हैदराबाद पुलिस ने गिरफ्तार किया था। 
उसके पास से पश्चिम बंगाल में बना बर्थ सर्टिफिकेट प्राप्त हुआ था। इस घटना ने वहां की सुरक्षा-व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है।

रोहिंग्या आतंकी मोहम्मद इस्माइल को दमदम नगरपालिका ने बर्थ सर्टिफिकेट जारी किया है।

उसके पास से मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, पैन कार्ड, यूएनएचआरसी कार्ड भी बरामद किया गया है।

इस बात से यह सच्चाई तो सामने आ गई है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री केवल और केवल वोटों के लालच में और एक समुदाय को खुश करने के लिए ही रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने की परोकारी कर रही हैं।

सारी दुनिया जानती है कि प्राचीन काल से ही भारत की छवि एक उदार राष्ट्र की रही है। तमाम धर्म और समुदाय भारत में विकसित हुए हैं। भारत हमेशा यहां आने वालों का स्वागत करता रहा है।

हमारा इतिहास बताता है कि विदेशी आक्रांताओं ने शरण लेने के नाम पर हमेशा छल किया।

पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी की 17 बार जान बख्शी, पर उसने क्या किया। कितने मुगलों को भारत में शऱण दी गई। पुतर्गालियों को भारत में शरण दी गई। व्यापार करने के नाम पर भारत में आने वाले अंग्रेजों ने राजा-महाराजाओं से विश्वासघात करते हुए एक-दूसरे को लड़ा कर अपना साम्राज्य कायम कर लिया।

सिकंदर के महान बनने की कहानी के पीछे भी धूर्तता की बड़ी भूमिका थी। भारत में आजादी के बाद लगातार लोग शऱण के लिए यहां आते रहे हैं। यहूदियों को लाखों हिन्दुओं और सिखों को पाकिस्तान में मुसलमानों द्वारा किए गए कत्ले आम के कारण भारत आना पड़ा।

1950 में बड़ी संख्या में तिब्बत के लोगों को भारत में चीन के कड़े विरोध के बावजूद शरण दी गई। अफगानिस्तान से बड़ी संख्या में लोग भारत के कई शहरों में रह रहे हैं। बांग्लादेश से निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन को भारत में ही शरण मिली। भारत में पांच हजार से ज्यादा यहूदी रह रहे हैं।

कुछ समय पहले भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की इजरायल यात्रा के दौरान भारत के यहूदियों ने कहा था कि हमें भारत में डर नहीं लगता है, लेकिन देश के बाहर पैदा होने वाले आतंक से खतरा बताया था।

ऑल इंडिया मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एइएमइएम) के औवेसी ने तो तस्लीमा को शऱण देने के बहाने रोहिंग्या मुसलमानों को शऱण देने की वकालत की है।

कुछ मामलों को छोड़ दें तो शरण देने वालों का इतिहास विश्वासघात से ही भरा हुआ है। उदारता के कारण भारतीयों को शऱण देने के कारण खामियाजा ही भुगतना पड़ा है।

दरअसल इस समय केंद्र सरकार की सबसे बड़ी चिंता रोहिंग्या मुसलानों को शरण देने के बाद उनसे होने वाली असुरक्षा से ज्यादा है। बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमानों के आतंकवादी संगठनों में शामिल होने की सूचना के बाद केंद्र सरकार ने यह कदम उठाया है।

2015 में श्रीनगर के दक्षिण में 30 किलोमीटर दूर एक एनकाउंटर में मारे गए दो आतंकवादियों में से एक की पहचान रहमान-अल-अरकानी उर्फ बर्मी के तौर पर की गई थी।

अराकान ही वह इलाका हैं जहां से रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार सेना ने खदेड़े थे। म्यांमार सरकार ने 9 अक्टूबर 2016 को बांग्लादेश से लगी सीमा चौकियों पर हुए आतंकी हमलों को अंजाम देने वाले संगठन अका-मुल- मुजाहिदीन और उसके सरगना हाविसतुहार के पाकिस्तान से संबंध होने की बात कही थी।
म्यांमार सरकार ने घोषणा की थी मुंगदॉ इलाके के रहने वाले हाविसतुहार ने पाकिस्तान में 6 महीने की तालिबानी आतंकी ट्रेनिंग ली थी।

आतंकवादी अब्दुल करीम टुंडा ने भी पकड़ने के बाद पुलिस को बताया था कि लश्कर म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के जरिये आतंकवाद फैला रहा है। म्यांमार में बौद्धों पर हमला करने के लिए रोहिंग्या मुसलमानों को उकसाने में बर्मी की भूमिका रही है। बर्मी के बारे में कहा जा रहा है कि अलकायदा के लिए भी उसने लड़ाई लड़ी है। इस समय देश में अवैध रूप से रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या 42 हजार से ज्यादा बताई गई है। सबसे ज्यादा रोहिंग्या घुसपैठी जम्मू में रह रहे हैं।

भारत में रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने का मामला सुप्रीम कोर्ट में है। रोहिंग्या मोहम्मद सलीमुल्लाह और मोहम्मद शाकिर ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर भारत में शऱण मांगी है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत यह शऱण मांगी गई है।

सरकार ने कहा है कि धारा 21 के तहत मिला जीने का अधिकार धारा 19 से जुड़ा है और यह धारा केवल भारतीय नागरिकों के लिए हैं। जो लोग रोहिंग्या मुसलमानों के लिए आंसू बहा रहे हैं, उन्होंने पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिन्दुओं या दूसरे धर्मों के नागरिकों पर होने वाले जुल्मों के खिलाफ कभी कुछ बोला है।

पाकिस्तान में हिन्दू लड़कियों की जबरन मुस्लिमों से शादी कराईं जा रही हैं, उनके मंदिरों पर हमले हो रहे हैं।

यह सब शायद मानवाधिकार की श्रेणी में नहीं आता है। मानवाधिकार की श्रेणी में आता है कि पहले अवैध रूप से किसी देश में घुसों। वहां की सेना पर हमले करो और फिर जवाबी कार्रवाई हो तो मानवाधिकार की बात करों।
भारत सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने का सही निर्णय लिया है। भारत 1951 संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी कनवेंशन का हिस्सा नहीं है। किसी को भी शरणार्थी का दर्जा प्राप्त करने के लिए एक प्रक्रिया का पालन करना होता है। रोहिंग्या मुसलमानों में से तो किसी ने प्रक्रिया का पालन नहीं किया है।