मध्यप्रदेश की स्थापना 1 नवम्बर 1956 में हुई थी। प्रदेश ने आज अपने आधुनिक स्वरुप के 63 वर्ष पूरे कर लिए। मध्य प्रदेश सही मायनों में भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के सम्मिश्रण का केंद्र है। मध्य प्रदेश भारत के बीचों बीच विराजमान ही नहीं है, अपितु एक सशक्त एवं एकीकृत भारत का उदाहरण भी है। इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने हम सभी को अपने देश के विषय में अधिक से अधिक जानकारी बटोरने का अनुरोध किया था। इस के पश्चात् मैंने सोशल मीडिया के द्वारा #Dekho_Bharat एवं #देखो_भारत नाम से एक प्रयास किया था कि भारत के प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पर्यटन स्थलों के विषय में पूरे देश को अवगत कराया जाए। मैंने मध्यप्रदेश के भी एतिहासिक एवं धार्मिक स्थलों के बारे में लिखा था ‘ये सभी स्थल किसी भी पुरातत्व एवं इतिहास प्रेमी के लिए किसी खजाने से कम नहीं हैं।’ आज पूरा देश राम जन्मभूमि के विषय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की प्रतीक्षा कर रहा है। मध्य प्रदेश स्थापना दिवस पर आज ये उचित होगा कि हम भगवान श्रीराम से जुड़े मध्य प्रदेश के ऐसे ही प्राचीन स्थलों का स्मरण करें। भगवान श्रीराम की जीवनी पर आधारित एक पर्यटन पथ का यदि निर्माण किया जाये तो उसमें मध्य प्रदेश की बहुत बड़ी भूमिका होगी। ऐसा संकल्प माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद मोदी के स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा देने में सहायक तो होगा ही, हमारी नयी पीढ़ी को हमारे इतिहास एवं धार्मिक जड़ों से भी जोड़ेगा।
जब भगवान श्रीराम वनवास के लिए प्रस्थान हुए, तो उनके पहले पड़ावों में से एक था चित्रकूट। श्रीराम ने यहां बहुत समय व्यतीत किया। वाल्मीकि रामायण में चित्रकूट का सन्दर्भ बहुत विशिष्ठ रूप से आता है। ऐसा कहते हैं कि श्रीराम ने जब अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया तो अनेकानेक ऋषि मुनि उस कार्यक्रम में चित्रकूट में सम्मिलित हुए। चित्रकूट में ही राम भरत मिलाप का मन को व्याकुल कर देने वाला वृतांत घटा। आज मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित रामघाट एवं जानकी कुंड श्रीराम एवं माँ सीता के द्वारा चित्रकूट में व्यतीत किए गए समय के साक्षी हैं।
भगवान श्रीराम ने इसके बाद दंडक वन के लिए प्रस्थान किया। आज की बात करें तो दंडकारण्य को हम बस्तर, छत्तीसगढ़ का भाग मानते हैं। रामायण काल में संभवतः यह वन पूरे मध्य भारत में फ़ैला हुआ रहा होगा। आज का छत्तीसगढ़ भी 1956 में मध्यप्रदेश का ही हिस्सा था। दंडक वन में ही श्रीराम के अनुज श्री लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काटी थी। कहा जाता है कि दंडक वन के पश्चात श्री राम ने विंध्य पर्वत एवं नर्मदा नदी के दूसरी ओर स्थित रामटेक में प्रवेश किया। लेकिन मध्य प्रदेश में ऐसे और भी कई स्थान हैं जो हमें रामायण काल के बारे में अधिक सूचना देते हैं।
ऐसा ही एक स्थान है ओरछा। यहां आज भी भगवान श्रीराम की पूजा स्थानीय राजा के रूप में की जाती है। ओरछा में स्थित राम राजा मंदिर में श्रीराम पद्मासन मुद्रा में बैठे हैं। उनका बायां पैर उनके दाएं पैर के ऊपर है और उनके बाएं पैर के अंगूठे के दर्शन शुभ माने जाते हैं। प्रत्येक दिन श्रीराम के चरणों में चंदन का लेप अर्पित किया जाता है। श्रद्धालु एवं पर्यटक बड़ी संख्या में ओरछा आते रहे हैं।
माना जाता है कि बुंदेल राजा मधुकर शाह जुदेव की रानी गणेश कुंवारी ने इस मंदिर की स्थापना की थी। सन 1575 में इस मदिर का निर्माण हुआ था। रानी गणेश कुंवारी श्रीराम की भक्त थीं। उन्होंने श्रीराम को बाल स्वरूप में ओरछा लाने के लिए अयोध्या में सरयू नदी के तट पर घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रभावित होकर श्रीराम रानी की गोदी में प्रकट हुए और रानी के साथ इस परिस्थिति में आने को तैयार हुए कि वे ओरछा के राजा बनेंगे। उसी समय से ओरछा राजघराने ने श्रीराम को ही ओरछा का वास्तविक राजा माना है। आज भी ओरछा में श्रीराम को एक राजा के समान सुरक्षा दी जाती है।
ऐसा ही एक अन्य स्थान है मुरैना। गुप्त एवं गुर्जर प्रतिहार युगों के मंदिरों के अवशेष आज भी मंदिरों की धरती मुरैना में पाए जाते हैं। इन्हीं मंदिर भवन समूहों में से एक है पढ़ावली। यहां के मंदिरों की भिन्तियों एवं छतों पर रामायण काल की कहानियों की दृश्यावली अंकित है। जब रावण ने माँ सीता का हरण कर उन्हें अशोक वाटिका में बंदी बना दिया था, तब माँ सीता की देखभाल त्रिजटा नाम की एक राक्षसी ने की थी। त्रिजटा ने माँ सीता को रावण के क्रोध से भी बचाया था एवं श्री राम के संदेश भी माँ सीता तक पहुंचाए थे। उज्जैन में आज भी एक मंदिर में त्रिजटा की पूजा अर्चना की जाती है।
उज्जैन की बात करें तो अवंतिका या उज्जयनि नाम से प्रसिद्ध यह शहर पौराणिक काल में भारतवर्ष के सात सबसे पावन शहरों में गिना जाता है। मान्यता है कि श्री राम माँ सीता के साथ उज्जैन आए थे। बारह वर्ष में एक बार आयोजित होने वाले उज्जैन के कुम्भ मेले में राम घाट पर स्नान करना पवित्र माना जाता है। उज्जैन में ही शिप्रा नदी के किनारे स्थित है वाल्मीकि धाम। ऋषि वाल्मीकि की स्मृति में स्थापित इस आश्रम में बड़ी संख्या में ऋषि मुनि एवं श्रद्धालु उमड़ते हैं। वाल्मीकि घाट भी कुंभ मेले के आयोजन में एक विशेष स्थान रखता है जहां श्रद्धालु शिप्रा नदी में डुबकी लगाने आते हैं।
पर्यटन एवं विशेषकर धार्मिक पर्यटन हमारी अर्थव्यवस्था पर एक बहुत सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। पर्यटन से स्थानीय नवीन नौकरियों का निर्माण तो होता ही है, भौतिक परिसंपत्तियों का भी निर्माण होता है। नवीन होटल, खाने पीने के स्थान, आवागमन के साधन एवं छोटे व्यापारियों के उद्यम स्थानीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करते हैं। मध्य प्रदेश की प्रगति में पर्यटन का मुख्य योगदान हो सकता है। मध्यप्रदेश के स्थापना दिवस के अवसर पर मैं आप सभी से करबद्ध निवेदन करूंगा कि हम सभी माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सलाह को कार्यान्वित करें और हमारे देश के अधिक से अधिक भागों को जानें। आप सभी रामायण के माध्यम से हिन्दुस्तान का दिल देखें, मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपकी यात्रा भक्ति भाव से ओतप्रोत होगी एवं आप इस राज्य की प्रचुर साँस्कृतिक परम्परा का आनंद लेंगे।