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अक्षय तृतीया- कभी न हो क्षय, भरा रहे सदैव भंडार

अक्षय तृतीया- कभी न हो क्षय, भरा रहे सदैव भंडार

कैलाश विजयवर्गीय

 

अक्षय तृतीया का पर्व हमें धार्मिक, सांस्कृतिक, समृद्ध आर्थिक स्थिति, फलती-फूलती कृषि और समाज को परोपकार की भावना के आधार पर जोड़ता है। पूरे देश में इस पर्व को अलग-अगल इलाकों में अलग-अलग तरीके से मनाते हों पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा सभी स्थानों पर होती है। माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर सबसे ज्यादा विवाह होते हैं। राजस्थान में अखा तीज के दिन सबसे ज्यादा जोड़े वैवाहिक बंधन में बंधते हैं। यह भी माना जाता है कि इस दिन बंधन में बंधने वालों की गांठ कभी नहीं खुलती है। बंगाल में हल खता के दिन नए कार्यों को प्रारम्भ किया जाता है। व्यवसायी गणेश जी और लक्ष्मी जी का पूजन करके अपने नए बही-खाते लिखना प्रारम्भ करते हैं। ओडिसा में भगवान जगन्नाथ की यात्रा शुरु होती है और किसान फसल बोकर मां लक्ष्मी से समृद्धि की कामना करते हैं। ओडिसा में मुथी चुहाना के रूप में मनने वाले पर्व के दिन लोग मांसाहार से बचते हैं। दक्षिण भारत में भगवान विष्णु, लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है। माना जाता है कि भगवान शंकर ने कुबेर को इसी दिन लक्ष्मी जी की पूजा करने को कहा था। पंजाब में इसे कृषि पर्व के तौर पर मनाया जाता है। उत्तर भारत में अक्षय तृतीया का अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग महत्व है।
शास्त्रों में बताया गया है कि ‘न क्षयः इति अक्षयः’ अर्थात जिसका क्षय नहीं होता वह अक्षय है। हमारे यहां रामनवमी, अक्षय तृतीया, विजय दशमी और कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को अक्षय मुर्हूत माना जाता है। कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा को भी आधा अबूझ मुर्हूत माना जाता है। बैशाख महीने की तृतीया यानी अक्षय तृतीया को सबसे अच्छा मुर्हूत माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए गए शुभ कर्म के फल का कभी क्षय नहीं होता है। इसी कारण इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है।

अक्षय तृतीया को कृतयुगादि भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार सतयुग का प्रारम्भ अक्षय तृतीया से हुआ था। इसी तिथि को भगवान परशुराम का अवतरण दिवस मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगीरथ के कठोर तप के बाद गंगा जी का पृथ्वी पर अवतार हुआ था। एक कथा में वर्णन है कि द्वापर युग में भरे दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ही दु:शासन ने द्रौपदी का चीर हरण किया था। महाभारत काल में द्रोपदी की करुणा पुकार भगवान कृष्ण ने अक्षय तृतीया को अक्षय चीर का वरदान दिया था। प्राचीन कथाओं में बताया गया है कि अक्षय तृतीया पर ही युधिष्ठिर को अक्षय पात्र मिला था। भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय पात्र हमेशा भोजन प्रदान करता था। अक्षय पात्र से ही राजा युधिष्ठिर भूखे लोगों को भोजन देते थे। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण के दीन मित्र सुदामा उनसे मिलने गए थे और मुट्ठी भर चावल भेंट करने पर भगवान ने उनकी झोपड़ी का भव्य महल में परिवर्तन कर दिया था। देवभूमि हिमालय के चार धामों में से एक भगवान बद्री विशाल के पट अक्षय तृतीया के दिन ही भक्तों के लिए खुलते हैं। वृंदावन में भगवान बांके बिहारी के चरणों के दर्शन अक्षय तृतीया के दिन ही होते हैं। बिहारी जी के चरण दर्शन करने से परिवार में समृद्धि आती है। ऋतु पर्व अक्षय तृतीया बसंत और गर्मी का संधि पर्व भी है। ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया को गंगा में स्नान करके पितरों का तिल से तर्पण करके पिंडदान करने से मोक्ष मिलता है।

कभी क्षय न होने के कारण अक्षय तृतीया को स्वर्ण खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सोने-चांदी के आभूषण घर में लाने से हमेशा समृद्धि रहती है। समृद्धि और वैभव की भरमार करने वाले पर्व अक्षय तृतीया को दान करने का भी विशेष महत्व है। कथाओं में वर्णन है कि अक्षय तृतीया को जल से भरे कलश, गाय, पंखे, जूते आदि का दान बहुत पुण्य देता है। गरीबों और कल्याणकारी संस्थाओं को भी भूदान का विशेष महत्व हैं। ऐसे कल्याणकारी, समृद्धिवर्धक और पुण्य देने वाले पर्व अक्षय तृतीया पर सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। हमारा देश समृद्ध बने, शाक्तिशाली बने और कृषि हमेशा फलती-फूलती रहे।