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अखंड राष्ट्र के प्रबल समर्थक बाबा साहब

पिछले लंबे समय से बाबा साहब डा.भीमराव अम्बेडकर का नाम लेकर कुछ लोग देश की एकता और अंखडता को चुनौती देने की कोशिश कर रहे हैं। हैरानी की बात है कि मुसलमान और कम्युनिस्ट नेता भी बाबा साहब के आदर्शों पर चलने का दावा करते हुए हिन्दू समाज की आलोचना कर रहे हैं। नागरिकता संशोधन कानून 2019 के विरोध में जिस तरह दलित और मुस्लिम गठजोड़ दिखाने की कोशिश की गई, वास्तव में वह बाबा साहब की मुस्लिमों के बारे असली सोच के विरोध में था। बाबा साहब का नाम लेकर ही उनके विचारों का खत्म करने का प्रयत्न किया गया। बाबा साहब ने कभी हिन्दू धर्म का विरोध नहीं किया। बाबा साहब हिन्दू धर्म में जातिगत आधार पर भेदभाव के विरोधी थे। बाबा साहब समाज में समानता के प्रबल समर्थक थे। बाबा साहब राष्ट्र की एकता और अखंडता के प्रबल समर्थक थे। बाबा साहब ने गुलाम प्रथा के लिए इस्लाम को दोषी ठहराया था। उनका मानना था कि इस्लाम के कारण ही गुलामी की प्रथा लंबे समय तक कायम रही। इस्लाम के कारण ही भारत को कई बार परतंत्र होना पड़ा। इसी कारण उन्होंने देश के बंटवारे और आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 का लागू करने का विरोध किया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यों का विरोध करने के लिए मुस्लिम नेता और कम्युनिस्ट बाबा साहब को अपना आदर्श बताते हैं। बाबा साहब मुस्लिमों के बारे कहते थे कि मुस्लिम महजब और कुरान के प्रति वफादरी रखते हैं। बाबा साहब ने कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति का विरोध किया था। इसी कारण कांग्रेस ने उन्हें लोकसभा चुनाव नहीं जीतने दिया। बाबा साहब और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के संबंध इसी कारण कभी अच्छे नहीं रहे। पंडित नेहरू ने पहले 1952 में हुए आम चुनाव में उत्तर मुंबई लोकसभा सीट से बाबा साहब को हराने में प्रमुख भूमिका निभाई थी। बाबा साहब के पुराने नजदीकी साथी एनएस काजोलकर को कांग्रेस ने उनके सामने खड़ा किया था। नेहरू ने दो बार बाबा साहब के विरोध में जाकर वोट मांगे। चुनाव में बाबा साहब 15 हजार वोट से हार गए। इसके बाद 1954 में बंडारा लोकसभा चुनाव के उपचुनाव में कांग्रेस ने फिर हराने का काम किया। मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति का विरोध करने के कारण कांग्रेस ने कभी बाबा साहब की नीतियों और विचारों का सम्मान नहीं किया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बाबा साहब में कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों का विरोध करने में समानता नहीं थी। बाबा साहब भी संघ की तरह देश के विभाजन के खिलाफ थे। संघ ने समाज को जातिविहीन व्यवस्था के आधार पर जोड़ते हुए राष्ट्रीय एकता और अखंडता का कल्पना को साकार किया। संघ के संस्थापक डा.केशवराव बलिराम हेडगेवार कहते थे कि शाखा में आने वाला केवल स्वयंसेवक है। द्वितीय सरसंघचालक गुरु गोलवलकर जी ने स्वयंसेवकों को अन्तरजातीय विवाह करने के लिए प्रेरणा दी। गुरुजी ने 1942 संघ के एक स्वयंसेवक के परिवार में अंतरजातीय विवाह की सराहना की थी। जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 हटाने का बहुजन समाज पार्टी यह कहते हुए समर्थन देती है कि बाबा साहब इस व्यवस्था के खिलाफ थे। बाबा साहब ने अखंड राष्ट्र का पुरजोर समर्थन किया था। बाबा साहब ने “पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया” बुक में मुस्लिमों के बारे में बेबाकी से विचार प्रस्तुत किए हैं। उऩ्होंने लिखा है कि इस्लाम मुस्लिम और गैर—मुस्लिमों भेद करता है। इस्लाम का बंधुत्व मानवता का सार्वभौम बंधुत्व नहीं है। यह बंधुत्व केवल मुसलमान का मुसलमान के प्रति है। दूसरे शब्दों में कहें तो इस्लाम कभी एक सच्चे मुसलमान को ऐसी अनुमति नहीं देगा कि आप भारत को अपनी मातृभूमि मानो और किसी हिंदू को अपना आत्मीय बंधु। किताब के 301 पन्ने पर लिखा है कि विभाजन के बाद भी अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक की समस्या बनी ही रहेगी। यह बात स्वीकार कर लेनी चाहिए कि पाकिस्तान बनने से हिन्दुस्तान साम्प्रदायिक समस्या से मुक्त नहीं हो जाएगा। सीमाओं का पुनर्निर्धारण करके पाकिस्तान को तो एक सजातीय देश बनाया जा सकता है, परन्तु हिन्दुस्तान तो एक मिश्रित देश बना ही रहेगा। मुसलमान समूचे हिन्दुस्तान में छितरे हुए हैं-यद्यपि वे मुख्यतः शहरों और कस्बों में केंद्रित हैं।

कोरोना से मुकाबला-विश्वमंच पर छाए मोदी

कोरोना वायरस महामारी के प्रकोप से बचाव और उपचार के लिए विश्वभर की निगाहें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों और उठाये गए कदमों पर लगी हुई हैं। प्रधानमंत्री मोदी की पहले 22 मार्च को जनता कर्फ्यू और उसके बाद 24 मार्च की रात से 21 दिन के लिए लागू किए गए लॉकडाउन के कारण देश की जनता महामारी के प्रकोप का मुकाबला करने को तैयार हो गई। प्रधानमंत्री के प्रयासों की दुनियाभर में तारीफ हो रही है और मीडिया में कहा जा रहा रहा है कि भारत की जनता अगर सरकारी प्रतिबंधों का कड़ाई का पालन से करें तो देश में ज्यादा जान गंवाएं बिना लोगों को ज्यादा तादाद में संक्रमित होने से बचाया जा सकता है। केंद्र और राज्य सरकारों के निर्देशों और लॉकडाउन का पालन करने से हम न केवल स्वयं को बल्कि अपने परिवार और आसपास के लोगों को महामारी के प्रकोप से बचा सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी के निर्देश पर पूरे देश में लागू लॉकडाउन के कारण हमारे 431 जिले अभी पूरी तरह संक्रमण मुक्त हैं। जिन 133 जिलों में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज हैं, वहां कुछ इलाकों को ही हॉटस्पॉट माना गया है। इतना माना जा सकता है कि मोदी के उठाये कदमो के कारण महामारी के फैलने पर रोक लगी है। साथ ही दवा और अन्य सामान के लिए दुनियाभर की उम्मीदें भारत पर टिकी हुई हैं। संकट की घड़ी में प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया के देशों को हर तरह की उम्मीद बंधाई है।

हमारे सामने चीन और अमेरिका जैसे महाबली देशों की सरकारों का उदाहरण सामने हैं। मीडिया में चर्चा आई कि चीन ने महामारी के प्रकोप को रोकने के लिए संक्रमित नागरिकों पूरी तरह से अलग-थलग कर दिया। चीन में लाखों लोगों का कोई सुराग नहीं मिल रहा है। 80 लाख से ज्यादा मोबाइल सिम का पता नहीं चल पा रहा है। ढाई करोड़ लोगों के मोबाइल फोन बंद बताएं जा रहे हैं। यह हाल है साम्यवाद की राह पर चलने वाली चीनी सरकार का। दुनियाभर में अब तक कोरोना वायरस के कारण 90 हजार के आसपास लोगों की जानें जा चुकी हैं। अमेरिका में 15000 के आसपास आंकड़ा पहुंचने वाला है। अमेरिका में 4.30 लाख कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जनता को बचाने में नाकामी की हताशा में विश्व स्वास्थ्य संगठन पर ही आरोप लगा दिए। डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन पर लापरवाह होने और चीन पर खास ध्यान देने का आरोप लगाया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेडरोस ने भी चेतावनी दी है कि अगर हम नहीं सुधरे, तो हमारे सामने और ज्यादा ताबूत रखे होंगे। लाशों का ढेर लग जाएगा। पाकिस्तान की सरकार ने जनता को बचाने के उपाय करने के बजाय मरने वालों के लिए 80 एकड़ जमीन दफनाने के लिए आरक्षित कर दी है।

हमारे देश में अभी चीन, अमेरिका, इटली, फ्रांस आदि देशों जैसीं सुविधाएं नहीं है। हमारे दूरदर्शी प्रधानमंत्री मोदी ने एक कुशल प्रशासक और बेहतर संरक्षक की भूमिका निभाते हुए देशवासियों को संकट से बचाने के लिए घरों में रहने की अपील की। सही समय पर लॉकडाउन की घोषणा करके लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए घरों रहने की अपील की गई। देश की जनता ने भी अपने प्रधानमंत्री की अपील पर चैत्र नवरात्र के दौरान घरों में रहकर की मां दुर्गा की आराधना की। यह ऐसा अवसर होता है कि जब करोड़ों लोग स्थानीय स्तर पर लगने वाले मेलों में पहुंचते हैं। देश की जनता ने प्रधानमंत्री की अपील के मद्देनजर पहले रामनवमी और फिर हनुमान जयंती पर कोई आय़ोजन नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या में विवादित भूमि पर भगवान श्रीराम का मंदिर बनाने का निर्णय देने के बाद तमाम संगठनों व्यापक स्तर पर कार्यक्रम करने की तैयारी कर रखी थी। विश्व हिन्दू परिषद ने प्रधानमंत्री की अपील पर अपनी पहले की तैयारियों की विराम देते हुए कार्यक्रम स्थगित कर दिया और कुछ गिने-चुने लोगों ने ही भगवान श्रीराम का प्राक्टयोत्सव मनाया। पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में भव्य शोभायात्राओं का आयोजन होना था। प्रसन्नता की महामारी से प्रकोप से बचाने के लिए कहीं कोई कार्यक्रम नहीं किया गया। इसके लिए सभी लोगों का साधुवाद। यह भी सही है कि तबलीगी जमात जैसी घटना नहीं होती तो संक्रमण को काबू करने में ज्यादा आसानी होती। दुख की बात यह है कि राज्य सरकारों की चेतावनी के बावजूद तबलीगी जमात के लोग सहयोग नहीं कर रहे हैं। देश में कोई भूखा न सोय़े, प्रधानमंत्री की इस अपील पर सामान्य वर्ग ने खुलकर सहयोग दिया। प्रधानमंत्री ने कोरोना महामारी के प्रकोप से बचाने के लिए विदेशी नेताओं से भी बात की। लॉकडाउन के मुद्दे पर वीडियो कांफ्रेस के जरिये सभी दलों के नेताओं से बात की और अब मुख्यमंत्रियों से बात करके लॉकडाउन जारी रखने या समाप्त करने का फैसला होगा। वैसे तो ज्यादातर राज्यों के मुख्यमंत्री लॉकडाउन को जारी रखने के पक्ष में हैं। कुछ राज्यों ने लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा भी कर दी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी जो शुरुआत में कोरोना महामारी को सीएए और एनआरसी के मुद्दे से ध्यान हटाने का शुगूफा बता रही थी, आज उन्हें लॉकडाउन कराने के लिए सड़कों पर उतारना पड़ा है। कोरोना महामारी के प्रकोप से बचने का एकमात्र उपाय है, घर में रहे और अपने हाथों को साफ रखे। यह तो तय है कि कई राज्यों में लॉकडाउन की अवधि बढ़ाई जाएगी। ऐसे समय में हम सभी को प्रशासन, पुलिस और डॉक्टरों का सहयोग करना है। हम सब प्रशासन के नियमों और निर्देशों का पालन करें। ऐसे समय में हमारा सहयोग बहुमूल्य होगा।

कोरोना महामारी से बचाव और चैत्र नवरात्र में साधना पर विशेष लेख

घर में करें मां भगवती की साधना – कैलाश विजयवर्गीय

आप सभी को 25 मार्च 2020 से प्रारम्भ होने वाले विक्रम संवत 2077 पर बहुत-बहुत शुभकामनाएं। इस वर्ष आप सभी स्वस्थ रहे और भारत की प्रगति में सहयोगी बने। 2077 संवत को प्रमादी बताया गया है। प्रमादी संवत के प्रभाव से कृषि और व्यापारिक क्षेत्र में विकास देखने को मिल सकता है। इस संवत के राजा बुध होंगे और मंत्री चंद्रमा होंगे। इसी दिन से चैत्र नवरात प्रारम्भ हो रहा है। नवरात देवी उपासना का अवसर है।

पूरे विश्व में कोरोना महामारी के प्रकोप से हाहाकार मचा हुआ है। 22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर पूरे देश में जनता कर्फ्यू को भरपूर समर्थन मिला। बीमारी के बढ़ते प्रकोप के कारण को कई जिलों लॉक डाउन लागू किया गया। पंजाबं लॉक डाउन में लोगों की आवाजाही बंद न होने पर कर्फ्यू लगा दिया है। दिल्ली में लॉक डाउन में केवल आवश्यक सेवाओं की अनुमति दी गई है। उत्तर प्रदेश में भी सीमाओं को बंद कर दिया गया है। सरकार के तमाम कदमों के बावजूद महामारी प्रकोप से मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसकी वजह है कि लोग सरकार द्वारा बताए गए निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। आप सभी से अपील है कि केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाए प्रतिबंधों का पालन करें। यह आपके और आपके परिवार की सुरक्षा के लिए आवश्यक है।

महामारी के प्रकोप के दौरान हमें देवी उपासना और भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव मनाने का अवसर मिल रहा है। नवरात के दिनों में हम सब अपने-अपने घरों में कलश स्थापना करें और देवी के नौ रूपों की नौ दिन आराधना करें। देवी को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ और हवन की विशेष परम्परा रही है। धर्म ग्रंथ एवं पुराणों के अनुसार नवरात मां दुर्गा की आराधना का श्रेष्ठ समय होता है। नवरात्र तीन देवियों महाकाली (शौर्य की देवी), महालक्ष्मी (धन की देवी) तथा महासरस्वती (ज्ञान की देवी) को समर्पित है। महामारी के प्रकोप से बचाने के लिए

रोगानशेषानपहंसि शुष्य रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रितानां हाश्रयतां प्रयान्ति।।

कार्यों में आने वाली बाधाओं के निवारण के लिए मंत्र है
सर्व मंगल्य मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तुते।।

विश्व में शांति के लिए मंत्र जाप करें

रक्तबीजवधे देवि चण्डमुण्ड विनाशिनी।

रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विशो जहि।।

नवरात में मां भगवती के नौ रूपों की पूजा की जाती है।

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी l तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ll पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च l सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ll नवमं सिद्धि दात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः l

पहले नवरात को देवी शैलपुत्री का पूजन किया जात है। मंत्र है

ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ मंत्र से प्रार्थना करें।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ स्तुति करें।

दूसरे दिन देवी ब्रह्मचारिणी का पूजा मंत्र है।

ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

प्रार्थना मंत्र है

दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू।

देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥

स्तुति मंत्र है

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

तीसरे दिन देवी चंद्रघण्टा की पूजा करें और पूजा मंत्र है

ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥

प्रार्थना मंत्र है

पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥

स्तुति मंत्र हैं

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की

ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥ मंत्र से आराधना करें।

प्रार्थना मंत्र है

सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

पांचवे दिन देवी स्कन्दमाता की

ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥ मंत्र का जाप करते हुए आराधना करे। और

सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥ मंत्र से पूजन करें।

स्तुति मंत्र हैं

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

छठे दिन मां कात्यायनी की

ॐ देवी कात्यायन्यै नमः॥ मंत्र के साथ आराधना की जाती है।

प्रार्थना मंत्र है

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।

कात्यायनी शुभं दद्याद् देवी दानवघातिनी॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

सातवें दिन देवी कालरात्रि की आराधना की जाती है।

पूजा मंत्र है

ॐ देवी कालरात्र्यै नमः॥

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।

लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥

वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।

वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥ के साथ पूजन करें और

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ के साथ स्तुति करें।

आठवें दिन देवी महागौरी का पूजन किया जाता है और मंत्र है

ॐ देवी महागौर्यै नमः॥

प्रार्थना

श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ महागौरी रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

नवरात के अंतिम और नवें दिन

माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।

पूजा मंत्र है

ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥

प्रार्थना

सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

इसके अलावा नवरात में दुर्गा सप्तशती के पाठ करने की परम्परा रही है। अगर हम सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते हैं दुर्गा कवच और अर्गला स्त्रोत का पाठ नौ दिन तक अवश्य करें। मां भगवती निश्चय ही आपकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर आपकी मनोकामनाओं को पूरी करेंगी।

नवरात के दिनों में रामचरित मानस का पाठ करने से हमें सुख, समृद्धि और शांति मिलती है। परिवार में खुशहाली आती है और एकता बनी रहती है। रामचरित मानस का पाठ हम परिवार के सदस्य अलग-अलग 24 घंटें में कर सकते हैं। इस बार अच्छा होगा कि रामचरित मानस में दिए गए निर्देश के अनुसार नौ दिन तक रामचरित मानस का पाठ करें। नवरात में दुर्गा सप्तशती के साथ हनुमान जी की आराधना करना भी शुभ माना जाता है।

कोरोना महामारी के प्रकोप से खुद और परिवार को बचाने के लिए आवश्यक है इस बार नवरात पर सरकार द्वारा दिए निर्देश के अऩुसार मंदिर बंद रहेंगे। सभी लोग अपने-अपने घरों में ही स्थापित मां दुर्गा की आराधना करें। मां के भजन गाए और कीर्तन करें। यूटयूब पर मां भगवती के भजन सुने। नवरात में मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए साधना का विधान है। कोरोना महामारी से बचने के लिए आवश्यक है कि अपने घऱ में स्नान करके ही मां भगवती की साधना करें। यह भी ध्यान रखना है कि इस बार भूखे रहकर साधना नहीं करनी है। आप चाहे अन्न ग्रहण न करें पर शरीर को ताकत देने वाले और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले पदार्थ अवश्य ग्रहण करें। अंजीर, काजू, बादाम, अखरोट और खजूर प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करते हैं। स्वयं घरों में रहे और दूसरों को भी घरों में रहकर मां दुर्गा की साधना करने को कहें।

जैसा कि मैंने प्रारम्भ में कहा कि देवी को प्रसन्न करने के लिए हवन और यज्ञ करने की परम्परा रही है। प्राचीन काल में पशुबलि देने की परम्परा को अब बंद कर दिया गया है। नवरात के दिनों में हवन करने से घर में पवित्रता आती है और हमारे अंदर ऊर्जा भरती है। हम सबके लिए यह बहुत बड़ा अवसर है कि हम लोगों घरों में रहकर यज्ञ, हवन और ईश्वर की आराधना करें। विश्व कल्याण की भावना को लेकर भारत में वैदिक युग से यज्ञ करने की प्राचीन समृद्ध परम्परा रही है। यज्ञ में मंत्रोच्चार के अंत में स्वाहा के साथ ही आहुति देते ही उठती अग्नि हमारें अंदर सांस के माध्यम से तमाम रोगों से बचाती है। यज्ञ केवल कर्मकांड ही नहीं है बल्कि एक पूरी रोगों के उपचार की वैज्ञानिक पद्धति है। यज्ञ की उठती लपटें हमें जीवन में सत्य के पथ पर चलते हुए संकल्प की सिद्धि का मार्ग बताती है। यज्ञ में आहुति के लिए विभिन्न प्रकार की औषधियों के साथ गो के घी का उपयोग किया जाता है। कपूर जलाने से तमाम तरह का संक्रमण दूर होता है। यज्ञ से वातारवण में विद्यान दूषित तत्व समाप्त होते हैं और मनोरम तथा स्वस्छ वातावरण उत्त्पन्न होता है। श्रीराम शर्मा द्वारा स्थापित ब्रह्मवर्चस संस्थान वैज्ञानिक रूप से सिद्ध किया गया है कि यज्ञ से उत्पन्न धुआं सौ प्रतिशत आक्सीजन उत्पन्न कतरता है। अग्नि के माध्यम ईश्वर की उपासना की प्रक्रिया यज्ञ है।

ऋग्वेद में वर्णन है यज्ञं जनयन्त सूरयः। अर्थ हे विद्वानों! संसार में यज्ञ का प्रचार करो। अथर्ववेद में बताया गया है कि यज्ञ ही समस्त विश्व-ब्रह्मांड का मूल केंद्र है। अयं यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभिः। शतपथ ब्राह्मण में यज्ञ को देवों की आत्मा कहा गया है। यज्ञो वै देवानामात्मा। यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म बताया गया है। यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म। ‘यज्ञ’ शब्द पाणिनीसूत्र ‘‘यजयाचयतविच उप्रक्चरक्षो नड़्’’ में नड़् प्रत्यय लगाने पर बनता है। यज्ञ शब्द ‘यज्’ धातु से बना है। आज यज्ञ और हवन की महत्ता और महिमा समझने की आवश्यकता है। प्राचीन काल में संकटों से मुक्ति का मार्ग खोजने के लिए यज्ञ की परम्परा रही है। संकट से उबरने में जब कोई उपाय सफल नहीं होता तो ऋषि-मुनियों के द्वारा यज्ञ का आयोजन किया जाता था। वेदों में बताया गया है कि सुख, शांति और समृद्धि की कामना के लिए यज्ञ करें। भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवत गीता में अर्जुन को यज्ञ का महत्व बताया था। भगवान कहते हैं कि हे अर्जुन! जो यज्ञ नहीं करते हैं, उनको परलोक तो दूर यह लोक भी प्राप्त नहीं होता है।

रोगों के उपचार में गोली लेना, इंजेक्शन लगवाना और सर्जरी आदि मुख्य साधन है। यज्ञ में श्वांस के माध्यम से बिना चीरफाड़, इंजेक्शन और औषधि के बिना उपचार होता है। संक्रमण होने पर श्वांस के माध्यम से रोगियों का उपचार होता है। इसे भैषज्य यज्ञ कहते हैं। भैषज्य यज्ञ शरीर में बल बढ़ाता है। वायु प्रदूषण को कम करने के लिए ऋषि-मुनि यज्ञ करते थे। आज भी कई इलाकों में महिलाएं अपने बच्चों पर आने वाली बलाओं से बचाने के लिए अग्नि में एक-दो मिर्च डालती है। अगर भारी मात्रा में मिर्च अग्नि में डाली जाए तो वातावरण विषैला हो जाता है और सांस लेना मुश्किल हो जाता है। यज्ञ में आम और चंदन की लकड़ी. हवन सामग्री, घी, औषधियों की आहुति से वातावरण पवित्र होता है। यज्ञ से पवित्र वातावरण होने से हमें रोगों से मुक्ति मिलती है। अगर यज्ञ करना संभव नहीं है तो गाय के उपला जलाकर घी, गुग्गल, लोबान, लौंग आदि की आहुति देकर भी रोगों से मुक्ति मिलती है। साथ ही प्रार्थना करें

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।

ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

मध्य प्रदेश स्थापना दिवस पर आह्वान, आइए हिंदुस्तान का दिल देखिए

मध्यप्रदेश की स्थापना 1 नवम्बर 1956 में हुई थी। प्रदेश ने आज अपने आधुनिक स्वरुप के 63 वर्ष पूरे कर लिए। मध्य प्रदेश सही मायनों में भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के सम्मिश्रण का केंद्र है। मध्य प्रदेश भारत के बीचों बीच विराजमान ही नहीं है, अपितु एक सशक्त एवं एकीकृत भारत का उदाहरण भी है। इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने हम सभी को अपने देश के विषय में अधिक से अधिक जानकारी बटोरने का अनुरोध किया था। इस के पश्चात् मैंने सोशल मीडिया के द्वारा #Dekho_Bharat एवं #देखो_भारत नाम से एक प्रयास किया था कि भारत के प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित पर्यटन स्थलों के विषय में पूरे देश को अवगत कराया जाए। मैंने मध्यप्रदेश के भी एतिहासिक एवं धार्मिक स्थलों के बारे में लिखा था ‘ये सभी स्थल किसी भी पुरातत्व एवं इतिहास प्रेमी के लिए किसी खजाने से कम नहीं हैं।’    आज पूरा देश राम जन्मभूमि के विषय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की प्रतीक्षा कर रहा है। मध्य प्रदेश स्थापना दिवस पर आज ये उचित होगा कि हम भगवान श्रीराम से जुड़े मध्य प्रदेश के ऐसे ही प्राचीन स्थलों का स्मरण करें। भगवान श्रीराम की जीवनी पर आधारित एक पर्यटन पथ का यदि निर्माण किया जाये तो उसमें मध्य प्रदेश की बहुत बड़ी भूमिका होगी। ऐसा संकल्प माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद मोदी के स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा देने में सहायक तो होगा ही, हमारी नयी पीढ़ी को हमारे इतिहास एवं धार्मिक जड़ों से भी जोड़ेगा।
जब भगवान श्रीराम वनवास के लिए प्रस्थान हुए, तो उनके पहले पड़ावों में से एक था चित्रकूट। श्रीराम ने यहां बहुत समय व्यतीत किया। वाल्मीकि रामायण में चित्रकूट का सन्दर्भ बहुत विशिष्ठ रूप से आता है। ऐसा कहते हैं कि श्रीराम ने जब अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया तो अनेकानेक ऋषि मुनि उस कार्यक्रम में चित्रकूट में सम्मिलित हुए। चित्रकूट में ही राम भरत मिलाप का मन को व्याकुल कर देने वाला वृतांत घटा। आज मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित रामघाट एवं जानकी कुंड श्रीराम एवं माँ सीता के द्वारा चित्रकूट में व्यतीत किए गए समय के साक्षी हैं।
भगवान श्रीराम ने इसके बाद दंडक वन के लिए प्रस्थान किया। आज की बात करें तो दंडकारण्य को हम बस्तर, छत्तीसगढ़ का भाग मानते हैं। रामायण काल में संभवतः यह वन पूरे मध्य भारत में फ़ैला हुआ रहा होगा। आज का छत्तीसगढ़ भी 1956 में मध्यप्रदेश का ही हिस्सा था। दंडक वन में ही श्रीराम के अनुज श्री लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काटी थी। कहा जाता है कि दंडक वन के पश्चात श्री राम ने विंध्य पर्वत एवं नर्मदा नदी के दूसरी ओर स्थित रामटेक में प्रवेश किया। लेकिन मध्य प्रदेश में ऐसे और भी कई स्थान हैं जो हमें रामायण काल के बारे में अधिक सूचना देते हैं।
ऐसा ही एक स्थान है ओरछा। यहां आज भी भगवान श्रीराम की पूजा स्थानीय राजा के रूप में की जाती है। ओरछा में स्थित राम राजा मंदिर में श्रीराम पद्मासन मुद्रा में बैठे हैं। उनका बायां पैर उनके दाएं पैर के ऊपर है और उनके बाएं पैर के अंगूठे के दर्शन शुभ माने जाते हैं। प्रत्येक दिन श्रीराम के चरणों में चंदन का लेप अर्पित किया जाता है। श्रद्धालु एवं पर्यटक बड़ी संख्या में ओरछा आते रहे हैं।
माना जाता है कि बुंदेल राजा मधुकर शाह जुदेव की रानी गणेश कुंवारी ने इस मंदिर की स्थापना की थी। सन 1575 में इस मदिर का निर्माण हुआ था। रानी गणेश कुंवारी श्रीराम की भक्त थीं। उन्होंने श्रीराम को बाल स्वरूप में ओरछा लाने के लिए अयोध्या में सरयू नदी के तट पर घोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रभावित होकर श्रीराम रानी की गोदी में प्रकट हुए और रानी के साथ इस परिस्थिति में आने को तैयार हुए कि वे ओरछा के राजा बनेंगे। उसी समय से ओरछा राजघराने ने श्रीराम को ही ओरछा का वास्तविक राजा माना है। आज भी ओरछा में श्रीराम को एक राजा के समान सुरक्षा दी जाती है।
ऐसा ही एक अन्य स्थान है मुरैना। गुप्त एवं गुर्जर प्रतिहार युगों के मंदिरों के अवशेष आज भी मंदिरों की धरती मुरैना में पाए जाते हैं। इन्हीं मंदिर भवन समूहों में से एक है पढ़ावली। यहां के मंदिरों की भिन्तियों एवं छतों पर रामायण काल की कहानियों की दृश्यावली अंकित है। जब रावण ने माँ सीता का हरण कर उन्हें अशोक वाटिका में बंदी बना दिया था, तब माँ सीता की देखभाल त्रिजटा नाम की एक राक्षसी ने की थी। त्रिजटा ने माँ सीता को रावण के क्रोध से भी बचाया था एवं श्री राम के संदेश भी माँ सीता तक पहुंचाए थे। उज्जैन में आज भी एक मंदिर में त्रिजटा की पूजा अर्चना की जाती है।
उज्जैन की बात करें तो अवंतिका या उज्जयनि नाम से प्रसिद्ध यह शहर पौराणिक काल में भारतवर्ष के सात सबसे पावन शहरों में गिना जाता है। मान्यता है कि श्री राम माँ सीता के साथ उज्जैन आए थे। बारह वर्ष में एक बार आयोजित होने वाले उज्जैन के कुम्भ मेले में राम घाट पर स्नान करना पवित्र माना जाता है। उज्जैन में ही शिप्रा नदी के किनारे स्थित है वाल्मीकि धाम। ऋषि वाल्मीकि की स्मृति में स्थापित इस आश्रम में बड़ी संख्या में ऋषि मुनि एवं श्रद्धालु उमड़ते हैं। वाल्मीकि घाट भी कुंभ मेले के आयोजन में एक विशेष स्थान रखता है जहां श्रद्धालु शिप्रा नदी में डुबकी लगाने आते हैं।
पर्यटन एवं विशेषकर धार्मिक पर्यटन हमारी अर्थव्यवस्था पर एक बहुत सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। पर्यटन से स्थानीय नवीन नौकरियों का निर्माण तो होता ही है, भौतिक परिसंपत्तियों का भी निर्माण होता है। नवीन होटल, खाने पीने के स्थान, आवागमन के साधन एवं छोटे व्यापारियों के उद्यम स्थानीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करते हैं। मध्य प्रदेश की प्रगति में पर्यटन का मुख्य योगदान हो सकता है।    मध्यप्रदेश के स्थापना दिवस के अवसर पर मैं आप सभी से करबद्ध निवेदन करूंगा कि हम सभी माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सलाह को कार्यान्वित करें और हमारे देश के अधिक से अधिक भागों को जानें। आप सभी रामायण के माध्यम से हिन्दुस्तान का दिल देखें, मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपकी यात्रा भक्ति भाव से ओतप्रोत होगी एवं आप इस राज्य की प्रचुर साँस्कृतिक परम्परा का आनंद लेंगे।

Independence Day: A Moment To Take Pride In Indian Achievements And To Dream Even Bigger

Independence Day: A Moment To Take Pride In Indian Achievements And To Dream Even Bigger
“If I were asked under what sky the human mind has most fully developed some of its choicest gifts, has most deeply pondered over the greatest problems of life, and has found solutions of some of them which well deserve the attention even of those who have studied Plato and Kant, I should point to India”. – Max Muller wrote this in his book India: What It Can Teach Us.
As India celebrates seventy two years of independence as a nation state today, it is with great hope and confidence that Indians peek into the future. A country which may be a young nation state in the current form, but a civilization which for thousands of years has been the guiding light for humanity, reasserts its rightful place today in the matters of global significance.
Since Indian independence this day in 1947, India just took the boldest step yet in integrating the state of Jammu and Kashmir with the rest of the country. Ideally, Sardar Patel should have been entrusted to seal the full and unconditional integration of the land of Lalitaditya Muktapida with India. But historical mistakes take time to correct.
Under the decisive leadership of Prime Minister Narendra Modi and Home Minister Amit Shah, Article 370, the divisive, restrictive and oppressive instrument of alienating Dalits, women and refugees from partitioned Pakistan has been revoked. “Ek desh mein do Vidhan, do Pradhan aur Do Nishan nahi challenge”. This was the ideal for which Syama Prasad Mukherjee, the founder of Bharatiya Jan Sangh and amongst the tallest inspirations of the Bharatiya Janata Party, sacrificed his life in Srinagar in 1953. On this Independence Day, it is such a gratifying feeling to know that his supreme sacrifice did not go in vain.
Prime Minister Modi and Home Minister Shah have ensured that Pakistan has not been able to internationalize this issue. Jammu and Kashmir was always an integral part of India. With solid legal backing, planning for the Article 370 revocation meticulously and firm intent, India has demonstrated that the world also endorses this position. The world respects Indian decision because we have been consistent and never aggressive.
India is gaining this respect and attention in other fields too. This government has clearly outlined its vision to make India a $5 trillion economy in the next five years. This economic growth is meant to be inclusive as well. The government is tirelessly working to ensure that every Indian has access to affordable healthcare. Nearly every Indian household has access to power and cooking gas today. Most households have a bank account. The country, including the remote rural areas, is now well connected.
These are basic amenities which any compassionate government aims to provide to its citizens. Unfortunately, it has taken India 72 years to get to this point. Nonetheless, the idea should be to look at future and set even firmer and compassionate goal. That’s what this government has done – housing for all in the next few years and piped drinking water for all households in the next five years are the next ambitions.
There is no doubt that the Modi government will address these areas too, for this is the government which is serious about creating an empowered, healthy and purposeful citizenry. This government recognizes that improved ease of living itself improves the social capacity, which then ensures robust economic activity. There is no better way to lead a country on path of development than by ensuring the wellbeing of its citizens and enabling them to achieve their visible and latent potential.
India rescues our stranded citizens from around the world. We also help other countries in rescuing their citizens from conflict zones. Government services are just a tweet away. Feedback from citizens is actively sought by the government and inputs on a variety of areas accounted for to improve governance. The architecture of governance has been fundamentally altered in a way that today Indians trust and take pride in the government and look forward to contributing in continuous improvements because they feel like equal stakeholders in the process.
In a few days, Indian Space and Research Organization will land Chandrayan-2 on the surface of the moon. Mission Shakti, an anti-satellite missile test, was successfully conducted in March this year by Indian scientists. India’s ambitions – and ability to realize these ambitions in a responsible way with no harm to global protocols and environment – lead the world today.
We are setting the pace and we are defining new frontiers for rest of the world. India today maintains strong bilateral relationships across the globe, defined only by mutual national interests. We are trusted globally because our every bilateral relationship is rooted in mutual respect. Be it our constructive climate action or universal vaccination program, be it our nationwide cleanliness drive or environment protection push – India is seen as the new beacon of hope for meaningful, substantial and agile change.
India always had the wherewithal to do all this and much more. We are just embarking on a glorious dual journey of self-improvement and global influence. All it needed was a firm push from a government which has only one guiding principle – national interest. Not very long ago, India was considered Vishwa Guru – there is no doubt that we will claim this position back for ourselves. A self-assured and secure country working with positivity and hope, enabled by a determined and strong-willed government acting for India First will make this happen.
On this solemn occasion, let us be guided by the immortal words of Gurudev Rabindranath Tagore: “Where the mind is led forward by thee into ever widening thought and action. In to that heaven of freedom, my father, LET MY COUNTRY AWAKE!”

Respected Sushma Swaraj Ji – A painful loss

भारत की पहली महिला विदेशमंत्री, लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता रहीं, दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और हरियाणा में सबसे कम उम्र की मंत्री रही सुषमा स्वराज अब हमारे बीच नहीं रहीं, अचानक यह समाचार सुनकर विश्वास ही नहीं हुआ। उनके निधन से कुछ समय पहले ही उनका ट्वीट पढ़ रहा था। निधन का समाचार सुनते ही आंखों के सामने सुषमा जी का पूरा व्यक्तित्व दिखाई देने लगा। उनकी बातें याद कर मन विचलित हो उठा। विभिन्न कार्यक्रमों में उनके साथ रहने का अवसर मिला। उन्होंने हमेशा एक स्नेहमयी बहन का स्नेह दिया। उसी अधिकार के साथ समझातीं और सलाह देती थीं। कार्यकर्ता और उनके परिवार हमेशा उनकी चिंता के विषय रहते थे।

सुषमा स्वराज दुनियाभर में भारतीय नारी की प्रतिनिधित्व करती थीं। बार्डर वाली साड़ी पहने, सिंदूर से भरी हुई मांग और माथे पर लाल बिन्दी लगाए जब सुषमाजी विश्व भ्रमण करती थीं तो भारत की हर नारी गौरवान्वित महसूस करती थीं। अपने विचारों से उन्होंने भारतीय नारी की गरिमा का विश्व को अहसास भी कराया। प्रखर वक्ता के तौर पर भारतीय जनता पार्टी का पक्ष मीडिया में रखती तो प्रश्न पूछने वाले कम हो जाते थे। एक कुशल संगठक के तौर पर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं में अनूठी छाप रहेगी। एक कुशल संगठक के नाते उन्होंने कार्यकर्ताओं को गढ़ने का कार्य किया। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर उन्होंने सत्तापक्ष को हमेशा शालीनता से चुनौती दी। उनके तर्कपूर्ण बयानों से सामने वाला लाजवाब होते जाते थे।

भारत की पहली महिला विदेशमंत्री के रूप में विदेशों में रहने वाले भारतीयों को सुषमाजी से मां और बहन का प्यार मिला। विदेशों में रहने वाले भारतीयों की राय थी कि सुषमाजी के विदेशमंत्री रहने पर किसी भी संकट में उन्हें लगता था कि दिल्ली में उनकी चिंता करने वाला कोई बैठा है। सुषमाजी ने विदेशमंत्री रहते हुए दुनिया के हर कोने में रहने वाले भारतीयों की हर संकट में मदद की। विदेशों में रहने वाले भारतीयों में जो पहले सोचते थे कि हमारी कोई मदद करने वाला नहीं है, उन्होंने एक आत्मविश्वास भर दिया। ऐसे हजारों उदाहरण सामने हैं।

सुषमाजी की सबसे बड़ी विशेषता थी कि कार्यकर्ताओं का ध्यान रखना। एक कुशल संगठक के तौर पर तो कार्यकर्ताओं को गढ़ने का काम किया ही साथ उनके व्यक्तिगत जीवन में झांककर मां और बहन के रूप में चिंता करती और सलाह देती। जब मैं भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष था तो बहुत प्रवास करता था। उन दिनों प्रवास रेल या सड़क मार्ग के जरिये ज्यादा होते थे। उन्होंने पूछा कि कितने दिन घर से बाहर रहते हो। जब मैंने बताया कि एक माह में 25-26 दिन प्रवास पर ही रहता हूं तो इन्दौर में कम ही रह पाता हूं। इस पर एकदम से बोली कि अरे तो मां, पत्नी, भाई-बहनों और बच्चों को कब समय देते हो। जब मैंने बताया कि परिवार में सब हम मां के साथ रहते हैं। संयुक्त परिवार है। भाई परिवार का पूरा ध्यान रखते हैं। इस कारण कोई समस्या नहीं होती है। इस कारण कोई आवश्यकता नहीं लगती है। इस पर उनका कहना था कि आप कितने भी सफल नेता बन जाएं अगर आप अच्छे पुत्र नहीं है, आप अच्छे पति नहीं है। आप अपने बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं तो आप अच्छे पिता नहीं है तो मैं आपको सफल नेता नहीं मानूंगी। अपने भाई-बहनों के साथ समय नहीं बिता पाते हैं तो आप अच्छे भाई भी नहीं है। परिवार को समय देने के लिए क्वालिटी समय शब्द का उन्होंने इस्तेमाल किया। परिवार में सफल रहने के बाद ही आप राजनीति में सफल माने जाते हैं। यह सीख उन्होंने मेरे जैसे लगभग पूर्णकालिक कार्यकर्ता को दी थी। ऐसे सीख सुषमा सभी कार्यकर्ताओं को देती थीं। इसी कारण उन्हें कार्यकर्ताओं के परिवारों में मुखिया का दर्जा मिला हुआ था।

श्रीकृष्ण उनके आराध्य थे। कृष्ण भजन गाना और नृत्य करना उनका बहुत अच्छा लगाता था। इसी कारण उन्होंने बेटी का बांसुरी रखा। कुछ दिन बाद जन्माष्टमी हैं। ऐसे अवसर पर वे हमारे साथ नहीं होंगी। उनकी कमी हमेशा खलती रहेगी। बहुत याद आएंगी बड़ी दीदी सुषमाजी।

कैलाश विजयवर्गीय

Modi ka pran pura – Vyarth nahi gaya Dr. Mukherjee ka balidaan

मोदी का प्रण पूरा- व्यर्थ नहीं गया डा. मुखर्जी का बलिदान

कश्मीर के लाल चौक में अब शान से फहरायाएगा तिरंगा। पूरे जम्मू-कश्मीर में अब तिरंगा ही फहराएगा। श्री नरेंद्र मोदी जी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त करने के फैसले से 23 जून 1952 में देश की एकता और अखंडता के लिए अपने प्राणों की बलि देने वाले जनसंघ के अध्यक्ष डा.श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने 28 साल पहले 26 जनवरी 1992 में आतंकवाद से पीड़ित कश्मीर के लाल चौक से जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने का जो प्रण लिया था, वह 5 अगस्त 2019 को पूरा कर दिया। भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष डा.मुरली मनोहर जोशी जी ने कन्याकुमारी से प्रारम्भ हुई यात्रा का उस दिन कश्मीर में समाप्त किया था।

इतिहास में 15 अगस्त भारत के स्वतंत्रता दिवस की तरह ही 5 अगस्त जम्मू-कश्मीर की आजादी के लिए दर्ज हो गया है। 5 अगस्त को गृह मंत्री श्री अमित शाह जी ने राज्यसभा में धारा 370 हटाने के लिए संकल्प पेश किया। शाह के संसद में प्रस्ताव रखने के बाद राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद जी ने अनुच्छेद 370 हटाने के लिए संविधान आदेश (जम्मू-कश्मीर के लिए) 2019 के तहत अधिसूचना जारी कर दी। लद्दाख को अलग केंद्र शासित राज्य बनाया गया है। जम्मू-कश्मीर दिल्ली और पुद्दुचेरी की तरह विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश होगा। जम्मू-कश्मीर से धारा 35ए भी समाप्त कर दी गई है। 35ए के कारण जम्मू-कश्मीर की महिला के राज्य से बाहर शादी करने पर वहां की नागरिकता समाप्त कर दी जाती थी। पाकिस्तान में शादी करने पर तो वहां महिला को नागरिकता मिल जाती थी।

देश के बंटवारे के समय जम्मू-कश्मीर के राजा हरिसिंह पहले स्वतंत्र राज्य चाहते थे। बाद में उन्होंने भारत में विलय की मंजूरी दी। नेशनल कांफ्रेस के नेता शेख अब्दुल्ला ने राज्य को भारतीय संविधान से अलग करने की पेशकश की थी। नवंबर,1956 में राज्य का संविधान बना और 26 जनवरी,1957 को राज्य में विशेष संविधान लागू कर दिया गया।  धारा 370 के प्रावधानों के कारण संसद को जम्मू-कश्मीर में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार था। अन्य कार्यों से संबंधित क़ानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की अनुमति चाहिए थी। जम्मू-कश्मीर में भारत के निवासी जमीन नहीं खरीद सकते थे। धारा 370 में समय-समय पर बदलाब भी हुए। 1965 तक वहां राज्यपाल और मुख्यमंत्री नहीं होता था। उनकी जगह सदर-ए-रियासत और प्रधानमंत्री होता था। धारा 370 में हुए बदलावों के आधार पर ही धारा 370 हटाने का सरकार ने फैसला किया है।
पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी की सरकार ने भारतीय संविधान की धारा 370 के तहत यह प्रावधान किया था कि कोई भी नागरिक भारत सरकार के परमिट बना जम्मू-कश्मीर में प्रवेश नहीं कर सकता था। जनसंघ के अध्यक्ष डा.मुखर्जी जी ने इस प्रावधान का विरोध किया था। 1952 में एक देश में “दो विधान, दो निशान और दो प्रधान, नहीं चलेगा- नही चलेगा” के नारे के साथ जोरदार प्रदर्शन किए गए थे। डा.मुखर्जी उस समय कहते थे कि नेहरू जी कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा है तो वहां जाने के लिए परमिट क्यों जरूरी है। शेख अब्दुल्ला ने डोगरा समुदाय पर भी बहुत जुल्म किए। डोगरा समुदाय में जम्मू-कश्मीर का पूरी तरह भारत में विलय करने के लिए आंदोलन किया था।

डा.मुखर्जी ने विरोध जताने और कश्मीर के हालत देखने के लिए 8 मई 1953 को दिल्ली से पैसेंजर ट्रेन यात्रा प्रारम्भ की। उनके साथ उस समय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी भी थे। जम्मू-कश्मीर की सीमा में प्रवेश करने पर डा.मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें शेख अब्दुल्ला सरकार ने बहुत ही छोटे से कमरे में कैद करके रखा। 23 जून 1953 को बीमारी की हालत में उन्हें एक इंजेक्शन दिया गया। डा.मुखर्जी देश की एकता और अखंडता के लिए बलिदान हो गए। नेहरू ने डा.मुखर्जी की मां जोगमाया की उनकी मृत्यु की जांच कराने की मांग को अनसुना कर दिया था।

अब तिरंगा ही जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रीय ध्वज होगा। आरटीआई और सीएजी कानून लागू होंगे। राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अब अपराध माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के आदेश अब राज्य में लागू होंगे। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष और देश के गृहमंत्री  श्री अमित शाह जी ने जिस तरह लगातार कठिन श्रम करते हुए जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन कराया, उन्हें बधाई। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी इस मुद्दे पर विरोध कर रहे हैं। संसद में हंगामा मचाया गया। ऐसे दलों को समझना चाहिए कि देश की राजनीति बदल गई है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक परिवर्तन की लहर चल रही है।  

 

Kaki ji ke sneh ke bina beeta saal

काकीजी’ के स्नेह के बगैर बीता साल!

आज ‘काकीजी’ यानी मेरी माताजी को इस दुनिया से गए पूरा एक साल हो गया! मेरे लिए बहुत दुख से भरा दिन है। वे नहीं हैं, फिर भी यही अहसास होता है कि वे साथ हैं! उनकी बातें कानों में गूंजती है। घर, परिवार और मेरे प्रति उनकी चिंता करने की आदत भुलाए नहीं भूलती! सिर पर उनके ममता भरे हाथ का स्पर्श मुझे आज भी होता है। वे पूरे परिवार के लिए ‘काकीजी’ थीं। यूँ कहा जाना ज्यादा ठीक होगा कि वे ‘जगत काकी’ थीं! जीवन पर्यंत उन्हें इसी संबोधन से पुकारा जाता रहा। उनके स्नेह और ममत्व से पूरा परिवार और सारे परिचित सराबोर रहते थे। मेरे प्रति उनका स्नेह अगाध था। जब मैं शहर में रहता तो कितनी भी व्यस्तता हो, उनसे आशीर्वाद लिए बिना घर से निकलना मेरे लिए संभव नहीं था! उनके साथ थोड़ी देर बैठे और बात किए बिना न तो मेरा दिन शुरू होता था और न ख़त्म! लेकिन, यदि शहर से बाहर रहूँ, तो भी सुबह और शाम उनसे फ़ोन पर बात होती थी! वे जब तक पूरे हालचाल नहीं जान लेती, उन्हें संतोष नहीं होता! बीते एक साल में उनकी कमी मुझे इस रूप में भी बहुत ज्यादा खली! 

मुझे लगता है कि जीवन में माँ से बड़ी कोई नियामत नहीं हैं। जब तक ‘काकीजी’ का साथ रहा, उस अहमियत का इतना ज्यादा अहसास नहीं हुआ! लेकिन, अब जबकि उनका साथ छूट गया, लगता है जीवन में उनकी मौजूदगी कितनी अहम थी! उनकी कभी न खत्म होने वाली ममता और आशीर्वाद में उठे उनके दो हाथ आज भी आँखों में बसे हैं। उनका निश्छल स्नेह आंखों से, हाथों से और शब्दों के बिना भी झलकता था। उनको बिछुड़े सालभर हो गया पर घर के हर कोने में उनकी सौंधी सी महक महसूस होती है। जबकि, सच्चाई ये है अब मुझे और परिवार को अब उनके बगैर जीने की आदत डालना होगी! क्योंकि, वे जिस दुनिया में चली गईं हैं, वहाँ से कभी कोई लौटकर नहीं आता! … आती है तो उनकी याद, उनके साथ बिताए पलों के संस्मरण और उनकी ममता!  


‘काकीजी’ आप जहाँ भी हों, हम सभी पर अपना आशीर्वाद बनाए रखना! 


… आप साथ नहीं हैं, पर आपके दिए संस्कार, आपकी नसीहत और जीवन दर्शन हमेशा हमें रास्ता दिखाएगा!

Please Vote For India

मतदान अवश्य करें

अपना विचार प्रकट करने के लिए मतदान श्रेष्ठ तरीका है। मतदान की व्यवस्था किसी वर्ग या समाज के सदस्य के अलावा लोकसभा या विधानसभा में अपना प्रतिनिधि चुनने या किसी अधिकारी के निर्वाचन में अपनी इच्छा या किसी प्रस्ताव पर अपना निर्णय प्रकट करने के लिए की जाती है। इस दृष्टि से यह व्यवस्था सभी चुनावों तथा सभी संसदीय या प्रत्यक्ष विधि निर्माण में प्रयुक्त होती है। अधिनायकवादी सरकार में अधिनायक द्वारा पहले से लिए गए निर्णयों पर व्यक्ति को अपना मत प्रकट करने के लिए कहा जाता था। है। लोकतंत्र में तो मतदान से चुनी सरकार को ही मान्यता है। लेकिन, इसके लिए जरुरी है, कि सभी मतदाता अपना पक्ष जाहिर करें! क्योंकि, जितने ज्यादा मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे, नतीजा उतना ही स्पष्ट और लोकतांत्रिक नजरिए से सही माना जाएगा।
प्राचीन समय में धार्मिक संस्थाओं में, विशेषत: बौद्ध संघों में भी निर्वाचन के नियमों का पालन होने के प्रमाण हैं। यूरोप में प्राचीन यूनान तथा इटली में मतदान की व्यवस्था विद्यमान थी। प्राचीन राजतंत्रों में यह प्रचलन था कि कुछ गंभीर विषयों पर स्वयं निर्णय लेने के पूर्व राजा अपनी प्रजा की सहमति प्राप्त करने के लिए उन्हें आमंत्रित करता था। ऐसी सभाओं में मत प्रकट करने का ढंग मौखिक था। एथेंस में जहाँ मतदान की व्यवस्था थी, वहाँ हाथ उठाकर मत प्रकट करने की प्रथा थी। परंतु किसी व्यक्ति के सामाजिक स्तर पर प्रभाव डालने वाले विषयों पर गुप्त मतदान की व्यवस्था थी। आज भी अपना प्रतिनिधि चुनने के लिए हम मतदान का ही प्रयोग करते हैं!
हम एक लोकतांत्रिक देश के स्वतंत्र और विचारवान नागरिक है। लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत नागरिकों को जो अधिकार मिलते हैं, उनमें वोट देने का अधिकार प्रमुख है। इस अधिकार को पाकर ही हम मतदाता कहलाते हैं। मतदाता के पास ही वह ताकत है, जिसके जरिए वह सरकार बना भी सकता है और गिरा भी सकता है। भारत युवा देश है, जिसकी 65% आबादी 35 साल से कम उम्र के मतदाताओं की है। इसलिए युवाओं का दायित्व है कि वे स्वयं तो वोट दें ही, अशिक्षित लोगों को भी वोट का महत्व बताकर उनको वोट देने के लिए प्रेरित करें। लेकिन, हमारे देश में मतदान वाले दिन लोगों को उससे भी ज्यादा जरूरी काम याद आने लगते हैं। ऐसे में गैर-जागरूक, उदासीन व आलसी मतदाताओं के भरोसे चुनावों में सभी की भागीदारी कैसे सुनिश्चित होगी? समाज में एक तबका ऐसा भी है, जो राजनीतिक पार्टी और उम्मीदवार के गुण और उसके वादे न देखकर धर्म, मजहब व जाति देखकर वोट करता हैं। ऐसे लोग अपना वोट संकीर्ण स्वार्थ के वशीभूत होकर दे देते हैं, जो उचित नहीं है।
एक बार फिर हमारे सामने लोकतांत्रिक भारत की 17वीं लोकसभा गठन का दायित्व है। हमें अपने क्षेत्र से सही नेतृत्व का चुनाव करना है, जो निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी का उम्मीदवार ही होगा। भारत को विश्वशक्ति, विश्वगुरू और विकास के हर क्षेत्र में विकसित देश के रूप में आगे लाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों को मजबूत बनाना है। बीते 5 सालों में देश ने बहुत विकास किया और कई प्रतिमान गढ़े, लेकिन अभी भी बहुत से काम अभी बाकी हैं। यदि हर मतदाता ठान ले कि उसे 19 मई को अपने मताधिकार का सही उपयोग करना है तो भाजपा के नरेंद्र मोदी के फिर से मौका देना होगा!
… 19 मई रविवार को छुट्टी मत मनाइए! दिन की शुरुआत अपने मताधिकार से करें और देश को समृद्धशाली बनाने के लिए भाजपा के ‘कमल’ निशान के सामने का बटन दबाते हुए नरेंद्र मोदी को चुनें।

संवत्सर पर दीप जलाएं

कैलाश विजयवर्गीय
नव संवत्सर 2076 पर शुभकामनाएं। चैत्र नवरात्र के साथ ही गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाडी, चेटीचंड और चित्रैय तिरुविजा के अवसर आप सबको बधाई और शुभकामनाएं। भारतीय नव वर्ष के आगमन के साथ ही हम सब नए संकल्प के साथ विकास, एकता और अखंडता का मंत्र पूरे राष्ट्र में गुंजाएं। नव संवत केवल नव वर्ष की शुरुआत नहीं है। विक्रम संवत 2076 हमें स्मरण कराता है भारत की महान समृद्ध परम्पराएं। विक्रम संवत के प्रारम्भ से जुड़ी हैं शौर्य, शक्ति, भक्ति, त्याग की प्राचीन गौरव गाथाएं। संवत्सर हमें याद दिलाता है कि भारत की प्राचीन वैज्ञानिक काल गणनाओं का इतिहास। विक्रम संवत हमें हमारी प्राचीन संस्कृति से जोड़ने का पर्व है। यह दिन आने वाले उत्सवों की शुरुआत का है। आइयें विक्रम संवत का धूमधाम से स्वागत करें। मां दुर्गा की आराधना में तो हम दीपक प्रज्वलित करते ही हैं। साथ ही रात्रि में घरों पर दीप जलाकर अज्ञान के अंधकार को भगाएं और ज्ञान के प्रकाश का स्वागत करें, वंदन करें, अभिनंदन करें। इस पवित्र अवसर मां दुर्गा की आराधना कर राष्ट्र के शत्रुओं की विनाश की कामना और अधर्म पर धर्म की जय का शंखनाद करें।
भारतीय हिन्‍दू कैलेंडर विक्रम संवत एक अति प्राचीन संवत है। इस पंचांग में हर प्रकार के ग्रहों की गणना की गई है। विक्रम संवत की ग्रह गणनाओं के आधार पर जन्म के बाद मुंडन, यज्ञोपवीत, विद्याआरम्भ, विवाह आदि मांगलिक कर्मों के साथ ही पुरखों की आत्मा की शांति के लिए होने वाले दान-पुण्य किए जाते हैं। विक्रम संवत का प्रारम्भ उज्जयिनी के महान सम्राट विक्रमादित्य ने किया था। प्राचीन ग्रंथों में बताया गया है कि विक्रमादित्य नव संवत के दिन ही राजसिंहासन पर विराजमान हुए थे। हमारे यहां और भी कलैंडर प्रचलन में है पर विक्रम संवत सर्वमान्य संवत हैं। विक्रम संवत सूर्य-चन्द्र की गति पर आधारित है। संवत के अनुसार ग्रहों की गणनाओं के आधार पर मौसम ही नही तमाम भविष्यवाणियां सटीक सिद्ध हुई हैं।
विक्रम संवत के आधार पर कल्प, मनवंतर, युग, संवत्सर आदि कालगणना की जाती है। पुराणों के अनुसार भारत का सबसे प्राचीन संवत कल्पाब्ध था। सृष्टि, सप्तर्षि, ब्रह्म-संवत, वामन-संवत और परशुराम-संवत, श्रीराम-संवत, युधिष्ठिर संवत और कलि संवत का उल्लेख युगों के अनुसार प्रचलन में थे। सतयुग का प्रारम्भ नव संवत से ही हुआ था। इस बारे में अथर्ववेद तथा शतपथ ब्राह्मण में बताया गया है। योगीराज भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की तिथि से कलियुग संवत का प्रारम्भ हुआ था। पुराणों में बताया गया है कि नव संवत को ही भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। भगवान राम का राज्याभिषेक भी नव संवत के दिन हुआ था।
पुराणों के अनुसार नव संवत्सर पर सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की। भक्ति और शक्ति के नौ दिवसीय पर्व नवरात्र का प्रारम्भ का प्रथम दिन होता है नव संवत यानी चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा। सिखो के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस है। स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने नव संवत पर ही आर्य समाज की स्थापना की और कृणवंतो विश्वमआर्यम का विश्व को संदेश दिया | सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार भगवान झूलेलाल जन्मोत्सव संवत्सर के अगले दिन मनाया जाता है। चेटीचंट का त्योहार सिंध में नव संवत के दूसरे दिन मनाया जाता है। विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। शक संवत की स्थापना की । महाराजा युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ। महर्षि गौतम की जयंती का दिन भी है संवत्सर।
भारत में सनातन संस्कृति के लिए राष्ट्र प्रेम का भाव जगाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक माननीय केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म भी इस पावन दिन हुआ था। नव संवत हमारे देश की कृषि से जुडें पर्वों के प्रारम्भ का दिन है। फसल पकने के साथ किसानों को अपने परिश्रम का फल मिलता है। महाराष्ट्र गुडी पडवा पर्व, पंजाब में होला मोहल्ला, दक्षिण उगाडी पर्व आदि सभी कृषकों के उल्लास और मस्ती के पर्व हैं। यह प्रकृति के पूजन के पर्व भी है। संवत्सर पर देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षस, गन्धर्वों, ऋषि-मुनियों, मनुष्यों, नदियों, पर्वतों, पशु-पक्षियों आदि के पूजन का विधान बताया गया है। आराधना के माध्यम से हम सुख, समृद्धि, शांति, आरोग्य और सामर्थ्य की कामना करते हैं। नवरात्र में नौ दुर्गा के नवरूपों की उपासना से हमें से रोगों से मुक्ति मिलती हैं। आइये नव संवत्सर पर शक्तिशाली भारत के निर्माण का संकल्प लेकर हम उत्साह के साथ पर्व मनाएं।