मोदी सरकार- साहसिक निर्णयों के नौ वर्ष

कैलाश विजयवर्गीय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने साहसिक निर्णयों, धरातल पर ईमानदारी से योजनाओं का क्रियान्वयन, लाभार्थियों से सीधे संवाद, भष्ट्राचार के विरोध में अभियान, आपदा को अवसर में बदलने, जातिवादी और वंशवादी दलों पर प्रहार करके देश की राजनीति बदल दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीतिक हानि-लाभ की चिंता किए बिना राष्ट्र सर्वोपरि है मंत्र को साकार करते हुए त्वरित निर्णय लेकर दुनियाभर में देश की गरिमा स्थापित की है। दुनियाभर में भारत की छवि तेजी से विकसित होते, समर्थ, सशक्त और सक्षम राष्ट्र की बनी है। विश्व की बड़ी महाशक्तियों को प्रधानमंत्री की नीतियों ने प्रभावित भी किया है। कोरोना महामारी में आपदा को अवसर में बदलते हुए प्रधानमंत्री की नीतियों, कार्यों और योजनाओं के कारण भारत विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था बना है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता, संगठन के महामंत्री, गुजरात के मुख्यमंत्री, वाराणसी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री के तौर पर उनका जीवन और कार्य हमें प्रेरणा देता है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में पहली बार किसी गैरकांग्रेसी दल को 1984 के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार अपने दम पर बहुमत मिला। मोदी सरकार की जनहितैषी योजनाओं, आतंकवादी घटनाओं पर अकुंश लगाने, देश में शांति का वातावरण तैयार करने, भ्रष्टाचार पर रोक लगाने, नक्सलियों की कमर तोड़ने, दुश्मनों को उनके घर में तबाह करने के कारण उनके नेतृत्व में 2019 के लोकसभा चुनाव में जनता ने भाजपा के 303 सदस्यों को चुनकर भेजा। भाजपा आज विश्व में सबसे बड़ा राजनीतिक दल है।

स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित नरेंद्र मोदी जब किसी कार्य को करने को बीड़ा उठाते हैं तो असंभव को संभव करने की दिशा दिखाते हैं। इसी कारण 130 करोड़ देशवासी और करोड़ों कार्यकर्ता उनमें भारत को विश्वगुरु के पद पर स्थापित करने की क्षमता देखते हैं। मोदीजी केवल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तरह गरीबी हटाओ का नारा नहीं देते, वे गरीबों के कल्याण, उत्थान और आर्थिक विकास को धरातल पर साकार रूप देते हैं। यह अलग बात है कि मोदीजी के नारे, विचार, कार्य और योजनाएं विरोधी दलों के नेताओं को विचलित करते हैं। इसी कारण राजनीतिक हताशा के कारण पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों के अड्डे नेस्तनाबूद करने वाली सर्जिकल स्ट्राइक के प्रमाण मांगने पर अड़े कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को अमेठी की जनता ठुकरा देती है।

मोदीजी ने पहली 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही मोदीजी ने जन कल्याण के लिए योजनाओं की शुरुआत की। मोदीजी के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही देश की नौकरशाही अपने रवैये को बदलना पड़ा। ऊपर से लेकर नीचे तक तेजी से कार्य होने लगे। भ्रष्टाचार पर लगाम लगी। 8 नवंबर 2016 को एक हजार और पांच सौ के नोट बंद करने की घोषणा से देश में कालाधन जमा करने वालों पर बड़ा आघात किया गया। आतंकवादियों और नक्सलियों की ढांचा चरमरा गया। 2016 में जारी किए गए दो हजार के नोट का चलन बंद करने की घोषणा का असर भी कालेधन पर प्रहार है। नोटबंदी के बाद ऑनलाइन लेन-देन को बढ़ावा मिलने के कारण कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान लोगों को परेशानी नहीं हुई।

नोटबंदी की घोषणा से पहले 29 सितंबर 2016 को भारतीय सेना ने 16 सितंबर 2016 को कश्मीर के उरी में सेना शिविर में सोये हुए 18 जवानों की शहादत का बदला पाकिस्तान में घुसकर में लिया था। भारत के जवानों ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में तीन किलोमीटर अंदर घुसकर आतंकवादियों के ठिकानों को तबाह कर दिया था। यह पाकिस्तान को बड़ा सबक था। तमाम अंतरराष्ट्रीयों मंचों पर पाकिस्तान की बोलती बंद हो गई थी।

14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 78 वाहनों के काफिले को आतंकवादियों ने विस्फोट कर निशाना बनाया था। तब प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों को विश्वास दिलाया था कि जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी और गुनहगारों को सजा जरूर दी जाएगी। पुलवामा हमले के ठीक 12 दिन बाद 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना के मिराज-2000 विमानों ने रात को नियंत्रण रेखा पार कर पाकिस्तान के पूर्वोत्तर इलाके खैबर पख्तूनख्वाह के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक करके 300 आतंकवादियों को ढेर कर दिया था। इन दो साहसिक निर्णयों से भारतीय सेना का शौर्य विश्व के सामने आया। सेना को मजबूत बनाने के लिए 16 जून 2022 को अग्निपथ योजना की घोषणा की गई। इसके तहत थल सेना, नौसेना और वायु सेना में अग्निवीरों की भर्ती हो रही है। विपक्ष की हायतौबा मचाने के बावजूद देश के युवा सीमाओं की रक्षा के लिए आगे आ रहे हैं।

5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने ऐतिहासिक और साहसिक कदम उठाते हुए जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म किया था। केंद्रीय गृहमंत्री ने राज्यसभा में अनुच्छेद 370 को हटाने के साथ ही राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया था। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर केंद्र शासित विधानसभा वाला प्रदेश बना और लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्रशासित क्षेत्र बन गया। इस साहसिक कदम से एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे का नारा देने वाले जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की गई। 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का शिलान्यास किया। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद मंदिर निर्माण का कार्य तेजी से हो रहा है। 10 जनवरी 2020 को मोदी सरकार ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने के लिए नागरिकता संशोधन कानून लागू किया गया। मोदी सरकार ने बड़ा आर्थिक सुधार करते हुए 1 अप्रैल 2020 को 10 सरकारी बैंकों का चार बड़े बैंकों में विलय किया गया।

इसी तरह 1 जुलाई 2017 को एक देश, एक कर व्यवस्था के लिए जीएसटी लागू की गई। 19 सितंबर 2018 तो मुस्लिम महिलाओं की तीन तलाक जैसी कुप्रथा से मुक्ति दिलाई गई। मोदी सरकार ने तीन तलाक से पीड़ित महिलाओं के लिए गुजरा भत्ता भी दिलाया। मोदी सरकार के साहसिक निर्णयों की तरह की गरीबों, किसानों, मजदूरों, महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गों, अनुसूचित जाति-जनजातियों, पिछड़ों, अति पिछड़ों के कल्याण के लिए चल रही योजनाओं की लंबी सूची है। मोदीजी ने साहसिक निर्णयों के साथ ही सबका साथ, सबका विकास के साथ ही सबका विश्वास प्राप्त किया है।

विरोध के लिए विरोध है, नई संसद के उद्घाटन का बहिष्कार

कैलाश विजयवर्गीय

नरेंद्र मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला करने के लिए कोई मुद्दा ढूंढने में नाकाम विरोधी दल अब संसद के नए भवन के उद्घाटन को लेकर हायतौबा मचा रहे हैं। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रविड मुन्नेत्र कड़गम जनता दल, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी,  शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी,  इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, झारखंड मुक्ति मोर्चा,  नेशनल कांफ्रेंस,केरल कांग्रेस (मणि), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, विदुथलाई चिरुथिगल काट्ची, मारुमलार्ची द्रविड मुन्नेत्र कड़गम और राष्ट्रीय लोकदल ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संसद के नए भवन के उद्घाटन का बहिष्कार केवल विरोध करने की राजनीति के तहत किया है। विपक्ष को कोई मुद्दा नहीं मिलता तो मोदी सरकार की योजनाओं का विरोध करने पर उतारू हो जाता है। इसी तरह विपक्ष ने सेंट्रल विस्टा का विरोध किया था। अग्निपथ योजना का भी विरोध किया था। कई जनकल्याणकारी योजनाओं का विरोध भी विपक्षी दल करते रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने में नाकाम हताश और मुद्दाहीन विपक्ष ने अब संसद भवन के उद्घाटन में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को आमंत्रित न करने पर बहिष्कार की घोषणा की है। ये वहीं विपक्षी दल हैं जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में देश की पहली आदिवासी महिला उम्मीदवार का विरोध ही नहीं किया बल्कि अपमानजनक टिप्पणियां की थी। लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी की विवादित टिप्पणी को लेकर तो पूरे देश में निंदा की गई थी। इसी तरह राष्ट्रीय जनता और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने भी महिला आदिवासी राष्ट्रपति को लेकर गलत टिप्पणी थी। इन नेताओं के खिलाफ आदिवासी समाज की तरफ से देशभर में विरोध प्रदर्शन भी हुए थे।

कांग्रेस के राज में तमाम सरकारी योजनाओं, भवनों, विश्वविद्यालयों तथा शिक्षा संस्थानों, हवाई अड्डो, अस्पतालों, नए शहरों और कालोनियों के नाम गांधी परिवार के नाम पर रखे जाते थे। पूरे देश की बात न भी करें तो दिल्ली में ही देख लीजिए कि जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी के नाम पर कितने भवन और संस्थान है। हवाई अड्डे का नाम इंदिरा गांधी, विश्वविद्यालय का नाम जवाहर लाल नेहरू के नाम पर हैं। कनाट प्लेस का नाम बदला तो इंदिरा और राजीव चौक रखे गए। अस्पतालों के नाम भी गांधी परिवार के नाम पर रखे गए। अब गांधी परिवार के राहुल गांधी एक गरीब और पिछड़े परिवार से प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी को लेकर विरोध जता रहा है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने तो यह भी भुला दिया कि 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पार्लियामेंट एनेक्सी का उद्घाटन किया था। संसदीय ज्ञानपीठ का 1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास किया था। नए संसद भवन की नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखी थी। तब से विपक्ष संसद भवन को लेकर सवाल उठाता रहा है। विपक्ष की तरफ से अशोक चिन्ह स्थापित करने पर भी आपत्ति जताई गई थी।

सबसे बड़ी बात यह है कि एक-दूसरे का विरोध करने वाले विपक्षी दल इस मुद्दे पर इकट्ठे होकर यह जता रहे हैं कि देश में विपक्षी एकता हो गई है। बीजू जनता दल,बहुजन समाज पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस, एआईडीएमके और अकाली दल के प्रतिनिधि उद्घाटन में शामिल होंगे। विपक्ष की तरफ से यह संदेश देने की कोशिश हो रही है कि मोदी के खिलाफ विपक्ष एकजुट हो गया है। लंबे समय से देश की कांग्रेस की दोगुली राजनीति को देखता आ रहा है। खासतौर पर पश्चिम बंगाल की बात करें तो वामपंथी सरकार द्वारा कांग्रेसियों के कत्लेआम के बावजूद केंद्र में सरकार बनाने के लिए कम्युनिस्टों की मदद ली गई। पश्चिम बंगाल वामपंथी दलों से गठबंधन करके कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं की सरेआम हत्याओं को भी भुला दिए। कांग्रेसियों पर अत्याचार के विरोध में ही ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस बनाई थी। आज ममता बनर्जी को भी कम्युनिस्टों का साथ लेने में परहेज नहीं है। सच यही है कि विरोधी दलों का संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करना केवल विरोध करने के लिए विरोध है और विपक्षी एकजुटता का दावा एक छलावा है।

राजदंड ‘सेंगोल’, परिवारवाद और मोदी सरकार

कैलाश विजयवर्गीय

परिवारवाद वाले यह न भूलें की भारतीय राजदंड Sengol, जो की सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक था, उसे इलाहाबाद (प्रयागराज) संग्रहालय में ‘Golden walking stick gifted to Pandit Jawaharlal Nehru’ कहकर रखा गया था। वामपंथियों ने इसे “चलने वाली छड़ी” कहकर इसे संबोधित किया।

 

वास्तविकता में ‘सेंगोल’, तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से आता है, जिसका अर्थ है ‘न्याय’ यानी सेंगोल का अर्थ है न्याय का प्रतीक।

सेंगोल का इतिहास मौर्य और गुप्त वंश काल से ही शुरू होता है, लेकिन यह सबसे अधिक चोल वंश शासन काल में चर्चित हुआ. भारत के दक्षिण भाग में चोल साम्राज्य (907 से 1310 ईस्वी) का शासन रहा। तमिल साहित्य के इतिहास में चोल शासनकाल को स्वर्ण युग की संज्ञा दी जाती है। चोल राजाओं का राज्याभिषेक तंजौर, गंगइकोंडचोलपुरम्, चिदम्बरम् और कांचीपुरम् में होता था। उस समय पुरोहित राजाओं को चक्रवर्ती उपाधि के साथ ही सेंगोल सौंपते थे और इसे धन-संपदा और वैभव का प्रतीक मानते थे।

पर हमारे देश पर पीढ़ियों तक राज करने वाले परिवार का न्याय तो केवल स्वयं की ख्याति तक ही सीमित रहा। नंदी महाराज, जिस ‘सेंगोल’ पर विराजमान हों, उसे ‘सुनहरी छड़ी’ कहकर 70 सालों तक म्यूजियम में रखने वाले क्या भारत की संस्कृति और विरासत को कभी संभल पायेंगें?

 

     

यदि परिवारवादी इतिहासकार सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के साथ ऐसा कर सकते हैं, तो कल्पना करें कि उन्होंने हमारे प्राचीन इतिहास के साथ क्या किया होगा!

केंद्र की मोदी सरकार ने इस ऐतिहासिक सेंगोल को संसद भवन की नई बिल्डिंग में सभापति (स्पीकर) कुर्सी के पास रखने का फैसला किया है।

गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह के अनुसार

“सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से उपयुक्त और पवित्र स्थान कोई और हो ही नहीं सकता. इसलिए जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के अधीनम (मठ) से सेंगोल स्वीकार करेंगे और लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे.”

अक्षय तृतीया- कभी न हो क्षय, भरा रहे सदैव भंडार

कैलाश विजयवर्गीय

 

अक्षय तृतीया का पर्व हमें धार्मिक, सांस्कृतिक, समृद्ध आर्थिक स्थिति, फलती-फूलती कृषि और समाज को परोपकार की भावना के आधार पर जोड़ता है। पूरे देश में इस पर्व को अलग-अगल इलाकों में अलग-अलग तरीके से मनाते हों पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा सभी स्थानों पर होती है। माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर सबसे ज्यादा विवाह होते हैं। राजस्थान में अखा तीज के दिन सबसे ज्यादा जोड़े वैवाहिक बंधन में बंधते हैं। यह भी माना जाता है कि इस दिन बंधन में बंधने वालों की गांठ कभी नहीं खुलती है। बंगाल में हल खता के दिन नए कार्यों को प्रारम्भ किया जाता है। व्यवसायी गणेश जी और लक्ष्मी जी का पूजन करके अपने नए बही-खाते लिखना प्रारम्भ करते हैं। ओडिसा में भगवान जगन्नाथ की यात्रा शुरु होती है और किसान फसल बोकर मां लक्ष्मी से समृद्धि की कामना करते हैं। ओडिसा में मुथी चुहाना के रूप में मनने वाले पर्व के दिन लोग मांसाहार से बचते हैं। दक्षिण भारत में भगवान विष्णु, लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है। माना जाता है कि भगवान शंकर ने कुबेर को इसी दिन लक्ष्मी जी की पूजा करने को कहा था। पंजाब में इसे कृषि पर्व के तौर पर मनाया जाता है। उत्तर भारत में अक्षय तृतीया का अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग महत्व है।
शास्त्रों में बताया गया है कि ‘न क्षयः इति अक्षयः’ अर्थात जिसका क्षय नहीं होता वह अक्षय है। हमारे यहां रामनवमी, अक्षय तृतीया, विजय दशमी और कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को अक्षय मुर्हूत माना जाता है। कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा को भी आधा अबूझ मुर्हूत माना जाता है। बैशाख महीने की तृतीया यानी अक्षय तृतीया को सबसे अच्छा मुर्हूत माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए गए शुभ कर्म के फल का कभी क्षय नहीं होता है। इसी कारण इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है।

अक्षय तृतीया को कृतयुगादि भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार सतयुग का प्रारम्भ अक्षय तृतीया से हुआ था। इसी तिथि को भगवान परशुराम का अवतरण दिवस मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगीरथ के कठोर तप के बाद गंगा जी का पृथ्वी पर अवतार हुआ था। एक कथा में वर्णन है कि द्वापर युग में भरे दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ही दु:शासन ने द्रौपदी का चीर हरण किया था। महाभारत काल में द्रोपदी की करुणा पुकार भगवान कृष्ण ने अक्षय तृतीया को अक्षय चीर का वरदान दिया था। प्राचीन कथाओं में बताया गया है कि अक्षय तृतीया पर ही युधिष्ठिर को अक्षय पात्र मिला था। भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय पात्र हमेशा भोजन प्रदान करता था। अक्षय पात्र से ही राजा युधिष्ठिर भूखे लोगों को भोजन देते थे। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण के दीन मित्र सुदामा उनसे मिलने गए थे और मुट्ठी भर चावल भेंट करने पर भगवान ने उनकी झोपड़ी का भव्य महल में परिवर्तन कर दिया था। देवभूमि हिमालय के चार धामों में से एक भगवान बद्री विशाल के पट अक्षय तृतीया के दिन ही भक्तों के लिए खुलते हैं। वृंदावन में भगवान बांके बिहारी के चरणों के दर्शन अक्षय तृतीया के दिन ही होते हैं। बिहारी जी के चरण दर्शन करने से परिवार में समृद्धि आती है। ऋतु पर्व अक्षय तृतीया बसंत और गर्मी का संधि पर्व भी है। ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया को गंगा में स्नान करके पितरों का तिल से तर्पण करके पिंडदान करने से मोक्ष मिलता है।

कभी क्षय न होने के कारण अक्षय तृतीया को स्वर्ण खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सोने-चांदी के आभूषण घर में लाने से हमेशा समृद्धि रहती है। समृद्धि और वैभव की भरमार करने वाले पर्व अक्षय तृतीया को दान करने का भी विशेष महत्व है। कथाओं में वर्णन है कि अक्षय तृतीया को जल से भरे कलश, गाय, पंखे, जूते आदि का दान बहुत पुण्य देता है। गरीबों और कल्याणकारी संस्थाओं को भी भूदान का विशेष महत्व हैं। ऐसे कल्याणकारी, समृद्धिवर्धक और पुण्य देने वाले पर्व अक्षय तृतीया पर सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। हमारा देश समृद्ध बने, शाक्तिशाली बने और कृषि हमेशा फलती-फूलती रहे।

समरतसा के महानायक ज्योतिबा फुले

कैलाश विजयवर्गीय

कारण जो भी रहें हो, महान क्रांतिकारी समाज सुधाकर, विचारक, लेखक, दार्शनिक, वंचितों और महिलाओं को शिक्षा और बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए अभियान चलाने वाले ज्योतिबा फुले को उनके निधन से दो वर्ष पूर्व महात्मा की उपाधि देने के बावजूद कुछ खास वर्ग तक सीमित कर दिया गया। महाराष्ट्र के पुणे में 11 अप्रैल 1827 को जन्मे ज्योतिबा गोविन्दराव फुले ने तमाम कठिनाइयों के बावजूद पढ़ाई की और समाज को कुरीतियों को दूर करने का पाठ पढ़ाया। माली का काम करने वाले परिवार में जन्मे ज्योतिबा को पढ़ाई में अच्छा होने के बाद भी तथाकथित उच्च वर्ग के व्यवहार के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी। पहले मराठी पढ़ने वाले ज्योतिबा ने शिक्षा का महत्व समझते हुए 21 वर्ष की आयु में अंग्रेजी में सातवीं कक्षा उत्तीर्ण की। 1840 में सावित्रीबाई से विवाह किया और महिलाओं को शिक्षित बनाने और बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए महिला विद्यालय की स्थापना कराई। इस कार्य के लिए उन्होंने अपनी पत्नी को शिक्षित बनाकर देश की पहली महिला शिक्षिका बनाया। वंचितों के नायक और महिलाओं को सशक्त बनाने की प्रेरणा देने वाले महान क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले ने किसानों और खेती के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे। इसके लिए उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती भी दी थी। ज्योतिबा फुले ने प्रेस की आजादी को लेकर भी अंग्रेजी सरकार को चुनौती दी थी। बाल विवाह का विरोध और विधवा विवाह के पुरजोर समर्थक महात्मा फुले ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने का बीड़ा उठाया था। इसी कारण भारत रत्न डा. भीमराव अम्बेडकर ज्योतिबा फुले को अपना गुरू मानते थे।

जब ज्योतिबा फुले ने वंचितों के उत्थान के लिए अभियान चलाया तो उस समय महाराष्ट्र सहित देश के कई विभिन्न इलाकों में जातिवाद, महिलाओं को शिक्षा दिलाने, बाल विवाह, विधवा विवाह और धार्मिक सुधार आंदोलन जारी थे। महाराष्ट्र में महादेव गोविंद रानाडे और आरजी भंडारकर ने स्त्री शिक्षा, बाल विवाह के विरोध और विधवा विवाह के लिए अभियान चलाया था। इसके लिए रानाडे ने पुणे सार्वजनिक सभा की स्थापना की। स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी। बंगाल में राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज और केशवचंद सेन प्रार्थना समाज की स्थापना की। समाज में शूद्र और अति शूद्रों में जागृति के लिए ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की थी। ज्योतिबा फुले अछूतोद्धार के प्रथम महानायक थे।

बहुआयामी प्रतिभा से सम्पन्न, सामाजिक न्याय के पुरोधा, सामाजिक समानता, महिला सशक्तीकरण और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले ज्योतिबा फुले ने आंदोलनों के माध्यम से आजादी की अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ब्राह्मणवाद को चुनौती देने वाले और विवाह में पुरोहित की भूमिका समाप्त करने का अभियान चलाने वाले ज्योतिबा फुले ने समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए आवाज ही नहीं उठाई बल्कि उसे साकार रूप दिया। कुछ राजनीतिक कारणों से देश की स्वतंत्रता से पहले और बाद में ज्योतिबा फुले के समाज को जगाने और बराबरी का अधिकार दिलाने के बावजूद एक वर्ग का ही नायक माना गया। ज्योतिबा फुले को राजनीतिक कारणों से एक वर्ग तक की सीमित रखा गया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वंचितों को बराबरी के अधिकार हमेशा पक्षधर रहा है। संघ के संस्थापक पूज्यनीय डॉ. केशवराम बलिराम हेडगेवार के निमंत्रण पर डॉ. अम्बेडकर ने 1939 में संघ शिक्षा वर्ग में आकर स्वयंसेवकों के साथ भोजन किया था। डॉ अम्बेडकर ने संघ के कार्यों की प्रशंसा भी की थी। केंद्र में लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार और भाजपा शासित राज्यों में सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के तहत सभी वर्गों को लाभ मिल रहा है। मोदीजी के नेतृत्व में पूरा देश महात्मा ज्योतिबा फुले के सम्पूर्ण समाज को बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए समर्थन कर रहा है। केवल सत्ता के लिए दलितों के वोटों के लालच में समाज में कटुता फैलाने वाले दल आज मोदी सरकार के कार्यों के कारण हाशिये पर जा रहे हैं। समाज में कटुता फैलाने के प्रयासों के लिए जातिगणना कराई जा रही है। जातिवाद के नाम पर कुछ दलों ने अपने परिवारों का ही कल्याण किया है। ऐसे दलों को जनता ने नकार दिया है। महात्मा फुले ने जातिगत पूर्वाग्रह से मुक्ति के लिए जो अभियान चलाया था, उसे मोदी सरकार ने साकार किया गया है। वंचितों, महिलाओं, किसानों और युवाओं के कल्याण के लिए कार्य किए जा रहे हैं। सामाजिक समरसता के अगुवा महात्मा फुले को जयंती कोटिशः नमन।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं और सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक विषयों पर बेबाक टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं।)

भारतीय जनता पार्टी का 43वां स्थापना दिवस

अजेय भाजपा के मुकाबले कौन

 

कैलाश विजयवर्गीय

भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक यात्रा को 6 अप्रैल को 43 वर्ष पूर्ण हुए हैं पर हमारी वैचारिक राजनीतिक यात्रा 21 अक्टूबर 1951 को डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना से प्रारम्भ हुई थी। आज हम देश के राजनीतिक परिद्श्य पर दृष्टि डाले तो भाजपा 20 करोड़ से ज्यादा सदस्यों के साथ विश्व में सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की सरकार के नौ वर्ष पूरे होने वाले है। मोदीजी के नेतृत्व में आज देश की सीमाएं सुरक्षित हैं। हथियारों के मामले में देश आत्मनिर्भर हुआ है और कई देशों को हथियार बेचे जा रहे हैं। आतंकवाद के विरोध में विश्वव्यापी अभियान छेड़ा गया है। देश में नक्सलवाद बहुत सीमित इलाके में बचा है। जनता के हित और कल्याण के लिए उठाए गए कदमों से देश की आर्थिक प्रगति की रफ्तार तेज हुई है। गरीब, किसान, मजदूर, महिलाओं, युवाओं, अनुसूचित जाति और पिछड़ों के लिए चलाई गई योजनाओं से उनकी हालत में सुधार आया है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास का नारा मोदीजी के नेतृत्व में पूरी तरह साकार हुआ है।

भाजपा का पूरे देश में विस्तार हुआ है। लोकसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या 303 हैं और राज्यसभा में 92 सदस्य हैं। देश के 16 राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। पूर्वोत्तर में भाजपा का परचम फहरा रहा है। आज हम विचार करें कि देश में सबसे लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस और गैरकांग्रेसवाद का नारा देने वाले राजनीतिक दलों की हालत क्या है। कांग्रेस का विरोध करने वाले नेता कुर्सी के लिए अपने-अपने विचारों और सिद्धांतों को तिलांजलि देते हुए उसकी शरण में जाते रहे हैं। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए ज्यादातर विरोधी दलों के नेता प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए कांग्रेस के समर्थन को लालायित हो रहे हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के अयोग्य सांसद घोषित होने के बाद तो दलों में खींचतान और बढ़ गई है। आज देश में गैरकांग्रेसवाद की प्रासंगिकता पूरी तरह समाप्त हो गई है। सारे विरोधी दलों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए रणनीति बनानी पड़ रही है।

देश की स्वतंत्रता के बाद साठवें दशक में गैरकांग्रेसवाद के नारे की शुरुआत की गई पर स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस का मुकाबला करने में डा.मुखर्जी सबसे प्रमुख प्रखर नेता के तौर पर स्थापित हुए थे। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू करने के विरोध में प्रखर राष्ट्रवादी नेता डा.मुखर्जी ने “एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे” का नारा देकर कांग्रेस को बड़ी चुनौती दी थी। डा.मुखर्जी के बलिदान से जनसंघ के विस्तार को बहुत आघात लगा था। समाजवादी नेता डा.राममनोहर लोहिया ने देश में गैरकांग्रेसवाद का नारा बुलंद करने के लिए जनसंघ का सहयोग लिया था। जनसंघ के नेता और एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने गैरकांग्रेसवाद नारे को साकार करने के लिए पूरी ईमानदारी से कार्य किया। दीनदयालजी के सहयोग के कारण ही 1967 के चुनावों में नौ राज्यों में शक्तिशाली कांग्रेस को बड़ा झटका दिया गया। हालांकि उस समय भी लोहियाजी के कुछ शिष्य जनसंघ का विरोध करते थे। आपातकाल में जनता पार्टी के गठन में जनसंघ ने विशेष भूमिका निभाई और कांग्रेस पहली बार केंद्र की सत्ता से दूर हुई। जनता पार्टी को तोड़ने में भी समाजवादी पृष्ठभूमि के नेताओं ने बड़ी भूमिका निभाई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार गिराकर कांग्रेस ने चौधरी चरण सिंह की सरकार बनाई। नतीजा यह हुआ कि 1980 में कांग्रेस ने फिर से इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सरकार बना ली। 1991 में चंद्रशेखर भी इसी तरह कांग्रेस के खेल में फंस गए थे। इससे पहले 1980 में 6 अप्रैल को शीर्ष नेता अटल बिहारी के नेतृत्व में भाजपा की स्थापना करके देश में नई राजनीति की शुरुआत की गई। 1980 के बाद भाजपा के साथी अपनी सुविधा के अनुसार बदलते रहे। श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में देश की राजनीति ने 80 के दशक से परिवर्तन को देखना शुरू किया था। 1996 में वाजपेयीजी के नेतृत्व में देश में पहली बार विशुद्ध गैरकांग्रेस प्रधानमंत्री की सरकार बनी। वाजपेयी ने 13 दिन और 13 महीने की सरकार के बाद 1999 से 2004 तक सरकार का नेतृत्व किया।

पूरा देश मान रहा है कि श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा अगले वर्ष फिर से केंद्र में सरकार बनाएगी। गैरकांग्रेसवाद का नारा लगाने वाले नीतीश कुमार ने बिहार में एक बार फिर से राष्ट्रीय जनता दल से हाथ मिलाकर बिहार जंगलराज की पुनरावृति करा दी है। भाजपा की एकमात्र ऐसा राजनीतिक दल है जिसने देश को कांग्रेस की तुष्टीकरण की राजनीति, जातिवाद और वंशवाद से मुक्ति दिलाई है। गैरकांग्रेसवाद के नारे सहारे सत्ता का आनंद लेने वाले नेताओं को आज कांग्रेस के सहारे की आवश्यकता पड़ रही है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और तृणमूल कांग्रेस का गठन कांग्रेस की नीतियों के विरोध में हुआ था। उनके नेताओं को भी कांग्रेस का समर्थन लेने या देने से कभी परहेज नहीं रहा।

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले देश में कोई नेता नहीं दिखाई देता। हालत यह है कि सारे विरोधी दलों के नेता मिलकर भी मोदीजी का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा के पास गृहमंत्री अमित शाह जैसे रणनीतिकार हैं। श्री शाह के अध्यक्ष रहते हुए ही भाजपा ने देश में 21 राज्यों में भाजपा ने नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव पहले मई में होने वाले कर्नाटक विधानसभा के चुनाव भाजपा की जीत होगी और इस वर्ष के अंत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में भाजपा कांग्रेस को सत्ता बाहर कर देगी। यही है असली गैरकांग्रेसवाद। भाजपा के स्थापना दिवस पर आप सभी को शुभकामनाएं।

इंदौर अभय जी के दिल में धड़कता था

कैलाश विजयवर्गीय
अभय जी छजलानी के साथ अपनी यादों को उसी तरह से लिपिबद्ध किया जा सकता है, जैसे उन्होंने कभी नईदुनिया में किया था—गुजरता कारवां लिखकर।शहर के मसलों पर इतना विस्तृत चिंतन और लेखन तब तक तो किसी ने नहीं किया था।उनसे जुड़े तमाम लोगों के पास इसी तरह यादों का विशाल भंडार होगा,क्योंकि संस्था रूप में जिस व्यक्ति ने करीब चार दशक तक इंदौर,देश,दुनिया को सुक्ष्म दृष्टि से देखने,विश्लेषण करने,समाधान प्रस्तुत करने और उससे तादात्म्य बिठा लेने की खूबी जो थी अभय जी में।पत्रकारिता और इंदौर के गौरव की एक महत्वपूर्ण कड़ी का टूटकर अलग होना अखरेगा तो सही।
यूं देखा जाए तो अभय जी के साथ जब दिल के तार नहीं जुड़े थे, तब हम दोनों के मन में एक—दूसरे के प्रति मत भिन्नताएं थीं, लेकिन 1999 में इंदौर का महापौर बनाने के बाद जब उनसे संवाद—मुलाकात होने लगी तो यह खाई ऐसे पट गई, जैसे कभी थी ही नहीं।तब मैंने जाना कि शहर के मसलों पर उनके मन में कमतरी के प्रति टीस और निवारण के प्रति उत्साह रहता था।हमारी परिषद और मेरी भी आलोचना,सुझाव और प्रशंसा में कभी कंजूसी नहीं की। मेरे अनेक कामों को सराहते हुए संपादकीय लिखे।
एक वाकया याद आता है। मैंने बच्चों से शास्त्री पूल की दीवारों पर चित्रकारी करवाई थी। कुछ ही समय बाद एक बड़े कांग्रेसी नेता के आगमन पर उसे मिटाकर नारे लिख दिए। अभय जी इससे बेहद व्यथित हुए,जिसका जिक्र तो उन्होंने मुझसे किया ही, इस प्रवृत्ति के खिलाफ संपादकीय भी लिखा। मुझे लगता है, उसके बाद शहर की दीवारों पर राजनीतिक लेखन बंद हो गया।
अभय जी की एक बात का खास तौर से उल्लेख करना चाहूंगा। वे अखबार में सपाट ढंग से किसी भी सम्मानित,जिम्मेदार व्यक्ति का नाम लिखना नापसंद करते थे। जैसे—अटल विदेश दौरे पर। वे लिखते थे अटल जी विदेश दौरे पर। नईदुनिया ने उनके संचालन कार्यकाल में हमेशा इस मर्यादा का पालन किया। वे कहते थे,सीधे नाम लिखना विदेशी तरीका है, जो भारतीय संदर्भ में अपमानजनक और अमर्यादित है।वे हिंदी पत्रकारिता में इस तरीके को अपना लिए जाने से असहज महसूस करते थे।
दरअसल, अभय जी छजलानी और नईदुनिया एक लंबे समय तक इंदौर की धड़कन की तरह थे। वे शहर की बेहतरी के लिए खबर, संपादकीय से आगे जाकर व्यक्तिगत पहल करते थे। इंदौर में नर्मदा के पानी को लाने के आंदोलन और बिक चुके राजबाड़ा को सरकार द्वारा अधिगृहीत कर लिए जाने तक चले आंदोलन को नईदुनिया ने जबरदस्त समर्थन दिया। इन्हीं कारणों से अभय जी और उनके कार्यकाल वाला नईदुनिया इंदौर के दिल में सदैव धड़कते रहेंगे।
(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं।

नव संवत्सर का स्वागत, वंदन और अभिनंदन

सूर्य संवेदना पुष्पे:, दीप्ति कारुण्यगंधने । लब्ध्वा शुभम् नववर्षेअस्मिन् कुर्यात्सर्वस्य मंगलम् ॥ जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, संवेदना करुणा को जन्म देती है, पुष्प सदैव सुगन्धित रहता है, उसी तरह यह नव विक्रम संवत 2080 आपके लिए हर दिन, हर पल के लिए मंगलमय हो।

विक्रम संवत 2080 के प्रथम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा हिन्दू नववर्ष है। हिंदू नववर्ष के दिन महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, सिंधी समाज चेटी चंड पर्व, कर्नाटक में युगादि और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में उगादि, गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग संवत्सर पड़वो, कश्मीर में नवरेह, मणिपुर में सजिबु नोंगमा पानबा का पर्व मनाते हैं। हिन्दू नववर्ष का प्रथम दिन प्रकृति पर्व है और इसका सम्पूर्ण देश के लिए सांस्कृतिक महत्व है। वासंतिक नवरात्र के प्रथम दिन ही मां भगवती के नव रूपों के दर्शन करने का अवसर भी है। नवरात्र में नौ दिनों तक मां भगवती के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नव संवत्सर का दिन हमें हमारी प्राचीन संस्कृति और पर्वों से जुड़ने का अवसर देती है। नव संवत्सर को हम धूमधाम से मनाएं और अपने बंधु-बांधवों को नव वर्ष का स्वागत, वंदन एवं अभिनंदन करते हुए इन दिन के महत्व की जानकारी देकर मनाने के लिए प्रोत्साहित करें। हमारे पुराणों और प्राचीन ग्रंथों के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। आज के दिन भगवानी श्री राम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था। स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्यसमाज का स्थापना भी इसी दिन की थी। इसी दिन संत झूलेलाल की जयंती मनाई जाती है। राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत करने वाले विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक पूज्यनीय डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी जन्मदिवस पर पुण्य स्मरण का दिवस भी है।

भारत के विभिन्न हिस्सों में जैसे महाराष्ट्र और गोआ के अलावा आसपास के राज्यों में नव संवत्सर को गुड़ी पड़वा मनाया जाता है। मराठी नव वर्ष भी ऋतु और संस्कृति से जुड़ा पर्व है। गुड़ी पड़वा को संवत्सर पड़वो के नाम से भी मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा में गुड़ी को भगवान ब्रह्मा का प्रतीक और पड़वा को चंद्रमा के चरण प्रथम दिन कहा जाता है। वैसे भी प्रतिपदा को उत्तर भारत में पड़वा कहा जाता है। गुड़ी का अर्थ विजय पताका भी होता है। माना जाता है कि एक कुम्हार-पुत्र शालिवाहन नाम ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से अपने शत्रुओं पर विजय पाई थी। इसलिए इस दिन विजय के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन से ही शालिवाहन शक का प्रारंभ भी होता है। भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना के कारण गुड़ी पड़वा के दिन भगवान ब्रह्मा की पूजा अर्चना की जाती हैं। इस पर्व पर समस्त बुराइयों का अंत होता है और सुख समृद्धि का आगमन होता है। मान्यता है कि दक्षिण भारत में भगवान श्रीराम ने राजा बलि का वध करके जनता को आतंक से मुक्ति दिलाई थी।

नव संवत्सर आतंक से मुक्ति दिलाने, बुराई का अंत करने के साथ  सुख एवं समृद्धि की वृद्धि दिलाने वाला पर्व है। नव संवत्सर के दिन स्वच्छ होकर मां भगवती की उपासना करें। अपने परिवार में पकवान बनाएं और आसपास भी वितरित करें। अपने मित्रों को मिठाईं खिलाएं। मंदिरों में जाकर राष्ट्र में शांति और समृद्धि की कामना करें। रात में घरों में दीपक जलाकर नव संवत्सर का स्वागत करें।

सिंधी समाज चेटी चंड के अवसर पर वरुण देवता के अवतार भगवान झूलेलाल की जयंती मनाता है। माना जाता है कि पहले समय में सिंधी समाज के लोग जलमार्ग से अपनी यात्रा की सकुशलता के लिए जल देवता झूलेलाल से प्रार्थना करते थे। यात्रा की सफलता पर भगवान का आभार जताते हैं। सिंधी समाज के बंधु-बांधवों को चेटी चंड जूं लख-लख वाधायूं। आतंक से मुक्ति दिलाने वाले पर्व के अवसर जम्मू-कश्मीर में शांति सुखद अहसास कराती है। जम्मू-कश्मीर में 1990 के बाद नवरेह पर रौनक लौटी है। पिछले वर्ष 32 वर्ष बाद कश्मीर घाटी में नवरेह यानी नववर्ष बहुत धूमधाम से मनाया गया। कश्मीर में नववर्ष की पूर्व संध्या पर थाल बरुन यानी कांसे की चावल से भरी थाली पर अखरोट, बादाम, दूध, दही, लेखनी, स्याही की दवात नया पञ्चांग, अदरक, एक नोट, फूल और छोटा दर्पण रखा जाता है। आईना, नमक आदि सजाकर रखे जाते हैं। सोने से पहले एक दूसरे को नवरेह पोषतु यानी नववर्ष शुभ हो कहा जाता है। नवरेह के अवसर ऋद्धि- सिद्धि-समृद्धि, आरोग्य, दीर्घायु, सुख-शांति, धन-धान्य, औषधि, वनस्पति के लिए कामना की जाती है।

इस नव संवत्सर भारत के विभिन्न हिस्सों में प्राचीन मान्यताओं और परम्पराओं का स्मरण कराता पर्व है। आइये नव संवत्सर पर धूमधाम मनाएं और अपनी गौरवमयी संस्कृति पर गर्व करें और ईश्वर का आभार करें। पुनः सर्वेभ्यः नूतन संवत् 2080 हार्दिक्यः शुभाशयाः

कैलाश विजयवर्गीय

हिंदी पत्रकारिता के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. वेदप्रताप वैदिक जी

हिंदी पत्रकारिता के सशक्त हस्ताक्षर डॉ वेदप्रताप वैदिक जी का अवसान हिंदी जगत की पत्रकारिता के लिए एक अपूरणीय क्षति है। मानो हिंदी पत्रकारिता के एक युग का ही अंत हो गया है। डॉ. रामनोहर लोहिया के आदर्शाें पर चलते हुए पत्रकारिता करने वाले वेदप्रताप वैदिक जी ने हिंदी पत्रकारिता को वैश्विक पहचान दिलाई। उनका ये भागीरथी प्रयास अंत तक जारी था। हिंदी के प्रति उनका प्रेम तो महज 13 वर्ष की उम्र में ही दिखाई दिया था, जब उन्होंने हिंदी के लिए सत्याग्रह किया और जेलयात्रा भी की थी।

वैदिक जी को लेकर एक किस्सा यह भी मशहूर है कि वे जब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से शोध कर रहे थे, तो उन्होंने अपना शोधपत्र हिंदी में ही लिखा था, जिसे विश्वविद्यालय ने ख़ारिज कर दिया था। वैदिक जी ने हार नहीं मानी और वे इस मामले को कोर्ट तक ले गए। वेदप्रताप वैदिक जी अफगानिस्तान के बारे में महती जानकारी रखते थे। यही वजह रही कि उन्हें अफगास्तिान में भी वो ही शोहरत हासिल थी, जो उन्हें अपने देश भारत में मिलती थी।

हिंदी पत्रकारिता की बात करें तो हिंदी पत्रकारिता में इंदौर का विशेष योगदान रहा है। हिंदी पत्रकारिता में इंदौर ने कई ऐसे मूर्धन्य पत्रकार दिए है जिन्होंने हिंदी पत्रकारिता को अपने कठिन परिश्रम और साधना से सींचा और संवारा है। जाने माने पत्रकार स्व. ओम नागपाल से वेदप्रताप वैदिक जी ने पत्रकारिता की गुर सीखे थे। इसी की परिणीति रही कि वे हिंदी पत्रकारित को उच्च शिखर तक लेकर गए।

वेदप्रताप वैदिक जी से जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जिन्हें याद करते ही उनके समर्पण और अपने कार्य प्रति उनकी लगन क्षमता का एहसास होता है। जब उनकी पत्नी का देहांत हुआ था तब उन्हें एक जरूरी आर्टिकल लिखना था। एक तरफ़ अर्द्धांगिनी की पार्थिव देह रखी थी, तो दूसरी तरफ़ अपने कर्तव्य का बोध उनके मानस में था। फिर क्या था वे कुछ क्षण के लिए किसी संत की भांति निर्माेही हुए और एक कमरे में जाकर अपने आर्टिकल को पूर्ण किया।

वेदप्रताप वैदिक जी न केवल हिंदी बल्कि अंग्रेजी, अरबी, फारसी के भी जानकार थे। बतौर पू्रफ रीडर अपनी पत्रकारिता शुरू करने वाले डॉ. वैदिक वर्ष 1971 से एक सक्रिय पत्रकार की भूमिका में आ गए थे। उनकी पत्रकारिता के तिरपेन वर्ष हिंदी पत्रकारिता में वैदिक स्वर्ण युग के नाम से जाने जाएंगे। उनका अवसान हिंदी पत्रकारिता की एक बहुत बड़ी क्षति है, जिसकी पूर्ति असंभव प्रतीत होती है।

भारत एक बढ़ता हुआ डिजिटल लोकतंत्र कोविड 19 के बाद

लोकतंत्र की बुनियाद भरोसा है. नागरिकों को ये भरोसा होना चाहिए कि उनके पास सही जानकारी है, उनकी सरकार उनकी हिफ़ाज़त करेगी और उनका वोट मायने रखता है. स्वस्थ लोकतंत्र के काम-काज के लिए सार्वजनिक क्षेत्र ज़रूरी हैं. ये देखते हुए कि डिजिटल स्पेस महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक चर्चा के लिए आवश्यक हो गया है ख़ास तौर से उस वक़्त जब वैश्विक महामारी की वजह से व्यक्तिगत मेल-जोल जोख़िम भरा हो गया है तब डिजिटल कनेक्ट एक वास्तविकता हो गया है और वो लोकतांत्रिक नियमों और परंपराओं को मज़बूत करने के लिए समर्पित होना चाहिए।

रिफॉर्म्स को लागू करने के लिए गुड औऱ स्मार्ट गवर्नेंस चाहिए। आज दुनिया इस बात की साक्षी है कि कैसे भारत अपने यहां गवर्नेंस का नया अध्याय लिख रहा है। नियमों-प्रक्रियाओं की समीक्षा होनी चाहिए। केंद्र हो या राज्य सभी के विभागों से, सभी सरकारी कार्यालयों को अपने यहां के नियमों-प्रक्रियाओं की समीक्षा का अभियान चलाना चाहिए। क्योंकि हर वो नियम, हर वो प्रक्रिया जो देश के लोगों के सामने बाधा बनकर, बोझ बनकर, खड़ी हुई है, उसे हमें दूर करना ही होगा।

हम डेटा का इस्तेमाल लोगों को शक्तिसम्पन्न करने के स्रोत के रूप में करते हैं। व्यक्तिगत अधिकारों की मजबूत गारंटी के साथ लोकतांत्रिक संरचना में ऐसा करने का भारत के पास बेमिसाल अनुभव है, भारत जैसा विशाल लोकतांत्रिक देश डिजिटल लोकतंत्र के क्षेत्र में नया आयाम गढ़ सकता है, Y2K समस्या से जूझने में भारत का योगदान और को-विन प्लेटफॉर्म को पूरी दुनिया के लिये सहज रूप से उपलब्ध करने की पेशकश भारत के मूल्यों तथा उसके विजन की मिसाल हैं

भारत की संसद के लिए अत्याधुनिक तकनीक से लैस भवन और भारत सरकार के सभी मंत्रालयों के कामकाज के लिए एक कुशल और टिकाऊ केंद्रीय सचिवालय का निर्माण करके शासन प्रणाली को मजबूत करने के उद्देश्य वाली सेंट्रल विस्टा परियोजना पर तेजी से काम चल रहा है।

भारत नागरिकों के जीवन को बदलने और शासन में दक्षता लाने के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाला प्रमुख राष्ट्र बन गया है। भारत डिजिटल भुगतान, डिजिटल पहचान, प्रौद्योगिकी संचालित कोविड टीकाकरण अभियान चलाने, वित्त प्रौद्योगिकी अपनाने और इंटरनेट तक पहुंच प्रदान करने में दुनिया में अग्रणी है। भारत पहले से ही अपनी मजबूत लोकतांत्रिक साख और सुपरिभाषित संसदीय प्रक्रियाओं और प्रणालियों के लिए जाना जाता है। जल्द ही भारत अपने डिजिटल लोकतंत्र के लिए जाना जाएगा। आने वाले वर्षों में आर्टिफ़िशियल-इंटेलिजेंस, एनालिटिक्स, ब्लॉक चेन आदि जैसी उभरती तकनीक के उपयोग के साथ प्रौद्योगिकी हमारे लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार करेगी।

एक अरब 30 करोड़ से अधिक भारतीयों के पास “आधार” विशिष्ट डिजिटल पहचान है, छह लाख गांवों को जल्द ही ब्रॉडबैंड से जोड़ दिया जायेगा और विश्व की सबसे कारगर भुगतान संरचना, यूपीआई भारत के पास है। सुशासन, समावेश, अधिकारिता, संपर्कता, लाभों का अंतरण और जनकल्याण के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल। भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा और सबसे तेजी से विकसित होने वाला स्टार्ट-अप इको-सिस्टम है। भारत के उद्योग और सर्विस सेक्टर, यहां तक कि कृषि क्षेत्र भी विशाल डिजिटल परिवर्तन से गुजर रहे हैं। हम 5जी और 6जी जैसी दूरसंचार प्रौद्योगिकी में स्वदेशी क्षमताओं को विकसित करने के लिये निवेश कर रहे हैं। कृत्रिम बौद्धिकता और मशीन-लर्निंग, खासतौर से मानव-केंद्रित तथा कृत्रिम बौद्धिकता के नैतिक उपयोग के क्षेत्र में भारत अग्रणी देशों में शामिल है। हम क्लाउड प्लेटफॉर्म्स और क्लाउड कंप्यूटिंग में मजबूत क्षमतायें विकसित कर रहे हैं।

हम हार्डवेयर पर ध्यान दे रहे हैं। हम एक पैकेज तैयार कर रहें, ताकि सेमी-कंडक्टर के मुख्य निर्माता बन सकें। इलेक्ट्रॉनिकी और दूरसंचार में हमारा उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। भारत में अपना केंद्र बनाने के विश्व भर में फैली कंपनियां और संस्थायें आकर्षित हो रही हैं, डेटा सुरक्षा, निजता और सुरक्षा के लिये भारत प्रतिबद्ध है।

 

जहां तक ग्रामीण भारत की बात है तो आज हम अपने गांवों को तेजी से परिवर्तित होते देख रहे हैं। बीते कुछ वर्ष, गांवों तक सड़क और बिजली जैसी सुविधाओं को पहुंचाने के रहे हैं। अब गांवों तक ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क, डेटा की ताकत पहुंच रही है, इंटरनेट पहुंच रहा है। गांव में भी डिजिटल एंटरप्रेन्योर तैयार हो रहे हैं। वहीं, वोकल फॉर लोकल की सफलता के लिए सरकार ई-कॉमर्स प्लेटफार्म तैयार करेगी। आज जब देश वोकल फॉर लोकल के मंत्र के साथ आगे बढ़ा रहा है तो यह डिजिटल प्लेटफॉर्म महिला सेल्फ हेल्प ग्रुप के उत्‍पादों को देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में और विदेशों में भी लोगों से जोड़ेगा और उनका फलक बहुत विस्‍तृत होगा।

वहीं, कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिकों की क्षमता को महत्व दिया जा रहा है, क्योंकि देश के हर क्षेत्र में हमारे देश के वैज्ञानिक बहुत सूझ-बूझ से काम कर रहे हैं। हम अपने कृषि क्षेत्र में भी वैज्ञानिकों की क्षमताओं और उनके सुझावों को शामिल कर रहे हैं । इससे देश को खाद्य सुरक्षा देने के साथ फल, सब्जियां और अनाज का उत्‍पादन बढ़ाने में बहुत बड़ी मदद मिलेगी।

प्रोडक्ट के साथ प्रतिष्‍ठा को बही अब प्राथमिकता दी जा रहा है। देश मे बना हर एक प्रॉडक्ट भारत का ब्रैंड एंबेसेडर है। देश के सभी मैन्यूफैक्चर्स को ये समझना होगा कि आप जो प्रोडक्ट बाहर भेजते हैं वो आपकी कंपनी में बनाया हुआ सिर्फ एक प्रोडक्ट नहीं होता। उसके साथ भारत की पहचान जुड़ी होती है, प्रतिष्ठा जुड़ी होती है। हमने देखा है, कोरोना काल में ही हजारों नए स्टार्ट-अप्स बने हैं, सफलता से काम कर रहे हैं। कल के स्टार्ट-अप्स, आज के यूनिकॉर्न बन रहे हैं। इनकी मार्केट वैल्यू हजारों करोड़ रुपए तक पहुंच रही है।

डिजिटल लोकतन्त्र देश वासियो के लिए नई संभावनाओ के द्वार खोलेगा जैसे : आउटसोर्सिंग व्यवसाय, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) उद्योग, को-वर्किंग स्पेस का व्यवसाय, ) 3D प्रिंटिंग, उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं का व्यवसाय, अचल संपत्ति में व्यापार, हेल्थकेयर उद्योग, कंसल्टेंसी व्यवसाय, अक्षय और स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति, लास्ट माइल डिलीवरी सॉल्यूशन व्यवसाय, मोबाइल वॉलेट भुगतान समाधान, होम सोलर एनर्जी सेट अप व्यवसाय, ई-कॉमर्स के लिए वेयरहाउस या इन्वेंटरी प्रबंधन, भारतीय संस्कृति ई-कॉमर्स स्टोर, इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण व्यवसाय, सामुदायिक जनरेटर, सहयोगात्मक अर्थव्यवस्था व्यवसाय, बॉयोमीट्रिक सेंसर उत्पादन, साइबर हमले से रोकथाम का व्यवसाय, स्वास्थ्य रिकॉर्ड डिजिटलीकरण और साझा करने का व्यवसाय, गगनचुंबी ग्रीन इमारत, P2P लेंडिंग (हर कोई ऋण के लिए बैंक का उपयोग नहीं करना चाहता या कर सकता है)