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Nadda ji

चार दशक में स्थापना से शिखर तक का सफर

देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी ‘भारतीय जनता पार्टी’ अपना 41वां स्थापना दिवस मना रही है। 1980 को भाजपा की स्थापना हुई थी। उस दिन शायद किसी ने ये उम्मीद नहीं की थी कि सिर्फ चार दशक में ये पार्टी देश की राजनीति के शिखर पर होगी और देश की 70% आबादी उसमें अपना विश्वास व्यक्त करेगी। भाजपा को शिखर पर पहुँचाने में कई नेताओं ने अपना योगदान दिया है! लेकिन, इस पार्टी को मजबूती देने में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री श्री अमित शाह के योगदान, समर्पण, रणनीतिक कौशल और नीतियों को सर्वोपरि रखना होगा।

भाजपा का गठन आपातकाल के बाद 1980 में हुआ था। राजनीतिक इतिहास के अनुसार महज चार दशक में किसी राजनीतिक पार्टी ने शीर्ष तक का सफर तय किया हो, ऐसा कम ही देखा गया है। आज यह देश की सबसे सशक्त और सर्वाधिक सदस्यों वाली पार्टी है। पार्टी के पास एक नियोजित सांगठनिक ढांचा है, जो इसकी ताकत को और ज्यादा मजबूती देता है। श्री अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे, जिनके नेतृत्व में 90 के दशक के अंत में भाजपा ने पहली बार सरकार बनाई थी। पिछले 6 सालों से श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भाजपा की सरकार है। संसद में भाजपा को पूर्ण बहुमत है, फिर भी भाजपा ने राजनीतिक संस्कारों का पालन करते हुए एनडीए के साथियों को भी सरकार में शामिल किया!

भाजपा वास्तव में जनसंघ की राजनीतिक उत्तराधिकारी है और इसकी सफलता की कहानी जनसंघ के साथ 1952 के पहले आम चुनावों से शुरू होती है। तब देशभर में कांग्रेस की लहर के बावजूद जनसंघ ने 3 सीटें जीतकर भविष्य का संकेत से दिया था। दूसरे आम चुनाव में 1957 में जनसंघ को 4 सीट मिली। 1962 के तीसरे लोकसभा चुनाव में 14 सीटें जीत ली। 1967 के चौथे लोकसभा चुनाव में सीटों की संख्या 35 तक पहुँच गई। 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल लागू कर दिया। देश का ये काला दौर गुजरने के बाद देश की अधिकांश पार्टियों ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा बनाया और 1977 में देश में हुए छठे लोकसभा चुनाव में ‘जनता पार्टी’ के बैनर पर चुनाव लड़ा और 295 सीटों पर जीत दर्ज की।

कांग्रेस तो सत्ता से बाहर हो गई, पर ‘जनता पार्टी’ के घटक दलों में आपसी झगड़ों के कारण ये राजनीतिक प्रयोग ज्यादा सफल नहीं हुआ! लेकिन, इसी के बाद 6 अप्रैल 1980 को भाजपा की स्थापना हुई और आज ये पार्टी देश और अधिकांश राज्यों की सत्ता के साथ लोगों के दिलों में बसी है। भारतीय जनता पार्टी को सँवारने में डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी और श्री अटल बिहारी वाजपेयी से लगाकर राजमाता सिंधिया जी, सर्वश्री कुशाभाऊ ठाकरे जी, लालकृष्ण आडवाणी जी, मुरली मनोहर जोशी जी, सुन्दरलाल पटवा जी, प्यारेलाल खंडेलवाल जी, एम वेंकैया नायडू जी, नितिन गडकरी जी, राजनाथ सिंह जी, सुश्री उमाभारती जी एवं सभी मुख्यमंत्रियों, पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं तक का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसके बाद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष श्री अमित शाह ने इसे सबसे ज्यादा ऊंचाई दी है।

– कैलाश विजयवर्गीय

Union Budget Is Progressive, Setting The Tone For A Strong Decade Ahead

Finance Minister Nirmala Sitharaman presented the ‘Atmanirbhar Bharat Ka Budget’ on February 1. This was a stellar speech, which clearly outlined the priorities of the government.

Prime Minister Modi has strongly advocated a strong, self-confident and self-reliant India, which produces most of what we need and also a lot of what the world needs. This budget will give an impetus to this dream in a big way.

The budget lays extraordinary emphasis on two pillars of Indian growth — human capital and physical infrastructure.

Human capital is important because only a nation with healthy citizens can prosper. A healthy workforce is the basic building block of economic productivity and prosperity.

The government has fought the Covid-19 pandemic strongly, presenting a resilient view of India to the world. India is now supplying vaccines to many friendly nations globally, thus earning the tag of the “Pharmacy of the World”.

The budget now focusses on the health of Indians — preventive, curative and wellbeing.

The PM Atmanirbhar Swasth Bharat Yojana, with an allocation of Rs. 64,000 crore will be a gamechanger. More than 28,000 health and wellness centres will be created under this programme, including almost 18,000 in rural India.

The government also proposes to create critical care hospital blocks in 602 districts.

The government is also looking ahead and getting ready to fight with other pandemics in the future. This is exemplified by the plans of strengthening the National Centre for Disease Control (NCDC), its five regional branches and 20 metropolitan health surveillance units.

There are also plans to set up a national institution for One Health, a Regional Research Platform for WHO South East Asia Region, nine Bio-Safety Level III laboratories and four regional National Institutes for Virology.

These investments will benefit the country in many ways. These global institutions will be at the forefront of medical research, cooperating with global health bodies.

Also, since the government now plans to set up new institutes of virology, these flagship institutes will also aid the regional uplift of healthcare and research.

Through the pandemic, we saw how states like West Bengal and Kerala could not match the national standards of care. Such new labs and national research institutions can help rapid capacity-building in states where healthcare has been neglected.

There is also a specific focus on aspirational districts on the nutrition front. The government will merge the Supplementary Nutrition Programme and the Poshan Abhiyan and launch the Mission Poshan 2.0.

This will improve nutritional outcomes across 112 aspirational districts. This will also help three aspirational districts in West Bengal — Birbhum, Dakshin Dinajpur and Nadia.

Another proposal for improving human capital was the allocation of Rs. 1,000 crore for the welfare of Tea workers, with special focus on women and their children in Assam and West Bengal.

The government plans to devise a special scheme for the purpose. The tea industry in West Bengal has a glorious history and this is a welcome step towards improving the life of hardworking estate labour.

The second big area of focus for the government was physical infrastructure. Plans to expand railways, roads, ports, urban transportation and power sector were unveiled in the budget.

Sectors like railways and roads have got record capital expenditure allocations. This is indeed wonderful news — a better connected India helps businesses, improving cross-country logistics.

The new railway projects bring a big cheer to West Bengal. The budget mentioned that Gomoh-Dankuni section of the Eastern Dedicated Freight Corridor (EDFC) of 274.3 km will be taken up shortly after the Sonnagar – Gomoh section.

Completion of the EDFC will be fantastic news for West Bengal, with the state’s ports becoming the centre of trade for products from North India and the Gangetic belt.

Another great news for West Bengal came in the form of the two new DFCs. The government plans to start work on the West–East DFC with the Bhusaval–Kharagpur–Dankuni section prioritised.

Similarly, the work for the East Coast DFC will be taken up, which will stretch from Kharagpur to Vijayawada. This is excellent news for West Bengal, which can become a big trading centre with this connectivity.

It will also help businesses in the state find new domestic as well as international markets.

Even on the roads front, West Bengal got a big allocation. About 675 km of highway works are planned in the state at a cost of Rs. 25,000 crore, including upgradation of existing Kolkata–Siliguri road.

These allocations will make it easier to move within the state and help expand industries to the interior parts of the state as well.

Yet another interesting infrastructure project to be undertaken is the development of modern fishing harbours and fish landing centres. One of these harbours to be developed further will be in Petuaghat near the mouth of the Rasulpur River in Purba Medinipur district.

Central investment in this fishing harbour will bring even better facilities and trade options to this area.

This budget sets the tone for a strong decade ahead — a decade where India will recognise its full potential. The fruits of development propelled by this forward-looking budget will reach all corners of India.

Prime Minister Narendra Modi’s vision of an Atmanirbhar Bharat was truly stamped on this progressive budget.

Kailash Vijayvargiya is National General Secretary of the Bharatiya Janata Party.

स्वामी विवेकानंद की जयंती पर विशेष – “नरेंद्र से नरेंद्र तक”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर स्वामी विवेकानंद के जीवन, कार्यों और विचारों का बहुत प्रभाव है। स्वामी विवेकानंद के विचारों को उन्होंने अपने जीवन में उतारते हुए देश की दशा-दिशा बदलने का कार्य कर रे हैं। विवेकानंदजी का अक्सर स्मरण करते हुए उनका कहना है कि उनकी प्रेरणा का प्रकाश भारत के संदेश को विश्व को पहुंचाता है। मोदी जी देश के युवाओं को स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रेरणा लेने के लिए प्रेरित करते रहते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वामी विवेकानंद की तरह की विश्व बंधुत्व का संदेश पूरी दुनिया को पहुंचाया है। प्रधानमंत्री के आर्थिक विकास, आतंकवाद के खिलाफ दुनिया को एकजुट करने, शांति और समानता के लिए किए प्रयासों के लिए अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। मोदी ने स्वामी विवेकानंद की तरह का भारत का मान विश्व में बढ़ाया है। प्रधानमंत्री को मिले अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से भारत की दुनिया में एक नई छवि बनी है। प्रधानमंत्री के विदेश दौरों के दौरान उनसे मिलने वालों की उत्सुकता बताती है कि देश में नहीं दुनियाभर में उनकी लोकप्रियता बढ़ी है।

स्वामी विवेकानंद और नरेंद्र मोदी में कई समानताएं भी है। विवेकानंदजी के बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था तो मोदीजी का पूरा नाम नरेंद्र दामोदर दास मोदी है। दोनों को अपने-अपने पिता के निधन के कारण भीषण आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। नरेंद्र दत्त संन्यास होकर स्वामी विवेकानंद बने तो 16 वर्ष की आयु में नरेंद्र मोदी संन्यासी बनने के लिए हिमालय चले गए थे। संन्यास लेने के लिए नरेंद्र मोदी स्कूल की पढ़ाई के बाद घर छोड़कर चले गए थे। इस दौरान मोहमाया से दूर मोदी पश्चिम बंगाल के रामकृष्ण आश्रम सहित कई स्थानों पर रहे। स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित मोदी ने देश की दशा और दिशा को बदलने का संकल्प लिया। स्वामी विवेकानंद ने योग को लोकप्रिय बनाया तो नरेंद्र मोदी की पहल पर अंतरराष्ट्रीय योग दिवस बनाने की शुरुआत 21जून 2015 से हुई। स्वामी विवेकानंद ने अपने अल्प जीवन में कई विदेश यात्राएं की। मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद लगातार विदेशी दौर किए।

मोदी ने स्वामी विवेकानंद के मार्ग का अनुसरण करते हुए दीन-हीन लोगों की सेवा और स्वच्छता के लिए अभियान चलाया। सितंबर 2019 में मोदी को स्वच्छ भारत अभियान के लिए अमेरिका में बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ग्लोबल गोलकीपर सम्मान दिया गया। अगस्त 2019 में बहरीन में के खाड़ी देशों के साथ मित्रता को मजबूत करने व द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने के लिए किंग हमाद ऑर्डर ऑफ द रेनेसां पुरस्कार से सम्मानित किया बहरीन की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री भी बने। जून 2019 में हमारे प्रधानमंत्री को मालदीव ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘निशान इज्जुद्दीन’ देने की घोषणा की। अप्रैल 2019 में रूस के सर्वोच्च सम्मान ‘ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल’ प्रदान किया गया। यह सम्मान रूस और भारत के बीच विशेष रणनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए प्रदान किया। अप्रैल 2019 में ऑर्डर ऑफ जायद से सम्मान पाने वाले पहले भारतीय बने। भारत और यूएई के आपसी संबंधों को मजबूत करने के लिए यह सम्मान दिया गया। 14 जनवरी, 2019 को देश को उत्कृष्ट नेतृत्व देने के लिए प्रथम फिलिप कोटलर प्रेशिडेंशियल पुरस्कार से सम्मानित गया। अक्टूबर 2018 में मोदी को दक्षिण कोरिया में ‘सियोल शांति पुरस्कार’ प्रदान किया गया। यह पुरस्कार भारतीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान के लिए दिया गया सितंबर 2018 में संयुक्त राष्ट्र के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार ‘चैंपियंस ऑफ अर्थ अवॉर्ड’ से नवाजा गया। यह सम्मान अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन के उल्लेखनीय कार्य और 2022 तक भारत को प्लास्टिक मुक्त करने के उनके संकल्प के लिए दिया गया।

फरवरी 2018 में फिलिस्‍तीन के बीच संबंधों को बढ़ावा देने में प्रधानमंत्री मोदी के योगदान को देखते हुए उन्हें ‘ग्रैंड कॉलर ऑफ द स्टेट ऑफ, जून 2016 में अफगानिस्तान नागरिक सम्मान ‘आमिर अमानुल्लाह खान पुरस्कार, अप्रैल 2016 सऊदी अरब का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया गया। साल 2020 के आखिर में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नरेंद्र मोदी को ‘लीजन ऑफ मेरिट’ डिग्री चीफ कमांडर अवॉर्ड से सम्मानित किया। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ ब्रायन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई देते हुए ट्वीट किया कि राष्ट्रपति ट्रंप ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारत और अमेरिका की रणनीतिक साझेदार में अहम भूमिका निभाने के लिए लीजन ऑफ़ मेरिट अवॉर्ड दिया है।

अमेरिका की की प्रसिद्ध पत्रिका टाइम ने नरेंद्र मोदी को दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया था। इस सूची में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, कमला हैरिस और जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल भी शामिल हैं। 2014 और 2016 में मोदी टाइम मैगजीन रीडर्स पोल में पर्सन ऑफ द ईयर चुने गए। 2014 में फोर्ब्स मैगजीन ने मोदी को दुनिया का 15वां सबसे शक्तिशाली व्यक्ति घोषित किया था। इसके अलावा विभिन्न सम्मान भी मिले हैं। भारत के प्रधानमंत्री को मिले सम्मान से हर भारतवासी का मस्तक गर्व से ऊंचा हो गया।

बाबासाहेब के वास्तविक अनुयायी मोदी

राष्ट्रीय एकता और अखंडता के प्रबल समर्थक, शोषितों की बुलंद आवाज तथा सबको बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए लड़ने वाले योद्धा बाबासाहेब डा.भीमराव अम्बेडकर के नाम और काम को देश के कई राजनीतिक दल लंबे समय से इस्तेमाल कर रहे हैं। चुनाव के समय कई दलों के नेताओं में बाबासाहेब का अनुयायी होने का दावा जताने की होड़ मच जाती है। यह तो जगजाहिर है कि कांग्रेस ने बाबासाहेब को जीवित रहते और उनके महापरिनिर्वाण के बाद भी उचित सम्मान नहीं दिया। वोटों के लिए बाबासाहेब के नाम पर खोखली राजनीति करने वाले कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दलों की असलियत जनता जान चुकी है। बाबासाहेब के विचारों, उनके कार्यों, उनसे जुड़े स्मारकों को सहेजने और आगे बढ़ाने के साथ ही गरीबों, दलितों, शोषितों और कमजोर वर्ग को मजबूत बनाने का जितना कार्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया, उतना किसी ने नहीं किया। विचारों से और कार्यों से बाबासाहेब के वास्तविक अनुयायी आज हमारे प्रधानमंत्री मोदी ही हैं।

बाबासाहेब पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार में विधि मंत्री थे। नेहरू के विचारों से असहमति होने के कारण बाबासाहेब को मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देना पड़ा। बाबासाहेब की कांग्रेस और नेहरू के प्रति पीड़ा उनके बयानों से स्पष्ट दिखाई देती है। देश की स्वतंत्रता के बाद बाबासाहेब संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष नियुक्त किए गए। सितंबर 1947 में नेहरू मंत्रिमंडल में विधि मंत्री बने बाबासाहेब ने 27 सितंबर 1951 को मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया। भारत के संविधान को अंतिम रूप देने में बाबासाहेब के विचारों, उनके तर्कों और भाषणों ने उन्हें महान विचारक, दार्शनिक और संविधान विशेषज्ञ सिद्ध किया। राजनीतिक फायदे के लिए बाबासाहेब को कुछ राजनीतिक दल केवल दलितों के नेता के तौर पर भुनाने की कोशिश करते रहे। क्षुद्र राजनीति के कारण बाबासाहेब के सम्पूर्ण व्यक्तित्व, विचारधारा और कार्यों को सम्मान नहीं दिया गया।

देश में लंबे समय तक सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस ने तो बाबासाहेब को कभी सम्मान ही नहीं दिया। बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण के 34 वर्ष बाद भारतीय जनता पार्टी के कारण उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया। कांग्रेस, कम्युनिस्ट और पिछले कुछ वर्षों में दलितों के नाम पर राजनीति करने वाले कुछ दलों ने बाबासाहेब के विचारों को सही तरीके से सामने नहीं दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बाबासाहेब के विचार कई मुद्दों पर समान थे। विचारों में समानता होने के बावजूद संघ और भाजपा को बाबासाहेब का विरोधी बताने की साजिशें रची गई। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त करने के लिए 2019 में संसद से पारित प्रस्ताव के बाद लोगों ने जाना कि बाबासाहेब इस अनुच्छेद के विरोधी थे। नेहरू सरकार के दौरान बाबासाहेब ने संसद में अनुच्छेद पर हुई बहस में हिस्सा भी नहीं लिया था। अनुच्छेद 370 के बारे में शेख अब्दुल्ला को लिखे पत्र में उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा था कि भारत का विधि मंत्री होने के नाते मुझे यह मंजूर नहीं है।

बाबासाहेब की जन्मस्थली महू में मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने 2008 में स्मारक बनवाया था। 14 अप्रैल 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां जाकर बाबासाहेब को श्रद्धांजलि दी थी। मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं, जो उनकी जन्मस्थली पर गए। उस समय मोदीजी ने कहा था कि बाबासाहेब अम्बेडकर एक व्यक्ति नहीं थे, वो एक संकल्प का नाम थे। मोदीजी की पहल पर बाबासाहेब के जीवन से जुड़े पांच प्रमुख स्थलों जन्मस्थली महू, मुंबई में इन्दु मिल चैतन्य भूमि पर स्मारक, नागपुर में दीक्षास्थल, दिल्ली में बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण स्थल और 15 जनपथ पर स्मारक को पंचतीर्थ योजना के तहत स्थापित किया गया। 30 दिसंबर, 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी के बाद भीम एप देश को समर्पित किया। मोदीजी की पहल पर ही 14 अप्रैल 2016 को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में भारत रत्न बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जयंती मनाई गई। 1920 में लंदन में पढ़ाई के दौरान बाबासाहेब जिस बंगले में रहे, वह भी मोदीजी की पहल पर महाराष्ट्र की पड़नवीस सरकार ने खरीदा और वहां अंतरराष्ट्रीय स्मारक बनवाया। मोदीजी ने कई अवसरों पर बाबासाहेब को श्रद्धांजलि देते हुए कहते भी हैं अगर बाबासाहेब अम्बेडकर नहीं होते तो मैं यहां तक नहीं पहुंचता। ये उनके संविधान की ही ताकत है जो देश के सभी लोगों को विकास के समान अवसर देता। भेदभाव से ग्रसित बाबासाहेब ने संविधान में सभी के विकास का ध्यान रखा। बाबासाहेब अम्बेडकर परमात्मा के रूप थे। उनकी आलोचना करने वाले उन्हें नहीं समझते हैं। भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार बाबासाहेब को उनके कार्यों के लिए पूरा सम्मान दिलाने के लिए कृत संकल्प हैं। मध्यप्रदेश में महू सीट से विधायक रहते हुए मुझे भी बाबासाहेब की जन्मस्थली सजाने-संवारने और वहां आकर श्रद्धाजंलि देने वालों के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराने का मुझे भी सौभाग्य मिला है। बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण दिवस पर कोटिश: नमन।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं। मध्यप्रदेश के महू विधानसभा सीट से विधायक रहे कैलाश विजयवर्गीय की बाबासाहेब की जन्मस्थली के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका है।)

यह किसानों का आंदोलन तो नहीं है

किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020, किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक का विरोध करने के नाम पर दिल्ली आए लोग कह रहे हैं कि इंदिरा को ठोक दिया था, मोदी को भी ठोक देंगे। किसानों के वेश में जो लोग आंदोलन में शामिल हैं या समर्थन कर रहे हैं, उनका एक ही उद्देश्य है केंद्र सरकार, भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध करना। कुछ ऐसे तथाकथित आंदोलनकारी भी किसानों को उकसा रहे हैं, जो नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 का विरोध करने के लिए शाहीन बाग जाते थे। हैरानी की बात है कि इंदिरा गांधी को ठोकने और खालिस्तान समर्थक नारे लगने के बावजूद कांग्रेस और अन्य दलों के नेता तथाकथित किसानों के आपत्तिजनक नारों पर चुप्पी साधे हुए हैं। क्या कांग्रेस को इंदिरा को ठोक दिया था, धमकी पर कोई एतराज नहीं है?

मीडिया में आई विभिन्न रिपोर्ट में बताया गया है कि पंजाब में आंदोलन कर रहे लोगों की राज्य की कांग्रेसी सरकार की तरफ से पूरी मदद की जा रही है। आंदोलनकारियों को राशन मुहैया कराया जा रहा है। कृषि विधेयकों के विरोध में आंदोलन के कारण पिछले सप्ताह तक उत्तरी रेलवे को 891 करोड़ के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा। भारतीय रेलवे को भी 2220 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। कृषि विधेयकों पर उठाए गए सवालों पर केंद्र सरकार के स्पष्टीकरण और न्यूनतम समर्थन मूल्य को जारी रखने के दावे के बाद किसान संगठनों ने आंदोलन समाप्त कर दिए थे। मीडिया में आई रिपोर्ट बताती हैं कि आंदोलन के पीछे बड़ी साजिश है। किसान आंदोलन में जालीदार टोपी पहने लोग दिखाई दे रहे हैं। लोगों के लिए मस्जिदों से खाना बांटा जा रहा है। शाहीन बाग में शामिल नजीर मोहम्मद सरीके लोग सरदारों की पगड़ी बांधे घूम रहे हैं। शाहीन बाग में बैठने वाली वृद्ध मोमिना भी किसान बनकर साथ चल रही है। ये तो कुछ नमूने हैं। शाहीन बाग आंदोलन और दिल्ली में दंगे कराने की साजिश का पर्दाफाश होने के बाद ऐसे आंदोलन की सच्चाई भी जनता के सामने आएगी।

जिस तरह की गलती इंदिरा गांधी ने जरनैल सिंह भिंडरावाले का बढ़ाकर की थी, उसी तरह की गलती फिर से पंजाब में कांग्रेस की अमरिंदर सरकार कर रही है। अमरिंदर सरकार में खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियां बढ़ रही है। चर्चा तो यह भी थी कि दिल्ली पहुंचकर कुछ लोग खालिस्तानी झंडे भी फहरा सकते थे। कोरोना महामारी के प्रकोप के कारण लोग पहले से परेशान हैं। सभी के कारोबार पर असर पड़ा है। दिल्ली में कोरोना से मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को खुद दिल्ली की बिगड़ी हालत पर बैठक करनी पड़ी। अर्धसैनिक बलों के चिकित्सकों को काम पर लगाया गया। ऐसे में कृषि विधेयकों के विरोध की आड़ में दिल्ली में डेरा जमाने की मंशा से आने वाले लोगों के कारण परेशानी और बढ़ सकती है।

कृषि विधेयकों का विरोध सबसे ज्यादा पंजाब में ही क्यों हो रहा है? क्योंकि वहां सरकार ही लोगों को आंदोलन के लिए तैयार कर रही है। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने भी पंजाब में सोफेदार ट्रैक्टर में बैठकर आंदोलन की अगुवाई की थी। यह भी गौर करने वाली बात है कि पिछले साल पंजाब और हरियाणा से 80 फीसदी धान और 70 फीसदी गेंहू सरकार ने खरीदा था। एकमात्र भाजपा की किसानों का हित करने वाली पार्टी है। राजनीतिक दलों ने किसानों को अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल किया है। किसानों के खाते में केंद्र सरकार धन पहुंचा रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार कहा है कि हमारा लक्ष्य किसानों की आय दोगुणी करना है। कृषि सुधार से किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए नये अवसर मिलेंगे। जिनसे किसानों का मुनाफा बढ़ेगा। किसानों को आधुनिक टेक्नोलॉजी का लाभ मिलेगा, किसान मजबूत होंगे। इन विधेयकों के कारण बिचौलियों की भूमिका खत्म होने के कारण आढ़त करने वाले तथाकथित किसान नेताओं को यह बिल नहीं भाए हैं। कृषि विधेयकों से एमएसपी का कोई संबंध नहीं है। किसानों में भ्रम फैलाया जा रहा है कि एमएसपी समाप्त कर दी जाएगी। नागरिकता संशोधन कानून का जिस तरह इस देश के नागरिक से कोई संबंध नहीं है, उसी तरह एमएसपी का कृषि विधेयकों से कोई लेना-देना नहीं है। विरोधी दलों की भ्रम फैलाने की राजनीति ज्यादा दिन नहीं चलेगी।

स्थानीय उत्पादकों के लिए ‘लोकल फॉर दिवाली’ मनाएं 

इस बार का पूरा साल कोरोना संक्रमण भेंट चढ़ गया। यही कारण है कि त्यौहारों का रंग भी फीका है। अब स्थिति में थोड़ा सुधार तो आया है, पर पूरी तरह निश्चिंतता अभी भी नहीं है। फिर भी दिवाली ऐसा त्यौहार है, जिससे छोटे से बड़े तक हर कारोबारी उम्मीद लगी रहती है। कोरोनाकाल में छोटे से बड़े कारोबारियों तक पर असर पड़ा है। बड़े कारोबारी तो संभल जाएंगे, पर हमें छोटे-छोटे काम करके अपना काम चलाने वाले कारोबारियों का ध्यान रखना है। खासकर उनका जो त्यौहार पर आपकी जरुरत के मुताबिक अपना हुनर बेचना चाहते हैं। इस बार केंद्र सरकार की सजगता से चीन से आने वाली सामग्री पर अंकुश लगा है! दोनों देशों के बीच हुए तनाव का सबसे ज्यादा असर यही पड़ा कि कई सालों से जो बाजार चीनी उत्पादों से सजा था, वो अब स्थानीय उत्पादों से सज गया। ऐसे में हमें दिये, झालर, सजावट के फूल, कागज के कंदील और ऐसे दूसरे सजावटी सामान उन हुनरमंदों से खरीदना चाहिए जो आपके के साथ खुद भी दिवाली मनाना चाहते हैं।

दिवाली का बाजार सजावटी सामान, झालर, लाइटों सहित कई तरह के उत्पादों से सज गया है। ये सामान फुटपाथ किनारे भी सजा है और दुकानों में भी, दुकानों से खरीददारी के साथ आप फुटपाथ पर उम्मीद के साथ बैठे लोगों  ध्यान रखें! क्योंकि, ये उत्पाद स्वदेशी ही नहीं, स्थानीय भी हैं! प्रधानमंत्री ने भी अपील की है कि हमें ‘लोकल के लिए वोकल’ बनना है। अच्छी बात ये है कि इस बार जनता को बाजार में अधिकांश स्वदेशी उत्पाद ही मिल रहे हैं। चीन से चल रहे तनाव के चलते लम्बे समय से बाजार से चीन के उत्पाद गायब हैं। दिवाली पर भी चीन के उत्पाद बाजार में नहीं आए। लेकिन, हमें इस बात का ध्यान रखना है कि इसका लाभ छोटे कारोबारियों को मिले और स्वदेशी उत्पादकों भी अपनी अच्छी दिवाली मनाएं। भारत-चीन तनाव का सबसे सकारात्मक पहलु यह है कि केंद्र सरकार ने चीनी उत्पादों का आयात रोक दिया। जिससे बाजार से चीनी उत्पाद गायब हो गए। अब हमारे स्वदेशी उत्पादकों को इसका लाभ तभी मिलेगा, जब हम उनका साथ देंगे। इन स्वदेशी उत्पादों का स्तर चीन के उत्पादों से कहीं ज्यादा बेहतर है।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी त्यौहारों पर देशवासियों के नाम स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने की अपील की है। उन्होंने ‘लोकल फॉर दिवाली’ का आह्वान किया। प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई कि इससे देश की अर्थव्यवस्था में नई चेतना आएगी। स्थानीय उत्पादकों को बढ़ावा देने से उनका हौसला बुलंद होगा और देश को नई ऊँचाइयों पर ले जाने में मदद मिलेगी। ‘लोकल के लिए वोकल’ के साथ ही ‘लोकल फॉर दिवाली’ के मंत्र की चारों तरफ गूंज है। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब हम गर्व के साथ स्थानीय सामान खरीदेंगे और नए लोगों तक उसकी प्रशंसा करेंगे, तब लोकल की पहचान बनेगी। इससे जो लोग ये सामान को बनाते हैं, उनकी दिवाली भी रोशन होगी। मोदीजी ने कहा कि मैं पूरे देश से आग्रह करता हूं कि ‘लोकल के लिए वोकल बनें!’ सभी ‘लोकल’ के साथ दिवाली का त्यौहार मनाएं। ‘लोकल के लिए वोकल’ बनने का अर्थ सिर्फ दीये खरीदना नहीं है, बल्कि ऐसा हर सामान खरीदा जाए, जो स्थानीय उत्पादकों बनाया है।

मैं देश के प्रधानमंत्रीजी की इस बात का पूरी तरह समर्थन करता हूँ कि ऐसी चीजें जो देश में बनना संभव नहीं है, उसे बाहर से लेना ही पड़ेगा! लेकिन, जो सामान हमारे देश के उत्पादक बना रहे हैं, उसे हमें खरीदना ही चाहिए। मोदीजी ने यह भी कहा कि देश के नौजवान अपनी बुद्धि, शक्ति और सामर्थ्य से कुछ नया करने की कोशिश कर रहे हैं, उनकी उंगली पकड़ना, उनका हाथ पकड़ना हम सबका दायित्व है। हम उनकी बनाई चीजें लेते हैं, तो उनका हौसला भी बुलंद होता है। यदि पूरा देश यह पहल करेगा तो एक बड़ा वर्ग तैयार होगा, जो देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। आप सभी से आग्रह है कि  दिवाली स्थानीय उत्पादकों से खरीददारी करके मनाएं और अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दें।

पश्चिम बंगाल में आतंकवाद की दस्तक 

नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआइए) ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले से आतंकवादी संगठन ‘अलकायदा’ के एक और आतंकवादी को गिरफ्तार कर ममता सरकार की ढील-पोल को उजागर कर दिया। ये आतंकवादी अलकायदा मॉडयूल से जुड़ा 32 साल का अब्दुल मोमिन मंडल है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की पश्चिम बंगाल यात्रा से पहले मुर्शिदाबाद से फिर अलकायदा के संदिग्ध आतंकवादी का गिरफ्तार होना बड़ी घटना है। पहले भी यहाँ से संदिग्ध आतंकवादियों को पकड़ा गया था। पश्चिम बंगाल में आतंकवादी गतिविधियां पनपने को लेकर भाजपा ने हमेशा ही राज्य सरकार को सचेत किया है, पर ममता बैनर्जी ने घुसपैठ को प्रश्रय देकर आतंकवाद को पोषित ही किया है। वास्तव में ये ममता बैनर्जी की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति का नतीजा है! रोहिंग्या शरणार्थियों को संरक्षण देकर राज्य सरकार ने आतंकवाद को पोषित किया है, जो भविष्य में एक बड़ा खतरा बन सकता है। राज्य की पुलिस भी मुख्यमंत्री का इशारा समझकर संदिग्धों की अनदेखी करती है।

इस संदिग्ध आतंकवादी को एनआईए ने रानी नगर इलाके से दबोचा। अब एनआइए की टीम उसे पूछताछ के लिए दिल्ली ले जाएगी। पकड़ा गया संदिग्ध आतंकवादी मुर्शिदाबाद के रायपुर दारूर हुदा इस्लामिया मदरसा का शिक्षक है। वह पहले पकड़े गए ‘अलकायदा’ के आतंकवादियों के साथ कई बार बैठक कर चुका है। घटनाओं को अंजाम देने की साजिश रचने में उसकी अहम भूमिका रही है। पकड़े गए आतंकवादी के ठिकाने से एनआईए ने कई तरह के डिजिटल डिवाइस जब्त किए हैं। उसके पास महत्वपूर्ण नक़्शे और दस्तावेज भी जब्त किए गए। उसके मोबाइल फोन की कॉल लिस्ट की जांच की जा रही है। उसके साथियों का भी पता लगाया जा रहा है।

एनआईए के अधिकारियों ने बताया कि अब्दुल मोमिन मंडल युवाओं को ‘अलकायदा’ से जोड़ने की कोशिश कर रहा था। इसके लिए वह सोशल मीडिया पर भी सक्रिय रहता था। वह युवाओं को आतंकवाद की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता था। मदरसे में पढ़ाने की वजह से वह स्थानीय युवाओं के भी संपर्क में था और उन्हें बरगलाने में जुटा था। एनआईए ने 19 सितंबर को भी मुर्शिदाबाद और केरल के एर्नाकुलम से 9 संदिग्ध आतंकियों को गिरफ्तार किया था। इसके बाद ये एक और आतंकवादी की गिरफ्तारी हुई! पकडे गए संदिग्ध आतंकवादियों पर आरोप है कि वे नई दिल्ली समेत देश के महत्वपूर्ण शहरों में हमला करने की साजिश रच रहे थे। यह भी जानकारी मिली कि ये आतंकवादी पटाखों को ‘इम्प्रोवाइस्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस’ (IED) में बदलने की कोशिश कर रहे थे। छापेमारी के दौरान एनआईए ने पकडे गए आतंकवादियों के ठिकाने से स्विच और बैटरी भी बरामद की है! ये कश्मीर जाने की योजना बना रहा था! उसका इरादा निर्दोष लोगों की हत्या के मकसद से प्रमुख प्रतिष्ठानों पर हमला करना था।

इनसे पूछताछ में पता चला था, कि पाकिस्तान में बैठे कमांडरों के आदेश पर ये लोग दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और देश के अन्य शहरों में आतंकी वारदातों को अंजाम देने वाले थे। यह भी पता चला है कि ये ‘टेरर फंडिंग’ के लिए पैसे इकठ्ठा करने से लेकर आतंकियों की भर्ती तक कर रहे थे, जिन्हें ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान भेजा जाता था। पश्चिम बंगाल से ‘अलकायदा’ आतंकियों की गिरफ्तारी कारण राज्यपाल महामहीम जगदीप धनखड़ और भाजपा  इकाई राज्य सरकार और प्रशासन की निष्क्रियता को लेकर लगातार दबाव बना रहे हैं।

पश्चिम बंगाल के राज्यपाल श्री जगदीप धनखड़ ने भी ममता सरकार की निष्क्रियता पर आपत्ति उठाई। उन्होंने कहा था कि राज्य अवैध बम बनाने का अड्डा बन चुका है। उन्होंने राज्य की कानून व्यवस्था के हालात पर भी चिंता जाहिर की। क्योंकि, राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वो राज्य में कानून व्यवस्था को मजबूत करे। लेकिन, राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारी निभाने से हमेशा बचती रही है।

भाजपा नेता अरविंद मेनन ने भी कहा कि राज्य में कई आतंकवादी संगठनों ने टीएमसी के शासन के दौरान अपना नेटवर्क स्थापित किया है। पश्चिम बंगाल इस्लामिक आतंकवादियों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल बन गया है। ममता बनर्जी की तुष्टिकरण की राजनीति ने न केवल पश्चिम बंगाल बल्कि पूरे देश के लिए खतरा पैदा कर दिया है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तो इस बात मानने को ही तैयार नहीं कि रोहिंग्या मुस्लिम आतंकवादी हैं। जबकि, केंद्र सरकार इस रुख पर कायम है कि इनमें से कुछ रोहिंग्या पाकिस्तानी आतंकवादी समूहों से भी जुड़े हो सकते हैं, इन सभी को वापस भेजा जाएगा। जबकि, मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी का कहना है कि सभी लोग आतंकवादी नहीं हो सकते! कुछ आतंकवादी हो सकते हैं और उन्हें आतंकवादी ही माना जाएगा। आतंकवादियों और आम लोगों के बीच में एक अंतर है! जबकि, केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से भी कहा है कि वह रोहिंग्या के मुद्दे पर हस्तक्षेप न करे! उन्हें निर्वासित करना एक नीतिगत निर्णय है और उनमें से कुछ पाकिस्तानी आतंकवादी समूहों से जुड़े हो सकते हैं। केंद्र सरकार का रोहिंग्या शरणार्थियों को निकालना देश के हित में है।

हताश विपक्ष की नकारात्मक राजनीति

संसद में पारित कृषि विधेयकों को लेकर कांग्रेस, शिवसेना, तृणमूल कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल किसानों में भ्रम फैलाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। हताश विपक्ष की राज्यसभा में शर्मसार करने वाली हरकतों से यह स्पष्ट हो गया है कि संख्याबल न होने पर बाहुबल दिखाया जाएगा। किसानों को बिचौलियों से बचाने और उन्हें कृषि उपज का सही दाम दिलाने की व्यवस्था करने पर विपक्षियों को इतना दर्द क्यों हो रहा हैं? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि दशकों तक कई बंधनों में जकड़े हुए किसानों को बिचौलियों से आजादी मिली है। इससे किसानों की आय दोगुनी करने के प्रयासों को बल मिलेगा और उनकी समृद्धि सुनिश्चित होगी।

जो कांग्रेस एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केटिंग कमेटी (एपीएमसी) एक्ट में संशोधन को कुछ साल पहले चुनावी वायदा बनाकर वोट मांग रही थी, वही आज विरोध के लिए विरोध की राजनीति करने के लिए किसानों में भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही है। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार की कोरोना महामारी के दौरान बड़ी-बड़ी समस्याओं का समाधान करने के कारण बढ़ती लोकप्रियता से घबराएं विपक्षी दल नकारात्मक राजनीति करने पर उतार आए हैं। जनता देख रही है कि कांग्रेस जैसे दल सक्षम, ऊर्जावान, पार्टी को दिशा देने वाले और जनता में स्वीकार्य नेताओं को पार्टी की कमान न सौंपने के कारण नकारा साबित हो रहे हैं। कांग्रेस में वंशवादी राजनीति के सहारे खुद को पार्टी में स्थापित करने की कोशिश कर रहे कुछ नेता पार्टी की खींचतान को बाहर जाने से रोकने के लिए केंद्र पर निराधार आरोप लगा रहे हैं।

इसी तरह का भ्रम कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी दल और अन्य तथाकथित सेक्युलर संगठनों ने नागरिकता संशोधन कानून को लेकर फैलाया था। नागरिकता संशोधन कानून 2019 से देश के किसी नागरिक का कोई संबंध ही नहीं हैं, इसके बावजूद केवल नकारात्मक राजनीति और मुस्लिम समुदाय में मोदी सरकार की छवि खराब करने के मकसद से सीएए को मुस्लिम विरोधी बताने की कोशिश की गई। प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कई बार साफ किया था कि नागरिकता संशोधन कानून देश में नागरिकता देने के लिए है, किसी की नागरिकता छीनने के लिए नहीं। इसके बावजूद भ्रम फैलाया गया। सब जानते हैं कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के साथ कैसे-कैसे अत्याचार हो रहे हैं। इन देशों में अल्पसंख्यकों, खासतौर पर हिन्दुओं की आबादी लगभग समाप्त होने की तरफ है। इन देशों में सताये जा रहे अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए कानून में किए गए संशोधन को लेकर विपक्षी दलों ने देशभर में अराजकता फैलाने की कोशिश की।

दिल्ली में दंगे कराये गए। दिल्ली पुलिस ने दंगों का साजिश का खुलासा भी कर दिया है। आम आदमी पार्टी के एक पार्षद की बड़ी भूमिका भी सामने आई हैं।

याद कीजिए कुछ साल पहले तक भारतीय जनता पार्टी को शहरों और व्यापारियों की पार्टी बताने वाले राजनीतिक दलों की हालत आज क्या है। भाजपा को किसानों का विरोधी बताया जाता था। गांव, गरीब, किसान, मजदूर, दलित और मुस्लिमों के नाम पर राजनीति चमकाने वाले दलों को देश की जनता ने हाशिये पर पहुंचा दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद स्पष्ट कर दिया है कि लोकसभा से पारित कृषि सुधार संबंधी विधेयक किसानों के लिए रक्षा कवच का काम करेंगे। नए प्रावधान लागू होने से किसान अपनी फसल को देश के किसी भी बाजार में अपनी मनचाही कीमत पर बेच सकेंगे। भाजपा के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने भी कहा है कि मंडी और न्यूनतम समर्थन दर (एमएसपी) थे, हैं और रहेंगे। उन्होंने किसानों की आर्थिक हालत में सुधार लाने के लिए सरकार के प्रयासों की सराहना की है। मोदी सरकार किसानों की आर्थिक हालत में सुधार लाने के लिए लगातार प्रयत्न कर रही है। किसानों को बिचौलियों से बचाने के लिए कदम उठाये जा रहे हैं।

कुछ समय पहले तक कांग्रेस के नेता आरोप लगाते थे कि मोदी सरकार कांग्रेस की अगुवाई वाली मनमोहन सिंह सरकार के कार्यों को ही नाम बदलकर आगे बढ़ा रही है। एक समय तो कांग्रेस के ही नेताओं ने कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए चुनावी वायदे किए थे। अब यह भी समझ से परे की बात है कि एक तरफ से कांग्रेस के नेता यह दावा करते हैं कि यूपीए सरकार की नीतियों, योजनाओं और कार्यों का नाम बदलकर मोदी सरकार काम कर रही हैं। अपने कार्यों को पूरा होने पर तो कांग्रेसियों को खुशी मनानी चाहिए, न कि भ्रम फैलाना चाहिए। नकारात्मक राजनीति करने वाले कांग्रेस के नकारा नेता मोदी सरकार की विपरीत परिस्थितियों में भी दृढ़ता से कार्य करने के कारण हताश हो रहे हैं। कोरोना महामारी के दौरान जानमाल को नुकसान से बचाने के लिए दुनियाभर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा हो रही है। भारत की तरफ से अन्य देशों की सहायता भी की गई। यह सब विपक्षी दलों को अच्छा नहीं लग रहा है। विदेशी रणनीति के मोर्चे पर भी मोदी सरकार ने अपनी क्षमताओं का शानदार प्रदर्शन किया है। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी का किसानों के लिए नाटक का नतीजा जनता देख ही रही है। हैरानी की बात है कि आम आदमी पार्टी के नेता भी किसानों की बात कर रहे हैं। पश्चिम बंगाल में तो सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस के नेता अम्फान तूफान से प्रभावित किसानों के लिए दी गई केंद्रीय सहायता राशि को ही चट कर गए। हताश और निराश नकारा नेताओं की राजनीति को जनता पूरी तरह समझ चुकी है।

यही कारण है कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले ही वहां विपक्षी दल धराशायी हो चुके हैं। अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में भी कई राज्यों में विपक्षी दलों को जोर से झटका लगने वाला है।

(भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि विषयों पर बेबाक टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं। लेख में विचार उनके निजी हैं।)

गहलोत का बौनापन और सचिन का बड़प्पन सामने आया

राजस्थान की राजनीति के दिग्गज और राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट के कारण जहर का घूंट पीना पड़ा। राजस्थान कांग्रेस में महीनाभर चली कुश्ती में अशोक गहलोत अपने से बहुत छोटे सचिन पायलट से मात खा गए। इस लड़ाई में राजनीति के दिग्गज अशोक गहलोत के कद को उनकी औछी बयानबाजी ने बहुत बौना बना दिया और सचिन पायलट के चुप रहने और शालीनता से प्रश्नों का उत्तर देने के कारण उनका कद बढ़ा है। अशोक गहलोत के निकम्मा बताने के बावजूद सचिन ने कोई तीखी टिप्पणी नहीं की। इस प्रकरण ने अशोक गहलोत के बौनापन को सचिन पायलट के बड़प्पन को सबके सामने ला दिया है।

राजस्थान कांग्रेस की गुटबाज़ी को संभालने में कांग्रेस आलाकमान पूरी तरह नाकाम साबित हुआ। मुख्यमंत्री गहलोत से सचिन पायलट की नाराज़गी खुलेआम होने और विधायकों की बगावत को लेकर कांग्रेस के नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी पर बेवजह आरोप लगाए। भाजपा पर लगाए आरोपों के कारण कांग्रेस का दिवालियापन भी सामने आया। कांग्रेस के नेताओं में धैर्य और साहस की कमी भी साफतौर पर दिखाई दी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप लगाकर पुलिस को जांच सौंपी। यह सब भाजपा पर दबाव बनाने के लिए किया गया। पुलिस की जांच में भी कुछ नहीं निकला। राजस्थान भाजपा के अध्यक्ष सतीश पूनिया ने भी खुलासा किया है कि अशोक गहलोत ने होटलों में रहने और खाने पर दस करोड़ रुपये खर्च किए। अशोक गहलोत ने यह सब अपनी दूसरी पीढ़ी को राजनीति में स्थापित करने के लिए ही किया। अब गहलोत को मुख्यमंत्री पद जाना तो तय है। न खुद राजनीति में खड़े रह पाएं और न ही अपनी आने वाली पीढ़ी को स्थापित कर पाए। सचिन के राजनीति में बढ़ते कद के कारण अशोक गहलोत अपनी नई पीढ़ी को स्थापित करने में जल्दबाजी कर गए। गहलोत के सामने मेहनती युवा सचिन पायलट के एक जबर्दस्त चुनौती बन रहे थे।

सचिन पायलट को मनाने में कांग्रेस की कार्यवाहक अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी, महासचिव प्रियंका बाड्रा, के सी वेणुगोपाल और वरिष्ठ नेता अहमद पटेल को दम लगाना पड़ा। सोनिया गांधी ने सचिन पायलट और बागी विधायक की शिकायतों का समाधान करने के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाने का ऐलान किया है। जाहिर है कि कांग्रेस आलाकमान सचिन पायलट की नाराज़गी दूर करने के लिए अशोक गहलोत पर कार्रवाई करेगी। कांग्रेस के नेताओं ने विधायकों की बगावत को लेकर जिस तरह से सचिन पायलट पर वार किए, उससे पार्टी नेतृत्व का बौनापन सबको दिखाई दिया। कांग्रेस के नेताओं ने सचिन पायलट पर तरह-तरह के आरोप लगाए। कांग्रेस के नेताओं ने भाजपा पर सवाल उठाए और अब खुद ढेरों सवालों को लेकर चुप्पी मार गए। सारे प्रकरण में कांग्रेस ने खोया ही खोया है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बावजूद सचिन पायलट ने बहुत कुछ पाया है। जनता की नजरों में उनकी छवि एक धैर्यशील और साहसी नेता की बनी है। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री की शिकायतों पर पहले कांग्रेस आलाकमान ने कोई ध्यान क्यों नहीं दिया। महीनाभर चले इस नाटक का अंत अगर सचिन पायलट की शिकायतों को दूर करने के आश्वासन से ही होना था तो यह तो पहले ही दिन हो सकता था। पायलट की शिकायतों को दूर करने के बजाय कांग्रेस आलाकमान भाजपा पर ही हमले करने लगा। केंद्रीय मंत्रियों पर आरोप लगाए गए। राजस्थान भाजपा में गुटबाजी की खबरे चलवाईं गई। हरियाणा की भाजपा सरकार को लपेटा गया। आखिर में सोनिया, राहुल और प्रियंका ने भी मान लिया कि सचिन और उनके साथी विधायकों ने केवल अशोक गहलोत से नाराजगी के कारण बगावत की थी। अब जैसे सचिन को मनाया है, वैसे ही कांग्रेस आलाकमान को अपनी नाकामी को मानते हुए भाजपा पर आरोप लगाने के लिए माफी मांगनी चाहिए।

कांग्रेस और कम्युनिस्टों की गलतियों की नतीजा है नेपाल का आंख दिखाना

भारत के कम्युनिस्टों के दवाब में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार की नेपाल में की गई भूलों का खामियाजा अब भुगतना पड़ रहा है। 2004 से 2014 तक कांग्रेस अपनी अगुवाई में सरकार चलाने और बचाने के लिए कम्युनिस्टों का सहारा लेना पड़ा। 2004 में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बेदखल करने के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कांग्रेस को समर्थन दिया और उसके एवज में लोकसभा अध्यक्ष पद पर सोमनाथ चटर्जी को बैठाया था। उस चुनाव में माकपा के 43 सदस्य जीते थे और भाजपा की कांग्रेस से केवल सात सीटें कम थी। भारत के वामदलों ने भी कांग्रेसनीत यूपीए सरकार को दवाब में लेकर मनमानियां भी की। कम्युनिस्टों की मनमानियां और कांग्रेस की गलतियों का ही नतीजा है कि एक तरफ लद्दाख में सालभर पहले कठिन हालातों में बनाई गई सड़क को लेकर चीन विवाद खड़ा कर रहा है तो दूसरी तरफ नेपाल भारत के हिस्से को अपना बता रहा है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा पिछले दिनों लिपुलेख पास के किए गए उद्घाटन पर नेपाल की तरफ से विरोध किया गया। नेपाल के विरोध को खारिज करते हुए भारत सरकार ने साफ-साफ बताया कि यह सड़क हमारी सीमा में पड़ती है। हमारे विरोध के बावजूद नेपाल ने एक नया नक्‍शा जारी किया। इस नक्‍शे में लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल की सीमा में दिखाया गया। ये इलाके अभी तक नेपाल के नक्शे में थे भी नहीं।

अभी तो भारत के दवाब में नेपाल में नए नक्शे को मंजूरी देने को संविधान में संशोधन करने लिए बुलाई गई संसद की बैठक फिलहाल टाल दी गई है। भारतीय सेना प्रमुख जनरल मुकुंद नरवाणे ने नेपाल के विरोध पर कहा था कि हमे मालूम है कि किसके कहने पर विरोध किया जा रहा है। नरवाणे ने चीन का नाम नहीं लिया पर नेपाल के रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल ने नरवाणे के बयान को गोरखा सैनिकों का अपमान बता दिया। जाहिर है कि चीन का बिना नाम लिए जनरल नरवाणे के बयान से नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार को बुरा लगा। नेपाल में पिछले कई वर्षों से जारी राजनीतिक अस्थिरता का चीन लगातार फायदा उठा रहा है। चीन के कारण ही नेपाल बार-बार भारत विरोधी हरकतें करता रहा है। नेपाल में 20 वर्ष पूर्व राजपरिवार के नौ सदस्यों की हत्या कर दी गई। इसके बाद राजा ज्ञानेन्द्र शाह ने सात साल तक सत्ता संभाली। 2008 राजशाही खत्म करके नेपाल को लोकतांत्रिक देश घोषित कर दिया गया। इसके लिए लंबे समय तक चीन की शह पर आंदोलन किए गए। भारत के कम्युनिस्टों ने भी आंदोलन को समर्थन दिया। राजा ज्ञानेंद्र पर राज परिवार की हत्या करने का शक भी जताया गया। माना जाता रहा है कि चीन की साजिश के तहत राज परिवार के सदस्यों की हत्या कराई गई।

नेपाल में 2008 में कम्युनिस्टों का स्थापित करने में कांग्रेसनीत यूपीए सरकार की बड़ी भूमिका रही। 2018 में सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष केपी शर्मा ओली दूसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने। ओली के वामपंथी गठबंधन ने करीब दो महीने पहले हुए संसदीय और स्थानीय चुनावों में नेपाली कांग्रेस को हराया था। ओली इससे पहले भी 11 अक्टूबर 2015 से 3 अगस्त 2016 तक नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। यूसीपीएन-माओवादी, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेपाल और मधेशी राइट्स फोरम डेमोक्रेटिक के अलावा 13 अन्य छोटे दल ओली का समर्थन कर रहे हैं।

नेपाल के संसदीय चुनाव में हमेशा भारत की बड़ी भूमिका रही है। बड़ी संख्या में भारत के लोग वहां नागरिक हैं और राजनीति में भूमिका निभाते रहे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार नेपाल में 81.3 प्रतिशत हिंदू हैं। विश्व के एकमात्र हिन्दू राष्ट्र रहे नेपाल को 2008 में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना दिया गया। दुनिया में कम्युनिस्टों का राज वाला नेपाल छठां देश बन गया। 2008 में कांग्रेस सरकार ने कम्युनिस्टों के दवाब में मधेशियों की भावनाओं का ध्यान नहीं रखा। नेपाल का हाल यह है कि वहां दस साल में दसवीं बार सरकार बदली है। कम्युनिस्टों ने सत्ता में रहते हमेशा भारत का विरोध किया। था। नरेंद्र मोदी की 2014 की नेपाल यात्रा के बाद वहां अप्रैल 2015 में आए भीषण भूकंप में भारत की तरफ से की गई भरपूर मदद से संबंध अच्छे बने। परंतु नवंबर 2015 में नेपाल ने अपना नया संविधान लागू किया तो संबंधों में फिर खटास पड़ गई। भारत-नेपाल सीमा पर आवश्यक वस्तुओं की आवाजाही पर अघोषित रोक लगने से चीन ने भारत विरोधी भावनाएं भड़काई। नेपाल की मीडिया पर चीन का प्रभाव ज्यादा रहा है। चीन के दवाब में नेपाली मीडिया ने भी भारत विरोधी हवा बनाई। नेपाल पहले भी भारत पर दवाब बनाने के लिए चीनी कार्ड खेलता रहा है। चीन ने नेपाल को सामान देने का जमकर प्रचार कराया। ओली पद ग्रहण के बाद भारत आने की बजाय चीन जाने का कार्यक्रम बना रहे थे। नेपालियों के चौतरफा दबाव के कारण उन्हें अपना कार्यक्रम रद्द करके पहले भारत आना पड़ा। कांग्रेस सरकार की ढिलाई के कारण 2008 में प्रचंड ने प्रधानमंत्री बनने के बाद सबसे पहले चीन की यात्रा की। भारत में कम्युनिस्टों ने जो गलतियां उसका नतीजा तो वे भुगत रहे हैं। 2019 में वामदल महज पांच सीटों पर सिमट गए। पश्चिम बंगाल में उनका पूरी तरह सफाया हो गया है। कम्युनिस्टों के राज में नेपाल में लगातार जारी राजनीतिक अस्थिरता के बीच बार-बार फिर से हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की मांग की जा रही है। नेपाल के फिर से हिन्दू राष्ट्र घोषित होने के बाद ही तरक्की के रास्ते खुल सकते हैं।