Kailash Vijayvargiya blogs Kailash Vijayvargiya Blog - Page 2 of 19 - Kailash Vijayvargiya Cabinet Minister Of B.J.P
kailash vijayvargiya kailash vijayvargiya
Nadda ji

एक देश, एक कानून के प्रबल समर्थक थे डॉ मुखर्जी

कैलाश विजयवर्गीय

भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने ही सबसे पहले देश में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तुष्टीकरण की राजनीति का विरोध किया था। देश की आजादी के बाद कांग्रेस सरकार के विरोध में डॉ मुखर्जी ने ही सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाई थी। जवाहर लाल नेहरू को संसद और सड़कों पर घेरकर डॉ मुखर्जी ने प्रखर राष्ट्रवाद के मार्ग को प्रशस्त किया था। संसद में डॉ मुखर्जी के प्रश्नों का उत्तर देते समय तत्कालीन प्रधाननंत्री नेहरू बौखला जाते थे। इसी बौखलाहट में नेहरू ने प्रेस पर भी प्रहार किए थे। उस समय नेहरू के प्रभाव के कारण डॉ मुखर्जी के कार्यों को कम करके आंका गया। आज केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार डॉ मुखर्जी के सपनों को साकार करने में लगी है। भारत की एकता-अखंड़ता, विकास, महिलाओं और शिक्षा के क्षेत्र में डॉ मुखर्जी के योगदान को नकारते हुए कांग्रेस और कम्युनिस्टों ने उनके बारे में गलत प्रचार किया था।

डॉ मुखर्जी के बारे में यह भ्रम फैलाया गया था कि उन्होंने हिन्दू कोड बिल का विरोध किया था। इतिहास के पन्नों को पलटे तो डॉ मुखर्जी ने सबसे पहले देश में समान नागरिक संहिता लाने के लिए जोरदार आवाज उठाई थी। नेहरू मंत्रिमंडल में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय संभालने वाले डॉ मुखर्जी ने मतभेद होने के बाद इस्तीफा दे दिया था। नेहरू-लियाकत पैक्ट को हिंदुओं के साथ धोखा मानते हुए 1950 में उन्होंने नेहरू के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था। सोची समझी नीति के तहत अंग्रेजी हुकूमत ने मुस्लिम कानूनों में कोई बदलाव नहीं किया था। देश की स्वतंत्र होने से पहले अंग्रेजी सरकार ने हिन्दू कानूनों में सुधार का प्रारूप बनाया था। देश के स्वतंत्र होने के बाद हिन्दू कोड को लागू करने के लिए पहले कानून मंत्री डॉ भीमराव आम्बेडकर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। नेहरू के रूख को देखते हुए डॉ आम्बेडकर ने भी सरकार से इस्तीफा दे दिया था। डॉ मुखर्जी ने उस समय हिन्दू कोड बिल को भारतीय न बनाने पर सरकार की तीखी आलोचना की थी। उनका कहना था वह जानते है कि ऐसा क्‍यों नहीं किया गया। नेहरू सरकार की मुस्लिम समुदाय को छूने की हिम्‍मत नहीं है। वह हिंदुओं के साथ जो करना चाहती है वह कर सकती है।

आज राजनीतिक कारणों से तथाकथित समाजवादी नेता समान नागरिक संहिता का विरोध कर रहे हैं पर उस समय समाजवादी नेता आचार्य जेबी कृपलानी ने नेहरू का विरोध किया था। उन्होंने मुस्लिमों के लिए एक विवाह के लिए कानून लाने की आवाज उठाई थी। तुष्टीकरण की नीतियों के कारण ही हिन्दू कोड बिल को भारतीय नहीं बनाया गया। उस समय के मुस्लिम सांसद नेहरू के इस कार्य से बहुत खुश हुए थे।

डॉ मुखर्जी ने पश्चिम बंगाल को पाकिस्तान में जाने से बचाने के लिए बड़ी भूमिका निभाई थी। हिन्दुओं पर अत्याचारों का विरोध करने के कारण डॉ मुखर्जी को सांप्रदायिक नेता के तौर पर प्रस्तुत किया था। भारतीय संस्कारों के प्रबल समर्थक डॉ मुखर्जी ने मुस्लिम लीग के साथ सरकार चलाई थी। कलकत्ता विश्वविद्यालय में इस्लामिक अध्ययन केंद्र की स्थापना डॉ मुखर्जी ने कराई थी। महाबोधि सोसायटी के पहले गैर बौद्ध के तौर पर नेतृत्व किया था। मुस्लिम लीग की विभाजनकारी नीतियों के विरोध में ही डॉ मुखर्जी हिन्दू महासभा में शामिल हुए थे।

आज जम्मू-कश्मीर आतंकवाद से मुक्त होकर विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। कश्मीर में बाबा अमरनाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की उमड़ी भारी भीड़ वहां के परिवर्तन की गवाही दे रही है। डॉ मुखर्जी के एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे को नारे को केंद्र की लोकप्रिय नरेंद्र मोदी सरकार ने साकार किया है। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद राज्य में नए अध्याय का प्रारम्भ किया गया। अयोध्या में भगवान श्रीराम भव्य मंदिर में जल्दी ही भक्तों को दर्शन देने वाले हैं। एक देश में एक कानून के लिए आवाज उठाने वाले डॉ मुखर्जी का यह सपना भी जल्दी पूरे होने वाला है। देश में समान नागरिक संहिता के लिए बना वातावरण इसका गवाह बन रहा है। देश प्रथम डॉ मुखर्जी का ध्येय वाक्य था। इसी भावना से काम करते हुए मोदी सरकार ने सबका साथ, सबका विकास, सबका प्रयास, सबका विश्वास के नारे को साकार कर दिया। भारत के महान राष्ट्रवादी और दूरदर्शी नेता डॉ मुखर्जी की जयंती पर कोटिशः नमन।

समान नागरिक संहिता के पक्ष में खड़ा है देश

कैलाश विजयवर्गीय

देश में लंबे समय से तुष्टीकरण की राजनीति के चलते समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर कुछ राजनीतिक दल विवाद खड़ा करते आ रहे हैं। इस विवाद के पीछे मुस्लिमों में भय फैलाकर चुनावों में केवल वोट बटोरना ही असली मकसद होता है। मुस्लिमों के रहनुमा बनकर वोट बटोरने वालों ने मजहब को मुद्दा बनाकर सत्ता तो हासिल की पर मुस्लिमों को खुशहाल बनाने के लिए कोई नीति तैयार नहीं की। डा.भीमराव आंबेडकर के नाम पर राजनीति करने वालों ने भी उनकी विचारधारा, सपने और नीतियों पर ध्यान नहीं दिया। समान नागरिक संहिता को लेकर आदिवासियों में भ्रम फैलाने की कोशिश हो रही है। भारतीय जनता पार्टी देश के सभी नागरिकों को समान अधिकार दिलाने के लिए समान नागरिक संहिता लागू कराने की प्रबल पक्षधर रही है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट और कई राज्यों में हाई कोर्ट बार-बार समान नागरिक संहिता को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों से सवाल पूछती रही है। सुप्रीम कोर्ट ने तो बार-बार समान नागरिक संहिता लागू करने की जरूरत पर जोर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने शाह बानो मामले में सरकार को समान नागरिक संहिता बनाने की राय दी थी। 23 अप्रैल 1985 को सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाईवी चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसले में शाह बानो के शौहर को उन्हें हर महीने 179.20 रुपये भरण-पोषण के लिए देने का आदेश दिया था। यह अलग बात है कि तुष्टीकरण की राजनीति के कारण तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने संसद में कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदल दिया था। अगस्त 2017 में तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट ने नाजायज बताते हुए संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के मूलभूत अधिकारों का हनन करता है। यह प्रथा बिना कोई मौका दिए शादी को खत्म कर देती है।

तीन तलाक की समाप्ति के बाद मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिला। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद वहां की महिलाओं को संपति में अधिकार मिला। समान नागरिक संहिता का विरोध करने वाले यह भ्रम फैला रहे हैं कि संपति में पुरुषों का अधिकार समाप्त हो जाएगा। इसी तरह का भ्रम नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्ट्रर को लेकर फैलाया गया था। दरअसल तीन तलाक की समाप्ति के बाद मुस्लिम महिलाओं में भाजपा के बढ़ते जनाधार के कारण मुस्लिमों को वोट बैंक समझने वाले राजनीतिक दलों में चिंता बढ़ रही है। केंद्र और भाजपा शासित राज्यों में जनहितैषी योजनाओं के कारण भी प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी का विपक्षी दल मिलकर भी मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। मुस्लिमों में भ्रम फैलाकर विपक्षी दल उन्हें अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं।

ऐसे ही राजनीतिक दलों से सावधान रहने की जरूरत प्रधानमंत्री मोदी ने भोपाल की सभा में बताई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में भाजपा के बूथ कार्यकर्ताओं की सभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि कुछ लोग यूनिफॉर्म सिविल कोड का विरोध कर रहे हैं, जिससे मुस्लिम भाई-बहन को काफी भ्रम हो रहा है। उन्होंने मुस्लिम भाई-बहनों को स्पष्ट तौर पर समझाया कि भारत के मुसलमानों को समझना होगा कि कौन से दल उन्हें भड़काकर उनका फायदा लेने के लिए बर्बाद कर रहे हैं। समान नागरिक संहिता के नाम पर भड़काने का काम हो रहा है। समान नागरिक संहिता की जरूरत बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि एक घर में परिवार के एक सदस्य के लिए एक कानून हो, दूसरे सदस्य के लिए दूसरा कानून हो तो क्या वह घर चल पाएगा क्या?’ प्रधानमंत्री का कहना था कि फिर ऐसी दोहरी व्यवस्था से देश कैसे चल पाएगा। लोग हम पर आरोप लगाते हैं लेकिन सच ये है कि यही लोग मुसलमान-मुसलमान करते हैं, अगर ये उनके सही मायने में हितैषी होते तो अधिकांश मुस्लिम परिवार शिक्षा, रोजगार में पीछे नहीं रहते।

प्रधानमंत्री मोदी के विपक्षी दलों को आइना दिखाने के बाद उनके बीच हायतौबा मचनी ही थी। सुन रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ एक सीट पर एक साझा उम्मीदवार तय करने के लिए बैठने वाले विपक्षी दलों के नेता अब समान नागरिक संहिता पर बातचीत करेंगे। मोदीजी ने तो उनका एजेंडा ही बदल दिया। भाजपा ने तो पिछले दो लोकसभा चुनावों में जारी घोषणापत्र में समान नागरिक कानून बनाने का वायदा किया था। भाजपा की 2019 में लोकसभा में सीटें भी बढ़ी। 2019 में तो शिवसेना भी समान नागरिक संहिता पर बढ़चढ़ कर दावा कर रही थी। तो क्या अब शिवसेना कांग्रेस की हां में हां मिलाते हुए इसे विभाजनकारी बताएगी। अगर ऐसा हुआ तो उद्धव ठाकरे की राजनीति समझो खत्म हुई। समान नागरिक संहिता का विरोध करना तो कांग्रेस समेत सभी दलों पर भारी पड़ेगा।

अब देश की जनता विपक्षी दलों की सभी चालों को समझ चुकी है। संविधान का अनुच्छेद-44 में सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू का करने का अधिकार देता है। इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है। भारत में सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है तो समान नागरिक कानून लागू में क्या आपत्ति हो सकती है। धर्म, मजहब, पंथ और वर्गों के आधार पर आप ईश्वर की आराधना अपने-अपने तरीके से करने की संविधान पूरी तरह स्वतंत्रता देता है पर विवाह और बच्चे पैदा करने के लिए एक जैसा कानून होना चाहिए। अनुच्छेद-25 में कहा गया है कि कोई भी अपने अनुसार धर्म को मानने और उसके प्रचार की स्वतंत्रता रखता है। महिलाओं को भी बराबरी का अधिकार देने वाला कानून होना चाहिए। भारतीय संविधान की ड्राफ्ट समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि हमारे पास पूरे देश में एक समान और पूर्ण आपराधिक संहिता है। संपत्ति के हस्तांतरण का कानून है। उन्‍होंने संविधान सभा में कहा था समान नागरिक संहिता के लिए कई कानूनों का हवाला दिया जा सकता है। डा.आंबेडकर की राय को उस समय दरकिनार कर दिया गया। भारतीय अनुबंध अधिनियम-1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम-1882, भागीदारी अधिनियम-1932, साक्ष्य अधिनियम-1872 में सभी नागरिकों के लिए समान नियम लागू हैं। तुष्टीकरण के लिए धार्मिक आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करने के लिए देश में समान नागरिक संहिता लागू करने के पक्ष में एक बड़ा वर्ग खड़ा हो गया है। विधि आयोग ने नागरिक संहिता को लेकर फिर से राय मांगी थी। पिछले 14 दिन में साढ़े आठ लाख सुझाव दिए जा चुके हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश की जनता समान नागरिक संहिता लागू कराने की दिशा में आगे बढ़ा रही है।

विश्व शांतिदूत मोदी के अमेरिका यात्रा के नए संदेश

कैलाश विजयवर्गीय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी संसद को दूसरी बार संबोधित करते हुए विश्व के सामने देश की सशक्त तस्वीर ही प्रस्तुत नहीं बल्कि यह भी बता दिया कि विश्व के समक्ष चुनौतियों का भारत अमेरिका के साथ मिलकर मुकाबला करने में सक्षम है। जल्दी ही विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला भारत अमेरिका से साझेदारी करके आतंकवाद को समाप्त करने के लिए सक्षम होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश अमेरिका और सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की प्रगाढ़ मित्रता का उदाहरण देते हुए दुनिया में लोकतांत्रिक शक्तियों के भविष्य के लिए शुभ संकेत दिए हैं। उनका यह कहना कि भारत-अमेरिका की साझेदारी लोकतंत्र के भविष्य के लिए अच्छी है और बेहतर भविष्य और भविष्य के लिए बेहतर दुनिया के लिए यह अच्छी है। मोदीजी के इस विश्वास से तानाशाही से संकट झेल रहे देशों के नागरिकों को लोकतंत्र के उदय होने की उम्मीद बंधेगी। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत की स्वतंत्रता के बाद ही दुनिया के परतंत्र देश स्वतंत्र देश हुए। मोदीजी ने मार्टिन लूथर किंग और महात्मा गांधी का प्रभाव बताते हुए यह संदेश भी दिया की भारत की जड़े अमेरिका में मजबूत हैं। इसका एक बड़ा उदाहरण अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस का बताया।

ए-आई का अर्थ अमेरिका और भारत बताते हुए स्पष्ट कर दिया कि यह दोस्ती विश्व को नई राह दिखाएगी। उनकी इस राय से कि कुछ वर्षों में एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में बहुत तरक्की हुई है लेकिन साथ-साथ ही एक अन्य ए-आई यानी भारत-अमेरिका के रिश्तों में भी महत्वपूर्ण प्रगति से दोनों देशों के बीच नए आर्थिक साझेदारी से रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी संसद में भाषण के माध्यम से विश्व को यह संदेश भी दिया कि भारत के कारण विश्व में लोकतंत्र पनपा हैं। भारत में 2500 राजनीतिक दल, 22 सरकारी भाषाएं, हजारों बोलियां और हर सौ मील पर विभिन्न प्रकार भोजन के बावजूद लगातार तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए देश में आम लोगों का पूरा ध्यान रखा जा रहा है। प्रधानमंत्री का ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ दृष्टिकोण से उन लोगों की आंखे भी खुलनी चाहिए जो, विदेशों में भारत की छवि को राजनीतिक कारणों से उपजी हताशा के कारण धूमिल करते हैं। भारत में चार करोड़ लोगों को घर दिए गए हैं। पांच करोड़ लोगों को निशुल्क चिकित्सा सहायता दी जाती है। मोदीजी की इन घोषणाओं से दुनिया की आबादी के छठे हिस्से भारत में आम लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने की वास्तविक तस्वीर सबके सामने आई है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण के माध्यम से दुनिया में आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देशों को चेतावनी ही नहीं दी, बल्कि आतंकवाद की समाप्ति के सकंल्प को भी दोहराया। मोदीजी ने भाषण में जिक्र किया कि जब वे प्रधानमंत्री के तौर पहली बार अमेरिका आए थे तो भारत अर्थव्यवस्था के मामले में दसवें नंबर पर था। आज भारत पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। आतंकवाद और कोरोना महामारी का मुकाबला करते हुए भारत की यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने साफ जता दिया है कि हम न केवल बड़े हो रहे हैं बल्कि तेजी से भी बढ़ रहे हैं। जब भारत बढ़ता है तो पूरी दुनिया बढ़ती है। कट्टरवाद और आतंकवाद को दुनिया के सामने गंभीर खतरा मानते हुए आतंकवाद के नई पहचान और विचारधारा के आधार पर पनपने को उन्होंने नई चुनौती बताया। मोदीजी की इस धारणा से कि आतंकवाद की विचारधारा और नई पहचान मानवता के लिए खतरा है तो हमारा इसे मिटाने का भी पूरा इरादा है। उनका इरादा साफ है कि भारत बढ़ेगा तो दुनिया में शांति आएगी, आतंकवाद समाप्त होगा। विश्व शांतिदूत मोदीजी ने रूस-यूक्रेन युद्ध का शांतिपूर्ण समाधान की बात कही। उन्होंने इस युग को युद्ध नहीं बल्कि रक्तपात और मानवीय पीड़ा को रोकने के लिए संवाद और कूटनीति से हल निकालने मार्ग बताते नया युग बताया। प्रधानमंत्री मोदी का अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जोरदार स्वागत किया।

अमेरिका में बसे भारतीयों ने मोदी-मोदी के नारे लगाते हुए पलक पांवड़े बिछा दिए। प्रधानमंत्री मोदी की इस अमेरिका यात्रा से कई क्षेत्रों में आर्थिक सहभागिता तो बढ़ेगी, साथ ही विश्व को नई राह भी मिली है।

मोदी सरकार- साहसिक निर्णयों के नौ वर्ष

कैलाश विजयवर्गीय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने साहसिक निर्णयों, धरातल पर ईमानदारी से योजनाओं का क्रियान्वयन, लाभार्थियों से सीधे संवाद, भष्ट्राचार के विरोध में अभियान, आपदा को अवसर में बदलने, जातिवादी और वंशवादी दलों पर प्रहार करके देश की राजनीति बदल दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीतिक हानि-लाभ की चिंता किए बिना राष्ट्र सर्वोपरि है मंत्र को साकार करते हुए त्वरित निर्णय लेकर दुनियाभर में देश की गरिमा स्थापित की है। दुनियाभर में भारत की छवि तेजी से विकसित होते, समर्थ, सशक्त और सक्षम राष्ट्र की बनी है। विश्व की बड़ी महाशक्तियों को प्रधानमंत्री की नीतियों ने प्रभावित भी किया है। कोरोना महामारी में आपदा को अवसर में बदलते हुए प्रधानमंत्री की नीतियों, कार्यों और योजनाओं के कारण भारत विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था बना है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता, संगठन के महामंत्री, गुजरात के मुख्यमंत्री, वाराणसी के सांसद और देश के प्रधानमंत्री के तौर पर उनका जीवन और कार्य हमें प्रेरणा देता है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में पहली बार किसी गैरकांग्रेसी दल को 1984 के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार अपने दम पर बहुमत मिला। मोदी सरकार की जनहितैषी योजनाओं, आतंकवादी घटनाओं पर अकुंश लगाने, देश में शांति का वातावरण तैयार करने, भ्रष्टाचार पर रोक लगाने, नक्सलियों की कमर तोड़ने, दुश्मनों को उनके घर में तबाह करने के कारण उनके नेतृत्व में 2019 के लोकसभा चुनाव में जनता ने भाजपा के 303 सदस्यों को चुनकर भेजा। भाजपा आज विश्व में सबसे बड़ा राजनीतिक दल है।

स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित नरेंद्र मोदी जब किसी कार्य को करने को बीड़ा उठाते हैं तो असंभव को संभव करने की दिशा दिखाते हैं। इसी कारण 130 करोड़ देशवासी और करोड़ों कार्यकर्ता उनमें भारत को विश्वगुरु के पद पर स्थापित करने की क्षमता देखते हैं। मोदीजी केवल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तरह गरीबी हटाओ का नारा नहीं देते, वे गरीबों के कल्याण, उत्थान और आर्थिक विकास को धरातल पर साकार रूप देते हैं। यह अलग बात है कि मोदीजी के नारे, विचार, कार्य और योजनाएं विरोधी दलों के नेताओं को विचलित करते हैं। इसी कारण राजनीतिक हताशा के कारण पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादियों के अड्डे नेस्तनाबूद करने वाली सर्जिकल स्ट्राइक के प्रमाण मांगने पर अड़े कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को अमेठी की जनता ठुकरा देती है।

मोदीजी ने पहली 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही मोदीजी ने जन कल्याण के लिए योजनाओं की शुरुआत की। मोदीजी के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही देश की नौकरशाही अपने रवैये को बदलना पड़ा। ऊपर से लेकर नीचे तक तेजी से कार्य होने लगे। भ्रष्टाचार पर लगाम लगी। 8 नवंबर 2016 को एक हजार और पांच सौ के नोट बंद करने की घोषणा से देश में कालाधन जमा करने वालों पर बड़ा आघात किया गया। आतंकवादियों और नक्सलियों की ढांचा चरमरा गया। 2016 में जारी किए गए दो हजार के नोट का चलन बंद करने की घोषणा का असर भी कालेधन पर प्रहार है। नोटबंदी के बाद ऑनलाइन लेन-देन को बढ़ावा मिलने के कारण कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान लोगों को परेशानी नहीं हुई।

नोटबंदी की घोषणा से पहले 29 सितंबर 2016 को भारतीय सेना ने 16 सितंबर 2016 को कश्मीर के उरी में सेना शिविर में सोये हुए 18 जवानों की शहादत का बदला पाकिस्तान में घुसकर में लिया था। भारत के जवानों ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में तीन किलोमीटर अंदर घुसकर आतंकवादियों के ठिकानों को तबाह कर दिया था। यह पाकिस्तान को बड़ा सबक था। तमाम अंतरराष्ट्रीयों मंचों पर पाकिस्तान की बोलती बंद हो गई थी।

14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 78 वाहनों के काफिले को आतंकवादियों ने विस्फोट कर निशाना बनाया था। तब प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों को विश्वास दिलाया था कि जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी और गुनहगारों को सजा जरूर दी जाएगी। पुलवामा हमले के ठीक 12 दिन बाद 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना के मिराज-2000 विमानों ने रात को नियंत्रण रेखा पार कर पाकिस्तान के पूर्वोत्तर इलाके खैबर पख्तूनख्वाह के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के प्रशिक्षण शिविरों पर सर्जिकल स्ट्राइक करके 300 आतंकवादियों को ढेर कर दिया था। इन दो साहसिक निर्णयों से भारतीय सेना का शौर्य विश्व के सामने आया। सेना को मजबूत बनाने के लिए 16 जून 2022 को अग्निपथ योजना की घोषणा की गई। इसके तहत थल सेना, नौसेना और वायु सेना में अग्निवीरों की भर्ती हो रही है। विपक्ष की हायतौबा मचाने के बावजूद देश के युवा सीमाओं की रक्षा के लिए आगे आ रहे हैं।

5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने ऐतिहासिक और साहसिक कदम उठाते हुए जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म किया था। केंद्रीय गृहमंत्री ने राज्यसभा में अनुच्छेद 370 को हटाने के साथ ही राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया था। इसके साथ ही जम्मू कश्मीर केंद्र शासित विधानसभा वाला प्रदेश बना और लद्दाख बिना विधानसभा वाला केंद्रशासित क्षेत्र बन गया। इस साहसिक कदम से एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे का नारा देने वाले जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की गई। 5 अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का शिलान्यास किया। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद मंदिर निर्माण का कार्य तेजी से हो रहा है। 10 जनवरी 2020 को मोदी सरकार ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने के लिए नागरिकता संशोधन कानून लागू किया गया। मोदी सरकार ने बड़ा आर्थिक सुधार करते हुए 1 अप्रैल 2020 को 10 सरकारी बैंकों का चार बड़े बैंकों में विलय किया गया।

इसी तरह 1 जुलाई 2017 को एक देश, एक कर व्यवस्था के लिए जीएसटी लागू की गई। 19 सितंबर 2018 तो मुस्लिम महिलाओं की तीन तलाक जैसी कुप्रथा से मुक्ति दिलाई गई। मोदी सरकार ने तीन तलाक से पीड़ित महिलाओं के लिए गुजरा भत्ता भी दिलाया। मोदी सरकार के साहसिक निर्णयों की तरह की गरीबों, किसानों, मजदूरों, महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गों, अनुसूचित जाति-जनजातियों, पिछड़ों, अति पिछड़ों के कल्याण के लिए चल रही योजनाओं की लंबी सूची है। मोदीजी ने साहसिक निर्णयों के साथ ही सबका साथ, सबका विकास के साथ ही सबका विश्वास प्राप्त किया है।

विरोध के लिए विरोध है, नई संसद के उद्घाटन का बहिष्कार

कैलाश विजयवर्गीय

नरेंद्र मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला करने के लिए कोई मुद्दा ढूंढने में नाकाम विरोधी दल अब संसद के नए भवन के उद्घाटन को लेकर हायतौबा मचा रहे हैं। कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रविड मुन्नेत्र कड़गम जनता दल, आम आदमी पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी,  शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी,  इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, झारखंड मुक्ति मोर्चा,  नेशनल कांफ्रेंस,केरल कांग्रेस (मणि), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, विदुथलाई चिरुथिगल काट्ची, मारुमलार्ची द्रविड मुन्नेत्र कड़गम और राष्ट्रीय लोकदल ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के निमंत्रण पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संसद के नए भवन के उद्घाटन का बहिष्कार केवल विरोध करने की राजनीति के तहत किया है। विपक्ष को कोई मुद्दा नहीं मिलता तो मोदी सरकार की योजनाओं का विरोध करने पर उतारू हो जाता है। इसी तरह विपक्ष ने सेंट्रल विस्टा का विरोध किया था। अग्निपथ योजना का भी विरोध किया था। कई जनकल्याणकारी योजनाओं का विरोध भी विपक्षी दल करते रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने में नाकाम हताश और मुद्दाहीन विपक्ष ने अब संसद भवन के उद्घाटन में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को आमंत्रित न करने पर बहिष्कार की घोषणा की है। ये वहीं विपक्षी दल हैं जिन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में देश की पहली आदिवासी महिला उम्मीदवार का विरोध ही नहीं किया बल्कि अपमानजनक टिप्पणियां की थी। लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी की विवादित टिप्पणी को लेकर तो पूरे देश में निंदा की गई थी। इसी तरह राष्ट्रीय जनता और तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने भी महिला आदिवासी राष्ट्रपति को लेकर गलत टिप्पणी थी। इन नेताओं के खिलाफ आदिवासी समाज की तरफ से देशभर में विरोध प्रदर्शन भी हुए थे।

कांग्रेस के राज में तमाम सरकारी योजनाओं, भवनों, विश्वविद्यालयों तथा शिक्षा संस्थानों, हवाई अड्डो, अस्पतालों, नए शहरों और कालोनियों के नाम गांधी परिवार के नाम पर रखे जाते थे। पूरे देश की बात न भी करें तो दिल्ली में ही देख लीजिए कि जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, संजय गांधी के नाम पर कितने भवन और संस्थान है। हवाई अड्डे का नाम इंदिरा गांधी, विश्वविद्यालय का नाम जवाहर लाल नेहरू के नाम पर हैं। कनाट प्लेस का नाम बदला तो इंदिरा और राजीव चौक रखे गए। अस्पतालों के नाम भी गांधी परिवार के नाम पर रखे गए। अब गांधी परिवार के राहुल गांधी एक गरीब और पिछड़े परिवार से प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी को लेकर विरोध जता रहा है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने तो यह भी भुला दिया कि 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पार्लियामेंट एनेक्सी का उद्घाटन किया था। संसदीय ज्ञानपीठ का 1987 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शिलान्यास किया था। नए संसद भवन की नींव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखी थी। तब से विपक्ष संसद भवन को लेकर सवाल उठाता रहा है। विपक्ष की तरफ से अशोक चिन्ह स्थापित करने पर भी आपत्ति जताई गई थी।

सबसे बड़ी बात यह है कि एक-दूसरे का विरोध करने वाले विपक्षी दल इस मुद्दे पर इकट्ठे होकर यह जता रहे हैं कि देश में विपक्षी एकता हो गई है। बीजू जनता दल,बहुजन समाज पार्टी, तेलुगू देशम पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस, एआईडीएमके और अकाली दल के प्रतिनिधि उद्घाटन में शामिल होंगे। विपक्ष की तरफ से यह संदेश देने की कोशिश हो रही है कि मोदी के खिलाफ विपक्ष एकजुट हो गया है। लंबे समय से देश की कांग्रेस की दोगुली राजनीति को देखता आ रहा है। खासतौर पर पश्चिम बंगाल की बात करें तो वामपंथी सरकार द्वारा कांग्रेसियों के कत्लेआम के बावजूद केंद्र में सरकार बनाने के लिए कम्युनिस्टों की मदद ली गई। पश्चिम बंगाल वामपंथी दलों से गठबंधन करके कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं की सरेआम हत्याओं को भी भुला दिए। कांग्रेसियों पर अत्याचार के विरोध में ही ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस बनाई थी। आज ममता बनर्जी को भी कम्युनिस्टों का साथ लेने में परहेज नहीं है। सच यही है कि विरोधी दलों का संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करना केवल विरोध करने के लिए विरोध है और विपक्षी एकजुटता का दावा एक छलावा है।

राजदंड ‘सेंगोल’, परिवारवाद और मोदी सरकार

कैलाश विजयवर्गीय

परिवारवाद वाले यह न भूलें की भारतीय राजदंड Sengol, जो की सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक था, उसे इलाहाबाद (प्रयागराज) संग्रहालय में ‘Golden walking stick gifted to Pandit Jawaharlal Nehru’ कहकर रखा गया था। वामपंथियों ने इसे “चलने वाली छड़ी” कहकर इसे संबोधित किया।

 

वास्तविकता में ‘सेंगोल’, तमिल शब्द ‘सेम्मई’ से आता है, जिसका अर्थ है ‘न्याय’ यानी सेंगोल का अर्थ है न्याय का प्रतीक।

सेंगोल का इतिहास मौर्य और गुप्त वंश काल से ही शुरू होता है, लेकिन यह सबसे अधिक चोल वंश शासन काल में चर्चित हुआ. भारत के दक्षिण भाग में चोल साम्राज्य (907 से 1310 ईस्वी) का शासन रहा। तमिल साहित्य के इतिहास में चोल शासनकाल को स्वर्ण युग की संज्ञा दी जाती है। चोल राजाओं का राज्याभिषेक तंजौर, गंगइकोंडचोलपुरम्, चिदम्बरम् और कांचीपुरम् में होता था। उस समय पुरोहित राजाओं को चक्रवर्ती उपाधि के साथ ही सेंगोल सौंपते थे और इसे धन-संपदा और वैभव का प्रतीक मानते थे।

पर हमारे देश पर पीढ़ियों तक राज करने वाले परिवार का न्याय तो केवल स्वयं की ख्याति तक ही सीमित रहा। नंदी महाराज, जिस ‘सेंगोल’ पर विराजमान हों, उसे ‘सुनहरी छड़ी’ कहकर 70 सालों तक म्यूजियम में रखने वाले क्या भारत की संस्कृति और विरासत को कभी संभल पायेंगें?

 

     

यदि परिवारवादी इतिहासकार सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के साथ ऐसा कर सकते हैं, तो कल्पना करें कि उन्होंने हमारे प्राचीन इतिहास के साथ क्या किया होगा!

केंद्र की मोदी सरकार ने इस ऐतिहासिक सेंगोल को संसद भवन की नई बिल्डिंग में सभापति (स्पीकर) कुर्सी के पास रखने का फैसला किया है।

गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह के अनुसार

“सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से उपयुक्त और पवित्र स्थान कोई और हो ही नहीं सकता. इसलिए जिस दिन नए संसद भवन को देश को समर्पित किया जाएगा उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तमिलनाडु के अधीनम (मठ) से सेंगोल स्वीकार करेंगे और लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास इसे स्थापित करेंगे.”

अक्षय तृतीया- कभी न हो क्षय, भरा रहे सदैव भंडार

कैलाश विजयवर्गीय

 

अक्षय तृतीया का पर्व हमें धार्मिक, सांस्कृतिक, समृद्ध आर्थिक स्थिति, फलती-फूलती कृषि और समाज को परोपकार की भावना के आधार पर जोड़ता है। पूरे देश में इस पर्व को अलग-अगल इलाकों में अलग-अलग तरीके से मनाते हों पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा सभी स्थानों पर होती है। माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर सबसे ज्यादा विवाह होते हैं। राजस्थान में अखा तीज के दिन सबसे ज्यादा जोड़े वैवाहिक बंधन में बंधते हैं। यह भी माना जाता है कि इस दिन बंधन में बंधने वालों की गांठ कभी नहीं खुलती है। बंगाल में हल खता के दिन नए कार्यों को प्रारम्भ किया जाता है। व्यवसायी गणेश जी और लक्ष्मी जी का पूजन करके अपने नए बही-खाते लिखना प्रारम्भ करते हैं। ओडिसा में भगवान जगन्नाथ की यात्रा शुरु होती है और किसान फसल बोकर मां लक्ष्मी से समृद्धि की कामना करते हैं। ओडिसा में मुथी चुहाना के रूप में मनने वाले पर्व के दिन लोग मांसाहार से बचते हैं। दक्षिण भारत में भगवान विष्णु, लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है। माना जाता है कि भगवान शंकर ने कुबेर को इसी दिन लक्ष्मी जी की पूजा करने को कहा था। पंजाब में इसे कृषि पर्व के तौर पर मनाया जाता है। उत्तर भारत में अक्षय तृतीया का अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग महत्व है।
शास्त्रों में बताया गया है कि ‘न क्षयः इति अक्षयः’ अर्थात जिसका क्षय नहीं होता वह अक्षय है। हमारे यहां रामनवमी, अक्षय तृतीया, विजय दशमी और कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को अक्षय मुर्हूत माना जाता है। कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा को भी आधा अबूझ मुर्हूत माना जाता है। बैशाख महीने की तृतीया यानी अक्षय तृतीया को सबसे अच्छा मुर्हूत माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए गए शुभ कर्म के फल का कभी क्षय नहीं होता है। इसी कारण इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है।

अक्षय तृतीया को कृतयुगादि भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार सतयुग का प्रारम्भ अक्षय तृतीया से हुआ था। इसी तिथि को भगवान परशुराम का अवतरण दिवस मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगीरथ के कठोर तप के बाद गंगा जी का पृथ्वी पर अवतार हुआ था। एक कथा में वर्णन है कि द्वापर युग में भरे दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ही दु:शासन ने द्रौपदी का चीर हरण किया था। महाभारत काल में द्रोपदी की करुणा पुकार भगवान कृष्ण ने अक्षय तृतीया को अक्षय चीर का वरदान दिया था। प्राचीन कथाओं में बताया गया है कि अक्षय तृतीया पर ही युधिष्ठिर को अक्षय पात्र मिला था। भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय पात्र हमेशा भोजन प्रदान करता था। अक्षय पात्र से ही राजा युधिष्ठिर भूखे लोगों को भोजन देते थे। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण के दीन मित्र सुदामा उनसे मिलने गए थे और मुट्ठी भर चावल भेंट करने पर भगवान ने उनकी झोपड़ी का भव्य महल में परिवर्तन कर दिया था। देवभूमि हिमालय के चार धामों में से एक भगवान बद्री विशाल के पट अक्षय तृतीया के दिन ही भक्तों के लिए खुलते हैं। वृंदावन में भगवान बांके बिहारी के चरणों के दर्शन अक्षय तृतीया के दिन ही होते हैं। बिहारी जी के चरण दर्शन करने से परिवार में समृद्धि आती है। ऋतु पर्व अक्षय तृतीया बसंत और गर्मी का संधि पर्व भी है। ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया को गंगा में स्नान करके पितरों का तिल से तर्पण करके पिंडदान करने से मोक्ष मिलता है।

कभी क्षय न होने के कारण अक्षय तृतीया को स्वर्ण खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सोने-चांदी के आभूषण घर में लाने से हमेशा समृद्धि रहती है। समृद्धि और वैभव की भरमार करने वाले पर्व अक्षय तृतीया को दान करने का भी विशेष महत्व है। कथाओं में वर्णन है कि अक्षय तृतीया को जल से भरे कलश, गाय, पंखे, जूते आदि का दान बहुत पुण्य देता है। गरीबों और कल्याणकारी संस्थाओं को भी भूदान का विशेष महत्व हैं। ऐसे कल्याणकारी, समृद्धिवर्धक और पुण्य देने वाले पर्व अक्षय तृतीया पर सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। हमारा देश समृद्ध बने, शाक्तिशाली बने और कृषि हमेशा फलती-फूलती रहे।

समरतसा के महानायक ज्योतिबा फुले

कैलाश विजयवर्गीय

कारण जो भी रहें हो, महान क्रांतिकारी समाज सुधाकर, विचारक, लेखक, दार्शनिक, वंचितों और महिलाओं को शिक्षा और बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए अभियान चलाने वाले ज्योतिबा फुले को उनके निधन से दो वर्ष पूर्व महात्मा की उपाधि देने के बावजूद कुछ खास वर्ग तक सीमित कर दिया गया। महाराष्ट्र के पुणे में 11 अप्रैल 1827 को जन्मे ज्योतिबा गोविन्दराव फुले ने तमाम कठिनाइयों के बावजूद पढ़ाई की और समाज को कुरीतियों को दूर करने का पाठ पढ़ाया। माली का काम करने वाले परिवार में जन्मे ज्योतिबा को पढ़ाई में अच्छा होने के बाद भी तथाकथित उच्च वर्ग के व्यवहार के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी। पहले मराठी पढ़ने वाले ज्योतिबा ने शिक्षा का महत्व समझते हुए 21 वर्ष की आयु में अंग्रेजी में सातवीं कक्षा उत्तीर्ण की। 1840 में सावित्रीबाई से विवाह किया और महिलाओं को शिक्षित बनाने और बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए महिला विद्यालय की स्थापना कराई। इस कार्य के लिए उन्होंने अपनी पत्नी को शिक्षित बनाकर देश की पहली महिला शिक्षिका बनाया। वंचितों के नायक और महिलाओं को सशक्त बनाने की प्रेरणा देने वाले महान क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले ने किसानों और खेती के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे। इसके लिए उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती भी दी थी। ज्योतिबा फुले ने प्रेस की आजादी को लेकर भी अंग्रेजी सरकार को चुनौती दी थी। बाल विवाह का विरोध और विधवा विवाह के पुरजोर समर्थक महात्मा फुले ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने का बीड़ा उठाया था। इसी कारण भारत रत्न डा. भीमराव अम्बेडकर ज्योतिबा फुले को अपना गुरू मानते थे।

जब ज्योतिबा फुले ने वंचितों के उत्थान के लिए अभियान चलाया तो उस समय महाराष्ट्र सहित देश के कई विभिन्न इलाकों में जातिवाद, महिलाओं को शिक्षा दिलाने, बाल विवाह, विधवा विवाह और धार्मिक सुधार आंदोलन जारी थे। महाराष्ट्र में महादेव गोविंद रानाडे और आरजी भंडारकर ने स्त्री शिक्षा, बाल विवाह के विरोध और विधवा विवाह के लिए अभियान चलाया था। इसके लिए रानाडे ने पुणे सार्वजनिक सभा की स्थापना की। स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी। बंगाल में राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज और केशवचंद सेन प्रार्थना समाज की स्थापना की। समाज में शूद्र और अति शूद्रों में जागृति के लिए ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की थी। ज्योतिबा फुले अछूतोद्धार के प्रथम महानायक थे।

बहुआयामी प्रतिभा से सम्पन्न, सामाजिक न्याय के पुरोधा, सामाजिक समानता, महिला सशक्तीकरण और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले ज्योतिबा फुले ने आंदोलनों के माध्यम से आजादी की अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ब्राह्मणवाद को चुनौती देने वाले और विवाह में पुरोहित की भूमिका समाप्त करने का अभियान चलाने वाले ज्योतिबा फुले ने समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए आवाज ही नहीं उठाई बल्कि उसे साकार रूप दिया। कुछ राजनीतिक कारणों से देश की स्वतंत्रता से पहले और बाद में ज्योतिबा फुले के समाज को जगाने और बराबरी का अधिकार दिलाने के बावजूद एक वर्ग का ही नायक माना गया। ज्योतिबा फुले को राजनीतिक कारणों से एक वर्ग तक की सीमित रखा गया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वंचितों को बराबरी के अधिकार हमेशा पक्षधर रहा है। संघ के संस्थापक पूज्यनीय डॉ. केशवराम बलिराम हेडगेवार के निमंत्रण पर डॉ. अम्बेडकर ने 1939 में संघ शिक्षा वर्ग में आकर स्वयंसेवकों के साथ भोजन किया था। डॉ अम्बेडकर ने संघ के कार्यों की प्रशंसा भी की थी। केंद्र में लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार और भाजपा शासित राज्यों में सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के तहत सभी वर्गों को लाभ मिल रहा है। मोदीजी के नेतृत्व में पूरा देश महात्मा ज्योतिबा फुले के सम्पूर्ण समाज को बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए समर्थन कर रहा है। केवल सत्ता के लिए दलितों के वोटों के लालच में समाज में कटुता फैलाने वाले दल आज मोदी सरकार के कार्यों के कारण हाशिये पर जा रहे हैं। समाज में कटुता फैलाने के प्रयासों के लिए जातिगणना कराई जा रही है। जातिवाद के नाम पर कुछ दलों ने अपने परिवारों का ही कल्याण किया है। ऐसे दलों को जनता ने नकार दिया है। महात्मा फुले ने जातिगत पूर्वाग्रह से मुक्ति के लिए जो अभियान चलाया था, उसे मोदी सरकार ने साकार किया गया है। वंचितों, महिलाओं, किसानों और युवाओं के कल्याण के लिए कार्य किए जा रहे हैं। सामाजिक समरसता के अगुवा महात्मा फुले को जयंती कोटिशः नमन।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं और सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक विषयों पर बेबाक टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं।)

भारतीय जनता पार्टी का 43वां स्थापना दिवस

अजेय भाजपा के मुकाबले कौन

 

कैलाश विजयवर्गीय

भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक यात्रा को 6 अप्रैल को 43 वर्ष पूर्ण हुए हैं पर हमारी वैचारिक राजनीतिक यात्रा 21 अक्टूबर 1951 को डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना से प्रारम्भ हुई थी। आज हम देश के राजनीतिक परिद्श्य पर दृष्टि डाले तो भाजपा 20 करोड़ से ज्यादा सदस्यों के साथ विश्व में सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की सरकार के नौ वर्ष पूरे होने वाले है। मोदीजी के नेतृत्व में आज देश की सीमाएं सुरक्षित हैं। हथियारों के मामले में देश आत्मनिर्भर हुआ है और कई देशों को हथियार बेचे जा रहे हैं। आतंकवाद के विरोध में विश्वव्यापी अभियान छेड़ा गया है। देश में नक्सलवाद बहुत सीमित इलाके में बचा है। जनता के हित और कल्याण के लिए उठाए गए कदमों से देश की आर्थिक प्रगति की रफ्तार तेज हुई है। गरीब, किसान, मजदूर, महिलाओं, युवाओं, अनुसूचित जाति और पिछड़ों के लिए चलाई गई योजनाओं से उनकी हालत में सुधार आया है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास का नारा मोदीजी के नेतृत्व में पूरी तरह साकार हुआ है।

भाजपा का पूरे देश में विस्तार हुआ है। लोकसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या 303 हैं और राज्यसभा में 92 सदस्य हैं। देश के 16 राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। पूर्वोत्तर में भाजपा का परचम फहरा रहा है। आज हम विचार करें कि देश में सबसे लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस और गैरकांग्रेसवाद का नारा देने वाले राजनीतिक दलों की हालत क्या है। कांग्रेस का विरोध करने वाले नेता कुर्सी के लिए अपने-अपने विचारों और सिद्धांतों को तिलांजलि देते हुए उसकी शरण में जाते रहे हैं। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए ज्यादातर विरोधी दलों के नेता प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए कांग्रेस के समर्थन को लालायित हो रहे हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के अयोग्य सांसद घोषित होने के बाद तो दलों में खींचतान और बढ़ गई है। आज देश में गैरकांग्रेसवाद की प्रासंगिकता पूरी तरह समाप्त हो गई है। सारे विरोधी दलों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए रणनीति बनानी पड़ रही है।

देश की स्वतंत्रता के बाद साठवें दशक में गैरकांग्रेसवाद के नारे की शुरुआत की गई पर स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस का मुकाबला करने में डा.मुखर्जी सबसे प्रमुख प्रखर नेता के तौर पर स्थापित हुए थे। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू करने के विरोध में प्रखर राष्ट्रवादी नेता डा.मुखर्जी ने “एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे” का नारा देकर कांग्रेस को बड़ी चुनौती दी थी। डा.मुखर्जी के बलिदान से जनसंघ के विस्तार को बहुत आघात लगा था। समाजवादी नेता डा.राममनोहर लोहिया ने देश में गैरकांग्रेसवाद का नारा बुलंद करने के लिए जनसंघ का सहयोग लिया था। जनसंघ के नेता और एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने गैरकांग्रेसवाद नारे को साकार करने के लिए पूरी ईमानदारी से कार्य किया। दीनदयालजी के सहयोग के कारण ही 1967 के चुनावों में नौ राज्यों में शक्तिशाली कांग्रेस को बड़ा झटका दिया गया। हालांकि उस समय भी लोहियाजी के कुछ शिष्य जनसंघ का विरोध करते थे। आपातकाल में जनता पार्टी के गठन में जनसंघ ने विशेष भूमिका निभाई और कांग्रेस पहली बार केंद्र की सत्ता से दूर हुई। जनता पार्टी को तोड़ने में भी समाजवादी पृष्ठभूमि के नेताओं ने बड़ी भूमिका निभाई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार गिराकर कांग्रेस ने चौधरी चरण सिंह की सरकार बनाई। नतीजा यह हुआ कि 1980 में कांग्रेस ने फिर से इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सरकार बना ली। 1991 में चंद्रशेखर भी इसी तरह कांग्रेस के खेल में फंस गए थे। इससे पहले 1980 में 6 अप्रैल को शीर्ष नेता अटल बिहारी के नेतृत्व में भाजपा की स्थापना करके देश में नई राजनीति की शुरुआत की गई। 1980 के बाद भाजपा के साथी अपनी सुविधा के अनुसार बदलते रहे। श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में देश की राजनीति ने 80 के दशक से परिवर्तन को देखना शुरू किया था। 1996 में वाजपेयीजी के नेतृत्व में देश में पहली बार विशुद्ध गैरकांग्रेस प्रधानमंत्री की सरकार बनी। वाजपेयी ने 13 दिन और 13 महीने की सरकार के बाद 1999 से 2004 तक सरकार का नेतृत्व किया।

पूरा देश मान रहा है कि श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा अगले वर्ष फिर से केंद्र में सरकार बनाएगी। गैरकांग्रेसवाद का नारा लगाने वाले नीतीश कुमार ने बिहार में एक बार फिर से राष्ट्रीय जनता दल से हाथ मिलाकर बिहार जंगलराज की पुनरावृति करा दी है। भाजपा की एकमात्र ऐसा राजनीतिक दल है जिसने देश को कांग्रेस की तुष्टीकरण की राजनीति, जातिवाद और वंशवाद से मुक्ति दिलाई है। गैरकांग्रेसवाद के नारे सहारे सत्ता का आनंद लेने वाले नेताओं को आज कांग्रेस के सहारे की आवश्यकता पड़ रही है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और तृणमूल कांग्रेस का गठन कांग्रेस की नीतियों के विरोध में हुआ था। उनके नेताओं को भी कांग्रेस का समर्थन लेने या देने से कभी परहेज नहीं रहा।

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले देश में कोई नेता नहीं दिखाई देता। हालत यह है कि सारे विरोधी दलों के नेता मिलकर भी मोदीजी का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा के पास गृहमंत्री अमित शाह जैसे रणनीतिकार हैं। श्री शाह के अध्यक्ष रहते हुए ही भाजपा ने देश में 21 राज्यों में भाजपा ने नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव पहले मई में होने वाले कर्नाटक विधानसभा के चुनाव भाजपा की जीत होगी और इस वर्ष के अंत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में भाजपा कांग्रेस को सत्ता बाहर कर देगी। यही है असली गैरकांग्रेसवाद। भाजपा के स्थापना दिवस पर आप सभी को शुभकामनाएं।

इंदौर अभय जी के दिल में धड़कता था

कैलाश विजयवर्गीय
अभय जी छजलानी के साथ अपनी यादों को उसी तरह से लिपिबद्ध किया जा सकता है, जैसे उन्होंने कभी नईदुनिया में किया था—गुजरता कारवां लिखकर।शहर के मसलों पर इतना विस्तृत चिंतन और लेखन तब तक तो किसी ने नहीं किया था।उनसे जुड़े तमाम लोगों के पास इसी तरह यादों का विशाल भंडार होगा,क्योंकि संस्था रूप में जिस व्यक्ति ने करीब चार दशक तक इंदौर,देश,दुनिया को सुक्ष्म दृष्टि से देखने,विश्लेषण करने,समाधान प्रस्तुत करने और उससे तादात्म्य बिठा लेने की खूबी जो थी अभय जी में।पत्रकारिता और इंदौर के गौरव की एक महत्वपूर्ण कड़ी का टूटकर अलग होना अखरेगा तो सही।
यूं देखा जाए तो अभय जी के साथ जब दिल के तार नहीं जुड़े थे, तब हम दोनों के मन में एक—दूसरे के प्रति मत भिन्नताएं थीं, लेकिन 1999 में इंदौर का महापौर बनाने के बाद जब उनसे संवाद—मुलाकात होने लगी तो यह खाई ऐसे पट गई, जैसे कभी थी ही नहीं।तब मैंने जाना कि शहर के मसलों पर उनके मन में कमतरी के प्रति टीस और निवारण के प्रति उत्साह रहता था।हमारी परिषद और मेरी भी आलोचना,सुझाव और प्रशंसा में कभी कंजूसी नहीं की। मेरे अनेक कामों को सराहते हुए संपादकीय लिखे।
एक वाकया याद आता है। मैंने बच्चों से शास्त्री पूल की दीवारों पर चित्रकारी करवाई थी। कुछ ही समय बाद एक बड़े कांग्रेसी नेता के आगमन पर उसे मिटाकर नारे लिख दिए। अभय जी इससे बेहद व्यथित हुए,जिसका जिक्र तो उन्होंने मुझसे किया ही, इस प्रवृत्ति के खिलाफ संपादकीय भी लिखा। मुझे लगता है, उसके बाद शहर की दीवारों पर राजनीतिक लेखन बंद हो गया।
अभय जी की एक बात का खास तौर से उल्लेख करना चाहूंगा। वे अखबार में सपाट ढंग से किसी भी सम्मानित,जिम्मेदार व्यक्ति का नाम लिखना नापसंद करते थे। जैसे—अटल विदेश दौरे पर। वे लिखते थे अटल जी विदेश दौरे पर। नईदुनिया ने उनके संचालन कार्यकाल में हमेशा इस मर्यादा का पालन किया। वे कहते थे,सीधे नाम लिखना विदेशी तरीका है, जो भारतीय संदर्भ में अपमानजनक और अमर्यादित है।वे हिंदी पत्रकारिता में इस तरीके को अपना लिए जाने से असहज महसूस करते थे।
दरअसल, अभय जी छजलानी और नईदुनिया एक लंबे समय तक इंदौर की धड़कन की तरह थे। वे शहर की बेहतरी के लिए खबर, संपादकीय से आगे जाकर व्यक्तिगत पहल करते थे। इंदौर में नर्मदा के पानी को लाने के आंदोलन और बिक चुके राजबाड़ा को सरकार द्वारा अधिगृहीत कर लिए जाने तक चले आंदोलन को नईदुनिया ने जबरदस्त समर्थन दिया। इन्हीं कारणों से अभय जी और उनके कार्यकाल वाला नईदुनिया इंदौर के दिल में सदैव धड़कते रहेंगे।
(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं।