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Nadda ji

अक्षय तृतीया- कभी न हो क्षय, भरा रहे सदैव भंडार

कैलाश विजयवर्गीय

 

अक्षय तृतीया का पर्व हमें धार्मिक, सांस्कृतिक, समृद्ध आर्थिक स्थिति, फलती-फूलती कृषि और समाज को परोपकार की भावना के आधार पर जोड़ता है। पूरे देश में इस पर्व को अलग-अगल इलाकों में अलग-अलग तरीके से मनाते हों पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा सभी स्थानों पर होती है। माना जाता है कि अक्षय तृतीया पर सबसे ज्यादा विवाह होते हैं। राजस्थान में अखा तीज के दिन सबसे ज्यादा जोड़े वैवाहिक बंधन में बंधते हैं। यह भी माना जाता है कि इस दिन बंधन में बंधने वालों की गांठ कभी नहीं खुलती है। बंगाल में हल खता के दिन नए कार्यों को प्रारम्भ किया जाता है। व्यवसायी गणेश जी और लक्ष्मी जी का पूजन करके अपने नए बही-खाते लिखना प्रारम्भ करते हैं। ओडिसा में भगवान जगन्नाथ की यात्रा शुरु होती है और किसान फसल बोकर मां लक्ष्मी से समृद्धि की कामना करते हैं। ओडिसा में मुथी चुहाना के रूप में मनने वाले पर्व के दिन लोग मांसाहार से बचते हैं। दक्षिण भारत में भगवान विष्णु, लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है। माना जाता है कि भगवान शंकर ने कुबेर को इसी दिन लक्ष्मी जी की पूजा करने को कहा था। पंजाब में इसे कृषि पर्व के तौर पर मनाया जाता है। उत्तर भारत में अक्षय तृतीया का अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग महत्व है।
शास्त्रों में बताया गया है कि ‘न क्षयः इति अक्षयः’ अर्थात जिसका क्षय नहीं होता वह अक्षय है। हमारे यहां रामनवमी, अक्षय तृतीया, विजय दशमी और कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की एकादशी को अक्षय मुर्हूत माना जाता है। कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा को भी आधा अबूझ मुर्हूत माना जाता है। बैशाख महीने की तृतीया यानी अक्षय तृतीया को सबसे अच्छा मुर्हूत माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन किए गए शुभ कर्म के फल का कभी क्षय नहीं होता है। इसी कारण इस तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है।

अक्षय तृतीया को कृतयुगादि भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार सतयुग का प्रारम्भ अक्षय तृतीया से हुआ था। इसी तिथि को भगवान परशुराम का अवतरण दिवस मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार भगीरथ के कठोर तप के बाद गंगा जी का पृथ्वी पर अवतार हुआ था। एक कथा में वर्णन है कि द्वापर युग में भरे दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ही दु:शासन ने द्रौपदी का चीर हरण किया था। महाभारत काल में द्रोपदी की करुणा पुकार भगवान कृष्ण ने अक्षय तृतीया को अक्षय चीर का वरदान दिया था। प्राचीन कथाओं में बताया गया है कि अक्षय तृतीया पर ही युधिष्ठिर को अक्षय पात्र मिला था। भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय पात्र हमेशा भोजन प्रदान करता था। अक्षय पात्र से ही राजा युधिष्ठिर भूखे लोगों को भोजन देते थे। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण के दीन मित्र सुदामा उनसे मिलने गए थे और मुट्ठी भर चावल भेंट करने पर भगवान ने उनकी झोपड़ी का भव्य महल में परिवर्तन कर दिया था। देवभूमि हिमालय के चार धामों में से एक भगवान बद्री विशाल के पट अक्षय तृतीया के दिन ही भक्तों के लिए खुलते हैं। वृंदावन में भगवान बांके बिहारी के चरणों के दर्शन अक्षय तृतीया के दिन ही होते हैं। बिहारी जी के चरण दर्शन करने से परिवार में समृद्धि आती है। ऋतु पर्व अक्षय तृतीया बसंत और गर्मी का संधि पर्व भी है। ऐसा माना जाता है कि अक्षय तृतीया को गंगा में स्नान करके पितरों का तिल से तर्पण करके पिंडदान करने से मोक्ष मिलता है।

कभी क्षय न होने के कारण अक्षय तृतीया को स्वर्ण खरीदना बहुत शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सोने-चांदी के आभूषण घर में लाने से हमेशा समृद्धि रहती है। समृद्धि और वैभव की भरमार करने वाले पर्व अक्षय तृतीया को दान करने का भी विशेष महत्व है। कथाओं में वर्णन है कि अक्षय तृतीया को जल से भरे कलश, गाय, पंखे, जूते आदि का दान बहुत पुण्य देता है। गरीबों और कल्याणकारी संस्थाओं को भी भूदान का विशेष महत्व हैं। ऐसे कल्याणकारी, समृद्धिवर्धक और पुण्य देने वाले पर्व अक्षय तृतीया पर सभी को बहुत-बहुत शुभकामनाएं। हमारा देश समृद्ध बने, शाक्तिशाली बने और कृषि हमेशा फलती-फूलती रहे।

समरतसा के महानायक ज्योतिबा फुले

कैलाश विजयवर्गीय

कारण जो भी रहें हो, महान क्रांतिकारी समाज सुधाकर, विचारक, लेखक, दार्शनिक, वंचितों और महिलाओं को शिक्षा और बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए अभियान चलाने वाले ज्योतिबा फुले को उनके निधन से दो वर्ष पूर्व महात्मा की उपाधि देने के बावजूद कुछ खास वर्ग तक सीमित कर दिया गया। महाराष्ट्र के पुणे में 11 अप्रैल 1827 को जन्मे ज्योतिबा गोविन्दराव फुले ने तमाम कठिनाइयों के बावजूद पढ़ाई की और समाज को कुरीतियों को दूर करने का पाठ पढ़ाया। माली का काम करने वाले परिवार में जन्मे ज्योतिबा को पढ़ाई में अच्छा होने के बाद भी तथाकथित उच्च वर्ग के व्यवहार के कारण पढ़ाई छोड़नी पड़ी। पहले मराठी पढ़ने वाले ज्योतिबा ने शिक्षा का महत्व समझते हुए 21 वर्ष की आयु में अंग्रेजी में सातवीं कक्षा उत्तीर्ण की। 1840 में सावित्रीबाई से विवाह किया और महिलाओं को शिक्षित बनाने और बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए महिला विद्यालय की स्थापना कराई। इस कार्य के लिए उन्होंने अपनी पत्नी को शिक्षित बनाकर देश की पहली महिला शिक्षिका बनाया। वंचितों के नायक और महिलाओं को सशक्त बनाने की प्रेरणा देने वाले महान क्रांतिकारी ज्योतिबा फुले ने किसानों और खेती के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे। इसके लिए उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती भी दी थी। ज्योतिबा फुले ने प्रेस की आजादी को लेकर भी अंग्रेजी सरकार को चुनौती दी थी। बाल विवाह का विरोध और विधवा विवाह के पुरजोर समर्थक महात्मा फुले ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने का बीड़ा उठाया था। इसी कारण भारत रत्न डा. भीमराव अम्बेडकर ज्योतिबा फुले को अपना गुरू मानते थे।

जब ज्योतिबा फुले ने वंचितों के उत्थान के लिए अभियान चलाया तो उस समय महाराष्ट्र सहित देश के कई विभिन्न इलाकों में जातिवाद, महिलाओं को शिक्षा दिलाने, बाल विवाह, विधवा विवाह और धार्मिक सुधार आंदोलन जारी थे। महाराष्ट्र में महादेव गोविंद रानाडे और आरजी भंडारकर ने स्त्री शिक्षा, बाल विवाह के विरोध और विधवा विवाह के लिए अभियान चलाया था। इसके लिए रानाडे ने पुणे सार्वजनिक सभा की स्थापना की। स्वामी दयानंद सरस्वती ने 1875 में आर्य समाज की स्थापना की थी। बंगाल में राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज और केशवचंद सेन प्रार्थना समाज की स्थापना की। समाज में शूद्र और अति शूद्रों में जागृति के लिए ज्योतिबा फुले ने 24 सितंबर 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की थी। ज्योतिबा फुले अछूतोद्धार के प्रथम महानायक थे।

बहुआयामी प्रतिभा से सम्पन्न, सामाजिक न्याय के पुरोधा, सामाजिक समानता, महिला सशक्तीकरण और शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वाले ज्योतिबा फुले ने आंदोलनों के माध्यम से आजादी की अलख जगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ब्राह्मणवाद को चुनौती देने वाले और विवाह में पुरोहित की भूमिका समाप्त करने का अभियान चलाने वाले ज्योतिबा फुले ने समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए आवाज ही नहीं उठाई बल्कि उसे साकार रूप दिया। कुछ राजनीतिक कारणों से देश की स्वतंत्रता से पहले और बाद में ज्योतिबा फुले के समाज को जगाने और बराबरी का अधिकार दिलाने के बावजूद एक वर्ग का ही नायक माना गया। ज्योतिबा फुले को राजनीतिक कारणों से एक वर्ग तक की सीमित रखा गया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने वंचितों को बराबरी के अधिकार हमेशा पक्षधर रहा है। संघ के संस्थापक पूज्यनीय डॉ. केशवराम बलिराम हेडगेवार के निमंत्रण पर डॉ. अम्बेडकर ने 1939 में संघ शिक्षा वर्ग में आकर स्वयंसेवकों के साथ भोजन किया था। डॉ अम्बेडकर ने संघ के कार्यों की प्रशंसा भी की थी। केंद्र में लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार और भाजपा शासित राज्यों में सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के तहत सभी वर्गों को लाभ मिल रहा है। मोदीजी के नेतृत्व में पूरा देश महात्मा ज्योतिबा फुले के सम्पूर्ण समाज को बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए समर्थन कर रहा है। केवल सत्ता के लिए दलितों के वोटों के लालच में समाज में कटुता फैलाने वाले दल आज मोदी सरकार के कार्यों के कारण हाशिये पर जा रहे हैं। समाज में कटुता फैलाने के प्रयासों के लिए जातिगणना कराई जा रही है। जातिवाद के नाम पर कुछ दलों ने अपने परिवारों का ही कल्याण किया है। ऐसे दलों को जनता ने नकार दिया है। महात्मा फुले ने जातिगत पूर्वाग्रह से मुक्ति के लिए जो अभियान चलाया था, उसे मोदी सरकार ने साकार किया गया है। वंचितों, महिलाओं, किसानों और युवाओं के कल्याण के लिए कार्य किए जा रहे हैं। सामाजिक समरसता के अगुवा महात्मा फुले को जयंती कोटिशः नमन।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं और सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक विषयों पर बेबाक टिप्पणी के लिए जाने जाते हैं।)

भारतीय जनता पार्टी का 43वां स्थापना दिवस

अजेय भाजपा के मुकाबले कौन

 

कैलाश विजयवर्गीय

भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक यात्रा को 6 अप्रैल को 43 वर्ष पूर्ण हुए हैं पर हमारी वैचारिक राजनीतिक यात्रा 21 अक्टूबर 1951 को डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में ‘भारतीय जनसंघ’ की स्थापना से प्रारम्भ हुई थी। आज हम देश के राजनीतिक परिद्श्य पर दृष्टि डाले तो भाजपा 20 करोड़ से ज्यादा सदस्यों के साथ विश्व में सबसे बड़ा राजनीतिक दल है। केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए की सरकार के नौ वर्ष पूरे होने वाले है। मोदीजी के नेतृत्व में आज देश की सीमाएं सुरक्षित हैं। हथियारों के मामले में देश आत्मनिर्भर हुआ है और कई देशों को हथियार बेचे जा रहे हैं। आतंकवाद के विरोध में विश्वव्यापी अभियान छेड़ा गया है। देश में नक्सलवाद बहुत सीमित इलाके में बचा है। जनता के हित और कल्याण के लिए उठाए गए कदमों से देश की आर्थिक प्रगति की रफ्तार तेज हुई है। गरीब, किसान, मजदूर, महिलाओं, युवाओं, अनुसूचित जाति और पिछड़ों के लिए चलाई गई योजनाओं से उनकी हालत में सुधार आया है। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास का नारा मोदीजी के नेतृत्व में पूरी तरह साकार हुआ है।

भाजपा का पूरे देश में विस्तार हुआ है। लोकसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या 303 हैं और राज्यसभा में 92 सदस्य हैं। देश के 16 राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं। पूर्वोत्तर में भाजपा का परचम फहरा रहा है। आज हम विचार करें कि देश में सबसे लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस और गैरकांग्रेसवाद का नारा देने वाले राजनीतिक दलों की हालत क्या है। कांग्रेस का विरोध करने वाले नेता कुर्सी के लिए अपने-अपने विचारों और सिद्धांतों को तिलांजलि देते हुए उसकी शरण में जाते रहे हैं। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए ज्यादातर विरोधी दलों के नेता प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए कांग्रेस के समर्थन को लालायित हो रहे हैं। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के अयोग्य सांसद घोषित होने के बाद तो दलों में खींचतान और बढ़ गई है। आज देश में गैरकांग्रेसवाद की प्रासंगिकता पूरी तरह समाप्त हो गई है। सारे विरोधी दलों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए रणनीति बनानी पड़ रही है।

देश की स्वतंत्रता के बाद साठवें दशक में गैरकांग्रेसवाद के नारे की शुरुआत की गई पर स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस का मुकाबला करने में डा.मुखर्जी सबसे प्रमुख प्रखर नेता के तौर पर स्थापित हुए थे। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू करने के विरोध में प्रखर राष्ट्रवादी नेता डा.मुखर्जी ने “एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे” का नारा देकर कांग्रेस को बड़ी चुनौती दी थी। डा.मुखर्जी के बलिदान से जनसंघ के विस्तार को बहुत आघात लगा था। समाजवादी नेता डा.राममनोहर लोहिया ने देश में गैरकांग्रेसवाद का नारा बुलंद करने के लिए जनसंघ का सहयोग लिया था। जनसंघ के नेता और एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने गैरकांग्रेसवाद नारे को साकार करने के लिए पूरी ईमानदारी से कार्य किया। दीनदयालजी के सहयोग के कारण ही 1967 के चुनावों में नौ राज्यों में शक्तिशाली कांग्रेस को बड़ा झटका दिया गया। हालांकि उस समय भी लोहियाजी के कुछ शिष्य जनसंघ का विरोध करते थे। आपातकाल में जनता पार्टी के गठन में जनसंघ ने विशेष भूमिका निभाई और कांग्रेस पहली बार केंद्र की सत्ता से दूर हुई। जनता पार्टी को तोड़ने में भी समाजवादी पृष्ठभूमि के नेताओं ने बड़ी भूमिका निभाई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार गिराकर कांग्रेस ने चौधरी चरण सिंह की सरकार बनाई। नतीजा यह हुआ कि 1980 में कांग्रेस ने फिर से इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सरकार बना ली। 1991 में चंद्रशेखर भी इसी तरह कांग्रेस के खेल में फंस गए थे। इससे पहले 1980 में 6 अप्रैल को शीर्ष नेता अटल बिहारी के नेतृत्व में भाजपा की स्थापना करके देश में नई राजनीति की शुरुआत की गई। 1980 के बाद भाजपा के साथी अपनी सुविधा के अनुसार बदलते रहे। श्री अटल बिहारी वाजपेयी और श्री लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में देश की राजनीति ने 80 के दशक से परिवर्तन को देखना शुरू किया था। 1996 में वाजपेयीजी के नेतृत्व में देश में पहली बार विशुद्ध गैरकांग्रेस प्रधानमंत्री की सरकार बनी। वाजपेयी ने 13 दिन और 13 महीने की सरकार के बाद 1999 से 2004 तक सरकार का नेतृत्व किया।

पूरा देश मान रहा है कि श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा अगले वर्ष फिर से केंद्र में सरकार बनाएगी। गैरकांग्रेसवाद का नारा लगाने वाले नीतीश कुमार ने बिहार में एक बार फिर से राष्ट्रीय जनता दल से हाथ मिलाकर बिहार जंगलराज की पुनरावृति करा दी है। भाजपा की एकमात्र ऐसा राजनीतिक दल है जिसने देश को कांग्रेस की तुष्टीकरण की राजनीति, जातिवाद और वंशवाद से मुक्ति दिलाई है। गैरकांग्रेसवाद के नारे सहारे सत्ता का आनंद लेने वाले नेताओं को आज कांग्रेस के सहारे की आवश्यकता पड़ रही है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और तृणमूल कांग्रेस का गठन कांग्रेस की नीतियों के विरोध में हुआ था। उनके नेताओं को भी कांग्रेस का समर्थन लेने या देने से कभी परहेज नहीं रहा।

आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले देश में कोई नेता नहीं दिखाई देता। हालत यह है कि सारे विरोधी दलों के नेता मिलकर भी मोदीजी का मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा के पास गृहमंत्री अमित शाह जैसे रणनीतिकार हैं। श्री शाह के अध्यक्ष रहते हुए ही भाजपा ने देश में 21 राज्यों में भाजपा ने नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव पहले मई में होने वाले कर्नाटक विधानसभा के चुनाव भाजपा की जीत होगी और इस वर्ष के अंत में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में भाजपा कांग्रेस को सत्ता बाहर कर देगी। यही है असली गैरकांग्रेसवाद। भाजपा के स्थापना दिवस पर आप सभी को शुभकामनाएं।

इंदौर अभय जी के दिल में धड़कता था

कैलाश विजयवर्गीय
अभय जी छजलानी के साथ अपनी यादों को उसी तरह से लिपिबद्ध किया जा सकता है, जैसे उन्होंने कभी नईदुनिया में किया था—गुजरता कारवां लिखकर।शहर के मसलों पर इतना विस्तृत चिंतन और लेखन तब तक तो किसी ने नहीं किया था।उनसे जुड़े तमाम लोगों के पास इसी तरह यादों का विशाल भंडार होगा,क्योंकि संस्था रूप में जिस व्यक्ति ने करीब चार दशक तक इंदौर,देश,दुनिया को सुक्ष्म दृष्टि से देखने,विश्लेषण करने,समाधान प्रस्तुत करने और उससे तादात्म्य बिठा लेने की खूबी जो थी अभय जी में।पत्रकारिता और इंदौर के गौरव की एक महत्वपूर्ण कड़ी का टूटकर अलग होना अखरेगा तो सही।
यूं देखा जाए तो अभय जी के साथ जब दिल के तार नहीं जुड़े थे, तब हम दोनों के मन में एक—दूसरे के प्रति मत भिन्नताएं थीं, लेकिन 1999 में इंदौर का महापौर बनाने के बाद जब उनसे संवाद—मुलाकात होने लगी तो यह खाई ऐसे पट गई, जैसे कभी थी ही नहीं।तब मैंने जाना कि शहर के मसलों पर उनके मन में कमतरी के प्रति टीस और निवारण के प्रति उत्साह रहता था।हमारी परिषद और मेरी भी आलोचना,सुझाव और प्रशंसा में कभी कंजूसी नहीं की। मेरे अनेक कामों को सराहते हुए संपादकीय लिखे।
एक वाकया याद आता है। मैंने बच्चों से शास्त्री पूल की दीवारों पर चित्रकारी करवाई थी। कुछ ही समय बाद एक बड़े कांग्रेसी नेता के आगमन पर उसे मिटाकर नारे लिख दिए। अभय जी इससे बेहद व्यथित हुए,जिसका जिक्र तो उन्होंने मुझसे किया ही, इस प्रवृत्ति के खिलाफ संपादकीय भी लिखा। मुझे लगता है, उसके बाद शहर की दीवारों पर राजनीतिक लेखन बंद हो गया।
अभय जी की एक बात का खास तौर से उल्लेख करना चाहूंगा। वे अखबार में सपाट ढंग से किसी भी सम्मानित,जिम्मेदार व्यक्ति का नाम लिखना नापसंद करते थे। जैसे—अटल विदेश दौरे पर। वे लिखते थे अटल जी विदेश दौरे पर। नईदुनिया ने उनके संचालन कार्यकाल में हमेशा इस मर्यादा का पालन किया। वे कहते थे,सीधे नाम लिखना विदेशी तरीका है, जो भारतीय संदर्भ में अपमानजनक और अमर्यादित है।वे हिंदी पत्रकारिता में इस तरीके को अपना लिए जाने से असहज महसूस करते थे।
दरअसल, अभय जी छजलानी और नईदुनिया एक लंबे समय तक इंदौर की धड़कन की तरह थे। वे शहर की बेहतरी के लिए खबर, संपादकीय से आगे जाकर व्यक्तिगत पहल करते थे। इंदौर में नर्मदा के पानी को लाने के आंदोलन और बिक चुके राजबाड़ा को सरकार द्वारा अधिगृहीत कर लिए जाने तक चले आंदोलन को नईदुनिया ने जबरदस्त समर्थन दिया। इन्हीं कारणों से अभय जी और उनके कार्यकाल वाला नईदुनिया इंदौर के दिल में सदैव धड़कते रहेंगे।
(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं।

नव संवत्सर का स्वागत, वंदन और अभिनंदन

सूर्य संवेदना पुष्पे:, दीप्ति कारुण्यगंधने । लब्ध्वा शुभम् नववर्षेअस्मिन् कुर्यात्सर्वस्य मंगलम् ॥ जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, संवेदना करुणा को जन्म देती है, पुष्प सदैव सुगन्धित रहता है, उसी तरह यह नव विक्रम संवत 2080 आपके लिए हर दिन, हर पल के लिए मंगलमय हो।

विक्रम संवत 2080 के प्रथम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा हिन्दू नववर्ष है। हिंदू नववर्ष के दिन महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, सिंधी समाज चेटी चंड पर्व, कर्नाटक में युगादि और आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में उगादि, गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग संवत्सर पड़वो, कश्मीर में नवरेह, मणिपुर में सजिबु नोंगमा पानबा का पर्व मनाते हैं। हिन्दू नववर्ष का प्रथम दिन प्रकृति पर्व है और इसका सम्पूर्ण देश के लिए सांस्कृतिक महत्व है। वासंतिक नवरात्र के प्रथम दिन ही मां भगवती के नव रूपों के दर्शन करने का अवसर भी है। नवरात्र में नौ दिनों तक मां भगवती के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नव संवत्सर का दिन हमें हमारी प्राचीन संस्कृति और पर्वों से जुड़ने का अवसर देती है। नव संवत्सर को हम धूमधाम से मनाएं और अपने बंधु-बांधवों को नव वर्ष का स्वागत, वंदन एवं अभिनंदन करते हुए इन दिन के महत्व की जानकारी देकर मनाने के लिए प्रोत्साहित करें। हमारे पुराणों और प्राचीन ग्रंथों के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। आज के दिन भगवानी श्री राम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ था। स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्यसमाज का स्थापना भी इसी दिन की थी। इसी दिन संत झूलेलाल की जयंती मनाई जाती है। राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत करने वाले विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक पूज्यनीय डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार जी जन्मदिवस पर पुण्य स्मरण का दिवस भी है।

भारत के विभिन्न हिस्सों में जैसे महाराष्ट्र और गोआ के अलावा आसपास के राज्यों में नव संवत्सर को गुड़ी पड़वा मनाया जाता है। मराठी नव वर्ष भी ऋतु और संस्कृति से जुड़ा पर्व है। गुड़ी पड़वा को संवत्सर पड़वो के नाम से भी मनाया जाता है। गुड़ी पड़वा में गुड़ी को भगवान ब्रह्मा का प्रतीक और पड़वा को चंद्रमा के चरण प्रथम दिन कहा जाता है। वैसे भी प्रतिपदा को उत्तर भारत में पड़वा कहा जाता है। गुड़ी का अर्थ विजय पताका भी होता है। माना जाता है कि एक कुम्हार-पुत्र शालिवाहन नाम ने मिट्टी के सैनिकों की सेना से अपने शत्रुओं पर विजय पाई थी। इसलिए इस दिन विजय के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार गुड़ी पड़वा के दिन से ही शालिवाहन शक का प्रारंभ भी होता है। भगवान ब्रह्मा द्वारा सृष्टि की रचना के कारण गुड़ी पड़वा के दिन भगवान ब्रह्मा की पूजा अर्चना की जाती हैं। इस पर्व पर समस्त बुराइयों का अंत होता है और सुख समृद्धि का आगमन होता है। मान्यता है कि दक्षिण भारत में भगवान श्रीराम ने राजा बलि का वध करके जनता को आतंक से मुक्ति दिलाई थी।

नव संवत्सर आतंक से मुक्ति दिलाने, बुराई का अंत करने के साथ  सुख एवं समृद्धि की वृद्धि दिलाने वाला पर्व है। नव संवत्सर के दिन स्वच्छ होकर मां भगवती की उपासना करें। अपने परिवार में पकवान बनाएं और आसपास भी वितरित करें। अपने मित्रों को मिठाईं खिलाएं। मंदिरों में जाकर राष्ट्र में शांति और समृद्धि की कामना करें। रात में घरों में दीपक जलाकर नव संवत्सर का स्वागत करें।

सिंधी समाज चेटी चंड के अवसर पर वरुण देवता के अवतार भगवान झूलेलाल की जयंती मनाता है। माना जाता है कि पहले समय में सिंधी समाज के लोग जलमार्ग से अपनी यात्रा की सकुशलता के लिए जल देवता झूलेलाल से प्रार्थना करते थे। यात्रा की सफलता पर भगवान का आभार जताते हैं। सिंधी समाज के बंधु-बांधवों को चेटी चंड जूं लख-लख वाधायूं। आतंक से मुक्ति दिलाने वाले पर्व के अवसर जम्मू-कश्मीर में शांति सुखद अहसास कराती है। जम्मू-कश्मीर में 1990 के बाद नवरेह पर रौनक लौटी है। पिछले वर्ष 32 वर्ष बाद कश्मीर घाटी में नवरेह यानी नववर्ष बहुत धूमधाम से मनाया गया। कश्मीर में नववर्ष की पूर्व संध्या पर थाल बरुन यानी कांसे की चावल से भरी थाली पर अखरोट, बादाम, दूध, दही, लेखनी, स्याही की दवात नया पञ्चांग, अदरक, एक नोट, फूल और छोटा दर्पण रखा जाता है। आईना, नमक आदि सजाकर रखे जाते हैं। सोने से पहले एक दूसरे को नवरेह पोषतु यानी नववर्ष शुभ हो कहा जाता है। नवरेह के अवसर ऋद्धि- सिद्धि-समृद्धि, आरोग्य, दीर्घायु, सुख-शांति, धन-धान्य, औषधि, वनस्पति के लिए कामना की जाती है।

इस नव संवत्सर भारत के विभिन्न हिस्सों में प्राचीन मान्यताओं और परम्पराओं का स्मरण कराता पर्व है। आइये नव संवत्सर पर धूमधाम मनाएं और अपनी गौरवमयी संस्कृति पर गर्व करें और ईश्वर का आभार करें। पुनः सर्वेभ्यः नूतन संवत् 2080 हार्दिक्यः शुभाशयाः

कैलाश विजयवर्गीय

हिंदी पत्रकारिता के सशक्त हस्ताक्षर डॉ. वेदप्रताप वैदिक जी

हिंदी पत्रकारिता के सशक्त हस्ताक्षर डॉ वेदप्रताप वैदिक जी का अवसान हिंदी जगत की पत्रकारिता के लिए एक अपूरणीय क्षति है। मानो हिंदी पत्रकारिता के एक युग का ही अंत हो गया है। डॉ. रामनोहर लोहिया के आदर्शाें पर चलते हुए पत्रकारिता करने वाले वेदप्रताप वैदिक जी ने हिंदी पत्रकारिता को वैश्विक पहचान दिलाई। उनका ये भागीरथी प्रयास अंत तक जारी था। हिंदी के प्रति उनका प्रेम तो महज 13 वर्ष की उम्र में ही दिखाई दिया था, जब उन्होंने हिंदी के लिए सत्याग्रह किया और जेलयात्रा भी की थी।

वैदिक जी को लेकर एक किस्सा यह भी मशहूर है कि वे जब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से शोध कर रहे थे, तो उन्होंने अपना शोधपत्र हिंदी में ही लिखा था, जिसे विश्वविद्यालय ने ख़ारिज कर दिया था। वैदिक जी ने हार नहीं मानी और वे इस मामले को कोर्ट तक ले गए। वेदप्रताप वैदिक जी अफगानिस्तान के बारे में महती जानकारी रखते थे। यही वजह रही कि उन्हें अफगास्तिान में भी वो ही शोहरत हासिल थी, जो उन्हें अपने देश भारत में मिलती थी।

हिंदी पत्रकारिता की बात करें तो हिंदी पत्रकारिता में इंदौर का विशेष योगदान रहा है। हिंदी पत्रकारिता में इंदौर ने कई ऐसे मूर्धन्य पत्रकार दिए है जिन्होंने हिंदी पत्रकारिता को अपने कठिन परिश्रम और साधना से सींचा और संवारा है। जाने माने पत्रकार स्व. ओम नागपाल से वेदप्रताप वैदिक जी ने पत्रकारिता की गुर सीखे थे। इसी की परिणीति रही कि वे हिंदी पत्रकारित को उच्च शिखर तक लेकर गए।

वेदप्रताप वैदिक जी से जुड़े ऐसे कई किस्से हैं, जिन्हें याद करते ही उनके समर्पण और अपने कार्य प्रति उनकी लगन क्षमता का एहसास होता है। जब उनकी पत्नी का देहांत हुआ था तब उन्हें एक जरूरी आर्टिकल लिखना था। एक तरफ़ अर्द्धांगिनी की पार्थिव देह रखी थी, तो दूसरी तरफ़ अपने कर्तव्य का बोध उनके मानस में था। फिर क्या था वे कुछ क्षण के लिए किसी संत की भांति निर्माेही हुए और एक कमरे में जाकर अपने आर्टिकल को पूर्ण किया।

वेदप्रताप वैदिक जी न केवल हिंदी बल्कि अंग्रेजी, अरबी, फारसी के भी जानकार थे। बतौर पू्रफ रीडर अपनी पत्रकारिता शुरू करने वाले डॉ. वैदिक वर्ष 1971 से एक सक्रिय पत्रकार की भूमिका में आ गए थे। उनकी पत्रकारिता के तिरपेन वर्ष हिंदी पत्रकारिता में वैदिक स्वर्ण युग के नाम से जाने जाएंगे। उनका अवसान हिंदी पत्रकारिता की एक बहुत बड़ी क्षति है, जिसकी पूर्ति असंभव प्रतीत होती है।

भारत एक बढ़ता हुआ डिजिटल लोकतंत्र कोविड 19 के बाद

लोकतंत्र में भरोसे की आवश्यकता और डिजिटल स्पेस का महत्व

लोकतंत्र एक बुनियाद भरोसा है. नागरिकों को ये भरोसा होना चाहिए कि उनके पास सही जानकारी है,कि सरकार उनकी हिफ़ाज़त करेगी और उनका वोट मायने रखता है. स्वस्थ लोकतंत्र के काम-काज के लिए सार्वजनिक क्षेत्र ज़रूरी हैं. ये देखते हुए कि डिजिटल स्पेस महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक चर्चा के लिए आवश्यक हो गया है ख़ास तौर से उस वक़्त जब वैश्विक महामारी की वजह से व्यक्तिगत मेल-जोल जोख़िम भरा हो गया है तब डिजिटल कनेक्ट एक वास्तविकता हो गया है और वो लोकतांत्रिक नियमों और परंपराओं को मज़बूत करने के लिए समर्पित होना चाहिए।

रिफॉर्म्स और स्मार्ट गवर्नेंस की दिशा में भारत का नया अध्याय

रिफॉर्म्स को लागू करने के लिए गुड औऱ स्मार्ट गवर्नेंस चाहिए। आज दुनिया इस बात की साक्षी है कि कैसे भारत अपने यहां गवर्नेंस का नया अध्याय लिख रहा है। नियमों-प्रक्रियाओं की समीक्षा होनी चाहिए। केंद्र हो या राज्य सभी के विभागों से, सभी सरकारी कार्यालयों को अपने यहां के नियमों-प्रक्रियाओं की समीक्षा का अभियान चलाना चाहिए। क्योंकि हर वो नियम, हर वो प्रक्रिया जो देश के लोगों के सामने बाधा बनकर, बोझ बनकर, खड़ी हुई है, उसे हमें दूर करना ही होगा।

डिजिटल लोकतंत्र: भारत का अद्वितीय अनुभव और नवाचार

हम डेटा का इस्तेमाल लोगों को शक्तिसम्पन्न करने के स्रोत के रूप में करते हैं। व्यक्तिगत अधिकारों की मजबूत गारंटी के साथ लोकतांत्रिक संरचना में ऐसा करने का भारत के पास बेमिसाल अनुभव है, भारत जैसा विशाल लोकतांत्रिक देश डिजिटल लोकतंत्र के क्षेत्र में नया आयाम गढ़ सकता है, Y2K समस्या से जूझने में भारत का योगदान और को-विन प्लेटफॉर्म को पूरी दुनिया के लिये सहज रूप से उपलब्ध करने की पेशकश भारत के मूल्यों तथा उसके विजन की मिसाल हैं भारत की संसद के लिए अत्याधुनिक तकनीक से लैस भवन और भारत सरकार के सभी मंत्रालयों के कामकाज के लिए एक कुशल और टिकाऊ केंद्रीय सचिवालय का निर्माण करके शासन प्रणाली को मजबूत करने के उद्देश्य वाली सेंट्रल विस्टा परियोजना पर तेजी से काम चल रहा है।

डिजिटल प्रौद्योगिकी में भारत की अग्रणी भूमिका और भविष्य की दिशा

भारत नागरिकों के जीवन को बदलने और शासन में दक्षता लाने के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकी का उपयोग करने वाला प्रमुख राष्ट्र बन गया है। भारत डिजिटल भुगतान, डिजिटल पहचान, प्रौद्योगिकी संचालित कोविड टीकाकरण अभियान चलाने, वित्त प्रौद्योगिकी अपनाने और इंटरनेट तक पहुंच प्रदान करने में दुनिया में अग्रणी है। भारत पहले से ही अपनी मजबूत लोकतांत्रिक साख और सुपरिभाषित संसदीय प्रक्रियाओं और प्रणालियों के लिए जाना जाता है। जल्द ही भारत अपने डिजिटल लोकतंत्र के लिए जाना जाएगा। आने वाले वर्षों में आर्टिफ़िशियल-इंटेलिजेंस, एनालिटिक्स, ब्लॉक चेन आदि जैसी उभरती तकनीक के उपयोग के साथ प्रौद्योगिकी हमारे लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार करेगी।

डिजिटल प्रौद्योगिकी में भारत का नेतृत्व और भविष्य की योजनाएँ

एक अरब 30 करोड़ से अधिक भारतीयों के पास “आधार” विशिष्ट डिजिटल पहचान है, छह लाख गांवों को जल्द ही ब्रॉडबैंड से जोड़ दिया जायेगा और विश्व की सबसे कारगर भुगतान संरचना, यूपीआई भारत के पास है। सुशासन, समावेश, अधिकारिता, संपर्कता, लाभों का अंतरण और जनकल्याण के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल। भारत के पास दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा और सबसे तेजी से विकसित होने वाला स्टार्ट-अप इको-सिस्टम है। भारत के उद्योग और सर्विस सेक्टर, यहां तक कि कृषि क्षेत्र भी विशाल डिजिटल परिवर्तन से गुजर रहे हैं। हम 5जी और 6जी जैसी दूरसंचार प्रौद्योगिकी में स्वदेशी क्षमताओं को विकसित करने के लिये निवेश कर रहे हैं। कृत्रिम बौद्धिकता और मशीन-लर्निंग, खासतौर से मानव-केंद्रित तथा कृत्रिम बौद्धिकता के नैतिक उपयोग के क्षेत्र में भारत अग्रणी देशों में शामिल है। हम क्लाउड प्लेटफॉर्म्स और क्लाउड कंप्यूटिंग में मजबूत क्षमतायें विकसित कर रहे हैं।

हम हार्डवेयर पर ध्यान दे रहे हैं। हम एक पैकेज तैयार कर रहें, ताकि सेमी-कंडक्टर के मुख्य निर्माता बन सकें। इलेक्ट्रॉनिकी और दूरसंचार में हमारा उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। भारत में अपना केंद्र बनाने के विश्व भर में फैली कंपनियां और संस्थायें आकर्षित हो रही हैं, डेटा सुरक्षा, निजता और सुरक्षा के लिये भारत प्रतिबद्ध है।

ग्रामीण भारत में डिजिटल परिवर्तन और ‘वोकल फॉर लोकल’ की पहल

जहां तक ग्रामीण भारत की बात है तो आज हम अपने गांवों को तेजी से परिवर्तित होते देख रहे हैं। बीते कुछ वर्ष, गांवों तक सड़क और बिजली जैसी सुविधाओं को पहुंचाने के रहे हैं। अब गांवों तक ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क, डेटा की ताकत पहुंच रही है, इंटरनेट पहुंच रहा है। गांव में भी डिजिटल एंटरप्रेन्योर तैयार हो रहे हैं। वहीं, वोकल फॉर लोकल की सफलता के लिए सरकार ई-कॉमर्स प्लेटफार्म तैयार करेगी। आज जब देश वोकल फॉर लोकल के मंत्र के साथ आगे बढ़ा रहा है तो यह डिजिटल प्लेटफॉर्म महिला सेल्फ हेल्प ग्रुप के उत्‍पादों को देश के दूर-दराज के क्षेत्रों में और विदेशों में भी लोगों से जोड़ेगा और उनका फलक बहुत विस्‍तृत होगा।

कृषि और वैज्ञानिक नवाचार: खाद्य सुरक्षा और उत्पादन बढ़ाने की दिशा में

वहीं, कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिकों की क्षमता को महत्व दिया जा रहा है, क्योंकि देश के हर क्षेत्र में हमारे देश के वैज्ञानिक बहुत सूझ-बूझ से काम कर रहे हैं। हम अपने कृषि क्षेत्र में भी वैज्ञानिकों की क्षमताओं और उनके सुझावों को शामिल कर रहे हैं । इससे देश को खाद्य सुरक्षा देने के साथ फल, सब्जियां और अनाज का उत्‍पादन बढ़ाने में बहुत बड़ी मदद मिलेगी।

भारतीय उत्पादों की प्रतिष्ठा और स्टार्ट-अप्स का उदय

प्रोडक्ट के साथ प्रतिष्‍ठा को बही अब प्राथमिकता दी जा रहा है। देश मे बना हर एक प्रॉडक्ट भारत का ब्रैंड एंबेसेडर है। देश के सभी मैन्यूफैक्चर्स को ये समझना होगा कि आप जो प्रोडक्ट बाहर भेजते हैं वो आपकी कंपनी में बनाया हुआ सिर्फ एक प्रोडक्ट नहीं होता। उसके साथ भारत की पहचान जुड़ी होती है, प्रतिष्ठा जुड़ी होती है। हमने देखा है, कोरोना काल में ही हजारों नए स्टार्ट-अप्स बने हैं, सफलता से काम कर रहे हैं। कल के स्टार्ट-अप्स, आज के यूनिकॉर्न बन रहे हैं। इनकी मार्केट वैल्यू हजारों करोड़ रुपए तक पहुंच रही है।

डिजिटल लोकतंत्र: भारत में नए व्यवसाय और अवसर

डिजिटल लोकतन्त्र देश वासियो के लिए नई संभावनाओ के द्वार खोलेगा जैसे : आउटसोर्सिंग व्यवसाय, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) उद्योग, को-वर्किंग स्पेस का व्यवसाय, ) 3D प्रिंटिंग, उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं का व्यवसाय, अचल संपत्ति में व्यापार, हेल्थकेयर उद्योग, कंसल्टेंसी व्यवसाय, अक्षय और स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति, लास्ट माइल डिलीवरी सॉल्यूशन व्यवसाय, मोबाइल वॉलेट भुगतान समाधान, होम सोलर एनर्जी सेट अप व्यवसाय, ई-कॉमर्स के लिए वेयरहाउस या इन्वेंटरी प्रबंधन, भारतीय संस्कृति ई-कॉमर्स स्टोर, इंटरनेट इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण व्यवसाय, सामुदायिक जनरेटर, सहयोगात्मक अर्थव्यवस्था व्यवसाय, बॉयोमीट्रिक सेंसर उत्पादन, साइबर हमले से रोकथाम का व्यवसाय, स्वास्थ्य रिकॉर्ड डिजिटलीकरण और साझा करने का व्यवसाय, गगनचुंबी ग्रीन इमारत, P2P लेंडिंग (हर कोई ऋण के लिए बैंक का उपयोग नहीं करना चाहता या कर सकता है)

पीएम की सुरक्षा में सेंध, चूक नहीं साजिश

पंजाब के फिरोजपुर जिले में पाकिस्तान की सीमा से केवल 30 किलोमीटर दूर हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में सेंध कोई चूक नहीं बल्कि एक बड़ी राजनीतिक साजिश है। कांग्रेस के नेताओं और पंजाब के मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की बयानबाजी से पूरी तरह साबित हो रहा है कि उनकी पार्टी के नेताओं ने यह साजिश रची। मौसम खराब होने के कारण प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में बदलाव होने पर कुछ लोगों के प्रदर्शन के कारण उनके काफिले को रोकना, पंजाब पुलिस का प्रदर्शनकारियों को रोकने के बजाय बढ़ावा देना और बठिंडा एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री का पंजाब सरकार के अधिकारियों से यह कहना कि ‘अपने मुख्यमंत्री चन्नी को धन्यवाद कहना कि मैं जिंदा लौट रहा हूं, पंजाब सरकार की साजिश में पंजाब पुलिस के महानिदेशक और अन्य अधिकारियों के शामिल होने के सबूत पेश कर रहे हैं। हमने देखा है कि मोदीजी आमतौर पर इस तरह की तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते। मैंने पश्चिम बंगाल में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान वहां की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी की शह पर तमाम रैलियों में पुलिस की बदइंतजामी पर मोदीजी को भीड़ को नसीहत देते हुए उन्हें संभालते हुए तो देखा पर कभी उन्होंने इस तरह की तीखी प्रतिक्रिया नहीं की। पश्चिम बंगाल में एक नहीं कई बार देखा कि राज्य सरकार की शह पुलिस ने प्रधानमंत्री की रैली में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं किए थे। प्रधानमंत्री की रैली में पंडाल तक गिरा, लोग घायल हुए और और मोदीजी ने संकटपूर्ण स्थिति में माइक लेकर खुद ही मोर्चा संभाला और लोगों को सुरक्षित निकलने की नसीहत दी। कई बार विकट परिरस्थितियों में भी हमने उन्हें विचलित होते नहीं देखा। उनकी चुनावी रैलियों में आतंकवादी हमले की साजिशें रचकर बम विस्फोट किए गए। साजिशों का लगातार पर्दाफाश होने के बावजूद मोदीजी ने कभी तीखी प्रतिक्रिया नहीं की। मोदीजी हमेशा बहुत संयत तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं। पूरे देश ने देखा है कि गुजरात का दंगा हो या मोदीजी को अमेरिका का वीजा न दिलाने की साजिश, उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं की।

साजिश की परतें तो केंद्रीय गृह मंत्रालय के कड़े रवैये और जांच के बाद पूरी तरह खुलेंगी पर पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी का प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए न पहुंचना सिद्ध करता है कि उन्हें प्रोटोकॉल की कोई परवाह नहीं है। पहले से अपनी ही सरकार के मंत्रियों, विधायकों और कांग्रेस के नेताओं के निशाने पर चल रहे चन्नी शायद यह साजिश रचकर सोनिया दरबार में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हों पर पंजाब की जनता तो उन्हें सत्ता से बाहर करने का पूरी तरह मन बना चुकी है। भाजपा के अध्यक्ष श्री जगतप्रकाश नड्डा का यह बयान कि एनएसजी ने मुख्यमंत्री कार्यालय को फोन किया तो किसी ने फोन ही नहीं उठाया, सिद्ध करता है साजिश को पूरी तरह अंजाम देना है। यानी मुख्यमंत्री कार्यालय को पता था कि फोन आने पर कोई कार्रवाई नहीं करनी है। हैरानी की बात तो यह है कि गिने-चुने लोगों के प्रदर्शन करने के दौरान उन्हें रोकने की बजाय लाउड स्पीकर से भीड़ बुलाने की छूट दी गई। मुश्किल से सौ लोग इस दौरान वहां पहुंचे होंगे और रास्ते को भारी सुरक्षा के बावजूद रोक दिया गया। पुलिस ने अवरोध हटाने की कोई कोशिश ही नहीं की। प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक भी साथ नहीं थे। पहले से ही संवेदनशील चल रहे राज्य में मुख्यसचिव और पुलिस महानिदेशक की भूमिका बताती है कि पंजाब नौकरशाही किस हद तक राजनीति में शामिल है। इस साजिश में शामिल सभी लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है।

मोदीजी को फिरोजपुर से 42,750 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का शिलान्यास करना था। फिरोजपुर में पीजीआइ का सेटेलाइट सेंटर, होशियारपुर और कपूरथला में बनने वाले मेडिकल कालेज, दिल्ली-अमृतसर-कटरा एक्सप्रेस वे, अमृतसर से ऊना फोर लेन सड़क अपग्रेडेशन परियोजना, मुकेरियां से तलवाड़ा नई ब्राडगेज रेलवे लाइन परियोजना आदि शामिल थी। इस मौके पर शामिल होने के लिए जा रहे भाजपा कार्यकर्ताओं को रोकने की पूरी कोशिश की गई। भाजपा कार्यकर्ताओं को रैली में शामिल होने से रोकने की शिकायतें तो पहले ही मिलने शुरु हो गई थी। सबसे बड़ा बेशर्मी भरा बयान मुख्यमंत्री चन्नी का है। चन्नी का कहना है कि रैली में भीड़ न जुटने के कारण मोदी ने कार्यक्रम रद्द कर दिया। मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री की रैली में भीड़ जुटने पर तो नजर रखे हुए थे पर उनके काफिले को रोकने की साजिश पर उनकी नजर नहीं थी। चन्नी को भारी ठंड के बीच बारिश के दौरान प्रधानमंत्री का इंतजार करती भारी भीड़ भी नहीं दिखाई दी। कांग्रेस की प्रधानमंत्री की सुरक्षा में सेंध लगवाने की साजिश के बाद देश की जनता में भारी गुस्सा व्याप्त है। अब तो चन्नी की खोटी चवन्नी न चलने का समय भी आ गया है। यह भी सुनने में आ रहा है कि कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने अपने भैया राहुल गांधी का विदेश से लौटने का इंतजार किए बिना उत्तर प्रदेश में कोरोना की आड़ में रैलियों का आयोजन रद्द कर दिया है।

देश की संभावनाओं का क्षितिज

आज देश के यशस्वी प्रधानमंत्री आदरणीय नरेंद्र मोदीजी का 71वां जन्मदिन है। उनका जन्मदिन हमें देश और जनसेवा के प्रति उनके पूर्ण समर्पण की याद दिलाता है। आदरणीय नरेंद्र मोदीजी का जीवन देश, समाज और सबसे कमजोर वर्ग के प्रति सेवा और समर्पण की याद दिलाता है। मोदीजी का जन्मदिन उनके विचार और भविष्य की योजनाओं का भी प्रेरणा स्रोत है। वे कभी पारंपरिक जीवन में नहीं बंधे, बल्कि उससे कहीं आगे निकल गए। उनकी जीवन शैली बताती है कि वे कभी लीक पर नहीं चले। वे समाज में बदलाव देखना चाहते थे। वे समाज और व्यवस्था के हाशिये पर खड़े लोगों के दुःख-दर्द को खत्म करना चाहते थे। युवा अवस्था में ही उनका झुकाव त्याग और तप की और बढ़ा। उन्होंने नमक, मिर्च, तेल और गुड़ तक खाना छोड़ दिया था। उनका जीवन बदला और स्वामी विवेकानंद के विचारों ने उन्हें प्रभावित किया। विवेकानंद का गहन अध्ययन उन्हें आध्यात्मिक यात्रा की और ले गया और उन्होंने देश को जगतगुरु बनाने के स्वामी विवेकानंद के सपनों को पूरा करने के लिए अपने मिशन की आधारशिला रखी।

आदरणीय मोदीजी का परिवार समाज के उस कमजोर तबके से था, जिसे दो वक्त का भोजन जुटाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था। गुजरात के एक छोटे से कस्बे बड़नगर में उनका परिवार एक छोटे से घर में रहता था। श्री नरेंद्र मोदी के पिता रेलवे स्टेशन पर चाय की दुकान चलाते थे। जीवन के शुरुआती दिनों में स्वयं मोदीजी चाय की दुकान पर अपने पिता का काम में हाथ बंटाते थे। इन शुरुआती सालों के संघर्ष ने उनपर गहरी छाप छोड़ी। बच्चे के रूप में श्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पढ़ाई, पाठ्येत्तर जीवन और पिता के चाय स्टाल में उनके योगदान के बीच संतुलन स्थापित किया। यही कारण है कि आज प्रधानमंत्री के रूप में उनके प्रबंधन में गरीब की जीवन शैली बदलना प्राथमिकता में रहा है।

इसमें कोई शक नहीं कि वे आज दुनिया के सबसे प्रभावशाली नेताओं में एक हैं। जिन शक्तिशाली देशों के राष्ट्राध्यक्षों के सामने पूरी दुनिया झुकती थी, वे भी हमारे आदरणीय प्रधानमंत्री के सामने सिर उठाने से पहले सोचते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, जब इन ताकतवर देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने श्री नरेंद्र मोदी से सलाह ली और उस पर अमल भी किया। मोदीजी की विदेश नीति का लोहा सिर्फ एशियाई देश नहीं, पूरी दुनिया के देश मानते हैं। यही कारण है कि अमेरिका की सबसे बड़ी पत्रिका ‘टाइम’ ने ‘2021 के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों’ की सूची में श्री नरेंद्र मोदीजी को शामिल किया है। दुनिया के नेताओं की इस वैश्विक सूची में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग, प्रिंस हैरी और मेगन और डोनाल्ड ट्रंप भी शामिल किए गए हैं। पिछले साल (2020) में टाइम मैग्जीन ने एक आर्टिकल में पीएम मोदी की तारीफ भी की थी। मैग्जीन ने ‘मोदी हैज यूनाइटेड इंडिया लाइक नो प्राइम मिनिस्टर इन डेकेड्स’ यानी ‘मोदी ने भारत को इस तरह एकजुट किया है जितना दशकों में किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया’ शीर्षक से बड़ा आर्टिकल छपा था।

 

माँ (काकी जी) प्रणाम

आज आदरणीय माँ जिन्हें हम सब काकीजी कहते थे की पुण्यतिथि है। वैसे तो मैं जो कुछ भी हूँ, जैसा भी हूँ, उसका सम्पूर्ण श्रेय काकीजी को ही है। पर एक बात जो उन्होंने मुझे सिखाई वो कभी भूले न भूलती है और वह है रामचरित्र मानस पढ़ना। वे कहती थीं तुलसी बाबा के ग्रंथ से बड़ा कोई ग्रंथ नहीं है। रामचरित मानस में हर समस्या का समाधान है। ये रामचरित्र मानस की सीख और काकीजी के संस्कार ही हैं कि आज भी मुझसे झूठ, फरेब ,जुल्म और अत्याचार बर्दास्त नहीं होते। वे कहती थीं कि सत्य की प्रतिस्थापना के लिए तब तक संघर्ष करो जब तक न्याय न मिल जाये। राष्ट्रधर्म हो, राजनीतिक कर्म हों या पारिवारिक दायित्व, सभी मोर्चो पर मेरी भूमिका में स्वर्गीय काकीजी की सीख, और रामचरित्र मानस का ज्ञान परिलक्षित होता है। जब कुछ न था तब भी काकी जी ने खुश रहना, संतुष्ट रहना सिखाया। जब सब कुछ मिल गया तो काकी जी ने अहंकारमुक्त होना सिखाया। वे सिर्फ़ मेरी माँ ही नहीं थीं ,वे मेरी सब कुछ थीं -एक शिक्षक, एक मित्र, एक प्रेरणा, एक पालनहार, एक सलाहकार ,एक आलोचक, एक समीक्षक और सबसे बढ़कर मुझे सही और ग़लत का भान कराने वाली मेरी भगवान वही तो थीं।

काकी जी आपने सब कुछ सिखाया, बस अपने बिना कैसे जीना ये नहीं सिखाया। बहुत याद आती हो आप। अपने कैलाश का प्रणाम स्वीकार करो मां।